Tuesday, 21 January 2014

मोदी के आने सीटें बढ़ सकती हैं

वाजपेयी उदार और आडवाणी कट्टर क्यों माने जाते रहे हैं?
                   -इक़बाल हिंदुस्तानी
0 मोदी को आगे लाने से भाजपा की सीटेें बढ़ सकती हैं घटक नहीं!
     भाजपा नेता शाहनवाज़ हुसैन ने मोदी का बचाव करते हुए यह सवाल  उठाया है कि नितीश कुमार जैसे एनडीए घटक नेताओं को या तो सभी भाजपा नेताओं को साम्प्रदायिक मानना चाहिये या सेकुलर मानना चाहिये। शाहनवाज़ हुसैन भूल रहे हैं कि अटल बिहारी अपनी उदार और कम साम्प्रदायिक सोच की वजह से 24 सहयोगी दलों को जोड़कर प्रधानमंत्री बनने और 6 साल सरकार चलाने में कामयाब रहे थे। आडवाणी अपनी कट्टर हिंदूवादी छवि की वजह से ही आज तक पीएम नहीं बन पाये। इसी लिये उन्होंने अपनी छवि को उदार दिखाने के लिये 2005 में पहले पाकिस्तान दौरे के बीच इतिहास के सहारे जिन्ना को सेकुलर बताते हुए उनका यह सपना सही दोहराया था कि जिन्ना चाहते थे कि पाक एक सेकुलर स्टेट बने लेकिन चूंकि वह पाकिस्तान बनने के बाद अधिक दिनों तक ज़िंदा नहीं रह सके जिससे मुस्लिम कट्टरपंथियों को पाक को मुस्लिम या इस्लामी राज्य घोषित करने से कोई रोकने वाला नहीं था। अजीब बात यह है कि जब आडवाणी ने 6 दिसंबर 1992 की विवादित बाबरी मस्जिद शहीद होने की घटना पर दुख जताते हुए उसे अपने जीवन का काला दिन बताया तो उनसे हिंदू कट्टरपंथी ही नहीं संघ परिवार भी ख़फा हो गया । कट्टरपंथी हिंदू तो बाल ठाकरे की इस स्वीकारोक्ति पर खुश होता था कि अगर बाबरी मस्जिद शिवसैनिकों ने तोड़ी है तो उनको अपने सैनिकों पर गर्व है। वह इस बयान के लिये जेल जाने के लिये तैयार रहते थे जबकि आडवाणी ने कभी इतना दुस्साहस नहीं दिखाया जबकि गुजरात दंगों की तरह जैसे मोदी को कसूरवार माना जाता है वैसे ही आडवाणी को मस्जिद शहीद होने का ज़िम्मेदार माना जाता रहा है। अजीब बात यह है कि इसके बावजूद संघ आडवाणी की जगह एमपी के सीएम शिवराज या सुषमा स्वराज जैसे उदार नेताओं को पीएम पद का प्रत्याशी बनाने की बजाये आडवाणी से भी कट्टर और बर्बर दंगों के आरोपी मोदी को आगे लाकर यह मानकर चल रहा है कि इसी से यूपीए की जगह एनडीए को सत्ता में लाने का लक्ष्य पूरा किया जा सकता है। हमारा मानना है कि देखते रहिये मोदी भी इसी कट्टरपंथ की वजह से पीएम नहीं बन पायेंगे। यह अलग बात है कि अपने भाषणों से साम्प्रदायिकता फैलाकर वे भाजपा के वोट और सीटें कुछ बढ़ादें लेकिन जब सहयोगी दलों का सवाल आयेगा तो देखना शिवसेना, अकाली दल और जयललिता के अलावा चौथा दल तलाश करना मुश्किल हो जायेगा। जब तक भाजपा कट्टरपंथ और हिंदूवादी राजनीति नहीं छोड़ देती उसको सरकार बनाने का मौका मिलना फिलहाल तो कठिन लगता है लेकिन अगर बनी भी तो शर्त वही होगी कि उदार और कम साम्प्रदायिक छवि के नेता को आगे लाना होगा। कोई भी सेकुलर दल केंद्र में सरकार बनवाकर दो चार मंत्रियों पद पाकर अपनी राज्य की सत्ता को दांव पर नहीं लगा सकता। पहले ही पासवान, चन्द्रबाबू नायडू और नवीन पटनायक जैसे सेकुलर नेता इस राजनीतिक गल्ती का काफी खामयाज़ा भुगत चुके हैं। अब तो ममता और मायावती भी यह जोखिम नहीं ले पायेंगी। दरअसल नफ़रत और आग खून की जिस तंगनज़र राजनीति को 1989 में आडवाणी ने भाजपा की रथयात्रा निकालकर पार्टी को 2 से 88 सीटों पर पहुंचाया था पिछले दिनों आडवाणी के इस्तीफे से यह बात एक बार फिर साबित हो गयी कि इंसानी खून बहाकर सत्ता हासिल करने की इस जंग में नेता बनने की होड़ में संगठन में तो वही जीतेगा जो