Monday, 3 February 2014

राहुल बाबा आगे बढ़ो....


राहुल बाबा आगे बढ़ो, यूपी में छुट्टा वोट नहीं है!
             -इक़बाल हिंदुस्तानी
0यूपी वालों को भिखारी बताने वाले खुद वोट की भीख मांग रहे हैं !
   कांग्रेस के तथाकथित युवराज को पता नहीं किस बात पर इतना गुस्सा आ रहा है कि वे बार बार आपा खोकर उन्हीं यूपी वालों को भिखारी बता रहे हैं जिनसे अगले साल ही उनको दामन फैलाकर वोटों की खुद भीख मांगनी है। ऐसा लगता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर जाने की वजह से हर पार्टी की नज़र इस समय यूपी पर गिध्द की तरह गड़ गयी है। एक तरफ बीएसपी किसी कीमत पर भी सत्ता में वापस आने को प्रदेश के चार टुकड़ों से लेकर मुसलमानों, गरीब ब्रहम्णों और जाटों के लिये आरक्षण का दांव चल रही है तो दूसरी तरफ सपा एक बार फिर खुद को बसपा के विकल्प के रूप में पेश कर रही है। उधर सेंटर में सत्ता पर क़ब्ज़ा बनाये रखने को कांग्रेस यूपी में बहुमत न सही लेकिन कम से कम लोकसभा जैसा अपना प्रदर्शन दोहराने को सौ से अधिक सीटें लाकर  सपना देख रही है जिससे कोई भी नई सरकार उसकी बैसाखी पर चलने को मजबूर हो।
   मुकाबले को चौकोना बनाने और अन्ना हज़ारे के आंदोलन से बने भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल को भुनाने के लिये भाजपा भी यूपी को अपने आगोश मंे एक बार फिर लेने को बेचैन है। उसे यह नहीं पता कि काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ा करती।
   यह अजीब बात है कि जिस कांग्रेस का यूपी में लगभग 40 साल तक राज रहा है और जो आज सेंटर में राज कर रही है उसको यूपी के लोग एक बार और क्यों और कैसे मौका दे सकते हैं जबकि वह दिल्ली मेें राज के दौरान उसकी सबसे भ्रष्ट और महंगाई बढ़ाने वाली जनविरोधी नाकारा और कारपोरेट सैक्टर की एजेंट सरकार साबित हो रही है। राहुल पता नहीं किस मुंह से बसपा को भ्रष्ट बता रहे हैं जो कांग्रेस कंेद्र में अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार चला रही हो उससे यूपी में ईमानदार सरकार चलाने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी, सोनिया गांधी और खुद राहुल गांधी जब पक्षपात करते हुए अमैठी और रायबरेली में  बड़े बड़े विकास कार्य सीमित रखते हों, और दिल्ली व मंुबई में ही सारे बड़े उद्योग और निवेश हो रहा हो तो रोज़गार के अवसर तो वहीं अधिक होंगे। जब मंुबई देश की आर्थिक राजधनी आपने बना दी तो लोग रोज़ी रोटी के लिये और कहां जायेंगे? पंजाब में अगर कृषि का काम अधिक है और लेबर कम तो यूपी बिहार से काम की तलाश में लोग जायेंगे ही।
   राहुल अभी राजनीति में बच्चे हैं और अक़ल के भी कच्चे हैं उनको नहीं मालूम कि उनके पिता ने बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाकर यूपी में अपने हाथों से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी थी। दंगों में भी कांग्रेस का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है। कांग्रेस धर्म और जाति की राजनीति भी करती रही है। उसकी इन्हीं हरकतों से उससे दलित, मुसलमान और ब्रहम्ण अलग हो चुके हैं। आज दलितों का बड़ा हिस्सा बसपा में मुसलमान अधिकांश सपा में और ब्रहम्ण काफी हद तक भाजपा में जा चुका है। कांग्रेस केंद्र में जिस पूंजीवादी नीति पर चल रही है उससे देश में बेरोज़गारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, गैर बराबरी, अशिक्षा, बीमारी, गरीबी और अपराध बढ़ने तय हैं, ऐसे में यूपी में भी इन्हीं मुसीबतों को दावत देने को लिये राहुल गांधी को कौन सपोर्ट करेगा? एक बात और वे अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को लेकर अगर जनता के मूड को समझते और उनके अनशन में खुद सबसे पहले उनके साथ जाकर शामिल होते तो देश उनको भावी पीएम मानने को तैयार हो सकता था। केवल रोड शो करने और दलितों के घर खाना खाने से कोई  बिना किसी वैकल्पिक प्रोग्राम के सत्ता हासिल नहीं कर सकता।
