Monday, 3 February 2014

कांग्रेस विरोध स्वभाविक


कांग्रेस विरोध यानी गर्म लोहे पर करारी चोट
     -इक़बाल हिंदुस्तानी
0कांग्रेस ने अन्ना को बदनाम-परेशान करने में कमी नहीं छोडी़ है!                  
            भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरा देश अब तक अन्ना हज़ारे के साथ एकजुट नज़र आ रहा था लेकिन अब एक वर्ग कांग्रेस के इस दुष्प्रचार का शिकार होता नज़र आ रहा है कि टीम अन्ना ने हरियाणा के हिसार लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस का विरोध करके मानो कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया हो। किसी दल का सपोर्ट या विरोध प्रत्येक भारतीय का लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार है। इस विरोध से बेतहाशा बौखलाई और घबराई कांग्रेस ने एक बात तो खुद ही साबित कर दी है कि टीम अन्ना का उसके विरोध का फैसला उस पर सीधी और निर्णायक चोट करने में कामयाब रहा है। जो लोग यह भोला तर्क दे रहे हैं कि अन्ना को कांग्रेस का नहीं बल्कि सरकार का विरोध करना चाहिये था, उनसे पूछा जाना चाहिये कि सरकार जब कांग्रेस के नेतृत्व में चल रही है और घटक दलांे को अपने हिस्से की लूट से मतलब है तो फिर विरोध तो कांग्रेस का ही किया जायेगा।
   दूसरी तरफ टीम अन्ना के सदस्य प्रशांत भूषण पर उनके चैम्बर में घुसकर हुआ हमला कांग्रेस के लगातार चल रहे उस अभियान की भी देन है जो वह टीम अन्ना के खिलाफ दुष्प्रचार स्वरूप चला रही है। इससे पहले यही अन्ना महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा सरकार के विरोध में कई बार आंदोलन करके अपनी मांगे मनवा चुके हैं, तब किसी ने नहीं कहा कि अन्ना कांग्रेस के आदमी हैं क्योंकि इसका सीधा लाभ कांग्रेस को मिलेगा।
    लोगों की याददाश्त इतनी कमज़ोर कैसे हो गयी कि वे भूल गये कि कल तक यही कांग्रेस टीम अन्ना को जनलोकपाल बिल पास करने  को लेकर लगातार गच्चे पर गच्चा देती रही है। उसका इरादा अभी भी जनलोकपाल को जैसा का तैसा पास करने का कतई नहीं है। कल तक कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह, मनीष तिवारी और कपिल सिब्बल उन्हें लोकतंत्र, संसद और संविधान का दुश्मन बता रहे थे। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और युवराज राहुल गांधी तक अन्ना के अनशन को गलत परंपरा बता रहे थे। टीम अन्ना के सदस्यों को इनकम टैक्स और संासदों की मानहानि के नोेेेटिस दिये जा रहे थे। इन्हीं अन्ना को तिहाड़ में डाल दिया गया था। इन्ही अन्ना को आज भी कांग्रेसी बिना किसी सबूत और बुनियाद के संघ परिवार का एजेंट बता रहे हैं। इन्हीं अन्ना का भाजपा सहित समस्त गैर कांग्रेसी विपक्ष का मुखौटा बताया जा रहा है।
  इन्हीं अन्ना को सर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबा बताया जा चुका है। इन्हीं अन्ना को आज यह कहकर बहकाने की कोशिश की जा रही है कि वे तो ठीक हैं लेकिन उनकी टीम के सदस्य गलत हैं। उनको एक छोटे बच्चे की तरह कांग्रेसी यह समझाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं कि केजरीवाल, भूषण और किरण बेदी जैसे लोग उनको गुमराह कर रहे हैं। अन्ना को यह कहकर बहकाने की कोशिश भी की जा रही है कि जब आप भूखे प्यासे अनशन कर रहे थे तब आपकी टीम के सदस्य फाइव स्टार होटल का खाना खा रहे थे। अन्ना को ऐसे चढ़ाया जा रहा है मानो वे आम आदमी हों। टीम अन्ना के किसी सदस्य ने न तो अन्ना को अनशन करने के लिये उकसाया था और न ही उनके साथ खुद अनशन पर बैठने का वादा करके कोई मुकरा है।
    आज जिस टीम अन्ना को अन्ना का दुश्मन बताया जा रहा है अगर वे लोग न होते तो कांग्रेस की चालाक, मक्कार और भ्रष्ट सरकार बाबा रामदेव के अच्छी नीयत से किये गये गैर अनुभवी आंदोलन की तरह अन्ना का अनशन भी फेल करके आज चैन की बंशी बजा रही होती। टीम अन्ना पर चौतरफा हमला इसी लिये हो रहा है क्योंकि उनमें हर क्षेत्र का माहिर मौजूद है जो सरकार का कोई दांव कामयाब नहीं होने दे रहा है। जिस टीम को अन्ना को बदनाम करने वाला बताया जा रहा है वही तो अन्ना को आज तक बचाये हुए है।
