Monday, 3 February 2014

बड़े बे आबरू होकर तेरे कूचे से....


बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले!
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0 ऐसे लोग सियासत में अपना कारोबार करने आते हैं!
         पूर्व मंत्री और मेरठ शहर से विधायक हाजी याकूब कुरैशी को सिखों के खिलाफ घटिया टिप्पणी करने पर आखि़रकार बसपा से बाहर का रास्ता दिखाकर बहनजी ने उनको उनकी औकात बता ही दी। अपने विवादित बयानों और हरकतों के लिये पहले ही बदनाम हाजी याकूब दरअसल सपा में मंत्री रहकर भी ऐसा ही रिकॉर्ड बना चुके हैं लेकिन सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह का बर्दाश्त का मादा ज़रूरत से कुछ ज़्यादा ही होने से हाजी जी को यह गलतफहमी हो गयी होगी कि वह जब सपा की सरकार में मंत्री बने रहकर सपा और उसके सुप्रीमो को कोसते रहे और उनका कुछ नहीं बिगड़ा तो अब विधायक रहते उनको क्या ख़तरा हो सकता है?
    हालांकि ताज़ा मामला हाजी याकूब कुरैशी द्वारा सिख समाज की भावनाओं को ठेस पहुुंचाने का है लेकिन उनकी हरकतें पहले से ही ऐसी रही हैं कि मेरठ की राजनीति में उनके प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी हाजी अख़लाक को घर बैठे ही वह अपने खिलाफ मोर्चा खोलने का  कोई न कोई मौका देते रहे हैं। एक तरह से यह कहा जाये तो गलत नहीं होगा कि हाजी याकूब को अपनी खुद की अजीबो गरीब समझ के रहते अपने लिये बाहरी दुश्मनों की ज़रूरत नहीं, तो गलत नहीं होगा। चार दिन पहले ही उनको जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी ने इस बात के लिये कोसा था कि वे बेहद चालाक और धोखेबाज़ नेता हैं जो चुनाव तो यूडीएफ के टिकट और बैनर से जीते लेकिन बसपा की सरकार बनते ही पलटी मारकर न केवल बीएसपी में शरीक हो गये बल्कि उस यूडीएफ का बसपा में विलय भी कर दिया जो उन्होंने कौम की भलाई की बड़ी बड़ी डींगे हांककर बनाई थी।
   मज़ेदार बात यह रही कि यूडीएफ बनाने मंे जिन बड़े मुस्लिम नेताओं का मशवरा या सहयोग लिया गया था, हाजी जी ने उनसे सलाह लेने की की ज़रूरत तक नहीं समझी।
    जानकार सूत्रों का दावा है कि हाजी जी को सियासत या सपा बसपा से कोई लेनादेना नहीं है, उनको तो अपना कमैला देखना है। मेरठ की राजनीति की असली ध्ुारी काफी समय से वहां का कमैला बना हुआ है। जगज़ाहिर है कि सरकार और सत्ताधरी विधायक के रहते सरकारी मशीनरी वो काम भी करने को राज़ी हो जाती है जो कानून के खिलाफ होते हैं। हालत यह है कि सत्ता का नाजायज़ लाभ उठाकर कई बार सरकारी मशीनरी से कोर्ट का आदेश होने के बावजूद कामों को या तो महीनोें तक टलवाया जाता है या फिर लीपापोती कर निजी हित साधे जाते हैं। जब से सियासत में धनवान और अपराधी लोगों की आमद बढ़ी है तब से हाजी याकूब जैसे लोगों की भी एक तरह से लाटरी खुल गयी है।
    यह बात समझ से बाहर है कि जो आदमी खुद एक अल्पसंख्यक समुदाय से आता हो वह  दूसरे अल्पसंख्यक सिख समुदाय के बारे में ऐसी बेतुकी और बचकाना बात कहे कि उससे कोई बच्चा भी बुरी तरह नाराज़ हो जाये। चोरी और सीनाज़ोरी यह कि खुद गल्ती करने के बावजूद सारी कमी मीडिया की बताकर अपना दामन बचाने की नाकामयाब कोशिश करना जबकि मीडिया के पास उनके विवादित बयान की वह रिकॉर्डिंग मौजूद है जो उन्होंने आधुनिक पशुवधशाला के उद्घाटन के समय दिया था। वह पहले भी सपा के मंत्री रहते रेल मंे बिना टिकट यात्रा करते रंगेहाथ पकड़े गये थे लेकिन कोई क्या करे ऐेसे मतलबी और खुदगर्ज़ नेताओं का शर्म जिनको मगर नहीं आती।
