Monday, 3 February 2014

FDI यानी " फुल दादागिरी इनकी"

मल्टीब्रांड एफडीआई यानी हर ब्रांड में फुल दादागिरी इनकी’!
            -इक़बाल हिंदुस्तानी
0 टीम अन्ना के बाद अब जनता को सबक सिखायेगी सरकार ?
        यू पी ए यानी उल्टी पुल्टी ऐबदारसरकार आजकल पांच साल के ठेके पर चल रही है। सरकार के पास बहुमत है। वह अपने बहुमत से कुछ भी कर सकती है। उसने मल्टीब्रांड एफडीआई यानी हर ब्रांड में ‘‘फुल दादागिरी इनकी’’ का फंडा अपनाया है तो आपके पेट में दर्द क्यों हो रहा है। अन्ना हज़ारे ने पिछले दिनों सरकार ख़ासतौर पर बेचारी जलेबी की तरह सीधी सादी कांग्रेस को बदनाम किया कि ये लोग बेईमान हैं। सरकार की शराफत का इससे बड़ा नमूना क्या होगा कि उसने एक पूर्व सैनिक और बुजुर्ग गांधीवादी को तो तिहाड़ भेजकर हाथोें हाथ रिहा कर दिया लेकिन सारे फसाद की जड़ टीम अन्ना के सदस्यों को एक एक कर बारी बारी से सबक सिखाना शुरू कर दिया।
अरे भÕया सरकार नाम के एवरेस्ट से टकराओगे तो चोट तो लगेगी ही। केजरीवाल से नौ लाख रुपये इनकम टैक्स के नाम पर जमा करा लिये तो किरण बेदी के खिलाफ एनजीओ में गड़बड़ी के आरोप में मुकद्मा दर्ज करा दिया। उधर कुमार विश्वास के कालेज के प्रबंधतंत्र को पता नहीं सरकार ने क्या पट्टी पढ़ाई वह बेचारे कोर कमैटी से ही विश्वास खो बैठेे।
     अब बारी आई है उस जनता की जिसने अन्ना के आंदोलन में बहुत बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था। जनता यह समझ रही थी कि अन्ना और उनकी टीम को तो सरकारी अधिकारी और मीडिया वाले पहचान लेंगे लेकिन उन लाखों लागों का सरकार क्या कर लेगी जिनका यही नहीं पता कि वे कौन थे और कहां से आये थे? अब पता चला कि सरकार से पंगा लेने का क्या मतलब होता है? पहले तो महंगाई बेतहाशा बढ़ाकर जनता को उसके हाल पर छोड़ दिया गया अब मल्टीब्रांड में एफडीआई। समझे बच्चू इसे कहते हैं कि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे। एक तरफ अपने अंकल सैम यानी अमेरिका खुश दूसरी तरफ सरकार अपने पांच साल के मनमानी के लाइसंेस के हिसाब से लूट का काम कर रही है।
    अब चिल्ला रहे हैं कि वालमार्ट, कारफोर और टेस्को जैसी डायनासोर जैसी मल्टीनेशनल कम्पनियां देश में आकर हमको कच्चा चबा जायेंगी। सरकार की बला से। अब रोते रहो कि देश के छह करोड़ लोग खुदरा कारोबार से हाथ धो बैठेंगे। अरे सरकार को क्या? सरकार ने ठेका ले रखा है कि कोई साबुन से हाथ धोये या रोज़गार से या अपनी जान से उसे तो हर हाल में अमेरिका को खुश रखना है। एक बात और देश के 77 प्रतिशत लोग 20 रुपये रोज़ से कम पर गुज़ारा कर रहे हैं उन्होंने सरकार का क्या बिगाड़ लिया? अच्छे बच्चे की तरह बेचारे अपने भाग्य को रो रहे हैं। नौकरी और दवाई के लिये झाड़फूंक करने वाले ओझाओं और बाबाओं के पास दौड़ते रहते हैं। मजाल है कि कभी सरकार को इस कंगाली या दिवालियापन के लिये कसूरवार माना हो ?
