नाम- इक़बाल हिंदुस्तानी
शिक्षा- एम0 कॉम0
पत्रकारिता- 1980 से सक्रिय
सम्पर्क- 9412117990
विशेष
1- लेखक 15 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं।
2- बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल समाचार और विभिन्न स्तम्भों का संपादन कर चुके हैं।
3- सांध्य दैनिक चिंगारी के 25 वर्षों तक चीफ़ ब्यूरो रहे हैं।
4- शाह टाइम्स और दैनिक प्रयाण के विशेष प्रतिनिधि रहे हैं।
5- विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में समय समय पर लेखों, कविताओं और ग़जलोें का प्रकाशन होता रहा है।
6- आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं।
7- रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं।
8- ज़िले के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में चांदपुर की साहित्यिक संस्था की ओर से जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार द्वारा सम्मानित हो चुके हैं।
9-स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं।
10- साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन।
11-साहित्यिक संस्था अभिव्यक्ति द्वारा हिंदी ग़ज़लकार दुष्यंत त्यागी स्मृति एवार्ड।
12-श्री बलवीर सिंह वीर सर्वश्रेष्ठ पत्रकार एवार्ड।
13- दिल्ली के कांस्टिट्यूशन क्लब के स्पीकर हाल में वैब पोर्टल प्रवक्ता डॉटकॉम के देश विदेश के 16 सर्वश्रेष्ठ लेखकों में सम्मानित हुए।
14-महिला जागृति मंच द्वारा महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के लिये लेखन के लिये सम्मान।
15-माता कुसुम कुमारी हिंदीतर भाषी हिंदी सम्मान समारोह में हिंदी सेवी सम्मान आदि।
पड़ौसी पड़ौसी है हिंदू न मुस्लिम.......
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0हरेक तश्नालब की हिमायत करूंगा,
समंदर मिला तो शिकायत करूंगा।
0 अगर आंच आई किसी जिं़दगी पर,
हो अपना पराया हिफ़ाज़त करूंगा।
0अभी तो ग़रीबों में मसरूफ हंू मैं,
मिलेगी जो फुर्सत इबादत करूंगा।
0 तरक्की की ख़ातिर वो यूं कह रहा था,
मैं जिस्मों की खुलकर तिजारत करूंगा।
0ज़मीर अपना बेचंू जो दौलत कमाउूं,
अब इक रास्ता है सियासत करूंगा।
0 उसूलों पे अपने जो क़ायम रहेगा,
वो दुश्मन भी हो तो मुहब्बत करूंगा।
0पड़ौसी पड़ौसी है हिंदू न मुस्लिम,
मैं बच्चो को यही हिदायत करूंगा।
0 क़लम जो लिखेगा वो बेबाक होगा,
अगर दिल ये माना सहाफत करूंगा।।
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0हरेक तश्नालब की हिमायत करूंगा,
समंदर मिला तो शिकायत करूंगा।
0 अगर आंच आई किसी जिं़दगी पर,
हो अपना पराया हिफ़ाज़त करूंगा।
0अभी तो ग़रीबों में मसरूफ हंू मैं,
मिलेगी जो फुर्सत इबादत करूंगा।
0 तरक्की की ख़ातिर वो यूं कह रहा था,
मैं जिस्मों की खुलकर तिजारत करूंगा।
0ज़मीर अपना बेचंू जो दौलत कमाउूं,
अब इक रास्ता है सियासत करूंगा।
0 उसूलों पे अपने जो क़ायम रहेगा,
वो दुश्मन भी हो तो मुहब्बत करूंगा।
0पड़ौसी पड़ौसी है हिंदू न मुस्लिम,
मैं बच्चो को यही हिदायत करूंगा।
0 क़लम जो लिखेगा वो बेबाक होगा,
अगर दिल ये माना सहाफत करूंगा।।
शीत लू वर्षा को भी क्यों मुफ़लिसी से बैर है.........
