क्या सांसद नियम कानून से ऊपर रहना
चाहते हैं?
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0संसद का सम्मान तो खुद भ्रष्ट सांसद ही
कम कर रहे हैं!
अन्ना टीम के सदस्य अरविंद केजरीवाल इस बात पर अडिग हैं कि उन्होंने दागी
सांसदों के बारे में जो कुछ कहा है उससे वे किसी कीमत पर हटने को तैयार नहीं हैं
और अगर माफी ना मांगने से इसके लिये उनको सज़ा भी भुगतनी पड़ती है तो वे इसके लिये
भी तैयार नज़र आ रहे हैं। आपको याद होगा 25 मार्च को अन्ना के एक दिवसीय आंदोलन के
दौरान केजरीवाल ने केंद्रीय मंत्री वीरभद्र सहित 14 केंद्रीय मंत्रियों पर
भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ केस दर्ज करने की मांग की थी। इस
पर संसद से आये विशेषाधिकार हनन के नोटिस के जवाब में केजरीवाल ने यहां तक कह दिया
है कि लोकसभा में 162 ऐसे सांसद हैं जिनपर 522 अपराधिक मामले दर्ज हैं। उनका कहना
है कि जब तक ऐसे सांसद संसद में हैं तब तक देश से अपराध कम नहीं होंगे। उनका यह भी
सवाल है कि ऐसे दागी सांसदों का सम्मान कैसे किया जा सकता है?
जिन सांसदों के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास और अपहरण और बलात्कार के सैकड़ों मामले दर्ज
हों और इनमें से 76 के खिलाफ गंभीर आरोप में मुकदमें चल रहे हों उनका सम्मान कैसे
किया जा सकता है?
आंकड़ों के हिसाब से देखें तो यह बहस वहीं आ जायेगी कि धर्म कोई बुरा नहीं
होता उसके मानने वाले बुरे हो सकते हैं। ऐसा ही इस मामले भी कहा जा सकता है कि चलो
माना संसद सर्वोच्च है लेकिन सांसद सर्वोच्च नहीं हो सकते । अब सवाल यह है कि संसद
तो अपने आप में सजीव या कोई सोचने समझने वाली इमारत नहीं है वह तो सांसदों के
द्वारा चलती है। अपराधी सांसदों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है क्योंकि 2004 के
आम चुनाव में ऐसे विवादास्पद सांसदों की तादाद 128 थी। उस बार गंभीर आरोपों वाले
एमपी 55 ही थे। अगर दलों के हिसाब से देखें तो इस लोकसभा में आरोपी सांसदों के
मामले में भाजपा के 42 कांग्रेस के 41 और सपा व शिवसेना के आठ आठ सांसद सबसे से
ऊपर सूची में दर्ज है। जिस संसद में आज 315 सांसद ऑन पेपर करोड़पति हों उनसे गरीबों
को न्याय देने की क्या आस की जा सकती है?
हम यह नहीं कह रहे हैं कि अमीर सांसद गरीबों के दुश्मन होते हैं लेकिन यह
भी सच है कि सिस्टम ही ऐसा बन गया है कि कोई आदमी ज़रूरत से अधिक पैसा बिना गरीबों
का हक़ मारे कमा ही नहीं सकता। अपवाद और उदाहरण की बात हम नहीं कर रहे हैं। जिस देश
में गरीब तीन चौथाई रहते हों उसमें गरीब सांसद तो एक चौथाई भी जीतकर नहीं आ सकते।
सवाल फिर वही आयेगा कि जब तक जनता जागरूक नहीं होगी तब तक राजनेता मनमानी से कैसे
बाज़ आ सकते हैं। वैसे भूमि अधिग्रहण के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ
यह गलतफहमी दूर कर चुकी है कि संसद सर्वोच्च है।
दरअसल हमारा संविधान सर्वोच्च है। सुप्रीम कोर्ट का दो टूक कहना है कि रूल
ऑफ लॉ हमारे संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। इसे संसद भी समाप्त नहीं कर सकती
बल्कि उल्टे यह संसद पर बाध्यकारी है। मनमानापन या किसी मामले में तर्कसंगत न होना
रूल ऑफ लॉ का उल्लंघन माना जायेगा। ज़ाहिर बात है कि बेतहाशा बढ़ रहा भ्रष्टाचार
मौजूद रहते रूल ऑफ लॉ कैसे लागू किया जा सकता है इसका मतलब है कि लोकपाल बिल पास
होेेेेना रूल ऑफ लॉ की ज़रूरत है। बात और बढ़ेगी तो कल यह भी मानना पड़ेगा कि संविधान
भी तब तक ही सर्वोच्च है जब तक जनता का उसमें यह विश्वास बना हुआ है कि वह उसकी
भलाई के लिये काम कर रहा है।
अगर बार बार यही दुहाई दी जायेगी कि संसद या संविधान सर्वोच्च है तो फिर
उसमें संशोधन क्यों करने पड़ते हैं? ज़ाहिर है कि जनहित सर्वोच्च है। सांसदों को अपने गिरेबान
में झांककर देखना चाहिये कि वे बहुमत से सरकार भले ही बनालें और चलालें लेकिन उनका
‘विश्वास मत’ कहीं खो चुका है। ऐसे सांसद जिनको कोई घर
पर बुलाना भी पसंद ना करता हो वे संसद की शोभा बढ़ा रहे हैं। जो सांसद बिकते और
ख़रीदे जाते हों उनका यह काम देशद्रोह से कम है क्या? ऐसे ही केजरीवाल ने राजद सांसद राजनीति
प्रसाद और रामकृपाल यादव के विशेषाधिकार हनन के नोटिस के जवाब में पूछा है कि जिन
11 सांसदों को धन लेकर संसद में सवाल पूछने के आरोप में निकाला गया क्या इतना काफी
है उनके खिलाफ अपराधिक केस क्यों नहीं दर्ज किया गया?