     मेरठ शहर से विधायक रहे हाजी याकूब कुरैशी का विवादित टिप्पणी को लेकर सिखों में विरोध जगह जगह बढ़ता जा रहा है। यह हालत तब है जबकि उनको अपनी ज़बान फिसलने की सज़ा न केवल बसपा से बाहर होने की शक्ल में मिल चुकी है बल्कि उन्होंने सिंह सभा से बाकायदा लिखित माफी भी मांग ली है। अब पता चला है कि सिपाही चहन सिंह को थप्पड़ मारने का मामला भी उनके गले की फांस बनने जा रहा है। बताया जाता है इस मामले में जो शपथपत्र दस दिन पहले एडीजी को दिये गये थे ,उन्हें जांच में शामिल कर लिया गया है। बहनजी का रूख़ देखकर पुलिस अब इस मामले में चार्जशीट दायर करने की तैयारी कर रही है। आपको याद दिलादंे 17 फरवरी 2011 को रविदास जयंती पर रूट डायवर्जन को लेकर नगर विधायक हाजी याकूब कुरैशी ने हापुड़ स्टैंड पर रोकने पर सिपाही चहन सिंह को पीट दिया था।
    इस थप्पड़ की गूंज बहुत दूर तक सुनाई दी थी। बाद में कोर्ट के आदेश पर पुलिस  ने मजबूर होकर लिसाड़ी गेट थाने में सिपाही की रपट दर्ज की थी। इस मामले की शिकायत मानवाधिकार आयोग में भी की गयी थी। सत्ता से जुड़े होने की वजह से अब तक तो याकूब मियां का इस मामले में कुछ नहीं बिगड़ा था लेकिन अब सिपाही चहन सिंह के साथ ड्यूटी पर मौजूद अन्य पांच सिपाहियों ने भी शपथपत्र देकर हाजी जी के खिलाफ थप्पड़ मारने की गवाही दे दी है जिससे इस केस में जल्दी ही चार्जशीट दायर होगी। इसके साथ ही भूमिया पुल दंगा, हापुड़ रोड विवाद और दिल्ली रोड हंगामें की दबी फाइलें भी लखनउू से इशारा मिलते ही प्रशासन ने तलाश कर कार्यवाही तेज कर दी है।
   दरअसल हाजी याकूब जैसे नेताओं की समस्या यही है कि उनके पास अचानक बेशुमार दौलत तो आ गयी जिसके बल पर वे मोटी रक़म ख़र्च करके चुनाव भी जीत जाते हैं लेकिन उनकी समझ आज भी वही की वही है। एक अच्छे और सच्चे नेता में कितनी नरमी, दूरअंदेशी और काबलियत होनी चाहिये इसके लिये न तो पहले से वे कुछ जानते हैं और न ही उनको ऐसा करने के लिये कहीं से कोई प्रशिक्षण मिला है। हालत यह है कि अंगूठाछाप और संकीर्ण सोच के नेता जब मंत्री तक बन जाते हैं तो करेला और नीम पर चढ़ा वाली बात लागू हो जाती है। इस लेखक को याद है एक बार हाजी याकूब कुरैशी जब सपा सरकार में मंत्राी थे तो नजीबाबाद आये थे। उनकी प्रैस वार्ता में मैंन एक पत्रकार के रूप में जब उनसे यह पूछा कि वे एक मंत्री हैं। उन्होंने संविधान को मानने की शपथ  ली है।
   फिर उन्होंने उस विदेशी कार्टूनिस्ट को मारने पर 51 करोड़ रूपये की रक़म देने का ऐलान कैसे कर दिया जिसने हज़रत मुहम्मद साहब का बेहूदा कार्टून बनाकर अपमान किया है। मैंने अपना सवाल समझाते हुए उनसे यह भी कहा कि बेशक उक्त कार्टूनिस्ट के ऐसा करने से मुसलमानों की भावनाओं को बेहद ठेस पहुंची है जिससे उसको कानून के हिसाब से सज़ा ज़रूर मिलनी चाहिये। इस मामले में हम भी आपके साथ हैं, लेकिन किसी अपराधी को भी मारने की इस तरह से सुपारी देना मंत्री या विधायक रहते हुए आपको संविधान इजाज़त नहीं देता। इसपर हाजी जी भड़ककर बोले कि ऐलान मैंन एक मुस्लिम रहबर के नाते किया है मंत्री के रूप में नहीं। मैंने यह सवाल कर दिया कि आप 24 घंटे मंे क्या अलग अलग टाइम मंत्री और मुसलमान रहते हैं?
    इसपर तो हाजी जी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहंुच गया और वे मुझे भाजपा का एजेंट बताने लगे, और आगे प्रैसवार्ता जारी रखने से ही मना करके चले गये।
    0ये दौलत आदमी की मुफलिसी को दूर करती है,
     मगर कमज़र्फ़ इंसां को और भी मग़रूर करती है ।।

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