0अब कहां पहले सी खुश्बू है सुमन बदला हुआ,
है हवा बदली हुयी रंग ए चमन बदला हुआ।
0 ताकतो के जुल्म का तो सिलसिला थमता नहीं,
लाख बदली हो ज़मीं और ये गगन बदला हुआ।
0हो रही है ताजपोशी मापिफयाओं की यहां,
रहनुमाओं का हमारे है वचन बदला हुआ।
0 शीत लू वर्षा को भी क्यों मुपफलिसी से बैर है,
मरने वाले हैं वही सब बस कपफन बदला हुआ।
0कौन सी किससे जा मिलेगा रहबरों का क्या पता,
सांप हैं सब एक जैसे सिपर्फ पफन बदला हुआ।
0बात की दुनिया भर की देखो अब ग़ज़ल कहने लगी,
शायरी का लग रहा है आज पफ़न बदला हुआ।
0भूख लाचारी जहां हो आम इंसां का मयार,
कैसे बोले कोई तब तक है वतन बदला हुआ।
0अपनी इज़्ज़त हाथ में होती है अपने सोचलो,
आज तहज़ीब का भी है चलन बदला हुआ।।
0अब कहां पहले सी खुश्बू है सुमन बदला हुआ,
है हवा बदली हुयी रंग ए चमन बदला हुआ।
0 ताकतो के जुल्म का तो सिलसिला थमता नहीं,
लाख बदली हो ज़मीं और ये गगन बदला हुआ।
0हो रही है ताजपोशी मापिफयाओं की यहां,
रहनुमाओं का हमारे है वचन बदला हुआ।
0 शीत लू वर्षा को भी क्यों मुपफलिसी से बैर है,
मरने वाले हैं वही सब बस कपफन बदला हुआ।
0कौन सी किससे जा मिलेगा रहबरों का क्या पता,
सांप हैं सब एक जैसे सिपर्फ पफन बदला हुआ।
0बात की दुनिया भर की देखो अब ग़ज़ल कहने लगी,
शायरी का लग रहा है आज पफ़न बदला हुआ।
0भूख लाचारी जहां हो आम इंसां का मयार,
कैसे बोले कोई तब तक है वतन बदला हुआ।
0अपनी इज़्ज़त हाथ में होती है अपने सोचलो,
आज तहज़ीब का भी है चलन बदला हुआ।।
लेकिन किसी के दिल को दुखाना भी नहीं है.....
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0बच्चे की ज़िद है महंगी बहाना भी नहीं है,
मिट्टी के खिलौनों का ज़माना भी नहीं है।
0दुश्मन से डरके हाथ मिलाना भी नहीं है,
मेरे सिवा तो कोई निशाना भी नहीं है।
मिट्टी के खिलौनों का ज़माना भी नहीं है।
0दुश्मन से डरके हाथ मिलाना भी नहीं है,
मेरे सिवा तो कोई निशाना भी नहीं है।
0चाहता नहीं उसे मैं, छिपाना भी नहीं है,
उस शख़्स को इस ग़म में रुलाना भी नहीं है।
उस शख़्स को इस ग़म में रुलाना भी नहीं है।
0जीना है सर को यूं ही कटाना भी नहीं है,
जु़ल्मों के आगे सर को झुकाना भी नहीं है।
जु़ल्मों के आगे सर को झुकाना भी नहीं है।
0जाहिल था मैं इसीलिये मुफलिस भी बन गया,
बच्चे पढ़ाउूं कैसे ख़ज़ाना भी नहीं है।
बच्चे पढ़ाउूं कैसे ख़ज़ाना भी नहीं है।
0तुम साथ दे रहे हो तो कुछ राज़ है ज़रूर,
तुमने दिये हैं ज़ख़्म भुलाना भी नहीं है।
तुमने दिये हैं ज़ख़्म भुलाना भी नहीं है।
0नासूर बन ना जाये कहीं फ़ैसला करो,
ये ज़ख़्म अभी इतना पुराना भी नहीं है।
0सच्चाई सा़फ़गोई से बेशक बयां करो,
लेकिन किसी के दिल को दुखाना भी नहीं है।
ये ज़ख़्म अभी इतना पुराना भी नहीं है।
0सच्चाई सा़फ़गोई से बेशक बयां करो,
लेकिन किसी के दिल को दुखाना भी नहीं है।
नश्तर हमें ही फिर भी चुभाओगे कब तलक.....
