Saturday, 1 February 2014

अपराधियों का राजनीतिकरण

 अपराधियों का राजनीतिकरणः दोषी लीडर या वोटर ?
          -इक़बाल हिंदुस्तानी
0 दाग़ियों को एक पार्टी ठुकराती है तो दूसरी गले लगाती है!
     अपराधियों को टिकट देने के आरोप में नेताओं पर सारा गुस्सा उतारने वाली जनता की समझ यह है कि वे जेल में बंद यूपी के उस अमरमणि त्रिपाठी को जिता देती है जिस पर कवित्री मध्ुामिता की हत्या का आरोप था। वजह थी कि अमरमणि अपनी बिरादरी की नाक का सवाल बन गये थे। लड़ाई उनके क्षेत्र में ब्रहम्ण बनाम ठाकुर बन गयी। ध्रुवीकरण मंे वे 20 हज़ार वोटों से जीत गये। एक और चुनाव में यादव बहुल सीट बदायूं के सहसवान से खुद डी पी यादव और बगल की सीट बिसौली से अपनी पत्नी उमलेश को अपने परिवर्तन दल से खड़ा करने वाले बाहुबली ने मुलायम सिंह को ध्ूाल चटाकर दोनों सीटें जीत ली थीं। दरअसल मुलायम ने यहां नारा दिया कि अगर केवल यावद विधायक चाहते हों तो डीपी और उनकी पत्नी को जिताओ और अगर यादव मुख्यमंत्री चाहते हो तो सपा के प्रत्याशियों को वोट करो।
    लोगों ने फैसला जातिवाद के बल पर डीपी और उनकी पत्नी के पक्ष में दिया। एक और माफिया मुख़्तार अंसारी 1996 से लगातार विधायक चुने जा रहे हैं। 2007 में तो जेल में रहते वे 70 हज़ार से अधिक वोटों से एमएलए बने। उनकी हालत यह है कि 2009 के संसदीय चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी के मुकाबले वाराणसी से वह पौने दो लाख वोट लेकर मात्र 18 हज़ार वोटों से जीत से वंचित रहे। लोगों का कहना है कि उनके एक फोन या चिट्ठी पर सरकारी अधिकारी और कर्मचारी वे काम भी करने को तैयार हो जाते हैं जो वे सीएम और पीएम की सिफारिश पर भी नहीं करते। एक बखऱ्ास्त पूर्व बसपा मंत्री बाबूसिंह कुशवाह को भाजपा की सदस्यता को लेकर भले ही ज़बरदस्त किरकिरी हो गयी हो लेकिन अगर परत दर परत  जांचा परखा जाये तो किसी भी दल का दामन दाग़ियों को लेकर पूरी तरह साफ नहीं मिलेगा।
  भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के आंदोलन को लेकर देश में जो बहस शुरू हुयी थी उससे यह लग रहा था कि लोकपाल कानून चाहे जब बने लेकिन भविष्य में सभी दल अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को टिकट ही नहीं बल्कि सदस्यता देते समय भी दस बार सोच विचार करेंगे लेकिन अब जबकि लगभग सभी दलों के टिकट अंतिम चरण में हैं तो यह साफ पता लग रहा है कि किसी भी दल की नीति ही नहीं नीयत भी इस मामले में ठीक नहीं है।
       दरअसल होता यह है कि जनता का जो पढ़ा लिखा बुध्दिजीवी कहलाने वाला वर्ग भ्रष्टाचार पर खूब बढ़ चढ़कर चर्चा करता है और आजकल आंदोलन भी करने लगा है वह चुनाव के समय आराम से घर बैठकर या तो टीवी देखता है या फिर उस दिन बाज़ार और कार्यालय की छुट्टी होने से पिकनिक पर चला जाता है। जो दलित, पिछड़े और मुस्लिम वर्ग बड़े पैमाने पर और उच्च जातिया कमोबेश मतदान करते हैं उनमें जाति, धर्म, और सारी संकीर्णतायें इस दौरान भी काम करती हैं। इन में कुछ लोग नक़द या उपहार लेकर भी वोट देने लगे हैं। इसी समीकरण के हिसाब से सभी दल अपने प्रत्याशी खड़े करते हैं। जहां तक सियासी जमातों द्वारा उम्मीदवारों का चयन है तो कोई अपराधी, दागी या पापी जिताउू हो तो उनको इस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ता कि वह चुनाव जीतकर क्या गुल खिलायेगा?
   सपा पूर्व डकैत फूलनदेवी और भाजपा तहसीलदार सिंह को चुनाव लड़ा चुकी है। अन्य दलों का रिकॉर्ड भी इस मामले में कमोबेश उन्नीस इक्कीस ही है। यूपी में 155 दागी एमएलए राज चला रहे हैं। इससे नेताओं को यह मौका मिल गया है कि जनता को इसी हालत में गरीब और अनपढ़ रखो जिससे उनको लूट का लाइसंेस यूं ही मिलता रहे। सत्ताधारी बसपा से ही बात शुरू करें तो उसने दागी बताकर अपने 22 मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया है जबकि 100 विधायकों को दोबारा टिकट नहीं दिया है लेकिन प्रतापगढ़ ज़िले की पट्टी सीट पर बहनजी ने जिस मनोज तिवारी को अपना प्रत्याशी बनाया है वह चार साल पहले हुयी एक दलित लड़की की हत्या के आरोप में फरार चल रहा है। एक तरफ पुलिस ने तिवारी के घर का कुर्की वारंट जारी कराके उसकी तलाश तेज़ कर दी है तो दूसरी तरफ उसका चुनाव प्रचार क्षेत्र में जोरशोर से चल रहा है।
