सरकार
विरोध से विपक्ष को लाभ मिले तो कोई क्या करे
-इक़बाल
हिंदुस्तानी
0जनता के दबाव मंे बदल रहा है बीजेपी का
एजेंडा ?
अन्ना हज़ारे ने एक बार फिर जनलोकपाल
बिल को लेकर हुंकार भरी है। हज़ारे का यह कहना बिल्कुल ठीक है कि उनको इस बात का
विश्वास होता जा रहा है कि कांग्रेस की नीयत यह बिल पास करने की नहीं है। अन्ना ने
यह भी चेतावनी दी है कि अगर शीतकालीन सत्र में जनलोकपाल बिल पास नहीं होता है तो
वह अब चुनावों में कांग्रेस को हराने की अपील करेंगे। उनकी इस अपील का भाजपा ने
एडवांस में समर्थन किया है। उसने यह भी वायदा किया है कि अगर भाजपा सत्ता में आती
है तो वह जनलोकपाल बिल जैसा का तैसा पास करने पर गंभीरता से विचार करेगी। इसपर
अविश्वास करने पर कोई विकल्प भी नहीं है।
अन्ना ने अपने उूपर लगने वाले राजनीतिक आरोप
का एक बार फिर यह कहकर जवाब दिया है कि वह भाजपा के पक्ष में नहीं बल्कि कांग्रेस
के खिलाफ वोट देने की लोगों से अपील इसलिये करेंगे क्योंकि आज़ादी के बाद से सबसे
अधिक समय तक कांग्रेस की सरकारें देश और अधिकांश राज्यों मंे रहीं हैं। आठ बार
लोकपाल बिल संसद में आने के बावजूद अगर पास नहीं हो सका तो इसके लिये कांग्रेस की
इच्छाशक्ति न होना ही इसका सबसे बड़ा कारण है।
अन्ना ने यह भी कहा है कि अगर भाजपा वास्तव में भ्रष्टाचार के मामले में
गंभीर है तो वह अपनी पार्टी द्वारा शासित राज्यों में भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस पहल
करे। शायद इसी बात का असर है कि भाजपा ने न केवल उत्तराखंड और कर्नाटक में नेतृत्व
परिवर्तन किया है , बल्कि
उत्तराखंड के नये सीएम भुवन चंद खंडूरी ने तो बाकायदा कुछ ऐसे फैसले किये हैं
जिनसे भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस पहल हो चुकी है।
मिसाल के तौर पर खंडूरी ने कुर्सी संभालते ही
विधनसभा में तीन ऐसे विधेयक पेश कर दिये जिनसे भ्रष्टाचार पर सीधी चोट हो रही है।
इसमें भ्र्रष्टाचार के मामलों से शीघ्र निबटने के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना, जनता को समय पर महत्वपूर्ण
सरकारी सेवायें उपलब्ध कराने के लिये सेवा आयोग और सरकारी अधिकारियों व
कर्मचारियों के स्थानांतरण के लिये एनुअल ट्रांस्फर बिल शामिल हैं। सीएम बनने के
दो सप्ताह बाद ही खंडूरी ने यह काम करके अपनी उस घोषणा को सही साबित कर दिया है
जिसमें उन्होंने अपना पहला काम सरकारी व्यवस्था से भ्रष्टाचार ख़त्म करना बताया
था।
इतना ही नहीं खंडूरी ने सरकारी सेवकों के
लिये अपनी सम्पत्ति का अनिवार्य रूप से ब्यौरा पेश करना, आय से अधिक सम्पत्ति ज़ब्त कर
उसका जनहित में प्रयोग करना और सिटीज़न चार्टर लागू करने में आनाकानी करने वाले
सरकारी अफसरों के खिलाफ जुर्माना लगाने की व्यवस्था की है। इसके साथ ही सरकारी
सेवक को एक निश्चित सेवाकाल प्रदेश के दुर्गम क्षेत्रों में हर हाल में काटना
होगा।
अगर यह कहा जाये कि भाजपा वक्त की नब्ज़ को
पहचान रही है तो गलत नहीं होगा। जहां तक इस बात का सवाल है कि सब राजनीतिक दल
सत्ता से बाहर रहने के दौरान ऐसे ही दावे और वादे करते हैं और सरकार बनने के बाद
उनसे मुकर जाते हैं तो इसका इलाज तो राइट टू रिकॉल ही हो सकता है। यह समस्या किसी
एक पार्टी या राज्य और केंद्र सरकार की नहीं है बल्कि यह हमारी व्यवस्था की खामी
है। अगर हम कोई सरकार बदलना चाहते हैं तो उसके स्थान पर किसी दूसरे दल को तो चुनना
ही होगा। अन्ना ने कोई राजनीतिक पार्टी न तो बनाई, न ही उनका ऐसा करने का इरादा
है जिससे उनका यह कहना सही है कि वे सरकार का विरोध करेंगे चाहे इससे भाजपा को लाभ
हो या किसी और दल को, उन्हें
मतलब नहीं।
पहले भाजपा ने अन्ना हज़ारे के आंदोलन को
खुलकर समर्थन दिया। इसके बाद उसने टीम अन्ना के जनलोकपाल बिल को सपोर्ट किया। इसके
साथ साथ उसने भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे कर्नाटक के अपनी पार्टी के
सीएम येदियुरप्पा का तमाम दबाव और सरकार गिरने के ख़तरे को महसूस करने के बावजूद
इस्तीफा दिलाया। बाद में उत्तराखंड के मुख्यमंत्राी निशंक को भी चलता कर साफ सुथरी