0ये आप जानो रिश्ते बनाओगे कब तलक,
हमको ये देखना है निभाओगे कब तलक।
हमको ये देखना है निभाओगे कब तलक।
0मुझपर करोगे वार तो हो जाओगे घायल,
साया हूं आपका मैं मिटाओगे कब तलक।
0दुश्मन अगर हैं आप तो दिखावा भी छोड़ दो,
दिल में ज़हर है हाथ मिलाओगे कब तलक।
0जिसने तुम्हारे जे़हन में बारूद भरी है,
राहों में उसकी पलकें बिछाओगे कब तलक।
0तुम खु़द तो सबके वास्ते करके दिखाओ कुछ,
फ़िर्क़ापरस्त दल से डराओगे कब तलक।
साया हूं आपका मैं मिटाओगे कब तलक।
0दुश्मन अगर हैं आप तो दिखावा भी छोड़ दो,
दिल में ज़हर है हाथ मिलाओगे कब तलक।
0जिसने तुम्हारे जे़हन में बारूद भरी है,
राहों में उसकी पलकें बिछाओगे कब तलक।
0तुम खु़द तो सबके वास्ते करके दिखाओ कुछ,
फ़िर्क़ापरस्त दल से डराओगे कब तलक।
0पत्थर थे आप हमने अता की हैं धड़कनें,
नश्तर हमें ही फिर भी चुभाओगे कब तलक।
नश्तर हमें ही फिर भी चुभाओगे कब तलक।
0सर पर लटक रही है जो तलवार देखलूं,
पुरखों के ताजो तख़्त दिखाओगे कब तलक।
0टूटे हुए हो अब तो बिखरने की देर है,
हर राज़ अपने दिल में छिपाओगे कब तलक।।
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भेंट मज़दूरों की क्यों लेती बताओ चिमनियां.....
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0आये दिन गिरने लगीं जब गुलशनों में बिजलियां,
अब संभलकर उड़ रही हैं गुलशनों में तितलियां।
0उनके कपड़ों की नुमाइश का सबब बनती हैं जो,
मुफलिसों की जान ले लेती हैं वो ही सर्दियां।
पुरखों के ताजो तख़्त दिखाओगे कब तलक।
0टूटे हुए हो अब तो बिखरने की देर है,
हर राज़ अपने दिल में छिपाओगे कब तलक।।
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भेंट मज़दूरों की क्यों लेती बताओ चिमनियां.....
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0आये दिन गिरने लगीं जब गुलशनों में बिजलियां,
अब संभलकर उड़ रही हैं गुलशनों में तितलियां।
0उनके कपड़ों की नुमाइश का सबब बनती हैं जो,
मुफलिसों की जान ले लेती हैं वो ही सर्दियां।
0रहबरी जज़्बात की काबू रखो ये जुर्म है,
राख़ में तब्दील हो जाती हैं पल में बस्तियां।
राख़ में तब्दील हो जाती हैं पल में बस्तियां।
0इस बदलते दौर में तुम भी बदलना सीख लो,
जुल्म ढाओगे तो इक दिन जल जायेंगी वर्दियां।
जुल्म ढाओगे तो इक दिन जल जायेंगी वर्दियां।
0शीत लू बरखा के डर से हर रितु मंे बंद हैं,
सोचता हूं क्यों मकानों में लगी हैं खिड़कियां।
सोचता हूं क्यों मकानों में लगी हैं खिड़कियां।
0मौत भी छोटे बड़े में गर फ़र्क करती नहीं,
भेंट मज़दूरों की क्यों लेती बताओ चिमनियां।
भेंट मज़दूरों की क्यों लेती बताओ चिमनियां।
0हर कोई अपने सुखों मंे है यहां खोया हुआ,
जश्न में दब जाती हैं अब तो पड़ौसी सिसकियां।
0महनती क़ाबिल अदब में भी किसी से कम नहीं,
फिर भी कोई बोझ समझे तो करें क्यां लड़कियां।
जश्न में दब जाती हैं अब तो पड़ौसी सिसकियां।
0महनती क़ाबिल अदब में भी किसी से कम नहीं,
फिर भी कोई बोझ समझे तो करें क्यां लड़कियां।
दुश्मनों के दुश्मनों का दोस्त बन.....
