Saturday, 1 February 2014

सिर्फ शुभ कहने से शुभ नहीं

नववर्ष शुभ कहने से ही शुभ कैसे हो सकता है ?
       -इक़बाल हिंदुस्तानी
0 जिसके प्रति शुभकामनायें व्यक्त करें उसके लिये काम भी करें !
            नववर्ष शुभ होनया साल मुबारकऔर हेप्पी नीव इयरमात्र ये कुछ जुमले हैं जो हर साल हर आदमी एक दूसरे से 31 दिसंबर से लेकर 1 जनवरी तक बेसाख़्ता बेसबब और बेमतलब बोलता है। इसका एक ताज़ा उदाहरण है कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की अन्ना हज़ारे को दी गयी नववर्ष की बधाई। अरे भाई पूरे साल तो आप इस बुजुर्ग को उूपरपहंुचाने का इंतज़ाम करते रहे। कौन सा ऐसा आरोप, षड्यंत्र और दुर्भावना रही होगी जो इस वयोवृध्द गांधीवादी नेता पर कांग्रेस की तरफ नहीं थोपी गयी। उनको सर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबा तक बताया गया। अब भी बिना किसी सबूत के उनके तार लगातार संघ परिवार से जोड़े जा रहे हैं। कहने का मतलब यह है कि चाहे दिग्विजय सिंह हों या कोई और वह क्या अधिकार रखते हैं इस झूठ को बोलने का कि नववर्ष शुभ हो....।
   आज के दौर में जब परिवार में सब सदस्य एक दूसरे के बारे में सद्भावना नहीं रखते। स्वार्थ और ईर्ष्या इतनी हावी है कि आदमी रिश्तों नातों मेें ही नहीं दोस्ती और भाईचारे मंे भी दगा कर रहा है। गुरू शिष्य परंपरा तक कलंकित हो रही है। पड़ौसी पड़ौसी की तरक्की से जल रहा है। भाई भाई के खून का प्यासा है वहां नये साल की मुबारकबाद खोखली लगती है। आदमी दोगला जीवन जी रहा है। जिस आदमी को दूर से देखकर मन ही मन गाली निकालता है पास आने पर ऐसी नौटंकी करता है मानो उससे ख़ास कोई दूसरा उसके लिये हो ही नहीं सकता। यही हाल तमाम संस्थाओं, कार्यालायों और स्कूल कालेजों का है। वे बच्चे जो अपने मास्टर को सुबह सबसे पहले हैप्पी नीव इयर कहते हैं, पीठ पीछे आपस में बात करते हैं तो सबसे पहले तो उस शिक्षक को उसके असली नाम से न पुकार कर कोई अजीब सा मज़ाकिया या अपमानजनक नाम देंगे और फिर उसपर घटिया सा कमेंट ज़रूर करेंगे।
   यही हाल दुकानदार और उसके ग्राहक का है। यही हाल मरीज़ और डाक्टर का है। जो चिकित्सक पहले भगवान का दूसरा रूप माना जाता था वह आज साक्षात यमराजनज़र आने लगा है। वजह उसका रोगी को धोखा देकर लूटना, कमीशन खाना और जानलेवा लापरवाही से इलाज करना। ऐसे ही जो वादी प्रतिवादी वकील साहब को नये साल की दुआये देता है, दिल से बद्दुआ देता है। वजह वही वकील साहब जमकर चूना लगा रहे हैं। ऐसे ही पत्रकार महोदय दिखाई देंगे तो बड़े बड़े व्यस्त लोग उनके लिये सम्मान में खड़े हो सकते हैं लेकिन जाते ही वही बुराई कि ऐसा है वैसा है। आजकल विवाह आदि की पार्टी में जायेंगे तो सब नेताओं को कोसते मिलेंगे लेकिन जब नया साल आता है तो यही नेता जी सबसे पहले शुभकामना लेते या देते दिखाई दंेगे।
  सरकार, यानी मंत्री, एमपी और एमएलए का भी कमोबेश यही हाल है जो नववर्ष की बधई देंगे तो दिखावे के तौर पर। ज़रा कभी फुर्सत के लम्हों में सोचिये कि ऐसे कितने लोग हैं जिनको हम या वे हमंे वास्तव में प्यार, षुभकामना और सम्मान देते हैं। कहने का मतलब यह है कि हम जिनको नववर्ष की बधाई दें अगर दिल साफ करके ऐसा नहीं करते तो हमारे नववर्ष शुभ हो मात्र कह देने से नववर्ष शुभ नहीं हो जायेगा। हम यहां उदाहरण स्वरूप अपवादों की चर्चा नहीं करना चाहते बल्कि हम तो उस नंगी और कड़वी सच्चाई को देखना चाहते हैं जो आज हमारे समाज में उदारीकरण, निजीकरण और वैष्वीकरण की पूंजीवादी नीतियों को अपनाने और अपनी महान भारतीय सभ्यता और संस्कृति को त्यागने के बाद होती जा रही है। यह विडंबना और त्रासदी ही कही जा सकती है कि जिन गोरों और पष्चिम से हम घृणा और ईर्ष्या रखते थे आज उनकी ही नक़ल करके उनके ही नक़्शे कदम पर सरपट दौड़ रहे हैं और वे इसके विपरीत हमारे योग और अध्यात्म का महत्व समझकर हमारे रंग में रंग रहे हैं।
   हम समझते हैं कि हमारा काम मात्र इतना कह देने से ख़त्म हो गया लेकिन हमारा मानना है कि हमारा काम यहीं से शुरू होता है। अगर हम वास्तव में किसी से दिली हमदर्दी रखते हैं तो उसको बधाई दें या ना दें लेकिन उसके लिये हमें सदा तैयार रहना होगा उसके भले के लिये। उसके दुख सुख का साथी बनना होगा। उसके परिवार को अपना परिवार मानकर अगर आधी रात या संकट में कभी भी हमारी ज़रूरत उसको होती है तो हमें उसके लिये अपना हर संभव मदद का प्रयास करना होगा वर्ना तो नववर्ष शुभ हो कहना मात्र एक औपचारिकता और परंपरा से अधिक कुछ भी नहीं होगा चाहे आप ऐसा अंग्रेजी नीव इयर पर करें और चाहे नवसंवत्सर और हिजरी व अन्य किसी नये साल पर अंतर कुछ नहीं है।
0 उसके होंटो की तरफ़ न देख वह क्या कहता है,

  उसके क़दमों की तरफ़ देख वह किधर जाता है।

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