Monday, 3 February 2014

एकतरफ़ा पुलिस एक्शन क्यों



पीएम ने पुलिस की एकतरफ़ा कार्यवाही को माना तो!
      -इक़बाल हिंदुस्तानी
0 बटलाहाउस के बाद गोपालगढ़ कांड इसका ताज़ा नमूना है!
          बीती 14 सितंबर को कांग्रेस शासित राजस्थान के भरतपुर ज़िले के गोपालगढ़ में पुलिस ने ज़मीन के एक मामूली विवाद को लेकर दो सौ राउंड गोली चलाकर 9 लोगों को मौत के घाट उतार दिया और 22 को इतनी बुरी तरह घायल कर दिया कि वे अस्पताल में मौत और जिं़दगी के बीच झूल रहे हैं। बटला हाउस का मामला हो या गोपालगढ़ का पुलिस का रूख़ अल्पसंख्यकों विशेष रूप से मुसलमानों के साथ कमोबेश एक सा ही रहता है।
    हालांकि पीएम मनमोहन सिंह ने जो सच कबूल किया है वह एक तरह से आधा ही है। उनका कहना है कि पुलिस और अन्य जांच एजंसी कभी कभी जो मुसलमानों के साथ पूर्वाग्रह से पेश आती हैं उनको ऐसा नहीं करना चाहिये जबकि देखने में यह आता है कि भाजपा शासित राज्यों की तो बात छोड़ दीजिये जो कांग्रेस और पीएम मुसलमानों की हमदर्द होने का दम भरती हैं उनके राज्यों में ही अकसर ऐसी एकतरफा घटनायें बार बार होती हैं जिनसे ऐसा लगता है कि शायद कभी कभी ही पुलिस ऐसा पूर्वाग्रह न रखकर मुसलमानों के मामले में कार्यवाही करती है वर्ना बटलाहाउस से लेकर राजस्थान के गोपालगढ़ का मामला ही नहीं मुरादाबाद में ईद की नमाज़ पढ़ते लोग हों या मलियाना और हाशिमपुरा के लोग हों पुलिस ने दंगों के दौरान तलाशी के नाम पर ही अकसर कांग्रेस राज में ऐसा सलूक किया है जैसा विदेशी फौजें भी शायद न करें।
   लोगों को पूछताछ के नाम पर घरों से निकालकर अपने साथ गाड़ी में भरकर ले जाना और फिर पीएसी द्वारा उनको गोली मारकर हिंडन नदी में बहा देना मेरठ का बहुत अधिक पुराना मामला नहीं है। कांग्रेस के राज में ही बिहार के भागलपुर से लेकर गुजरात के अहमदाबाद मंे जो दंगें होते थे वे महीनों तक चला करते थे। यही हाल यूपी के अनेक नगरों से लेकर महाराष्ट्र के भिवंडी व असम के नेल्ली तक में रहा है।
   पीएम मनमोहन सिंह इस मामले में भी वही रूख़ अपना रहे हैं जो ईमानदार और अर्थशास्त्री होकर वह अपनी भ्रष्ट और महंगाई बढ़ाने वाली नाकाम यूपीए सरकार को चलाने में अपना रहे हैं। ऐसा लगता है कि उनका अपनी ही पार्टी और राज्य सरकारों पर कोई नियंत्रण नहीं है। एक तरफ बार बार मांग करने के बावजूद वह बटलाहाउस के फर्जी एनकाउंटर की जांच कराने को तैयार नहीं हैं तो दूसरी तरफ गोपालगढ़ में एक मशहूर उर्दू दैनिक के संपादक ने दौरा करके जो रिपोर्ट दी है अगर वह पूरी तरह सही है तो यह जानकर रौंगटे खड़े हो जाते हैं कि वहां पुलिस ने ज़मीन के मामूली विवाद को पहले तो रिश्वत खाकर दबाना चाहा जब मामला तूल पकड़ गया तो उसे साम्प्रदायिक रंग देकर एकतरफा कार्यवाही की। इसका नतीजा यह हुआ कि पुलिस ने इतनी अधिक फायरिंग की है कि नौ लोग मौके पर मारे गये जबकि 22 बुरी तरह ज़ख़्मी हो गये।
   ये सब लोग अल्पसंख्यक समुदाय के हैं। बताया जाता है कि जब पुलिस के हमले से बचने के लिये लोगों ने पास के धार्मिक स्थल में पनाह ली तो पुलिस ने उनको वहां जाकर भी सबक सिखाया जिसकी गवाही धार्मिक स्थल की दीवारों में दो दर्जन से अधिक गोलियों के निशान दे रहे हैं। हालांकि अब मीडिया के गोपालगढ़ पहुंचने और आने वाले चुनाव मंे अल्पसंख्यकों के वोट का नुकसान होने के डर से पूरा गोपालगढ़ थाना लाइन हाज़िर कर दिया गया है। गहलौत की कांग्रेस सरकार इस मामले की न्यायिक और सीबीआई जांच कराने का ऐलान भी कर रही है लेकिन ऐसी जांचों का क्या नतीजा होता है यह सब जानते हैं।
   अगर यह भी मान लिया जाये कि अकसर ऐसे मामलों में अल्पसंख्यक अपनी विशेष मानसिकता के कारण भयभीत होने से आक्रामक और हिंसक होने में पहल करते हैं तो भी राज्य  पुलिस का काम यह नहीं है कि अपने ही लोगों को लाठीचार्ज ,हवायी फायरिंग या पानी की बौछार से न रोककर सीधे गोली से भून दिया जाये और तब तक पीछा किया जाये जब तक कि वे मारे ही न जायें?
