Sunday, 9 February 2014

जबतक सहेंगी तब तक अन्याय


महिलाओं से अन्याय तब तक होगा जब तक वे सहंेगी!
     -इक़बाल हिंदुस्तानी
0केवल कानून बनाना ही नहीं बल्कि उनका संघर्ष और सशक्तिकरण है समस्या का सही हल?
        अन्नपूर्णा मित्तल जी ने प्रवक्ता डॉटकॉम पर जब महिलाओं के साथ होने वाले अन्याय और अत्याचार पर लेख लिखा होगा तो सोचा होगा कि यहां उनको बहस का एक ऐसा मंच मिलेगा जहां उनके दर्द को केेवल महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरूष लेखक और पाठक भी समझेंगे और सोच विचार कर उसका कोई ठोस समाधान निकालने का प्रयास करेंगे लेकिन यहां तो एक दो प्रतिक्रियाओं को छोड़कर सब उनके पीछे ऐसे हाथ धोकर पड़ गये जैसे उन्होंने सारे पुरूष समाज की थाने में रपट करा दी हो। वास्तव में ऐसा ही अकसर यूपी के थानों में पीड़ितों के साथ होता है कि जब वे किसी सामर्थवान या वीआईपी की शिकायत लेकर वहां एफआईआर लिखाने जाते हैं तो पुलिस आरोपी से फीलगुड कर उल्टा उसको ही जेल की हवा खिला देती है।
     यह सवाल बार बार उठता है कि समाज में नारी के साथ पक्षपात और अन्याय कब तक होता रहेगा। हमारा जवाब सदा यही होता है कि जब तक वे इस अत्याचार और शोषण को सहती रहेगी। हालांकि आज के ज़माने में उनके साथ यह सब कुछ केवल इसीलिये ही नहीं होता क्योंकि वे महिला हैं बल्कि इसकी एक वजह यह भी है कि वे कमज़ोर हैं। मिसाल के तौर पर बच्चो, विकलांगों, कमज़ोरों, मज़दूरों और गरीबों के साथ भी कमोबेश वह सब कम या ज़्यादा अकसर होता है जो महिलाओं के साथ होता है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम दिखावे और ढोेंग के कारण यह सच स्वीकार ही नहीं करते कि नारी के साथ लिंग के कारण भी पक्षपात होता है जिसके लिये हमारे धर्म, परंपरायें , स्वार्थ, अनैतिकता और पुरूषप्रधान समाज और शोषणवादी सोच ज़िम्मेदार हैं।
    मिसाल के तौर पर 17 नवंबर को ही सुप्रीम कोर्ट ने एयर इंडिया को यह आदेश दिया है कि वह विमान में उड़ान के दौरान काम करने वाली महिलाओं को सुपरवाइज़र बनाने से वंचित करके संविधान के खिलाफ काम कर रहा है। लिहाज़ा उनको भी पुरूषों की तरह सुपरवाइज़र बनाया जाये। इतना ही नहीं रिटायरमेंट की उम्र भी एयर इंडिया मंे महिला और पुरूष कर्मचारियों की अलग अलग होती है। महिला कर्मचारी नियुक्ति के बाद चार वर्ष के भीतर अगर गर्भवती हो जाती थी तो उसको नौकरी से निकाल दिया जाता था। उसका वज़न मानक से अधिक होने पर विमान से बाहर की सेवा पर भेज दिया जाता था। देश की पहली आईपीएस किरण बेदी को एक महिला होने के कारण सरकार ने कई बार प्रमोशन से वंचित रखा।
     सेना में कमीशन को लेकर भी बार बार महिलाओं के साथ दोहरे मापदंड अपनाने की शिकायतें मिलती रहती हैं। समान काम के बावजूद उनको समान वेतन नहीं दिया जाना तो आम बात है। उनको यह भी कहा जाता है कि रात की पारी में काम न करें। कानूनी भाषा में महिला के लिये ‘‘रखैल’’ शब्द का इस्तेमाल हाल तक अदालतों में होता रहा है। संविधान का अनुच्छेद 15 हर नागरिक को बिना लैंगिक और जातीय पक्षपात के मुक्त जीवन का अधिकार देता है। लड़की की ऑनर किलिंग एक कड़वी सच्चाई है ही।