और अधिक ईमानदार छवि के पूर्व फौजी मेजर भुवन चंद खंडूरी को चीफ मिनिस्टर बनाकर एक
अच्छा संदेश दिया। इतना ही नहीं वरिष्ठ भाजपा नेता एल के आडवाणी ने देश का बदला
माहौल और जनता का मूड भांपकर भ्रष्टाचार के खिलाफ रथयात्रा का ऐलान किया तो उनके
विरोधियों को रामरथयात्रा की याद दिलाकर देश का माहौल बिगड़ने का अंदेशा जताने का
मौका मिल गया लेकिन धीरे धीरे भाजपा ने स्पश्ट कर दिया कि यह यात्रा पहले की तरह
नहीं होगी।
यह रथयात्रा न तो गुजरात के सोमनाथ मंदिर से
शुरू होगी और न ही यूपी के प्रस्तावित राममंदिर के लिये अयोध्या को लक्ष्य बनाकर
ख़त्म होगी।
भाजपा का यह सबसे बड़ा बदलाव माना जाना
चाहिये कि आडवाणी की यह यात्रा समग्र क्रांति के जनक जयप्रकाश नारायण के जन्मस्थल
बिहार स्थित सिताब दियारा से शुरू होगी। साथ
ही इसको हरी झंडी भी सेकुलर छवि के नीतीश कुमार दिखायेंगे। अब ख़बर आई है
कि जनाधार बढ़ाने के लिये भाजपा न केवल विवादास्पद मुद्दों से किनारा करने का मन
बना रही है, बल्कि
राजग के साथ फिर से नये साथी जोड़ने का भी रथयात्रा को माध्यम बनाया जायेगा। आरएसएस
के मोदी को पीएम प्रोजेक्ट किये जाने के बावजूद भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी
में आडवाणी की रथयात्रा को जिस तरह से एकजुट होकर सफल बनाने के संकल्प को दोहराया
गया है उससे लगता है कि भाजपा को यह कड़ुवा सच देर सेे ही सही समझ आ रहा है कि
आवाजे़ ख़ल्क को नक्कार ए खुदा समझो।
दरअसल भाजपा यह मानकर चल रही है कि जिस तरह
से टू जी स्पैक्ट्रम का घोटाला रोज़ नये आयाम ले रहा है उससे हो सकता है कि जल्दी
ही ऐसी स्थिति आ जाये कि पीएम मनमोहन सिंह को भी लपेटे में आने पर नैतिकता के दबाव
में त्यागपत्र देना पड़े, ऐसी
स्थिति में ज़रूरी नहीं कि प्रणव दा या युवराज नये पीएम बनकर यूपीए सरकार का बाकी
कार्यकाल पूरा करा ही दें। अगर मध्यावधि चुनाव होने की नौबत आती है तो उसे दिल्ली
की सत्ता हासिल करने के लिये अपनी सीटें बढा़ने के बावजूद अन्य घटकों की एक बार
फिर से ज़रूरत पड़ना तय है। यह बात अब किसी से छिपी नहीं रह गयी है कि देश मंे अभी
आगे भी गठबंधन राजनीति ही चलने जा रही है। हालांकि कांग्रेस की तरह भाजपा में भी
यह अंतरविरोध सामने आ रहा है कि एक तरफ उसकी मातृसंस्था आरएसएस गुजरात के सीएम
मोदी को भावी पीएम देखना चाहती है और दूसरी तरफ न केवल भाजपा की राष्ट्रीय
कार्यकारिणी बल्कि उसके पुराने घटक भी मोदी से ज़्यादा आडवाणी के नाम पर सहमत होते
नज़र आ रहे हैं।
दरअसल बीजेपी को यह बात दीवार पर लिखी इबारत की
तरह साफ नज़र आ रही है कि राजग के दो दर्जन घटक आज उसके साथ घटकर मात्र चार रह गये
हैं जिनके बिना लालकिला फतह करना दिन में सपना देखना ही होगा। इस समय भाजपा मोदी
सहित उन तमाम विवादित मुद्दो को एक ओर रखना चाहती है जिनकी वजह से तदेपा, बीजद, रालोद, अगप और टीआरएस जैसे दल उससे
दूर चले गये हैं।
बीजेपी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अगर चुनाव
जीतकर सत्ता में आ जाती है तो वह कितनी साफ सुथरी सरकार दे पायेगी यह दावा कोई
नहीं कर सकता, क्योंकि
बीजेपी की सरकारों का अब तक का रिकार्ड इस मामले में कोई खास बेहतर नहीं रहा है।
बहरहाल एक बात जो दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ नज़र आ रही है वह यह है कि बीजेपी
यह मान चुकी है कि उसका पुराना हिंदुत्व का एजेंडा इस देश की जनता पसंद नहीं करती
जिससे वह मुस्लिमों द्वारा ही नहीं बल्कि हिंदुओं के बहुमत के द्वारा भी बार बार
ठुकराई जा रही है। यह भी एक सच्चाई है कि आरएसएस चाहे बीजेपी से कुछ भी चाहे लेकिन
बीजेपी को अगर सरकार बनानी है तो उसको वह करना होगा जो इस देश की जनता चाहती है।
दरअसल धार्मिक और भावुक मुद्दों पर लोगों को
कुछ समय के लिये ही जोड़ा जा सकता है जबकि ज़मीन से जुड़े आम जनता के मुद्दों को जब
भी जो दल या नेता उठायेगा उसको जनता का जबरदस्त सपोर्ट और विश्वास हासिल होगा यह
बात अन्ना हज़ारे ने साबित कर दी है।
0होशमंदों की
क़यादत में तबाही है बहुत,
रहनुमाई को मेरे मालिक कोई पागल भेजदे।।
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