Sunday, 9 February 2014

अफ़सर नहीं राजनेता लाइलाज ?


अफ़सरों से अधिक राजनेताओं को इलाज की ज़रूरत?
           -इक़बाल हिंदुस्तानी
0 जे पी गुप्‍ता जैसे संवेदनशील अधिकारी आज भी यूपी में एक मिसाल हैंा
  यूपी में डीआईजी फायर सर्विसेज़ डी डी मिश्रा को व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा दर्ज करने पर बदले की भावना से मानसिक रोगी बताकर राहे रास्तपर लाने की कोशिश की जा रही है। इतना ही नहीं उनकी सच्ची और कड़वी बातों को सरकारी कर्मचारी आचरण नियमावली का उल्लंघन बताकर उनके खिलाफ अनुशासनहीनता का एक और मोर्चा खोला गया है। हालांकि अब मिश्रा मानसिक चिकित्सालय से अपने घर लौट आये हैं लेकिन अंदाज़ लगाया जा रहा है कि शायद उन्होंने या उनके परिवार और मित्रों ने आगे से सरकार या व्यवस्था के खिलाफ एक भी शब्द न बोलने का वायदा किया है जिसका संकेत इस बात से मिलता है कि जब मीडिया उनके घर उनका पक्ष लेने पहंुचा तो न केवल वे खुद बल्कि उनके मित्र और परिवार वाले भी डरे सहमे कुछ भी कहने को तैयार नहीं हुए।
    दरअसल डीआईजी डी डी मिश्रा का मामला नया हो सकता है लेकिन सत्ता का यह तानाशाह, अत्याचारी और क्रूर रूख़ ऐसे ईमानदार, सिध्दांतवादी और नियमानुसार चलने वाले अधिकारियों के लिये पुराना है। 1971 के बैच के आईएएस अफसर धर्म सिंह रावत को सरकारी भ्रष्टाचार सहन नहीं हुआ तो उन्होंने हर जगह तैनाती के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्रियों को बार बार शिकायत भेजी लेकिन जब किसी ने उनकी बात पर कान नहीं दिये तो वह विरोध में राजधानी लखनउू जाकर धरने पर बैठ गये। अपने पूरे कार्यकाल में वे पांच बार भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन पर गये लेकिन नीचे से उूपर तक सब मिले हुए थे, इसलिये कोई कार्यवाही किसी के खिलाफ नहीं हुयी और उनको सनकी बताया जाता रहा।
   ऐसे ही 1994 बैच के पीपीएस शैलेंद्र सिंह ने जब बड़े माफियाओं के खिलाफ कानून का डंडा चलाना चाहा तो उनको पालने वाले आका नेता शक्तिशाली दीवार बनकर उनके सामने आकर खड़े हो गये। सिंह को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और उल्टे जब उनके खिलाफ ही अनुशासन का डंडा चलने लगा तो 2004 में उन्होंने तंग आकर सेवा से इस्तीफा दे दिया। 1976 बैच की प्रोमिला शंकर को एनसीआर की कमिश्नर के रूप में यमुना एक्सप्रैसवे के मास्टर प्लान को जबरदस्ती एप्रूव करने के लिये मजबूर किया गया जब वे इसके लिये तैयार नहीं हुयीं तो उनको बिना अनुमति विदेश जाने का आरोेेेेेप लगाकर निलंबित कर दिया गया।
   1969 बैच के सहकारी सेवा के अधिकारी के सी कर्दम ने 1976 में बदायूं के ज़िला सहकारी बैंक में एक ऐसा घोटाला पकड़ा जिसकी जांच की आंच कई बड़े सफेदपोशों तक पहुंच रही थी उनको बार बार जांच रोकने का इशारा मिला लेकिन वे जब नहीं माने तो उनको इस करोड़ों के घोटाले को दबाने के लिये मात्र 200 रूपये की रिश्वत लेने के आरोप में पकड़ लिया गया। वे कई बार धरने पर बैठे और लगातार चिल्लाते रहे कि उनको झूठा फंसाया गया है लेकिन सरकार ने एक नहीं सुनी। अदालत ने उनको ईमानदार अधिकारी माना और केस खारिज कर दिया।