पहले वाले से भी और ज़्यादा कट्टर और बर्बर होगा। मोदी के विकास का केवल ओट के लिये बहाना लिया जा रहा है, सच तो यह है कि उनसे ज़्यादा विकास शिवराज सिंह और नीतिश कुमार ने किया है लेकिन 2002 के दंगों में जिस वहशीपन और मक्कारी से मोदी पर मुस्लिमों को मारने काटने और जलवाने के गंभीर आरोप हैं और आज तक हर जांच से चालाकी और साम्प्रदायिकता के बल पर वह बच गये है इसलिये आज मोदी को आगे लाया जा रहा है। हमें अपने सेकुलर और आधे से अधिक अमन पसंद हिंदू भाइयों पर अभी भी पूरा भरोसा है कि वे मोदी जैसे ’’हिटलर’’ का पीएम बनने का सपना कभी पूरा नहीं होने देंगे।  2002 के गुजरात दंगों में नरोदा पाटिया के नरसंहार लिये दोषी ठहराई गयी पूर्व मंत्री माया कोडनानी और 9 अन्य के लिये मौत की सज़ा की अपील करने के मामले में गुजरात की मोदी सरकार ने हिंदूवादी संगठनों के दबाव में यू टर्न ले लिया है। हालांकि इस मामले में गठित एसआईटी ने मोदी सरकार की बात ना मानकर सुप्रीम कोर्ट की राय जानने का फैसला किया है लेकिन इससे मोदी के तथाकथित सेकुलर होने, उनकी सरकार के दंगों में शरीक ना होने और सबको बराबर समझने के दावे की एक बार फिर पोल खुल गयी है। भाजपा की इस बेशर्मी, बेहयायी और न्याय के दो पैमानों पर अफसोस और हैरत जताई जा सकती है कि एक तरफ बलात्कार के मामलों में वह फांसी की मांग करती है और दूसरी तरफ सैंकड़ों बेकसूर इंसानों और मासूम बच्चो के हत्यारों और बलात्कार करने के बाद बेदर्दी से खुलेआम सड़क पर दौड़ा दौड़ाकर मारी गयी महिलाओें के कसूरवारों को फांसी से बचाने की घिनौनी कोशिश कर रही है। भाजपा अगर यह समझती है कि सरबजीत के मामले में तो वह शराब के नशे में उसके सीमा पार जाने पर वहां उस पर लाहौर में बम विस्फोट का आरोप होने के बाद जेल में मारे जाने पर एक करोड़ रू0 से अधिक मुआवज़ा, पेट्रोल पंप, सरकारी ज़मीन का पट्टा, परिवार के एक से अधिक सदस्यों को सरकारी नौकरी, शहीद का दर्जा और उसका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ कराने में उसके हिंदू होने की वजह से ज़रूरी समझती है जबकि यूपी में ड्यूटी के दौरान मारे जाने वाले एक मुस्लिम सीओ के परिवार को ऐसी सुविधा देने पर उसको भारी आपत्ति होती है। ऐसे ही 2009 के चुनाव में पीलीभीत में भड़काउू भाषण देने वाले अपने एमपी वरूण गांधी को तो वह दोषी होते हुए भी चुपचाप सपा सरकार से सैटिंग करके बाइज़्ज़त बरी कराती है जबकि जस्टिस निमेष आयोग की जांच में बेकसूर पाये गये मुस्लिम युवकों को वह अखिलेश सरकार द्वारा बरी किये जाने का जमकर साम्प्रदायिक आधार पर ही पक्षपातपूर्ण पूर्वाग्रह के आधार पर अंधविरोध करती है। इसी काम को आगे बढ़ाने के लिये मोदी को पीएम पद का भाजपा प्रत्याशी बनाया जा रहा है जिससे यह सेकुलर बनाम साम्प्रदायिक मोर्चे की सीधी जंग बन जायेगी और कांग्रेस, वामपंथी और क्षेत्रीय दल मोदी की वजह से ही एक प्लेटफॉर्म पर जमा होते जा रहे हैं। इस मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी की यह आशंका सही साबित होने जा रही है कि जो मुकाबला यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार बनाम साफ सुथरी सरकार के विकल्प को लेकर होना चाहिये था वह अब मोदी बनाम गैर भाजपा में बदल जायेगा।
0 अजीब लोग हैं क्या खूब मुंसफी की है,
 हमारे क़त्ल को कहते हैं खुदकशी की है।
 इसी लहू में तुम्हारा सफीना डूबेगा,
 ये क़त्ल नहीं तुमने खुदकशी की है।।  

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