Thursday, 6 February 2014

"नोट फॉर वोट" पर सांसदों की चुप्पी


नोेट फॉर वोटपर सांसदों की चुप्पी क्यांे?
0 अब संसद की गरिमा और सम्मान की चिंता नहीं सता रही!
           -इक़बाल हिंदुस्तानी
     नोट फॉर वोटमामले में जेल गये पूर्व सपा नेता अमर सिंह के वकील और भाजपा सांसद रामजेठमलानी के इस बयान से नया मोड़ आ गया है कि संसद में लहराये गये नोट भाजपा के हो सकते हैं। इस मामले में हालांकि भाजपा के दो पूर्व सांसदों महावीर सिंह भगौरा और फगगन सिंह कुलस्ते को संसद में नोटों की गड्डियां लहराने के लिये जेल भेजे जाने पर पूर्व उपप्रधनमंत्राी और बीजेपी के वरिष्ठ नेता एल के आड्वाणी ने इसे स्टिंग आप्रेशन की संज्ञा देते हुए उनकी गिरफ़्तारी को गलत बताया है। यह बात लोगों को समझ मंे आने लगी है कि इस मामले में सरकार आज तक क्यों चुप्पी साधे है? पहले उसने तीन साल तक इस मामले को ठंडे बस्ते में डाले रखा। इसके बाद नोट फॉर वोट मामले की जांच को सदन की एक कमैटी बना दी। कमैटी ने वही किया जिस काम के लिये सरकार ने वह बनाई थी।
   इसके बाद यह मामला जांच के लिये दिल्ली पुलिस को सौंप दिया गया। दरअसल सरकार की जो मंशा थी वह दिल्ली पुलिस के कर्ताधर्ता भी अच्छी तरह से समझ चुके थे। वही हुआ जिसका शक था कि दिल्ली पुलिस मामला दर्ज कर सो गयी। सो सरकार ने भी इस मामले को सुनियोजित तरीके से ठंडे बस्ते में डाले जाने से संतुष्ट होकर राहत की सांस ली। अचानक सारा मामला तब गड़बड़ाया जब सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को फटकार लगाते हुए जवाब तलब किया कि वह बताये कि उसने तीन साल में इस केस में क्या उपलब्धि हासिल की। अब तक तो उसके पास एक ही जवाब था कि प्रगति चल रही है। उससे सरकार जवाब तलब न कर सोची समझी रण्नीति के तहत मामले को दबाये रखना चाहती थी सो उसने भी इस मामले को धूल फांकने के लिये लगभग दफन ही कर डाला था।
    अब जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने बड़े ही सख़्त लहजे में दिल्ली पुलिस की सिट्टी पिट्टी गुम कर दी तो उसके आकाओं ने भी हाथ पीछे खींच लिये।
      भाजपा की इस शिकायत में दम है कि यह पहला मामला है जिसमें रिश्वत लेकर वोट देने से इंकार करने वाले और ख़रीद फरोख़्त का भंडाफोड़ करने वाले तो जेल भेज दिये गये लेकिन जो इस सारे मामले के असली सूत्राधर थे वे साफ बच निकले। यह अलग बात है कि वह भी इस मामले में दूध की धुली है या नहीं यह निष्पक्ष जांच से ही पता चल सकता है। सरकार और शेष दलों के लगभग सभी सांसद वैसे तो इस बात की बड़ी दुहाई देते हैं कि संसद सर्वोच्च है उसकी मर्यादा और गरिमा बनी रहनी चाहिये लेकिन सांसद सर्वोच्च नहीं हो सकते, यह बात भूल जाते हैं। अब सवाल यह है कि संसद तो अपने आप में सजीव या कोई सोचने समझने वाली इमारत नहीं है वह तो सांसदों के द्वारा चलती है।
    हमारे सांसदों का स्तर क्या है यह देखना हो तो उस में कुल 543 सांसदों में से 150 यानी 28 प्रतिशत अपराधिक पृष्ठभूमि के हैं। इनमें से 8 विजयी सांसदों ने शपथ पत्र दिया ही नहीं जिससे अपराधिक रिकॉर्ड वालों की संख्या डेढ़ सौ से भी अधिक हो सकती है। इनका वर्गीकरण करें तो पता चलता है कि इनमें से 72 गंभीर अपराधों के आरोपी हैं। जो कुल सांसदों का लगभग 14 प्रतिशत है। अगर अपराधों की संख्या के हिसाब से देखा जाये तो इन सांसदों पर कुल 412 अपराधिक मुकदमें चल रहे हैं। इनमें से 213 मामले आईपीसी की गंभीर धराओं के तहत दर्ज हैं। यह तादाद लगातार बढ़ती जा रही है क्योंकि 2004 के आम चुनाव में ऐसे विवादास्पद सांसदों की तादाद 128 थी। उस बार गंभीर आरोपों वाले एमपी 55 ही थे।