     व्यवहार में देखा जाये तो लड़की की भ्रूणहत्या से लेकर दहेज़ के लिये उसे बहु बनने पर जलाकर मारने की घटनायें आज भी बड़े पैमाने पर हमारे समाज में हो रहीं हैं। उनको खिलाने पिलाने से लेकर पढ़ाने लिखाने तक में पक्षपात होता है। जब हम शादी के लिये लड़के का रिश्ता तलाश करते हैं तो अकसर लड़की को लड़के से उम्र, लंबाई और पढ़ाई में थोड़ा छोटा रखते हैं। वजह वही पुरूष का अहंकार जिसमें उसकी पत्नी उससे बड़ी नहीं बल्कि बराबर भी नहीं चाहिये। यही कारण है कि जहां महिला नौकरी या कारोबार करती है वहां परिवार में अकसर उससे टकराव शुरू हो जाता है वह आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होकर गलत बात सहन नहीं करती और पति  व सास ससुर उसे भोली गाय समझकर पहले की तरह दबाते और सताते हैं।
    इसका नतीजा कई बार अलगाव के रूप में सामने आता है तो पुरूषप्रधान समाज कहता है कि जिस घर मंे महिला कमायेगी वहां तो यह अशुभ और मनहूस झगड़ा होगा ही। ऐसे ही लड़की एक बेटी, बहन और पत्नी के रूप में बाप, भाई और पति की अपनी सुरक्षा के लिये मोहताज रहती है। रात तो रात महिला दिन में भी अकेले जाने पर छेड़छाड़ और बलात्कार का अकसर शिकार हो जाती है। खुद करीबी रिश्तेदार यहां तक कि कई बार बाप, भाई और गुरूजन तक उसकी अस्मत का न केवल सौदा कर देते हैं बल्कि खुद भी मंुह काला करने से बाज़ नहीं आते। वेश्यावृत्ति के ध्ंाधे मंे भी अधिकांश मामलों में महिला को पुरूष ही धकेलते हैं। अपवादों से कोई सटीक राय नहीं बनाई जा सकती।
   जहां तक महिला द्वारा महिला पर जुल्म करने का आरोप है तो वह तो ठीक ऐसे ही है जैसे देश की गुलामी में खुद कई गद्दार भारतीय जयचंद और मीरजाफर भी शामिल थे। महिलाओं के कम या उत्तेजक कपड़ों की वजह से अगर बलात्कार होते तो बुर्केवाली, आदिवसाी और बच्चियों के साथ दुराचार क्यों होते हैं ? यह सवाल अपने आप में बेहद गंभीर है कि एक उच्चशिक्षित महिला के साथ भी अगर उसका पति और सास ससुर खुद उच्चशिक्षित होकर भी लालच और पुरूषप्रधान समाज की सोच के कारण ऐसा वहशी और दरिंदगी वाला दर्दनाक व्यवहार करते हैं तो यह एक बार फिर से सोचना पड़ेगा कि हम कितने सभ्य और संस्कृत हैं?
   महिला का भावुक और त्यागी होना भी उसके साथ अन्याया का कारण बनता है। वह जज़्बात में बहकर पुरूषों पर बहुत जल्दी भरोसा कर लेती है जिससे उसके साथ धोखा और ब्लैकमेल होता है। ऐसा लगता है कि हम आज भी जंगलयुग में रह रहे हैं जहां शेर जो करता है वही सही होता है। यह तो मत्स्य न्याय वाली बात है कि छोटी मछली को बड़ी मछली आज भी हमारे समाज में खा रही है। लगातार महिला सशक्तिकरण और अन्याय और अत्याचार के खिलाफ संघर्ष की इसका एकमात्र समाधान है। इसमें कुछ समय लगेगा लेकिन यकीन कीजिये लंबे समय तक महिलाओं के साथ यह गैर बराबरी चल नहीं पायेगी। नारी जाति की ओर से एक शेर यहां सामयिक लग रहा है-
    0हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,

     वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता।

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