प्रवक्ता.कॉम ने स्वतंत्र
अभिव्यक्ति को निष्पक्ष मंच दिया है!
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0 संजीव भाई की मेहनत और लगन
आज अपना रंग ला रही है।
‘‘ नमस्कार........!‘‘ जब संजीव सिंहा जी को मोबाइल पर रिंग करने पर हेलो की जगह यह आत्मीय, मधुर और कर्णप्रिय आवाज़
सुनाई देती है तो ना केवल दिल खुश होता है बल्कि यह भी महसूस होता है कि हम वास्तव
में प्रवक्ता परिवार के अंतरंग सदस्य ही हैं। प्रवक्ता के पांच साल के सफर में
संजीव जी और उनकी टीम ने तकनीकी से लेकर आर्थिक व्यवस्था तक में जो संघर्ष किया है
वह सराहनीय है। इस स्थान तक पहंुचने के लिये हम उनको बधाई देते हैं। साथ ही यह
शुभकामना भी कि प्रवक्ता एलेक्सा रंेकिंग मंे और ऊंचाइयां कम समय में ही स्पर्श
करेगा।
3 सितंबर 2011 का वो दिन
मुझे आज भी याद है जब मैंने इस आशंका के साथ अपना पहला लेख ‘‘ सांसदों के विशेषाधिकार
ख़त्म करने का समय आ गया है‘‘ प्रेषित किया था कि पता नहीं संजीव भाई को पसंद आयेगा या प्रवक्ता के मानकों
पर खरा साबित होगा या नहीं लेकिन यह लेख ना केवल प्रकाशित हुआ बल्कि उसके बाद आज
दो साल के भीतर शायद सब से अधिक यानी 189 रचनायें मेरी प्रवक्ता पर पब्लिश हो चुकी
हैं। इस दौरान प्रवक्ता ने मेरी विकल्प की तलाश भी पूरी कर दी जिससे मैं एक दैनिक
अख़बार से जुड़ा था और उसमें इस शर्त पर लिखता था कि समाचार और विज्ञापन भी देने
होंगे। मुझे यह भी लगता था कि अख़बार की लाइफ तो मात्र 24 घंटे होती है जबकि वैब पर
लेख लंबे समय तक सुरक्षित रहेगा। इस दौरान मैंने ‘बुखारी साहब इमामत करो, सियासत आपके बस की नहीं.....‘ बंग्लादेशी मुस्लिम आ सकते हैं तो पाकिस्तानी हिंदू क्यों नहीं और प्रवक्ता पर
लिखने का मकसद प्रशंसा पाना नहीं है जैसे चर्चित लेख लिखे जिनको संजीव भाई ने कई बार
प्रमुख लेखों में स्थान दिया। इस लेख पर जहां सर्वाधिक 20 कमैंट आये तो ‘‘ जनलोकपाल लाओ और फिर अन्ना
की टीम को भी फांसी लगाओ‘‘ जैसे लेख को शायद सबसे अधिक 1045 लोगों ने पढ़ा। इन 189 लेखों में मेरी 50 से
अधिक गज़लें और कवितायें भी शामिल हैं, जो बराबर सार्थक चित्रों के साथ लगीं हैं। मेरा पहला व्यंग्य लेख तेरी हिम्मत
पे चम्मच हमें नाज़ है.... और सबसे चर्चित
लेख फ़तवे का डर.....प्रवक्ता की एक नई और निष्पक्ष पहचान स्थापित करने में सफल
रहा। संघ परिवार का प्रवक्ता समझे जाने वाला प्रवक्ता डॉटकॉम भाजपा के खिलाफ या
वामपंथियों के पक्ष में लिखने वाले लेखकों को भी बराबर स्थान और सम्मान देकर एक
मिसाल कायम कर चुका है। प्रवक्ता को उज्जवल भविष्य के लिये एक बार फिर हार्दिक
मंगलकामनाओं के साथ संजीव सिंहा जी और भारत भूषण जी सहित सारी टीम को धन्याद कि
उन्होंने इस नाचीज़ को पूरी दुनिया से रू ब रू कराया। हर लेख के आखि़र में लिखने की
आदत है उनके लिये एक शेर याद आ रहा है-
0ये फूल मुझे कोई विरासत में
मिले हैं,
तुमने मेरा कांटोंभरा बिस्तर नहीं देखा।
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