मनमोहन जी आपके संबोधन में कोई ठोस तर्क
तो है ही नहीं!
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0राइट टू रिकॉल कानून के बिना सरकार
मनमानी से कैसे रूके ?
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राष्ट्र के नाम संदेश में जो कुछ कहा उसमें
दावे ही दावे हैं कोई ठोस तर्क तो है ही नहीं। भारत बंद और विरोधी दलों के ज़बरदस्त
विरोध के बावजूद यूपीए की मनमोहन सरकार रिटेल एफडीआई से लेकर साल में सब्सिडी वाले
6 एलपीजी सिलंेडर देने के मामले मंे टस से मस होने को तैयार नहीं है। उसका दावा है
कि देश की उन्नति और प्रगति का एकमात्र रास्ता यही आर्थिक सुधार है। कांग्रेस
नेतृत्व वाली इस गठबंधन सरकार को यह भी पता है कि ममता बनर्जी की टीएमसी के बाहर
जाने के बावजूद फिलहाल इस जनविरोधी सरकार के गिरने का ख़तरा नहीं है, लेकिन वह बहुमत के इस तकनीकी गणित के फेर
में यह भूल रही है कि उसकी लोकप्रियता तो पहले ही रसातल में जा चुकी थी लेकिन अब
विश्वसनीय भी ख़त्म हो रही है।
सरकार के इस अड़ियल रूख़ से राइट टू रिकॉल
कानून की ज़रूरत एक बार फिर महसूस की जाने लगी है।
भारत में रिटेल कारोबार लगभग 400 अरब डॉलर का माना जाता है। आज इस कारोबार
में कारपोरेट की हिस्सेदारी मात्र 5 प्रतिशत मानी जाती है। रेहड़ी पटरी वालों को
खुदरा व्यापार मंे शामिल करें तो छोटे दुकानदारों की तादाद 5 करोड़ से अधिक हो जाती
है। इस हिसाब से इन दुकानदारों से जुड़े अप्रत्यक्ष लोगों को जोड़ा जाये तो करीब 20
करोड़ लोग विदेशी निवेश के इस कारोबार में आने से प्रभावित होंगे।
जहां तक सरकार अपने इस क़दम से नये रोज़गार
बढ़ने और अच्छी क्वालिटी का सस्ता सामान उपभोक्ताओं को मिलने का दावा कर रही है, वह कोेेरा झूठ है। अमेरिका की अयोवा
स्टेट यूनिवर्सिटी की स्टडी बताती है कि अयोवा में वालमार्ट आने के एक दशक बाद 555
गल्ले की, 298 हार्डवेयर, 158 महिला परिधान, 153 जूते की, 116 दवा की और 111 पुरूष वस्त्र की
दुकानें बंद हो गयीं। इसका मतलब साफ है कि अमेरिका के इशारे पर काम करने वाले
मनमोहन सिंह बड़े शॉपिंग माल से छोटे दुकानदारों के होने वाले नुक़सान को अमेरिका
में ही देखकर भी अनदेखा कर रहे हैं।
जहां तक आम आदमी को दी जाने वाली सब्सिडी से सरकार के घाटे का सवाल है तो
मनमोहन सिंह से पूछा जाना चाहिये कि साल में मात्र 6 सब्सिडी वाले सिलेंडर दिये
जाने और डीज़ल के दाम 5 रुपये प्रति लीटर बढ़ाये जाने से सरकार को डेढ़ लाख करोड़ की
आय होगी लेकिन दो दो लाख करोड़ के टू जी, कोलब्लॉक और 70 हज़ार करोड़ के सीडब्लूजी घोटालों से जो
राजकोष को नुक़सान हुआ है उसको रोककर जनता को इस महंगाई के बोझ से क्यों नहीं बचाया
जा सकता था? असली बात यह है कि चाहे प्रधनमंत्री
मनमोहन सिंह हों या यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी इन लोगांे को आम जनता की दयनीय
हालत का ना तो पता है और ना ही ये चिंता करते हैं।
उनको तो यह पता है कि अगर ममता बनर्जी की
तृणमूल कांग्रेस ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है तो उसकी भरपाई के लिये सपा और
बसपा दोनों में होड़ लगी है। एक तरफ मुलायम सिंह सरकार के फैसलों का विरोध कर रहे
हैं और दूसरी तरफ उसी सरकार को समर्थन भी दे रहे हैं। उनसे पूछा जाना चाहिये कि
चुनाव चाहे आज हों या 2014 में क्या तब भाजपा का सत्ता में आने का ख़तरा टल जायेगा? पता नहीं उनका कांग्रेस से क्या गोपनीय
समझौता हुआ है जो वह यह भी नहीं समझ रहे कि इस समय अगर सरकार गिर जाती है और निकट
भविष्य में मध्यावधि चुनाव होते हैं तो सपा यूपी में अधिक सीटें जीत सकती है।
अगर राजनीतिक लाभ के हिसाब से ही समाजवादी
पार्टी गुणा भाग कर रही है तो उसे यह भी समझ लेना चाहिये कि एक तरफ निर्धारित समय
पर लोकसभा चुनाव होने पर उसकी यूपी की सरकार अकेेले कानून व्यवस्था के सवाल पर और
अधिक अलोकप्रिय हो चुकी होगी बल्कि भ्रष्ट और जनविरोधी यूपीए सरकार को चलाये रखने
के पाप की कीमत भी उसको चुकानी होगी। अगर वह यह समझती है कि चंद लोकलुभावन
योजनायें लागू करके और भाजपा को सत्ता में आने से रोकने की बात कहकर वह महंगाई और