   रहे ये लाला लोग सरकारी इंस्पेक्टरों को मासिक शुल्क वसूलने में बहुत तंग करते थे। अब बड़ी बड़ी कम्पनियां आयेंगी तो ज़ाहिर है कि उनका बजट भी बड़ा होगा। अभी उन्होंने भारत में लॉबिंग करने के लिये मात्र 62 करोड़ डॉलर ख़र्च किया है जिससे उनकी मंुहमांगी मुराद पूरी हो गयी अब वे सरकार, मंत्रियों और सांसदों के बाद राज्यों के विधायकों को साधने के लिये जो कुछ ज़रूरीकदम उठाने होंगे उठायेंगी। सरकार, उसका यूपीए और गैंग की सरगना कांग्रेस जानती है कि इस देश में चाहे जितना शोर मचे लेकिन चुनाव में इन बातों का कोई असर नहीं पड़ता। सरकार को पता है कि जनता की याददाश्त कमजोर होती है। लाला लोग बातें बहुत करते हैं। वोट डालने घर से निकलते नहीं हैं जिससे हर क्षेत्र में फुल दादागिरी इनकी यानी सरकार की मनमानी और लूट आगे भी चलती रहेगी। जिन लोगों को यह गलतफहमी है कि शायद भाजपा अगर सत्ता मंे होती या आ जाये तो यह दिन नहीं देखना पड़ेगा उनको अपनी खुशफहमी समय रहते दूर कर लेनी चाहिये क्योंकि लंका मंे सब 52 गज़ के होते हैं।
   अगर भूल गये हों तो याद करें कि जिस भाजपा ने 13 दिन की सरकार बनते ही अपने आक़ा अमेरिका को खुश करने के लिये एनरान जैसी बिजली बनाने वाली दुनिया की बदनाम कम्पनी को मान्यता तब दी थी जबकि उसका बहुमत भी सिध्द नहीं हुआ था। मतलब समझे श्रीमान जी बुश अंकल को यह जताना था कि आप हम से इतना परहेज़ न करें हम और कांग्रेस पार्टी एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं इस मामले में। अब बेचारे कम्युनिस्ट चिल्लाते रहें कि यूपीए एनडीए पूंजीवादी सोच के हैं उनको सत्ता में न लाकर हमें लाओ लेकिन बेचारी जनता को अच्छी तरह समझा दिया गया है कि ये कम्युनिस्ट नहीं कामनष्ट होते हैं इन नास्तिकों को सरकार बनाने का मौका दिया तो धर्म ख़तरे में पड़ जायेगा। सो यह ख़तरा भी ख़त्म।
    अब रहा सवाल ममता दी और अम्मा जी का तो उनकी क्या कौड़ी उठती हैं। बोल तो बहन मायावती जी भी रहीं हैं कि यूपी की फिर से सीएम बनी तों राज्य में एक भी मल्टीब्रांड स्टोर नहीं खुलने दंूगी। खैर उनको यह ज़ेहमत नहीं उठानी पड़ेगी क्योंकि जनता उनसे पांच साल में ही इतनी खुश हो चुकी है कि अब उससे उनका विकास और प्रगति सहन नहीं हो रही इसलिये सारे समीकरणों के बावजूद उनको किसी कीमत पर बहुमत नहीं मिलेगा। कई बार दूध से जली भाजपा छाछ से डरकर उनको सीएम बनाकर आत्महत्या करने से रही। सपा और कांग्रेस तो जीते जी उनको सपोर्ट करने की सपने में सोच भी नहीं सकती। लेदेकर दलबदलू लोकदल के भाईसाहब अजित सिंह इस हालत में होंगे नहीं कि बहनजी की सरकार बनवाकर अपनी ही बिरादरी की गालियां खायें।
   भ्रष्टाचार से लेकर महंगाई के मामले में पीएम से लेकर मिनिस्टर तक यूपीए सरकार का जो खुली लूट का रूख़ अब तक सामने आया है उससे यह दावे से कहा जा सकता है कि उसको खुदरा बाज़ार में विदेशी निवेश से अब किसी कीमत पर नहीं रोका जा सकता।
   वह पूरी तरह कारपोरेट सैक्टर और अमेरिका की एजंेट की तरह बेशर्मी और ढीटता से काम कर रही है। जहां तक ममता दी का सवाल है वह अपने बंगाल के लिये बड़ा पैकेज लेकर पहले पेट्रोल मूल्यों में बढ़ोत्तरी पर आग बबूला होने बाद ठंडी होने की तरह चुप्पी साध जायेंगी। अम्मा के बोलने का कोई खास फर्क पड़ना नहीं है फिर भी अगर नहीं मानी तो आय से अधिक सम्पत्ति का मामला और सीबीआई अभी ज़िंदा है।यही हालत द्रमुक और समाजवादी पार्टी की है। सब दलों और नेताओं की जय हो। इस जनविरोधी और अक़्ल की दुश्मन सरकार पर हास्य व्यंग्य के विख्यात शायर नाज़ नहटौरी का एक शेर याद आ रहा है-़
0 जिं़दों की भूख प्यास की बिल्कुल फिकर नहीं,

  और मुर्दांे के वास्ते तू क़ब्र में घुसा पड़ा।।

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