Saturday, 11 April 2015

मेरी पसन्द के शेर


0ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं,
तुमने मेरा कांटोंभरा बिस्तर नहीं देखा।
0 आज सड़कों पर लिखे सैकड़ों नारे न देख,
   घर अंध्ेारे देख तू आकाश के तारे न देख ।।
0ये दौलत आदमी की मुफलिसी को दूर करती है,
मगर कमज़र्फ़ इंसां को और भी मग़रूर करती है ।
सभी खुश हैं मैं परदेस जाकर लाऊंगा दौलत,
मगर एक मां है जो इस शर्त का नामंजूर करती है।
0 रोटी नहीं तो क्या हुआ तू सब्र तो कर,
आजकल जे़रे बहस है दिल्ली में यह मुद्दा ।
0इब्तिदा ए इष्क है रोता है क्या,
आगे आगे देखिये होता है क्या।
0 सिर्फ़ एक क़दम उठा था गलत राहे शौक में,
    मंज़िल  तमाम  उम्र  मुझे  ढूंढती  रही ।। 
0मस्लहत आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम,
  तू नहीं समझेगा सियासत तू अभी नादान है।
                 मां
कौन कहता है कि मां में नहीं मिलती ममता,
तुम तो एक बार पुत्र बनकर दिखाओ यारो।
बंधे हुए हो तुम आंचल से अपनी पत्नी के,
कभी तो ममतामयी गोद में आओ यारो।
रखके सूखे में वो गीले में ही सो जाती है,
तुम भी एक रात उसे ऐसे सुलाओ यारो।
सुनके आवाज़ आपकी वो भागती है सदा,
कभी आवाज़ पे उसकी भी तो आओ यारो।
हम बड़े फख्र से कहते हैं मेरी पत्नी है,
कभी तो फख्र से मां को भी मिलाओ यारो।
है अगर चाह के जन्नत मिले इस दुनिया में,
तो चरण में ही ध्यान मां के लगाओ यारो।।
-जनप्रिय गुप्ता,
उपज़िलाधिकारी,
खतौली, मुज.नगर
मेरा प्यारा भारत देश....-एसडीएम,नजीबाबाद
0है एकता में अनेकता पारस्परिक सत्कार है,
उत्सव में रंगों की छठा उल्लास है प्यार है।
0समरसता और सौहार्द के सारांश का यह देश है,
आनंद अरू अनुराग के श्रेयांस का यह देश है।
0यहां अतिथि देवो भव यहां प्रीत की ही रीत है,
सत्यम शिवम अरू सुंदरम जैसे यहां पे गीत है।
0‘वसुधा कुटुम्ब’ है यहां परहित सरिस ही धर्म है,
यहां लोक संग्रह भाव से करते सदा हम कर्म है।
0सर्वस्व के कल्याण अरू सुख शांति का यह देश है,
ऐश्वर्य का सौंदर्य का आध्यात्म का ये देश है।।
-जेपी गुप्ता,उपज़िलाधिकारी,नजीबाबाद

0उसूलों पर जो आंच आये तो टकराना ज़रूरी है,
   जो ज़िंदा हो तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है।
   नई नस्लों की खुद मुख़्तारियों को कौन समझाये
   कहां से बचके चलना है कहां जाना ज़रूरी है।।
-वसीम बरेलवी
0 अजीब लोग हैं क्या खूब मुंसफी की है,
हमारे क़त्ल को कहते हैं खुदकशी की है।
इसी लहू में तुम्हारा सफीना डूबेगा,
ये क़त्ल नहीं तुमने खुदकशी की है।।   
0 न इधर उधर की बात कर यह बता क़ाफिला क्यों लुटा,
  मुझे रहज़नों से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है।।
                                     -अज्ञात
0 कोई थकान थी नहीं जब तक सफ़र में था,
मंज़िल जो मिल गयी तो बदन टूटने लगा।
जब तक मैं गै़र था वो मनाता रहा मुझे
मैं उसका हो गया तो वो ही रूठने लगा।।
                     -राजन स्वामी
0मैं चुप रहा ये सोचकर अपनों के दरमियां,
सब बोलने लगे तो घर टूट जायेगा।।
0अजीब सुलगती हुयीं लकड़िया हैं ऐ दोस्त,
मिलें तो जलने लगें अलग हों तो जे़हर उगलें।
                -अज्ञात
0 चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया,
  पत्थर को बुत की शुक्ल में लाने का शुक्रिया,
  तुम बीच में न आती तो कैसे बनाता सीढ़ियां,
  दीवारों में मेरी राह में आने का शुक्रिया।।
                 -अज्ञात
0 दुख नहीं कोई कि अब उपलब्ध्यिों के नाम पर,
  और कुछ हो या ना हो आकाश सी छाती तो है।।
                        -दुष्यंत कुमार
0 मैं वो साफ़ ही न कहदूं जो है फ़र्क़ तुझमें मुझमें,
     तेरा ग़म है ग़म ए तन्हा मेरा ग़म ग़म ए ज़माना।।
0 मसलहत आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम,
  तू नहीं समझोगे सियासत तू अभी नादान हो।।
                   -अज्ञात
0 अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार,
  घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तेहार।
  मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूं पर कहता नहीं,
  बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार।।
                     -दुष्यंत कुमार
वो जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने,
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई।
0 क़तरा गर एहतजाज करे भी तो क्या करे
   दरिया तो सब के सब समंदर से जा मिले।
   हर कोई दौड़ता है यहां भीड़ की तरफ,
   फिर यह भी चाहता है मुझे रास्ता मिले।।
                  -वसीम बरेलवी
0 कैसे आसमान में सुराख़ हो नहीं सकता,
    एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।
-दुष्यंत कुमार
0 जिन पत्थरों को हमने अता की थी धड़कनें,
  जब बोलने लगे तो हम ही पर बरस पड़ें।।
                     -अज्ञात
0 यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें,
  इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो।
  किसी के वास्ते राहें कहां बदलती हैं,
  तुम अपने आपको बदल सको तो चलो।।
                    -निदा फ़ाज़ली

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