   1995 में आईएएस अधिकारी राय सिंह ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण के पद पर रहते बार बार तबादला होने पर यह कड़वा सच कहने की हिम्मत की थी कि अफसरों को ताश के पत्तों की तरह नहीं फेंटा जाना चाहिये और कुछ समय तक एक जगह काम करने का मौका दिया जाना चाहिये बस इतनी बात पर उनको भी निलंबित कर दिया गया था। इसका यह मतलब भी निकाला जा सकता है कि आज हमारी व्यवस्था इतनी भ्रष्ट हो चुकी है कि वह सुधरना तो दूर कोई ईमानदार अधिकारी उसको आईना दिखाता है तो वह तिलमिला कर उसी पर हमला करती है। ऐसे में एक बीच का रास्ता भी है जो पीसीएस जे पी गुप्ता जैसे लोगों ने अपनी संवेदनशीलता से अपनाया है।
    जे पी गुप्ता जिनको लोग प्रेम से जनप्रिय गुप्ता भी कहते हैं, एक साल से अधिक समय से नजीबाबाद के एसडीएम हैं। इस दौरान उन्होंने जहां जनता से अपने सरोकार लगातार मज़बूत किये हैं वहीं एक कवि के रूप मंे उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई है। इतना ही नहीं वे केवल  साहित्यिक कार्यक्रमों में हिस्सेदारी करके रह जाते हांे बल्कि उनके व्यवहार में भी एक संवेदनशील इंसान की भावनाएं झलकती हैं। मिसाल के तौर पर वे मूक बधिर और विकालांग बच्चो के प्रेमधाम आश्रम जाते हैं तो अपने बच्चे का जन्मदिन उन अनाथ बच्चो के साथ ही मनाते हैं।
   साथ ही इस दिन उन बच्चो को फल और कपड़े बांटते हैं। इस दिन घंटों उन मासूम और पेरशान बच्चो के साथ गुज़ारने का नतीजा यह होता है कि जे पी गुप्ता उन बच्चो के दर्द और जज़्बात पर एक लंबी कविता लिख देते हैं और जब यह कविता पहली बार वे अपने मित्रों को सुनाते हैं तो सबकी आंखे गीली हो जाती हैं।
   एक घटना याद आ रही है। एक बार इस पत्रकार ने गुप्ता जी को बताया कि पास के एक गांव में एक बेहद गरीब परिवार रहता है। उसकी सरकारी स्तर पर कुछ सहायता करा दीजिये। गुप्ता जी ने कहा ठीक है। बात आई गयी हो गयी। सारी तहसील में गरीबों का सर्वे हुआ। इस बेहद गरीब परिवार का नाम उस सूची मंे संयोग से नहीं आ पाया। मैंने एक दिन गुप्ता जी को फिर याद दिलाया कि उस परिवार को आपके एसडीएम होते हुए कोई मदद नहीं मिल रही। उन्होंने कहा एक दिन मौके पर चलते हैं। वे एक शाम बिजनौर से लौैट रहे थे।
   उनका फोन आया कि मैं जलालाबाद बाईपास पर पहंुच रहा हूं। आप भी उस गांव के लिये चलने को आ जाईये। मैंने सब काम छोड़े तुरंत वहां पहुंचा। जब हम उस गांव में प्रवेश कर ही रहे थे, गुप्ता जी ने अपनी पारखी नज़रों से दूर से ताड़ लिया कि वह परिवार है क्या जिसने प्लास्टिक की पन्नी से अपना आशियाना सर छिपाने को जैसे तैसे बना रखा है। मैंने कहा हां बिल्कुल ठीक वही है।  पूरे गांव में शायद वह अकेला गरीब परिवार था जिसने सर्दी से बचने के लिये यह जुगाड़ किया हुआ था। दाद देनी पड़ेगी एसडीएम साहब की सोच और समझ की।