संसद के अंदर सांसद बिल की प्रतियां फाड़ डालें तो कोई बात नहीं लेकिन बाहर
कोई उनके खिलाफ चोरी की दाढ़ी में तिनका वाला केवल मुहावरा इस्तेमाल करे तो संसद का
अपमान हो जाता है?
कलमाड़ी, राजा और कनिमोझी के बड़े भ्रष्टाचार से
संसद की गरिमा को ठेस नहीं पहंुचती लेकिन दागी को दागी कहने मात्र से मुलायम, लालू और जगदंबिका पाल तक को संसद के
विशेषाधिकार की चिंता सताने लगती है? आश्चर्य की बात यह है कि चाहे मुलायम का आय से अधिक
सम्पत्ति का मामला हो या लालू का चारा
घोटाला और या फिर बीरभद्र की एक आईएएस अधिकारी से रिश्वत मांगते हुए बनी सीडी इन
सांसदों को इतनी शर्म भी नहीं आती कि यह चोरी और सीनाजोरी होती है कि आपकी ईमानदारी, विश्वसनीयता और छवि पर सवाल उठ रहे हैं
और आप खुद पाक साफ साबित होने तक संसद की सदस्यता छोड़ने या फास्ट ट्रैक कोर्ट में
अपना मामला तय कराने की बजाये उस विशेषाधिकार और प्रतिष्ठा की दुहाई दे रहे हैं जो
अब बची ही नहीं है।
अगर आपको याद हो तो झारखंड मुक्ति मोर्चा सांसद रिश्वत कांड में जब नरसिम्हा
राव सरकार वोट ख़रीदकर बहुमत साबित करने मंे कामयाब हो गयी थी तो यह आरोपी सांसद
कोर्ट में जांच के बाद बाकायदा घूस लेकर वोट देने के दोषी साबित हो गये थे लेकिन
अदालत ने यह कहकर असमर्थता जाहिर की थी कि सदन में किये गये किसी भी काम के लिये
अपराध साबित होने के बावजूद सज़ा देने का अधिकार संविधान ने न्यायालय को नहीं दिया
है जिससे वे कसूरवार सांसदों को बरी करने को मजबूर हैं।
सांसदों को संसद की गरिमा और अपनी प्रतिष्ठा की कितनी चिंता है यह इस बात से समझा जा सकता है कि वे खुद को
नियम कानूनों से ऊपर समझते हैं। मिसाल के तौर पर सांसद निधि का धन लेने के लिये
बैंक में खाता खुलवाना होता है लेकिन यहां तो प्रधनमंत्री सहित केंद्रीय मंत्री
फारूक़ अब्दुल्लाह,
सलमान
खुर्शीद और संसद के सम्मान की बार बार दुहाई देने वाले विपक्षी सांसद शरद यादव, जगदंबिका पाल, रघुवंश प्रसाद सिंह लोकसभा के 117 और
राज्यसभा के 34 सांसदों सहित 151 एमपी आज तक कई बार सांसद चुने जाने के बावजूद एक
खाता तक खुलवाने की ज़हमत नहीं कर पा रहे हैं। सीएजी ने इनको कई बार खाता खुलवाने
के लिये मोहलत दे दी लेकिन आवंटन रोकने की चेतावनी के बावजूद ये माननीय मनमानी कर रहे
हैं और इनको निधि का आवंटन चैक और ड्राफ्रट के द्वारा मजबूरी में किया जा रहा है।
हालत इतनी ख़राब है कि कई सांसद निधि का पूरा धन ख़र्च ही नहीं कर पा रहे
हैं। इन माननीयों के मनमानी करने सेे एक समस्या यह भी आ रही है कि इनकी निधि की
रकम बैंक खाते में ना जाने से कंेद्रीय योजना मॉनीटरिंग सिस्टम इनपर लागू नहीं हो
पा रहा है। यह एक ऑनलाइन प्रणाली है जिससे स्कीम का ब्यौरा दैनिक रूप से
अपडेट किये जाने की शर्त होती है ताकि
इसके कार्यान्वयन पर नज़र रखी जा सके। अरविंद केजरीवाल पर संसद के अपमान और सांसदों
के विशेषाधिकार के हनन का बेबुनियाद आरोप लगाने वाले ये माननीय अपने आप को किसी
नियम कानून में बांधने का तैयार नहीं हैं।
सांसद निधि सालाना पांच करोड़ किये जाने की मांग पूरी होने के बाद अब इनका
कहना है कि इसको मनचाहे तरीके से ख़र्च करने की छूट होनी चाहिये। मुलायम सिंह, पीएल पूनिया, सुप्रिया सुले, थंबी दुरई, शताब्दी राय और विजय बहादुर सिंह सहित 115 सांसदों ने
एमपीलैड के ख़र्च को लेकर कार्यक्रम क्रियान्वयन एवं सांख्यिकी मंत्रालय के उस
पत्र का विरोध किया है जिसमंे सांसद निधि ख़र्च करने के दिशानिर्देश दिये गये हैं।
मिसाल के तौर पर किसी कालेज की लैब या सोसायटी व ट्रस्ट को अनुदान देने के लिये
उसका पंजीकृत होना और दी गयी राशि 25 लाख से अध्कि ना होने की बंदिश माननीयों को
स्वीकार नहीं है जबकि इस तरह के मामलों में दुरूपयोग की तमाम शिकायतें पहले ही
मौजूद हैं।
0 मैं वो साफ ही ना कहदूं जो है फर्क
तुझमें मुझमें,
तेरा दर्द दर्द ए तन्हा, मेरा गम गम ए ज़माना।।
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