0शुक्र है मौसम सुहाना हो गया,
उनके आने का बहाना हो गया।
उनके आने का बहाना हो गया।
0तुम इसे चाहे कोई भी नाम दो,
मुल्क गै़रों का निशाना हो गया।
0होे हुकूमत पांच दिन तो ठीक है,
राज बरसों का पुराना हो गया।
0बात कुछ भी हो विदेशी हाथ है,
यह तो नाकामी छिपाना हो गया।
0हमको रहबर ने अगर बेचा नहीं,
फिर लबालब क्यों ख़ज़ाना हो गया।
मुल्क गै़रों का निशाना हो गया।
0होे हुकूमत पांच दिन तो ठीक है,
राज बरसों का पुराना हो गया।
0बात कुछ भी हो विदेशी हाथ है,
यह तो नाकामी छिपाना हो गया।
0हमको रहबर ने अगर बेचा नहीं,
फिर लबालब क्यों ख़ज़ाना हो गया।
0जिसने फ़िर्क़ावारियत की राह ली,
हाशिये पर वो घराना हो गया।
हाशिये पर वो घराना हो गया।
0सूफी संतो का जो मरकज़ था कभी,
धोखेबाज़ों का ठिकाना हो गया।
0दुश्मनों के दुश्मनों का दोस्त बन,
मात खाते अब ज़माना हो गया।।
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दिलवाली दिल्ली है इस्लामाबाद नहीं है.....
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0खुदग़र्ज़ियां तो है मगर जेहाद नहीं है,
सब भूल गये हम हमें कुछ याद नहीं है।
0बेमेल मुहब्बत का नतीजा ही तो ग़म है,
शीरीं तो हैं कई मगर फ़रहाद नहीं है।
धोखेबाज़ों का ठिकाना हो गया।
0दुश्मनों के दुश्मनों का दोस्त बन,
मात खाते अब ज़माना हो गया।।
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दिलवाली दिल्ली है इस्लामाबाद नहीं है.....
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0खुदग़र्ज़ियां तो है मगर जेहाद नहीं है,
सब भूल गये हम हमें कुछ याद नहीं है।
0बेमेल मुहब्बत का नतीजा ही तो ग़म है,
शीरीं तो हैं कई मगर फ़रहाद नहीं है।
0नेपाल है प्यारा हमें लंका भी पसंद है,
भारत मेरा काबुल नहीं बग़दाद नहीं है।
भारत मेरा काबुल नहीं बग़दाद नहीं है।
0हम में से कोई कुछ हो मुहाजिर तो नहीं है,
दिलवाली दिल्ली है इस्लामाबाद नहीं है।
दिलवाली दिल्ली है इस्लामाबाद नहीं है।
0अपनी बनाई जेल में तू भी तो जा के देख,
सेवक ही तो है देश का दामाद नहीं है ।
सेवक ही तो है देश का दामाद नहीं है ।
0उनको तो छेड़ने की भी क़ीमत अदा हुयी,
हम क़त्ल भी हुए तो इमदाद नहीं है।
हम क़त्ल भी हुए तो इमदाद नहीं है।
0बर्बाद था बर्बाद है बर्बाद ही रहेगा,
वो शख़्स जिसको इल्मे अजदाद नहीं है।
0बेटा ना सही बेटी भी है आंख का तारा,
जा पूछ जिसके घर औलाद नहीं है।
वो शख़्स जिसको इल्मे अजदाद नहीं है।
0बेटा ना सही बेटी भी है आंख का तारा,
जा पूछ जिसके घर औलाद नहीं है।
किसी दिन आपसे पूछेगा ये बच्चा बड़ा होकर.....
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0इसी मिट्टी में रहना है खुशी से या ख़फ़ा होकर,
कहां हम जायेंगे बतलाइये तुमसे जुदा होकर।
0इसी मिट्टी में रहना है खुशी से या ख़फ़ा होकर,
कहां हम जायेंगे बतलाइये तुमसे जुदा होकर।
0ये है वक़्ती सभी नज़दीकियां धोखा ना खा जाना,
हमारे वोट मांगेंगे ये सब हम पर फ़िदा होकर।
0तुम्हारी भूल को हम 6 दिसंबर याद रक्खेंगे,
हज़ारों साल लिपटेंगी तुम्हें अब ये बला होकर।
0विरासत क़र्ज़ की हिस्से में मेरे क्यों आई,
किसी दिन आप से पूछेगा ये बच्चा बड़ा होकर।
0दिया क्या है हमें तुमने बड़ा आसान है कहना,
समझता है हर एक बेटा ये सच्चाई पिता होकर।
हमारे वोट मांगेंगे ये सब हम पर फ़िदा होकर।
0तुम्हारी भूल को हम 6 दिसंबर याद रक्खेंगे,
हज़ारों साल लिपटेंगी तुम्हें अब ये बला होकर।
0विरासत क़र्ज़ की हिस्से में मेरे क्यों आई,
किसी दिन आप से पूछेगा ये बच्चा बड़ा होकर।
0दिया क्या है हमें तुमने बड़ा आसान है कहना,
समझता है हर एक बेटा ये सच्चाई पिता होकर।
0जे़हन रखना खुला गर सेहन में दीवार हो जाये,
कभी शर्मिंदगी होगी नहीं भाई सगा होकर।
कभी शर्मिंदगी होगी नहीं भाई सगा होकर।
0ग़ज़ल जो इश्क़ के पैकर से बाहर आ जाये,
तुम्हारे शेर गंूजेंगे ग़रीबों की सदा होकर।
0हमारी देशभक्ति का कोई भी इम्तहां ले ले,
वतन महफूज़ रखना है हमें खुद भी फ़ना होकर।।
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खूं बहाके दंगों में जन्नतें नहीं मिलती.....