   जो लोग अन्ना पर इस आरोप को लगा रहे हैं कि हिसार में खुलकर टीम अन्ना के कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करने से भाजपा को लाभ हो रहा है, उनसे यह पूछा जाना चाहिये कि टीम अन्ना ने यह कहां कहा कि भाजपा समर्थित प्रत्याशी को वोट करें। हिसार में तीन दर्जन से अधिक प्रत्याशी खड़े हैं, मतदाता जिसको चाहे चुन सकता है लेकिन चूंकि कांग्रेस भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी रक्षक और पोषक बनकर सामने आ रही है लिहाज़ा उसको हराने की अपील में कोई बुराई नहीं है। हिसार में टीम अन्ना ने भ्रष्टाचार को इतना बड़ा मुद्दा बना दिया है कि वहां कांग्रेस की हार तय मानी जा रही है। कोई चमत्कार ही कांग्रेस की लाज वहां बचा सकता है।
    जो लोग यह दावा कर रहे हैं कि इससे वहां वह प्रत्याशी जीत जायेगा जिसको भाजपा का सपोर्ट हासिल है, उनसे पूछा जाना चाहिये कि अगर लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हारी तो भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है और अगर बीजेपी सबसे बड़ा दल बनी तो एनडीए की सरकार बनने की संभावना है। इसका मतलब एनडीए की सरकार बनने का श्रेय अन्ना को जायेगा। यह भी सच है कि भाजपा को एक वर्ग विशेष पसंद नहीं करता। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि भाजपा की सोच आरएसएस से नियंत्रित होती है और संघ हिंदुत्व की बात करता है। उसका यूपी से लेकर गुजरात तक में अच्छा रिकॉर्ड नहीं रहा। भ्रष्टाचार को लेकर भी उसका रिकॉर्ड कांग्रेस से खास बेहतर नहीं रहा लेकिन यह भी हकीकत है कि यूपीए-टू से पहले इतनी भ्रष्ट सरकार नहीं आई जितनी मनमोहन सिंह की सरकार है।
   सवाल यह है कि सरकार को बदलना है तो किसी और को सत्ता सौंपनी होगी। कांग्रेस की जगह भाजपा चूंकि विपक्ष मंे है तो वह उसकी जगह ले सकती है। अब आरोप यह लग रहा है कि अगर कांग्रेस को हराया गया और भाजपा को विपक्ष में होने से उसका लाभ मिला तो भ्रष्टाचार के खिलाफ चली सारी मुहिम के पीछे संघ परिवार के होने के अंदेशे की तस्दीक हो जायेगी। खुद संघ प्रमुख भागवत ने कहा भी है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ चलने वाले किसी भी आंदोलन को संघ परिवार पूरा सहयोग देता रहा है और आगे भी देगा। इसपर कांग्रेस और उसके समर्थक दावा कर रहे हैं कि देखिये हमारे आरोप की पुष्टि हो गयी। उधर भाजपा ने भी जनलोकपाल बिल को सपोर्ट देने के साथ ही भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में कदम से कदम मिलाकर चलने का वादा किया है। उसके वरिष्ठ नेता एल के आडवाणी भ्रष्टाचार के खिलाफ रथयात्रा भी निकाल रहे हैं।
    भाजपा शासित राज्यों में भ्रष्ट छवि के सीएम को हटाकर ईमानदार और साफ सुथरी इमेज के नेताओं को सत्ता सौंपी जा रही है। नये मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के खिलाफ सख़्त कानून भी बना रहे हैं। इतना सब कुछ होने पर भी अगर यह मानकर कांग्रेस को सत्ता में  बनाये रखे जाये या फिर से चुनकर सरकार बनाने का मौका दिया जाये कि उसका कोई सेकुलर विकल्प मौजूद नहीं है तो अभी यूपीए-टू को दूसरी बार मौका देने पर तो भ्रष्टाचार, तानाशाही और मनमानी की यह हालत है अगर कांग्रेस तीसरी बार सत्ता में आ गयी तो शायद लोगों का जीना मुश्किल कर देगी। इसलिये आगे नया विकल्प उभरेगा।
    हमारा सवाल यह है कि अगर भाजपा सत्ता मंे न आती तो हमें कैसे पता लगता कि वह हिंदुत्व के नाम पर क्या क्या करेगी? अगर आज वह भ्रष्टाचार पर कांग्रेस से बेहतर विकल्प देने की बात कर रही है तो उसको एक मौका और दिये बिना हम कैसे तय कर सकते हैं कि भाजपा पहले की तरह ही भ्रष्ट और साम्प्रदायिक सोच से काम करेगी। जब अन्ना ने अपनी कोई राजनीतिक पार्टी बनाई नहीं है और क्षेत्रीय दलों सहित वामपंथी नास्तिक और दूसरे कारणों से हमें स्वीकार नहीं हैं तो फिर रास्ता क्या बचता है? अगर संघ परिवार भ्र्र्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में साथ देगा तो केवल इसलिये साथ नहीं लिया जाये कि वह संकीर्ण सोच रखता रहा है। अगर उसके लोग रोटी, पानी और हवा का इस्तेमाल करते हैं तो सेकुलर लोग इन चीज़ों का प्रयोग छोड़ कर जिं़दा रह सकते हैं क्या? यह पूर्वाग्रह छोड़कर ही कोई रास्ता निकल सकता है और इसके लिये हमें तूफान से गुज़रने का जोखिम लेना होगा।  
  0हादसों की ज़द पर हैं तो मुस्कराना छोड़दें,

   ज़लज़लों के खौफ़ से क्या घर बनाना छोड़दें।।   

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