   पहले उन्होंने अपने स्टाफ से यह पता लगाया कि यह बेहद पात्र और ज़रूरतमंद गरीब परिवार सरकारी योजना में आवास, बीपीएल कार्ड और अन्य सुविधाओं से अब तक वंचित रह कैसे गया? जब पता लगा कि सर्वे के समय यह परिवार किराये के मकान में रह रहा था, तब उन्होंने प्रशासन की भूल का सुधार करते हुए सबसे पहले अपनी जेब से एक बड़ी धनराशि निकालकर इस परिवार को मदद के तौर पर थमाई। अपनी पत्रकारिता के तीन दशक में मैंने ऐसे ईमानदार अधिकारी तो कई देखे जो काम न होने पर पैसा लौेेेटा देते थे लेकिन किसी गरीब की अपनी जेब से बड़ी रकम देकर मदद करने वाला जेपी गुप्ता जैसा मानवप्रेमी और गरीब सेवक पहली बार देख रहा था।
   बाद में इस परिवार का बीपीएल राशनकार्ड बनाने को जेपी गुप्ता ने एक शिक्षिका का फ़र्जी बीपीएल कार्ड निरस्त किया क्योंकि वह अपने पेपर सत्यापित कराने उनके पास आई थी जबकि उसकी वेतनपर्ची मंे आय 17000 रू0 मासिक लिखी हुयी थी। ऐसे और भी कई केस हैं जिनकी लीक से अलग हटकर जेपी गुप्ता जी ने जेब से बार बार मदद की है।
   आदमी में लगन और इरादा हो तो कोई काम मुश्किल नहीं लगता। यही बात लोकप्रिय उपज़िलाधिकारी जे पी गुप्ता पर बिल्कुल ठीक लागू होती है। जब उनको यहां आये कुछ ही माह हुए थे, तभी पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर उन्होंने कवि सम्मेलन और मुशायरे की नई परंपरा शुरू कर दी थी। गत वर्ष यह भव्य प्रोग्राम एक बड़े बैंक्वट हाल में हुआ था। इस साल एसडीएम गुप्ता जी ने इस गंगा जमुनी कार्यक्रम को स्थायी रूप देने को इसकी भविष्य के लिये ज़िम्मेदारी नगरपालिका परिषद पर डाल दी। यानी चेयरमैन और एसडीएम चाहे जो रहे यह प्रोग्राम हर साल 15 अगस्त को बदस्तूर होता रहेगा।
    इस बार यह बात खासतौर पर नोट की गयी कि शहर में अलग अलग संस्थाओं से एसडीएम गुप्ता जी ने आधा दर्जन से अधिक द्वार स्वतंत्राता सेनानियों के नाम पर बनवाये थे। भारत टाकीज़ के पास जीर्ण क्षीर्ण पड़े तिकोने पार्क की सफाई कराकर उसकी पुताई और बिजली की झालर से सजावट होने से नेशनल हाईवे से आने जाने वाले उत्तराखंड और राजधानी दिल्ली तक के यात्रियों पर एक अच्छा मैसेज गया कि हां नजीबाबाद मंे भी 15 अगस्त जोरशोर से मनाई जा रही है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि एसडीएम जेपी गुप्ता ने अपनी मेहनत, लगन और ईमानदारी से देशभक्ति की भावना का परिचय देते हुए नगर में साहित्यिक, सांस्कृतिक और भाईचारे का माहौल बना दिया है।
    इस बार एक विशेष बात यह भी नोट की गयी कि नगर मंें मुस्लिम भाइयों की तरफ से होने वाला होली मिलन का प्रोग्राम, जिसका संयोजक इन पंक्तियों का लेखक रहता है  को भी जेपी गुप्ता जी ने संगीत के साथ अपना होली का विशष गीत पेश कर चार चांद लगाये थे। नतीजा यह हुआ कि जिस गीत को लेकर कुछ लोग आशंकाएं जता रहे थे उसको सुनकर युवा मगन होकर नाच रहे थे। सच तो यही है कि सिस्टम पीएम और सीएम से उूपर से नीचे को ठीक होना शुरू होगा लेकिन एक दूसरी हकीकत भी है कि जेपी गुप्ता जैसे अधिकारी चाहें तो विपरीत हालात में भी एक बीच का जनसेवा का रास्ता बिना व्यवस्था से टकराये निकाला जा सकता है। अहंकारी और भ्रष्ट राजनेताओं के लिये तो यही कहा जा सकता है।
0 दूसरों पर जब तब्सरा किया कीजिये,

   आईना सामने रख लिया कीजिये ।।

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