मुलायम सिंह जी आपको कौन धोखा दे सकता है?
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0आपको तो सियासत में खुद धोबीपाट मारने में
महारत हासिल है!
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने कहा है कि कांग्रेस की यूपीए सरकार को
सपोर्ट करके वे धोखा खा गये। जो असली बात थी वह उन्होंने नहीं बताई कि आय से अधिक
मामले में सीबीआई जांच में फंसने से बचने के लिये एक डील के तहत उन्होंने
महाभ्रष्ट मनमोहन सरकार को सबके मना करने के बावजूद दूसरी बार सपोर्ट किया था।
इससे पहले उन्होंने कम्युनिस्टों के अमेरिकी परमाणु करार पर सपोर्ट वापस लेकर
यूपीए-1 सरकार गिराने पर गुप्त समझौते के तहत कांग्रेस सरकार को समर्थन दिया था।
ममता बनर्जी के साथ प्रेसीडेंट चुनाव पर साझा प्रत्याशी के नाम पर सहमति जताने के
बाद मुलायम सिंह अचानक प्रणव मुखर्जी को सपोर्ट करने पर राज़ी हो गये थे। ऐसा ही
धोबीपाट उन्होंने रिटेल एफडीआई के मुद्दे पर यूपीए-2 सरकार बचाकर किया था। यही वजह
है कि मुलायम आज भरोसा खो चुके हैं। भाजपा का हव्वा खड़ा कर मुलायम सिंह जिन मुसलमानों
की साम्प्रदायिक गोलबंदी और यादव व कुछ अन्य पिछड़ों जातियों के बल पर कई बार सत्ता
में आ चुके हैं, अपनी जाति के सिवा सबके साथ धोखा ही करते रहे
हैं। उनके सत्ता मंे आते ही भाजपा मज़बूत होने लगती है। वे ऐसी दो चार लुभावनी
घोषणाएं करते हैं जिनसे मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप सही लगने लगता है। दंगे होने
लगते हैं और सच्चर कमैटी से लेकर मुस्लिम आरक्षण का शोर तो खूब मचता है लेकिन
मुसलमान ही किसी की भी भलाई का कोई ठोस काम होता नज़र नहीं आता है। भ्रष्टाचार चरम
पर पहंुच जाता है और कानून व्यवस्था चौपट होने लगती है। यह जनता के साथ धोखा नहीं
तो और क्या है? राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था कि ‘‘समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका
भी अपराध’’। यूपीए की महाभ्रष्ट मनमोहन सरकार को दूसरी
बार समर्थन देकर मुलायम सिंह तो एक तीर से कई शिकार कर रहे हैं। एक तरफ वे सीबीआई
के फंदे से बचते नज़र आ रहे हैं और दूसरी तरफ यूपी में अपने बेटे की सरकार के लिये
केंद्र से ख़ज़ाने का मुंह खोलने की शर्त मनवाने मंे कामयाब हो रहे हैं। इतना ही
नहीं मुलायम को चन्द्रशेखर और चरण सिंह की तरह एक बार चाहे जैसे चाहे जितने दिन का
प्रधानमंत्री बनाने का सपना भी कांग्रेस ने बड़ी चालाकी से दिखा दिया है। यह
राजनीतिक गणित भी साफ है कि बिना कांग्रेस के सपोर्ट के मुलायम कुछ भी करलें पीएम
बनने का ख्वाब पूरा कर नहीं सकते। एक बार को मायावती तो एनडीए की वाजपेयी सरकार की
तरह एनटाइम पर यूपीए सरकार के विरोध में अपने सांसदों के वोेेट डलवा भी सकती थीं
लेकिन मुलायम ऐसा चाहकर भी नहीं कर सकते वजह साफ है। अगर आज यूपीए सरकार मुलायम
सिंह की सपा की वजह से गिर गयी और कल चुनाव होने पर वह बहुमत में नहीं आयी तो वह
किसी कीमत पर भी मुलायम के चार दिन का पीएम बनने का सपना पूरा नहीं होने देगी।
इतिहास गवाह है कि एक बार वाजपेयी की एनडीए सरकार एक वोट से गिरने के बाद जब
सोनियां गांधी ने मुलायम सिंह की सपा को सेकुलर मानकर अपने साथ होने का राष्ट्रपति
