हम
धार्मिक हैं कहां, धर्म का केवल ढोंग ही तो करते
हैं!
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0 भगवान
का डर होता तो क्या उसके बताये रास्ते पर नहीं चलते?
तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा ने हम भारतीयों
पर बड़ा सामयिक सवाल उठाया है कि जब हम लोग धार्मिक हैं और भगवान से डरते हैं तो
फिर कैसे पूजापाठ के साथ भ्रष्टाचार भी करते हैं? यह बात धर्मगुरू ने लद्दाख़ दौरे के दौरान यह
जानकारी मिलने पर कही कि सरकार उस क्षेत्र के लिये जो 100 रुपये भेजती है उसमें
मात्र 20 रु. ही उनको मिल पाते हैं। उनका सवाल है कि बाकी के 80 रु. कौन खा जाता
है? सच तो यह है कि हम लोग धार्मिक
होने का केवल दिखावा यानी ढांेग ही करते हैं लेकिन अंदर से हम धार्मिक हैं ही
नहीं।
हकीकत यह है कि हमारा धर्म में विश्वास ही
नहीं है। मिसाल के तौर पर अगर हम यह दिल से मानते कि ईश्वर है और वह मरने के बाद
हमारे कामों का हिसाब किताब लेगा तो क्या हमारी हिम्मत हो सकती है कि हम मनमानी
करेें? नहीं बिल्कुल नहीं। अगर हमारा यह
यकीन हो कि हम सच बोलेंगे तो हमारा भला होगा तो क्या फिर भी हम झूठ अधिक बोलते? यदि ईमानदारी पर हमारा भरोसा होता तो क्या हम
बेईमानी करने की हिम्मत कर सकते थे? हद तो यह
है कि हम लोगांे ने पूजापाठ, नमाज-रोज़ा
और गुरूवाणी के पाठ को ही सारा धर्म मान लिया है। क्या वजह है कि जो लोग धार्मिक
कर्मकांड खूब करते हैं लेकिन उनके कर्म भी धर्म के अनुसार नहीं होते हैं? अधिकांश लोग या तो धार्मिक कर्मकांड केवल दिखावे
के लिये कर रहे हैं या फिर वे ऐसा करके अपने मन को संतुष्ट कर लेते हैं कि चलो
भगवान का कहा भी कर लिया।
धर्म का
ढांेग करने करने वालों से पूछा जाना चाहिये कि क्या ईश्वर की अराधना करना ही धर्म
का मर्म है? धर्म ने जो कुछ बताया है अगर आप
24 घंटे और साल में 365 दिन उसके अनुसार कर्म नहीं करते तो आप कहां धर्म का पालन
कर रहे हैं? हम सही मायने में धार्मिक तब ही
हो सकते हैं जब हम धर्म के अनुसार ही अपने जीवन के सब काम करेें। इस्लाम और हिंदू
धर्म के मानने वाले तो यह दावा भी करते हैं कि धर्म केवल वह नहीं है जो हम धार्मिक
स्थलों में जाकर करते हैं बल्कि असली धर्म तो उन बातों पर अमल है जो हम ईश्वर से
मंदिर मस्जिद में जाकर वादा करके आते हैं।
इस्लाम में तो बाकायदा हकूक उल इबाद और हकूक
अल्लाह का प्रावधान है। हकूक उल इबाद यानी हमारे वो काम जो दूसरे लोगों से जुड़े
हैं। मिसाल के तौर पर अगर हमने किसी बंदे का दिल दुखाया, उसका हक़ अदा नहीं किया, उसके साथ बेईमानी की, मां बाप की देखभाल नहीं की , पत्नी को सताया, बच्चो का ठीक से पालनपोषण नहीं किया, उनके खाने पीने का इंतज़ाम नहीं किया, पढ़ाया लिखाया नहीं या आवारा और अपराधी बनने दिया, पड़ौसी का हक़ अदा नहीं किया, देश से वफादारी नहीं की,भाई का ख़याल नहीं रखा, बिजली या टैक्स चोरी किया, कानून तोड़ा, झूठ बोला, धोखा दिया, हराम रोज़ी
कमाई, बहनों का हिस्सा रख लिया, चुगली की, गरीबों को
दी जाने वाली ज़कात नहीं दी, सामर्थवान
और सक्षम होते हुए ज़रूरतमंदों की मदद नहीं की, बलवान और योग्य होते हुए बुराई को नहीं रोका कुछ
ऐसी बाते हैं जिनको हकूक उल इबाद यानी दुनिया के प्रति एक मुसलमान की ज़िम्मेदारी
मानी गयी हैं।
खास बात
यह है कि अगर आपने इनमें से कोई भी काम अधूरा छोड़ दिया या गल्ती की तो अल्लाह मरने
के बाद आपको तब तक माफ नहीं करेगा जब आपके इस तरह के काम से पीड़ित और प्रभावित
बंदा आपको माफ नहीं करता। जहां तक हकूक अल्लाह का सवाल है तो उसमें यह गुंजायश
मानी गयी है कि क्योेंकि अल्लाह रहम करने वाला और माफ करने वाला है इसलिये वो
जानबूझकर किये गये गुनाह तो नहीं लेकिन अनजाने या भूलचूक से किये गये ऐसे गुनाह
जिनसे नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात और