    19 सितंबर 2008 को दिल्ली के बटला हाउस में पुलिस के साथ हुयी मुठभेड़ में वास्तव में हुआ क्या था? इस मामले की जांच को उलेमा काउंसिल के बैनर तले एक बार फिर हज़ारों लोग दिल्ली के जंतर मंतर पर जमा हुए। इस मौके पर प्रदर्शनकारियों ने कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह को खूब खरी खोटी सुनाई। कुछ महीने पहले दिग्विजय सिंह ने यूपी के आज़मगढ़ ज़िले के संजरपुर गांव का दौरा किया था। इसी दौरान उन्होंने बटला हाउस मुठभेड़ पर सवाल खड़े किये थे। आपको याद दिलादें कि इस एंकाउंटर मंे मारे गये दो संदिग्ध युवकों आतिफ़ अमीन और मौ0 साजिद का सम्बंध इसी गांव से हैं। पुलिस का दावा रहा है कि ये दोनों आतंकवादी थे और इनका तआल्लुक़ इंडियन मुजाहिदीन से था। पुलिस इनके तार 13 सितंबर 2008 के दिल्ली बम विस्फोट से भी जोड़ती रही है।
   उलेमा काउंसिल के नेशनल प्रेसिडेंट मौलाना आमिर मदनी का आरोप है कि यह बात समझ से बाहर है कि सत्ताधरी दल का एक बड़ा नेता संजरपुर जाकर बटला हाउस मुठभेड़ पर सवाल खड़े करता है और यहां तक कहता है कि यह मुठभेड़ वास्तव में फर्जी़ ही थी, लेकिन दिल्ली में अपनी सरकार होने के बावजूद वह इस कांड की जांच तक नहीं करा पाते। उनका यह भी दावा रहा है कि उन्होंने अपनी हाईकमान सोनिया गांधी और पीएम मनमोहन सिंह को भी यह बात बता दी है लेकिन उनकी बात कोई सुनने को तैयार नहीं है। उलेमा काउंसिल ने इसका मतलब यह निकाला कि दिग्विजय सिंह केवल मुसलमानों का हमदर्द होने का ढोंग करते हैं। मदनी का सवाल है कि जो नेता मुसलमानों को खुश करने के लिये सिर्फ बयानबाजी करता हो उसके नाटक को क्या नाम दिया जा सकता है।
    उलेमा काउंसिल के जंतर मंतर पर प्रदर्शन मंे इस बार खास बात यह रही कि इसमें बड़ी तादाद में मुस्लिमों के साथ साथ हिंदुओं ने भी हिस्सा लिया। उनका यह दावा नहीं था कि बटला हाउस की मुठभेड़ को फर्जी माना जाये बल्कि उनकी यह मांग काफी लंबे समय से रही है कि इस कांड की न्यायिक जांच कराई जाये। इस मुठभेड़ में एक पुलिस इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा भी शहीद हुए थे। आज तक यह भी रहस्य ही बना हुआ है कि शर्मा की शहादत कैसे हुयी? जब तक इस मामले की निष्पक्ष जांच न हो जाये यह दावे से नहीं कहा जा सकता कि यह मुठभेड़ फर्जी थी लेकिन यह भी सच है कि हमारी पुलिस की विश्वसनीयता भी ऐसी नहीं है कि उसके इस दावे को जैसा का तैसा मान लिया जाये कि मरने वाले दोनों युवक आतंकवादी ही थे। सब जानते हैं कि हमारी पुलिस अकसर किस तरह की मुठभेड़ें करती है और उनमंे से कितनी सच्ची होती हैं और कितनी झूठी?
    जहां तक सरकार के रिकार्ड का सवाल है उसके हिसाब से यह नहीं माना जा सकता कि वह ऐसे मामलों को दबाने का प्रयास नहीं करती। 1984 मंे पूर्व पीएम इंदिरा गांध्ी की हत्या के बाद कांग्रेस सरकार के रहते हुए सिखों के क़त्ले आम का मामला हो या गुजरात में मोदी की भाजपा सरकार की देखरेख मंे हुआ मुसलमानों का क़त्ले आम हो सरकारें किसी की मसीहा नहीं होती। इससे पहले यही दिग्विजय सिंह दुनिया के सबसे बड़े आतंकवादी को ओसामा जी कहकर केवल इसलिये संबोधित करते रहे हैं जिससे मुसलमानों के उस वर्ग को अच्छा लगे जो ओसामा को गाजी मानता रहा है। सच्चर कमैटी की रिपोर्ट चीख़ चीख़ कर बता रही है कि अधिकांश समय सत्ता में रहने वाली कांग्रेस ने मुसलमानों की हालत कितनी ख़राब करदी है। बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमि विवाद तो एक तरह से देन ही कांग्रेस की है, इसलिये उससे बटला हाउस मामले में जांच की मांग बेतुकी ही लगती है।
 0 न इधर उधर की बात कर यह बता क़ाफ़िला क्यों लुटा,

   मुझे रहज़नों से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है।।

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