   उधर कांग्रेस ने हमीरपुर में हत्या का प्रयास और नशीले पदार्थों की तस्करी के आरोपी केशव बाबू शिवहरे और उन्नाव में हत्या के आरोपी रामखिलावन पासी समेत आधा दर्जन ऐसे प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं जिनपर गंभीर अपराधिक आरोप हैं वहीं मंत्री नंद गोपाल गुप्ता पर जानलेवा हमले के आरोपी भदोही के सपा विधायक विजय मिश्रा को मुलायम सिंह ने फिर से टिकट दे दिया है।
  साथ ही बसपा से निकाले गये बलात्कार सहित कई बड़े मामलों में जेल जा चुके भगवान शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित को समाजवादी पार्टी ने डिबाई से उम्मीदवार बनाया है। सपा ने ऐसे कई लोगों को टिकट दिये हैं जिनपर गंभीर अपराधिक आरोप हैं। कम लोगांे को पता होगा कि भाजपा ने केवल कुशवाह को ही नहीं लिया बल्कि बर्खास्त मंत्री बादशाह सिंह, अवधेश वर्मा व ददन मिश्रा को भी लिया है। वर्मा व मिश्रा को तो वह बाकायदा चुनाव में भी उतार चुकी है।
   उधर सपा में बाहुबली डी पी यादव की नो एन्ट्री करने वाले भावी मुख्यमंत्री अखिलेष यादव चाहे जितनी अपनी कमर थपथपायें लेकिन इससे पहले उनकी पार्टी भी यूपी के भजनलाल बन चुके  नरेश अग्रवाल, उनके पुत्र नितिन अग्रवाल लोकदल में जा चुके पूर्व मंत्री कुतुबुद्दनी अंसारी, विधयक बदरूल हसन, सुनील सिंह भाजपा से गोमती यादव, बसपा से हाजी गुलाम मुहम्मद, राजेश्वरी देवी , महेश वर्मा जैसे दलबदलुओं और बुलंदशहर के उस कुख्यात गुड्डू पंडित को टिकट थमा चुकी है जिनपर बलात्कार और अपहरण तक के गंभीर आरोप हैं। ऐसे ही भाजपा ने दुराचार के आरोपी फैज़ाबाद ज़िले की रूदौली सीट से सपा और बसपा से ठुकराये जा चुके पूर्व विधायक रामचंद्र यादव को चुनाव में उतार दिया है।
   इतना ही नहीं बड़े दलों को राजनीति के अपराधीकरण के लिये कोसने वाले नये नये छोटे दल भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। मिसाल के तौर पर प्रगतिशील मानव समाज पार्टी ने अहमदाबाद की जेल में बंद माफिया बृजेश सिंह को चंदौली की सैयदराजा सीट से प्रत्याशी बनाया है जबकि बृजेश पर पकड़े जाने से पहले पांच लाख का इनाम रखा गया था। उसपर पकड़ी नरसंहार से लेकर जेजे अस्पताल कांड तक के कई गंभीर अपराधों के आरोप हैं।
   अपना दल ने जेल में बंद प्रेमप्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी को जौनपुर जिले की मड़ियाहू सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है जबकि मुन्ना पर विधायक कृष्णानंद राय सहित एक दर्जन लोगों की हत्या का आरोप है। इलाहबाद के माफिया सरगना अतीक अहमद भी इस दल के प्रत्याशी हैं। अपना दल का यहां तक कहना है कि कोई अपराधी है या नहीं यह देखना हमारा नहीं अदालत का काम है। पीस पार्टी भी इस मामले में पीछे क्यों रहती उसने सुल्तानपुर की इसौली सीट से गंभीर आरोपों से घिरे यशभद्र सिंह मोनू और बीकापुर से पूर्व विधायक जितेंद्र सिंह बबलू को अपना उम्मीदवार बनाया है।
   जेल में बंद माफिया विधायक मुख़्तार अंसारी को कौमी एकता दल ने मउू से प्रत्याशी बनाया है तो बलात्कार के आरोपी पुरूषोत्तम द्विवेदी भी गैर बसपा दलों के कार्यालयों और वरिष्ठ नेताओं के इस आशा से चक्कर काट रहे हैं कि कहीं ना कहीं उनकी भी दाल गल ही जायेगी। माफिया डॉन बृजेश सिंह को अप्रत्यक्ष लाभ पहुंचाने के लिये एक बड़े दल ने सैयदराजा सीट से जो उम्मीदवार खड़ा किया है क्षेत्र के लोगों को पता है कि वह डमी है। कहने का मतलब यह है कि लंका में सभी बावन गज़ के हैं अब जनता को ही आगे आना होगा।
   बहरहाल आरएसएस से साम्प्रदायिकता के मामले में विरोध रखने वाले भी इस बात पर सहमत होंगे कि अगर भाजपा सहित कोई भी दल ऐसे दागी लोगोें को चुनाव में उतारती है तो जनता उनको हरा दे। जानकार लोग जानते हैं कि यह काम बिहार की जनता पिछले चुनाव में करके कामयाबी के साथ दिखा भी चुकी है। वहां लगभग 90 प्रतिशत अपराधी प्रवृत्ति के लोग चुनाव में हार गये थे। जनता चाहे तो यही हाल यूपी में भी हो सकता है। इससे यह भी पता लगेगा कि 75 प्रतिशत मतदाता जाति, धर्म, लालच और क्षेत्र से बंधे होने के बावजूद शेष 25 प्रतिशत तटस्थ व निष्पक्ष मतदाता से मात खा सकता है। जनवादी कवि अदम गांेडवी ने ठीक ही कहा है-
0 पैसे से आप चाहो तो सरकार गिरादो,
  स्ंासद बदल गयी है यहां की नख़ास मंे।
  जनता के पास एक ही चारा है बगा़वत,

  यह बात कह रहा हूं मैं होशो हवास में।  

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