फेसबुक पर रोक लगाने की बजाये सरकार अपना फेस देखे!
-इक़बाल
हिंदुस्तानी
0 नेताओं की इज़्ज़त ही कहां बची है जो बेइज़्ज़ती होगी ?
अभी तक तो
सरकार अपने प्रिय भ्रष्टाचार पर ही रोक लगाने के लिये मज़बूत लोकपाल लाने से बच रही
थी लेकिन अब वह अरब देशों में सोशल
नेेेटवर्किगं साइट्स जैसे फेसबुक और ब्लॉग आदि के ज़रिये हुयी बग़ावत से डरकर
इंटरनेट पर रोक लगाने को पेशबंदी करने पर उतर आई है। इसको कहते हैं विनाशकाल
विपरीत बुध्दि। किसी ने सुपर पीएम सोनिया गांधी की शान में सोशल नेटवर्किंग साइट
पर ज़रा सी गुस्ताखी क्या कर दी, पूरे देश में फेसबुक और
ब्लॉग से आग लगने का ख़तरा दिखाई देने लगा। ये साईटें इतने लंबे समय से काम कर कर
रही हैं लेकिन आज तक किसी को कोई शिकायत हुयी भी तो मौजूदा कानून के ज़रिये साइबर
क्राइम का मामला थाने में दर्ज हो गया।
अगर पुलिस ने
किसी केस में मुक़द्मा लिखने में हील हवाला किया तो सीधे कोर्ट में मामला दायर कर
दिया गया। ज़्यादा पुराना मामला नहीं है पिछले दिनों कांग्रेस के बदज़बान और शातिर
भोंपू दिग्विजय सिंह के खिलाफ जब इंटरनेट पर अन्ना हज़ारे पर कीचड़ उछालने के कारण
जमकर टिप्पणियां होने लगी तो उन्होंने लोगों को डराने के लिये दिल्ली के एक थाने
में साइबर क्राइम का मामला दर्ज करा दिया था। इससे पहले भी ऐसे मामले दर्ज होते
रहे हैं। लेकिन इससे कोई खास अंतर नहीं पड़ा।
सवाल यह नहीं है
कि सोशल नेटवर्किंग साइट पर कोई गैर कानूनी काम करता है तो उसका क्या किया जाये
सवाल यह है कि एक देश में दो कानून नहीं चल सकते। एक आम आदमी सरकार और उसकी पुलिस
के अत्याचार और अन्याय के कारण या भूख से मर भी जाये तो कोई हंगामा नहीं होता जबकि
एक दागदार नेता को कोई आदमी महंगाई से तंग आकर एक चांटा मार दे तो आसमान सर पर
उठालो। ऐसे ही आज सोनिया गांधी पर अगर किसी ने फेसबुक पर कोई नाज़ेबा कमेंट कर दिया
तो पूरी सरकार एक्टिव हो गयी। फेसबुक के संचालकों को टेलिकॉम मिनिस्टर ने अपने
ऑफिस में बाकायदा तलब कर लिया। उनको यह तालिबानी आदेश दिया गया कि फेसबुक या ब्लॉग
पर ऐसा कुछ नहीं आना चाहिये जिससे किसी नेता की तौहीन हो। इसका मतलब बिना किसी
कानून के ही संेसर लागू कर दिया गया। सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार हो या फिर
साम्प्रदायिक और अश्लील टिप्पणी की जाये। इससे देश की सभ्यता और संस्कृति एवं अमन
चैन को ख़तरा नज़र आने लगा।
क्या इससे पहले
जब कांग्रेस ने ऐसी राजनीति की जिससे दंगे हुए , साम्प्रदायिकता
और जातिवाद बढ़ा तब देश के अमन चैन की याद नहीं आई थी। जब बाबरी मस्जिद का ताला
खुलवाया गया था और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखांे का कत्लेआम होने पर राजीव
गांधी ने यह कहा था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है तब देश का
भाईचारा ख़तरे मंे नहीं पड़ा था?
ऐसा लगता है कि
सरकार को यह नज़र आने लगा है कि जिस तरह से मीडिया और ख़ासतौर पर टीवी चैनल उसके
खिलाफ भ्रष्टाचार को लेकर अभियन चला रहे हैं अगर यह सिलसिला जारी रहा तो इंटरनेट
पर उसके लिये ऐसे हमले तेज़ हो सकते हैं जिनका न तो उसे पता चलेगा और न ही वह उनको
रोक पायेगी। इससे वह विपक्ष की बजाये इलेक्ट्रनिक मीडिया से चुनाव से पहले ही हार
रही है। इसीलिये उसने फेसबुक और ब्लॉग को जड़ से रोकने का क़दम उठाया है। उसने यह
नहीं सोचा कि उसके खिलाफ लोगों ने इंटरनेट पर यह अभियान क्यों छेड़ रखा है।
उसने अपने फेस
को न देखकर सीधे आईने पर वार करने की कोशिश की है लेकिन वह यह नहीं जानती कि आज
सरकार की ही नहीं किसी भी नेता की जनता की नज़र में कोई खास इज़्ज़त बाकी नहीं रह
गयी है जिसको वह सोशल नेटवर्किंग साइट पर रोक लगाकर बचाना चाहती है। वह यह भी भूल
रही है कि आज फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट देश में सेफ्टी वाल्व का काम कर
रही हैं जिनपर लोग अपने दिल की भड़ास और दिमाग का गुस्सा निकालकर राहत महसूस कर
लेते हैं वर्ना एक दो करोड़ लोग जिस दिन अपना विरोध दर्ज करने सड़कों पर उतर आये तो
नेपाल के राजा की तरह सरकार को अपनी खाल बचानी मुश्किल हो सकती है।
अब भारत में
जनता जाग रही है और वह न तो सरकार को मनमानी करने देगी और न ही पांच साल तक खुली
लूट। कांग्रेस अगर अरब मुल्कों में हो रही क्रांति और अमेरिका और यूरूपीय मुल्कों
में चल रहे ऑक्युपाई वाल स्ट्रीट आंदोलन से कुछ सबक ले ले तो बेहतर है वर्ना चुनाव
से पहले भी जनता उसको सबक सिखा सकती है।
0 नज़र बचाकर निकल सकते हो तो निकल जाओ,
मैं इक आईना हूं मेरी अपनी ज़िम्मेदारी है।।
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