Friday, 24 January 2014

दुर्गा शक्ति नाग पाल

दुर्गाकी शक्तिछीनने वाले नागतो हर पार्टी ने पालरखे हैं!
  -इक़बाल हिंदुस्तानी
0 निलंबन व तबादले पर नियम नहीं नीयत बदलने से होगा सुधार!
     यूपी के नोयडा की उपज़िलाधिकारी रही दुर्गा नागपाल के निलंबन मामले पर केंद्र इस बात पर विचार कर रहा है कि किसी आईएएस अधिकारी का निलंबन या तबादला किसी निहित स्वार्थ के कारण ना हो। सवाल यह है कि यह कैसे तय होगा कि निहित स्वार्थ है या नहीं? सबको पता है कि जिस तरह से दुर्गा नागपाल का निलंबन करना तो खनन माफिया के कारण था लेकिन आधार मस्जिद की दीवार गिराना बनाकर किया गया। राजनेता ही नहीं खुद अधिकारी इतने भ्रष्ट और ज़मीरफ़रोश हो चुके हैं कि उनको इस बात के लिये ज़रा भी शर्म नहीं आती कि भ्रष्ट राजनेताओं से मिलीभगत करके अपने ही एक ईमानदार और बोल्ड अधिकारी को ईमानदारी और कानूनी कर्तव्य पूरा करने की बेजा सज़ा दे रहे हैं। यह गैर कानूनी ही नहीं बल्कि अनैतिक और समाज विरोधी भी है। अगर गहराई से देखा जाये तो आप पायेंगे अधिकांश मंत्री से लेकर सांसद और विधायक इतने कम पढ़े लिखे और मूर्ख होते हैं कि उनको पैसा खाने की स्कीम और प्लान यही काबिल या तेज़तर्रार अधिकारी बताते हैं। अगर अधिकारी यह तय करलें कि उनको ना तो बेईमानी करनी है और ना ही वे जनप्रतिनिधियों को भ्रष्टाचार करने देंगे चाहे इसके लिये उनको मलाईदार पद मिलें या उल्टे सज़ा मिले, वे सब मिलकर इस अन्याय और भ्रष्टाचार का संगठित विरोध करेंगे तो सरकारों को लेने के देने पड़ सकते हैं। इसलिये हमारा मानना तो यह है कि सरकार को नियम नहीं इस मामले मंे नियत बदलने की ज़रूरत है। नेता हो या अधिकारी जब तक वे खुद ही यह तय नहीं करते कि उनको ऐसा नहीं करना है तब तक पुलिस की तरह सारे नियम कानून मौजूद होने के बावजूद उनका दुरूपयोग रोका नहीं जा सकेगा। यूपी की निलंबित आईएएस दुर्गा शक्ति नागपाल के मामले में वो बसपा सुप्रीमो मायावती भी न्याय दिलाने की जोरशोर से मांग कर रही हैं जिन्होंने अपने विगत कार्यकाल में सबसे ज़्यादा भ्रष्टाचार के ना केवल कारनामे किये बल्कि अधिकारियों को भ्रष्ट बनाने और उनको चापलूसी और चमचागिरी करके आगे बढ़ने व मनचाही पोस्टिंग कराने के सारे रिकॉर्ड बेशर्मी से तोड़ डाले थे। उनकी सरकार के कई मंत्री और अधिकारी अभी तक उन मुकदमों का सामना कर रहे हैं जिनमें उनके इशारे या उनकी शह पर खुला खेल फरूखाबादी किया गया था। इतना ही नहीं बहनजी ने चुनचुनकर ऐसे ईमानदार और कानून पर सख़्ती से अमल करने वाले अधिकारियों को किनारे कर दिया था जो उनकी सरकार के हिसाब से उल्टा सीधा काम करने को तैयार नहीं थे। और तो और जो बसपा आज दुर्गा नागपाल के नियम विरूध्द निलंबन की मुखालफत कर रही है उसने 16 अधिकारियोें को तो मात्र अंबेडकर गांवों की नाली ठीक से नहीं बनाने के कारण सस्पैंड कर दिया था। शराब और खनन माफिया उनके दौर में जो चाहता था उसके एक कॉल पर लखनउु से तत्काल हो जाता था। यह तो वही बात हो गयी नौ सौ चूंहे खाकर बिल्ली हज को चली। मायावती के मुख्यमंत्री रहते हवाई अड्डे पर उनके चप्पल पोलिथिन में लेकर चलने वाले अधिकारी का तो लंबे समय तक चर्चा रहा था। जाति के आधार पर दलित अधिकारियों की पोस्टिंग की-पोस्ट पर उनके नाकारा और भ्रष्ट होने के बावजूद करने की परंपरा तो बहनजी ने पूरी बेशर्मी से आगे बढ़ाई थी जबकि