     मनुवाद को ललकार बसपा ने अपने उदय के समय नारा दिया था तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार...। इस एक नारे ने यूपी को सियासत को बदल के रख दिया। नतीजा यह हुआ कि सत्ता धीरे धीरे सवर्णों के हाथों से फिसलकर बहुजन समाज यानी दलित नेतृत्व के हाथों में आ गयी। 1992 के चुनाव में बसपा को 22.08 प्रतिशत वोट और मात्र 14 सीटें मिलीं। 1996 मंे उसके वोट थोड़ा घटकर 19.64 रहे लेकिन सीटें बढ़कर 67 हो गयीं। 2002 में वोट 23.06 हुए तो सीटें 98 तक पहंुच गयीं। उधर 2004 के लोकसभा चुनाव में उसने 24.07 प्रतिशत वोट और संसद की 19 सीटों पर कब्ज़ा जमा लिया। इसके बाद हाथी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और नारे बदलकर कुछ इस तरह से कर दिये। हाथी नहीं गणेश है, ब्रहमा विष्णु महेश है। गणेश शंख बजायेगा और हाथी चलता जायेगा। और तिलक लगाओ हाथी पर, बाकी सब बैसाखी पर।
  जय भीम और जय परशुराम जैसे नारों का मकसद प्रदेश के 10 प्रतिशत ब्रहम्णों को को हाथी पर सवार करना था चूंकि ब्रहम्ण कांग्रेस के बाद भाजपा के सत्ता से बाहर होने से दुखी था। सपा के राज में वह अपने आपको उपेक्षित समझता था। उधर भाजपा को हराने का एकसूत्रीय प्रोग्राम लेकर चलने वाला मुसलमानों का एक वर्ग भी दलित$ब्रहम्ण के समीकरण के साथ जुड़ गया और बहनजी का सोशल इंजीनियरिंग का समीकरण ऐसा बना कि थोड़े से अति पिछड़ों को जोड़कर वे 2007 के चुनाव में अपने बल पर सत्ता में स्पश्ट बहुमत से आ गयीं।
     आंकड़ें के हिसाब से देखें तो 21 प्रतिशत दलित, 18 प्रतिशत मुसलमान और 10 प्रतिशत ब्रहम्ण मिलकर 49 प्रतिशत हो जाता है। इसमें पिछड़ों के आंशिक वोट और जोड़ लें तो उक्त तीनों से जो वोट इधर उधर जाते हैं बदले में कुछ पिछड़ों के आ जाते हैं। इतना ही नहीं प्रदेश की कुल 19.96 करोड़ आबादी में से 15.5 करोड़ जनता गांवों में रहती है। इनमें 73 प्रतिशत भूमिहीन किसान हैं जिनमें 42 प्रतिशत दलित हैं जो बसपा की असली ताकत है। पूरे प्रदेश का जायज़ा लें तो सवर्णों की संख्या 20.5 प्रतिशत है जिसमें राजपूत ठाकुर 7.5 प्रतिशत और कायस्थ वैश्य तीन फीसदी हैं जबकि ब्रहम्ण 10 प्रतिशत हैं। पिछड़ी जातियां यूपी में 40 प्रतिशत मानी जाती हैं। बैकवर्ड क्लास में यादव यूपी में सबसे अधिक 9 प्रतिशत दोआब से लेकर पूर्वी ज़िलांे में फैला हुआ है। पश्चिमी ज़िलों मेें रहने वाले जाटों की आबादी पूरे राज्य की 7 प्रतिशत है।
   यह पश्चिमी यूपी में 15 प्रतिशत है। तीसरी बड़ी पिछड़ी जाति कुर्मी मानी जाती है जो मात्र 3 प्रतिशत है। यह जाति सीतापुर, खीरी और देवीपाटन ज़िलों तक सीमित है। चौथी बीसी जाति गुर्जर 2 प्रतिशत हैं जो जाट बहुल इलाकों के आसपास ही निवास करते हैं। इसके अलावा अति पिछड़ी जातियां लोध, मल्लाह, बिंद और राजभर आदि 15 प्रतिशत बचते हैं।
    18 प्रतिशत मुसलमानों का जहां तक मामला है वो यूपी में तीसरी बड़ी ताकत माने जाते हैं। उनकी आबादी पश्चिम और पूर्व दोनों जगह है। मुस्लिम मुरादाबाद, रामपुर, अमरोहा, बिजनौर, बदायूं, अलीगढ़, बहराइच, मेरठ,सहारनपुर, शाहबाद, आगरा, कबीर नगर, सिध््दार्थनगर और बरेली में हार जीत तय करने की हालत में है। जहां तक दलितों का वोट है वह दोआब अवध क्षेत्र में यहां की आबादी का 26 प्रतिशत है। बुंदेलखंड में 25 फीसदी और पूर्वी क्षेत्र में एससी 22 प्रतिशत माना जाता है। इसके साथ ही राज्य में एक करोड़ यानी आधा प्रतिशत गोढ़ी मछुआ जाति भी निवास करती है जो पूरे प्रदेश में बिखरी हुयी है।
  इस तरह यूपी में जाति के समीकरण ऐसे बने हुए हैं जिनके रहते कांग्रेस और भाजपा अभी तीसरे चौथे स्ािान की लड़ाई ही लड़ सकती हैं न तो वे खुद अपने बल पर सत्ता में आ सकती हैं और न ही उनकी इतनी सीटें आने जा रही हैं कि वे अपने नेतृत्व में सरकार बनाने की गलतफहमी पाल सकें। यकीन न हो तो वे सारे प्रयास करके देख लें जब विधानसभा चुनाव के परिणाम आयेंगे उनको यह वास्तविकता स्वीकार करनी होगी।
0जम्हूरियत तो एक ऐसा निज़ाम है जिसमें,

  ब्ंादों को गिना करते हैं तोला नहीं करते।  

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