    अगर दलों के हिसाब से देखें तो इस लोकसभा में आरोपी सांसदों के मामले में भाजपा के 42 कांग्रेस के 41 और सपा व शिवसेना के आठ आठ सांसद सबसे से उूपर सूची में दर्ज है। जब यह बात आइने की तरह साफ हो चुकी है कि अमेरिका से परमाणु करार करने के लिये अल्पमत में आई मनमोहन सरकार ने बहुमत साबित करने के लिये कुछ सांसदों को ख़रीदने की कोशिश की जिसकी पुष्टि संसद मंे ही शिवसेना और अकाली दल के सांसद चीख़ चीख़कर कर चुके हैं। भाजपा के सांसद भी इसी बात की तस्दीक कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने तो जांच समिति को इस बात के सबूत भी दिये थे कि अमेरिकी दूतावास की देखरेख मंे सांसदों को ख़रीदकर यूपीए सरकार बहुमत सिध्द करने जा रही है।
    अमर सिंह जैसा घाघ और तेज़ तर्रार राजनेता भी एक दिन जेल जा सकता है यह बात शायद कुछ लोगों को आश्चर्य में डाल रही होगी लेकिन अदालत ने उनको जेल भेजकर एक बार फिर से यह साबित कर दिया है कि यहां कानून का राज बचा हुआ है तो वह मीडिया के साथ साथ कोर्ट की वजह से ही है। हालांकि अमर सिंह अगर कांग्रेस या सपा में होते तो कुछ दिन को भी तिहाड़ की शोभा नहीं बढ़ाते लेकिन उनके जेल जाने से एक बात तो जगज़ाहिर हो ही गयी है कि उनका खेल संसद और विधानसभाओं में तो पैसे और पहंुच के बल पर बेशक चलता हो लेकिन कोर्ट में उनका सिक्का आज भी नहीं चलता। वह अच्छे डीलर तो हो सकते हैं लेकिन लीडर कभी नहीं बन पाये।
      इस मामले में भाजपा के एक और सांसद अशोक अर्गल को अभी पुलिस ने लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति मिलने तक जेल नहीं भेजा है। भाजपा के थिंकटैंक सुधीन्द्र कुलकर्णी भी अभी इस लिये जेल जाने से बच गये हैं क्योंकि वह विदेश में हैं। लेकिन बकरे की मां कब तक खै़र मनायेगी। यह अजीब बात है कि कल तक जो अमर सिंह अमेरिका से परमाणु करार हर कीमत पर कराने के लिये सरकार, यूपीए, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की आंख के तारे बने हुए थे, आज हालात बदलते ही उनसे सबने किनारा कर लिया। शायद इसी का नाम आज की अवसरवादी और पूंजीवादी राजनीति है। काश अमर सिंह ने राजनीति में किसी उसूल या मकसद को अपनाया होता तो आज वे जेल नहीं जाते।
    उनका सितारा जब बुलंद था तो वह सपा के महासचिव हुआ करते थे। एक समय था कि उनको खुश रखने चक्कर में मुलायम सिंह यादव ने भाजपा नेता कल्याण सिंह से गठबंधन किया और जब इस पैक्ट का ज़मीन से जुड़े आज़म खां जैसे नेता ने विरोध किया तो अमर सिंह जैसे जनाधारविहीन आदमी की खातिर मुलायम सिंह ने खां को सपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद जब वामपंथियों ने परमाणु करार के मामले को लेकर मनमोहन सरकार गिरानी चाही तो अमर सिंह के कहने पर ही मुलायम सिंह ने यूपीए सरकार को बचाने का आत्मघाती फैसला किया। इसके लिये अमर सिंह इतने उतावले हुए कि कांग्रेस के इशारे पर उसके लिये सांसदों को खरीदने को सक्रिय हो गये। उनको यह पता नहीं था कि सारी बुध्दि उनके पास ही नहीं है, बल्कि भाजपा ने अपने तीन सांसदों के द्वारा यूपीए को गंदा करने के लिये एक जाल बिछाया है।
   कांग्रेसी खुद तो पूरे घाघ हैं सो ज़रूरत से ज़्यादा खैरख्वाही दिखा रहे अमर सिंह को इस नेक काम के लिये तैनात कर दिया गया। उनपर एक बार आज़म खां ने भी सप्लाइर्करने का आरोप लगाया था। इसलिये वे इस बार एमपी सप्लाई करने चल पड़े। यह अलग बात है कि उनको आज नहीं तो कल ज़मानत मिलने के बाद यह मामला ठंडा पड़ जायेगा तो उनको सरकार किसी बड़े इनाम से इस काम के लिये किसी न किसी तरह ज़रूर नवाज़ेगी लेकिन पैसे के बल पर सत्ता को चलाने का ठेका लेने वाले लोगों को इस समय अदालत ने जेल का जो रास्ता दिखाया है उससे भविष्य में सत्ता के दलालोें को अच्छा सबक मिल सकता है।
  0मस्लहत आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम,

  तू नहीं समझेगा सियासत तू अभी नादान है।

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