के पास जाकर दावा किया और सरकार बनाने का इरादा जताया तो वे भाजपा के दबाव में
पलटी मार गये और सोनिया के विदेशी मूल का
होने का मुद्दा उठाकर उनको शपथ लेने से रोक दिया। सोनिया उस समय तो खून का घंूट
पीकर खामोश रह गयीं लेकिन उन्होंने मुलायम को उसी समय सबक सिखाने की क़सम खा ली थी।
उस एक भूल का खामियाजा मुलायम आज तक भुगत रहे हैं। 2004 में वामपंथियों के लाख जोर
देने के बावजूद सोनिया ने मुलायम का बिन मांगे दिया गया समर्थन भी नहीं स्वीकार
किया। इसके बाद 2009 मंे एक बार फिर मुलायम यूपीए में घुसने की दिलो जान से कोशिश
करते रहे लेकिन सोनिया 1998 का मुलायम का धोखा चूंकि अभी तक नहीं भूली थीं सो वे
इस बार भी उनको उनकी औकात बताती रहीं। सोनिया गांधी यह भी जानती थीं कि यूपीए को
सपोर्ट करके उनका वरदहस्त हासिल करना मुलायम की मजबूरी हो सकती है उनकी कांग्रेस
की नहीं। हालांकि अप्रत्यक्ष रूप से 1999 के चुनाव में एनडीए की सरकार एक बार फिर
बनने में सहयोग देने के इनाम के तौर पर भाजपा ने मायावती के साथ यूपी में अपना
गठबंधन तोड़कर मुलायम की सरकार बनवा दी थी। इसके लिये बसपा में दलबदल करारकर भाजपा
के ही स्पीकर केसरीनाथ त्रिपाठी को लंबे समय तक सपा सरकार ने इस पद पर बनाये रखा
था। साथ ही कांग्रेस के रण्नीतिकारों को यह भी अच्छी तरह से मालूम था कि जिस भाजपा
से मिलीभगत करके मुलायम ने सोनिया को शपथ लेने से रोका था उस भाजपा के साथ वह
खुलकर खड़े नहीं हो सकते। भाजपा से निकाले
जा चुके कल्याण सिंह के साथ मिलकर 2009 का चुनाव लड़कर मुलायम सिंह की आंखे पहले ही
खुल चुकी थीं। इतिहास गवाह है कि जब मुलायम को लगा कि कल्याण के साथ आने से उनको
फायदा नहीं नुकसान हो रहा है तो उन्होंने कल्याण को अलविदा कहने में तनिक देर नहीं
की, भले ही कल्याण इस पर उनको धोखेबाज़ बताते रहे
हों। ऐसे ही पूर्व सपाई बेनीप्रसाद वर्मा, राजबब्बर और अमर सिंह के साथ मुलायम धोखा कर
चुके हैं। वीपी सिंह जब पीएम थे तो मुलायम सिंह अपने राजनीतिक गुरू चन्द्रशेखर के
साथ मिलकर उनकी सरकार गिरवाने का जाल बुन रहे थे जिसमें वह वीपी को धोखा देकर सफल
भी रहे। मुलायम ने यूपी में आडवाणी की रथयात्रा रोकने से भी दो टूक मना कर दिया था
जिसकी वजह से बिहार के समस्तीपुर में लालू की सरकार ने यह काम अंजाम दिया था। इसी
लिये आज मुलायम अपनी भूलसुधार कर कांग्रेस के साथ रहने का मजबूर नज़र आ रहे हैं। आज
मुलायम के इसी अवसरवाद के चलते वह राजनीति में अजित सिंह के बाद सबसे अविश्वसनीय
नेता बन चुके हैं। संयुक्त मोर्चा सरकार में उनको रक्षामंत्री जैसा महत्वपूर्ण पद
वामपंथियों की बदौलत मिला था लेकिन मुलायम ने कांग्रेस को सपोर्ट करने के मामले
में उनको भी धोखा देने में परहेज़ नहीं किया जिससे पिछले दिनों माकपा महासचिव
प्रकाश करांत ने मुलायम को आईना दिखाते हुए साफ कहा कि मुलायम सिंह जैसे नेताओं के
रहते चुनाव से पहले तीसरा मोर्चा बनाना बेकार है क्योंकि चुनाव बाद वह सत्तासुख के
लिये एक बार फिर कांग्रेस के साथ हाथ मिला सकते हैं।
0मुहब्बत के लिये कुछ ख़ास दिल मख़सूस होते हैं,
ये
वो नग़मा है जो हर साज़ पे गाया नहीं जाता।
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