रिटेल में एफडीआई जैसे मुद्दों से जनता का ध्यान हटाकर 2014 में आम चुनाव में अधिक
लाभ उठा सकती है तो यह उसकी भारी भूल ही होगी।
वह एक तरह से यूपीए सरकार की करतूत में
बराबर की भागीदार और ज़िम्मेदार मानी जायेगी जिसका कोई संतोषजनक जवाब सपा के पास
नहीं होगा। इससे मुलायम सिंह के खिलाफ एक और संदेश जायेगा कि उन्होंने अपने खिलाफ
आय से अधिक मामले में यूपीए सरकार से सीबीआई जांच को ठंडे बस्ते में डलवाने का
सौदा करके मनमोहन सिंह की भ्रष्ट और महंगाई बढ़ाने वाली सरकार को बचाया है। अलबत्ता
सपा के समर्थन वापल लेने पर अगर बसपा सपोर्ट करके सरकार बचाये रखती है तो भी सपा
को राजनीतिक लाभ और बसपा को नुकसान होगा। इस मामले में ममता बनर्जी जनता की निगाह
में सुर्खरू हो चुकी हैं क्योंकि उन्होंने ना केवल अपने कोटे के मंत्रियों से
इस्तीफा दिलाया बल्कि पूरी बेबाकी से समर्थन भी वापस ले लिया है।
ममता ने सपा बसपा की तरह अगर मगर के बहाने यह बहाना भी नहीं लिया कि
उनके समर्थन वापस लेने के बावजूद चूंकि सरकार नहीं गिर पायेगी लिहाज़ा वे कंेद्र से
विरोध मोल लेकर अपने प्रदेश के हित दांव पर नहीं लगा सकतीं। इसका कारण यही माना
जायेगा कि एक तो मुलायम और मायावती की तरह ममता के खिलाफ किसी तरह के भ्रष्टाचार
के आरोप नहीं हैं दूसरे वे जनता के हित को लेकर ज्यादा ईमानदार और ज़िम्मेदार हैं।
मनमोहन सरकार ने साल में 6 सिलेंडर सब्सिडी वाले देने को लेकर एक और झूठा
दावा किया है। यूपीए सरकार का कहना है कि उनके सर्वे में यह पाया गया कि 44
प्रतिशत लोग केवल 6 या उससे कम सिलंेडरों में ही आराम से काम चला लेते हैं। अब
सवाल यह है कि किसी नये नियम कानून को लागू करने के लिये पैमाना 44 प्रतिशत लोगों
को बनाया जाना चाहिये या शेष 56 प्रतिशत लोगों को? एक झूठ इस 44 प्रतिशत के आंकड़े में और
छिपा है वह यह कि सरकार ने जो आंकड़ा सर्वे में पाया वह उल्टा है। सबको पता है कि
गैस एजंसी वाले 21 दिन बाद गैस बुक कराने की सुविधा के बावजूद ब्लैक करने की नीयत
से किसी को भी समय पर पूरी ज़रूरत के हिसाब से गैसे उपलब्ध नहीं कराते। देश की कई
गैस एजंसियों पर तो 21 दिन बाद गैस ही बुक नहीं की जाती।
अब सवाल यह है कि जब गैस 21 नि बाद बुक
की नहीं की जायेगी तो अगला सिलेंडर निर्धारित समय बाद मिलेगा कैसे? एजंसी स्वामी का कहना होता है कि जब गैस
आयेगी तब मिलेगी और नतीजा यह होता है कि दो दो माह बाद लोगों को सिलेंडर मिला पाता
है। इसका मतलब यह हुआ कि लोग सिलंेडर तो 21 दिन में या हर महीने लेना चाहते हैं
लेकिन उनको साल में 6 या उससे कम सिलेंडर देकर एजंसी वाला ब्लैक में सिलेंडर
ख़रीदने को मजबूर करता है। यह साफ सा गणित है कि जब किसी को उसकी ज़रूरत से कम गैस
सप्लाई दी जायेगी वह तभी तो ब्लैक में सिलेंडर ख़रीदने को मजबूर होगा। इस ब्लैक का
पैसा स्थानीय पुलिस, प्रशासन से लेकर उच्च अधिकारियों और मंत्रियों
तक को जाता है। इसी ब्लैक से बचने को लोगों ने मजबूरन एक से अधिक गैस कनैक्शन अपने
नाम से या पति, पत्नी और बच्चो के नाम से या फिर फर्जी
नामों से जारी करा रखे हैं।
जब सरकार ने यह नियम बनाया कि हर कनैक्शन
के साथ राशन कार्ड लगाना ज़रूरी होगा तो लोगों ने राशन कार्ड भी एक से अधिक बनवा
लिये। और तो और खुद गैस एजंसी संचालकों ने थोक में फर्जी राशन कार्ड जारी कराकर
फर्जी गैस कनैक्शन अपने पास रखे हुए हैं जिनको वे ब्लैक के साथ ही कॉमर्शियल और
इंडस्ट्रियल खपत के लिये इस्तेमाल करते हैं। सरकार इस गड़बड़ी को ना रोककर उन ईमानदार
और सीधेसादे शरीफ लोगों के पेट पर लात मार रही है जिन्होंने एक सच्चे और अच्छे
नागरिक तरह एक ही गैस कनैक्शन ले रखा है। एक बात सरकार साफ साफ समझ ले कि अगर वह
एक के बाद एक जनविरोधी फैसला करके केवल बहुमत की दुहाई देकर अपनी मनमानी पर अड़ी
रहती है तो किसी दिन भी देश की परेशान जनता उसके खिलाफ सड़कों पर उतर सकती है जिससे
लोकतंत्र को ख़तरा पैदा हो सकता है।
0कैसे लड़े मुक़द्दमा खुद से उसकी बेवफाई का,
ये दिल भी वकील उसका ये जान भी गवाह उसकी।।
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