इबादत में कोई कोताही रह गयी हो तो उनको माफ कर सकता है। इससे सोचने की बात यह है
कि हकूक अल्लाह से भी बड़ा काम हकूक उल इबाद को पूरा करना हो जाता है, लेकिन देखने में यह आता है कि लोग हकूक अल्लाह को
ही सारा धर्म मान बैठे हैं।
विडंबना
यह है कि समाज भी उसी दिखावे और ढोंग को धर्म मानकर ऐसे लोगों को धार्मिक होने का
तमगा दे देता है।
आंकड़े गवाह हैं कि जितने लोग अब तक धर्म के
नाम पर हाने वाली लड़ाइयों, दंगों और
टकराव में मरे हैं, उतने जंगों में नहीं मरे हैं।
मिसाल के तौर पर हिटलर ने लाखों यहूदियों को केवल उनके धर्म से नफरत के कारण मौत
के घाट उतार दिया। इहिसा बताता है कि ईसाई मुसलमान और यहूदी भी धर्मयुध्द के नाम
पर लंबे समय तक खूनखराबा करते रहे। खुद हमारे देश में 1947 के बंटवारे में लाखों
इंसानों को हिंदू मुसलमान होने के कारण बेदर्दी से काट दिया गया। महिलाओं से
बलात्कार किये गये और बच्चो तक को नहीं बख़्शा गया। इसके बाद 1984 में सिख
सुरक्षाकर्मियों द्वारा तत्कालीन प्रधनमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या करने के बाद
सिखों को उनके धर्म के कारण हज़ारों की तादाद में एक ही दिन में बेदर्दी से मारा
गया। गोधरा में 2002 में कारसेवकों को रेल में ज़िंदा जलाने के बाद पूरे गुजरात में
मुसलमानों को पुलिस प्रशासन की शह पर थोक में सबक सिखाया गया।
2000 में
वलर््ड ट्रेड संेटर पर हमले से बौखलाकर अमेरिका ने मुसलमानों को सज़ा देने के लिये
अफगानिस्तान को तहस नहस कर दिया। इसके साथ मुस्लिम मुल्क ईराक को झूठा आरोप लगाकर
जार्ज बुश ने बरबाद कर डाला। अब अमेरिका का अगला निशाना मुस्लिम मुल्क होने वजह से
ही ईरान बन सकता है। हाल ही में अमेरिका में बनी इस्लाम विरोधी एक फिल्म पर नाराज़
लोगों ने लीबिया में अमेरिकी दूतावास पर हमला कर उसके राजदूत सहित कई लोगों को मार
डाला। पाकिस्तान में वहां के हिंदू और ईसाइयों को केवल धर्म के कारण ही पक्षपात और
धर्मपरिवर्तन के लिये मजबूर किया जाता है। आयेदिन हमारे देश में धर्म के नाम
पर कहीं ना कहीं दंगे, झगड़े और तनाव होता ही रहता है।
यह बात
हमारी समझ से बाहर है कि एक तरफ तो हमारा दावा यह है कि सभी धर्मों का सार अमन, एकता और भाईचारा है और दूसरी तरफ सब अपने अपने
धर्म को ही सच्चा और अच्छा बताकर दूसरों को सता रहे हैं और यहां तक कि जो जहां
सक्षम और शक्तिशाली है उसने कमजोर और अल्पसंख्यकों का उनके धर्म के कारण ही जीना
दूभर कर रखा है। धर्म को मानने वाले लोग भ्रष्ट, पक्षपाती, हत्यारे, बलात्कारी, चोर, डकैत, जातिवादी, साम्प्रदायिक, वंशवादी, सामंतवादी, तानाशाह, लालची, अंधविश्वासी, झूठे, मक्कार, धोखेबाज़, कट्टरपंथी, दंगाई, मानवताविरोधी, बेईमान, वादाफरामोश, एहसानफरामोश और दोगले कैसे हो जाते हैं? इस सवाल का जवाब धर्म के ठेकेदारों को ज़रूर देना
होगा कि क्या ऐसे तथाकथित लोगों को धर्म में
वास्तव में विश्वास और अकीदा है कि या वे धार्मिक होने का ढोंग ही करते हैं?
अजीब बात
यह है कि जो लोग ऐसा नहीं करते वे भी ऐसा करने वालों का समर्थन करते नज़र आते हैं
तो फिर भी वे सीधे उपरोक्त बुराइयों में शामिल ना होने के बावजूद खुद कितने पाक
साफ और सच्चे धार्मिक रह जाते हैं यह यक्ष प्रश्न है। अब समय आ गया है कि हमें यह
मान लेना चाहिये कि धर्म की आड़ में मनमानी करने वाले धर्मिक ही नहीं हैं। जो लोग
ईमानदारी, नैतिकता और मानवता को अपने
व्यवहार और आचरण में उतार चुके हैं वे ही सही मायने में सभ्य कहलाने लायक मुट्ठीभर
चरित्रवान और नेक इंसान हैं।
0 क़तरा गर एहतजाज करे भी तो क्या करे,
दरिया तो सब के सब समंदर से जा मिले।
हर कोई दौड़ता है यहां भीड़ की तरफ,
फिर यह भी चाहता है मुझे रास्ता मिले।।
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