वे मुलायम सिंह पर यादवों को बिना योग्यता और सही पात्र होने के बावजूद बढ़ावा देने का बराबर आरोप भी लगाती रहती थीं। इसी से पता चलता है कि हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और होते हैं। ऐसे ही दुर्गा नागपाल के मामले में पहले उन सोनिया गांधी ने पीएम को पत्र लिखा जिन्होंने अपने दामाद राबर्ट वढेरा की हरियाणा में अवैध ज़मीन को बचाने के लिये ईमानदार अधिकारी अशोक खेमका को रातोरात उनके पद से हटवा दिया था। खेमका का यह 23 साल की सेवा में ईमानदारी की वजह से 44वां ट्रांफर था। हम यह नहीं कह सकते कि सपा सरकार दूध की धुली है, और उसने दुर्गा के साथ अन्याय नहीं किया है। सवाल यह है कि लोकतंत्र में एक पार्टी गलती करती है तो दूसरी को मौका दिया जाता है तो क्या वह कांग्रेस हो सकती है? बसपा या भाजपा सपा की जगह ले सकती है? नहीं बिल्कुल नहीं। आम आदमी पार्टी जैसी किसी नई पार्टी को  मौका दिया जाये? वह भी तो इसी समाज से बनेगी और हमारा समाज कितना जातिवादी, साम्प्रदायिक, लालची , स्वार्थी और परंपरावादी है यह किसी से छिपा है क्या? बेशक दुर्गा नागपाल को इंसाफ मिलना चाहिये लेकिन उसके लिये क्या हम सब बदलने को तैयार हैं??? अगर हां तो यही है खराबियोें को जड़ से ठीक करने की शुरूआत! स्वाल यह भी है कि दुर्गा नागपाल के केस में भाजपा और संघ परिवार इतनी रूचि किस नैतिक आधार पर ले रहा है? दुर्गा नागपाल को सपा सरकार ने सस्पेंड कर दिया। उन पर आरोप है कि उन्होंने एक मस्जिद की दीवार गिरवा दी थी। मीडिया का दावा है कि असली वजह खनन माफिया है जिस पर वे लगातार शिकंजा कस रही थी। एक कहावत है कि जिनके मकान शीशे के होते हैं, उनको दूसरों पर पत्थर नहीं फैंकने चाहिये, लेकिन इस केस में कांग्रेस और बसपा के साथ ही संघ परिवार जिस तरह से बढ़चढ़कर रूचि ले रहा है उससे साफ है कि वह एक सोची समझी रण्नीति के तहत सपा सरकार को मुसलमानों का हमदर्द और हिंदुओं का दुश्मन साबित करने पर तुला है। हैरत होती है भाजपा की बातें सुनकर जिसकी सरकारों पर आरोप है कि वह अयोध्या में बाबरी मस्जिद गैर कानूनी तौर पर शहीद होने पर और गुजरात में 2002 का दंगा होने पर अधिकारियों को केवल तमाशा देखने का ही आदेश नहीं देती बल्कि उनसे उम्मीद करती है कि वे इन गैर कानूनी कामों में उसकी मदद करें। बाद में इन अधिकारियों को चुनाव में टिकट देकर एमपी बनाकर पुरस्कृत भी करती है। ऐसे ही सपा बसपा और कांग्रेस का रिकॉर्ड सीबीआई से लेकर भ्रष्टाचार तक अपने चहेते अधिकारियों को पुरस्कृत करने और ईमानदार अफसरों का दंडित करने का रहा है। इस हमाम मंे सब नंगे हैं। अखिलेश सरकार ने इस मामले में हद पार कर दी है क्योंकि जिस साम्प्रदायिक सौहाद का वह बहाना ले रहे हैं अब तक दो दर्जन दंगों में तो उन्होंने ऐसी कोई कार्यवाही नहीं की है जिससे उनके दावे की खुद ही पोल खुल जाती है। ऐसे में कौन सी पार्टी बची हुयी है खनन माफिया से मिलीभगत में और अपने वोटबैंक के लिये पक्षपात करने में? हमारा पूरा सिस्टम ही भ्रष्टाचार और अनैतिकता का शिकार है इसलिये दलों और नेताओं द्वारा एक दूसरे पर कीचड़ उछालने या तेरी कमीज़ मेरी कमीज़ से साफ नहीं है, का दावा करने से समस्या हल होने वाली नहीं है।
0 दूसरों पर जब तब्सिरा किया कीजिये,
  आईना सामने रख लिया कीजिये।।

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