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0महनती ग़रीबों को देवता बना देना,
कुदरती वसाइल पर सबका हक़ लिखा देना।
0लोग जिनके ज़हनों को रहनुमा चलाते हैं,
अब भी वो गुलामी में जी रहे बता देना।
तुम्हारे शेर गंूजेंगे ग़रीबों की सदा होकर।
0हमारी देशभक्ति का कोई भी इम्तहां ले ले,
वतन महफूज़ रखना है हमें खुद भी फ़ना होकर।।
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खूं बहाके दंगों में जन्नतें नहीं मिलती.....
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0महनती ग़रीबों को देवता बना देना,
कुदरती वसाइल पर सबका हक़ लिखा देना।
0लोग जिनके ज़हनों को रहनुमा चलाते हैं,
अब भी वो गुलामी में जी रहे बता देना।
0सच को सच बताने की क़ीमतें जो चाहते हैं,
उनकी खुद की क़ीमत भी माथे पर लिखा देना।
उनकी खुद की क़ीमत भी माथे पर लिखा देना।
0जुल्म और हक़तल्फ़ी ख़ामोशी से देखे जो,
मर चुका ज़मीर उसका उसको ये बता देना।
0कश्तियां किनारों तक हर दफ़ा नहीं जाती,
साहिलों पे जाने को तैरना सिखा देना ।
मर चुका ज़मीर उसका उसको ये बता देना।
0कश्तियां किनारों तक हर दफ़ा नहीं जाती,
साहिलों पे जाने को तैरना सिखा देना ।
0मुल्क से बड़ा कुछ भी जो कोई समझता हो,
इस तरह के लोगों को मौत की सज़ा देना।
इस तरह के लोगों को मौत की सज़ा देना।
0खूं बहाके दंगों में जन्नतें नहीं मिलती,
ज़िंदगी ख़ज़ाना है यूं ही मत लुटा देना।
0सीधे सादे लोगों में दुश्मनी जो फैलायें,
ऐसी सब किताबों को आग में जला देना।
ज़िंदगी ख़ज़ाना है यूं ही मत लुटा देना।
0सीधे सादे लोगों में दुश्मनी जो फैलायें,
ऐसी सब किताबों को आग में जला देना।
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आप हम से मिले जिं़दगी की तरह.....
-इक़बाल हिंदुस्तानी
0खिल उठी जिं़दगी फिर कली की तरह,
आप हम से मिले जिं़दगी की तरह।
0जब उसे पा लिया हम ने चाहा जिसे,
ग़म भी लगने लगे खुशी की तरह।
0ख़ास अंदाज़ हैं अपने जीने के भी,
दुश्मनी भी जो की दोस्ती की तरह।
दुश्मनी भी जो की दोस्ती की तरह।
0चैन मिल पायेगा मेरे दिल को तभी,
मुझ पे छा जाइये चांदनी की तरह।
0आपके मुंतज़िर हम हैं दीदार को,
लम्हा लम्हा लगे है सदी की तरह ।
मुझ पे छा जाइये चांदनी की तरह।
0आपके मुंतज़िर हम हैं दीदार को,
लम्हा लम्हा लगे है सदी की तरह ।
0जलके मरती रहीं आपकी बेगमें,
आप भी तो जलें अब सती की तरह।
आप भी तो जलें अब सती की तरह।
0सब धरी रह गयीं मौत की साज़िशें,
आप हम से मिले जिं़दगी की तरह।
0आप ने कर दिया एक पड़ौसी का खूं,
आप लगते नहीं आदमी की तरह।।
आप हम से मिले जिं़दगी की तरह।
0आप ने कर दिया एक पड़ौसी का खूं,
आप लगते नहीं आदमी की तरह।।
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