Thursday 20 June 2024

मोदी नहीं करेंगे बदलाव

*संघ परिवार में नहीं है कोई टकराव, एनडीए सरकार नहीं करेगी बदलाव!* 
  -इक़बाल हिंदुस्तानी
0 देश में दो वर्ग हैं। एक चाहता था कि मोदी फिर से पीएम बनें और वैसे ही काम करते रहें जैसे कि वे अब तक करते रहे हैं। दूसरा वर्ग बदलाव चाहता था। उसने भाजपा को बहुमत न मिलने विपक्ष के मज़बूत होने और राहुल गांधी के रूप में एक नये राष्ट्रीय नेता के उभरने को ही कुछ हद तक बदलाव मानकर फिलहाल सब्र कर लिया है। उसने एनडीए के बड़े घटक टीडीपी और जेडीयू से भी कई बड़ी आशायें लगा रखी हैं। इस वर्ग ने आरएसएस द्वारा बिना नाम लिये कुछ नई बातें कहे जाने को भी मोदी के खिलाफ बड़ा कदम मानते हुए मोदी सरकार में बदलाव की उम्मीदें पाल रखी हैं। सच कड़वा होता है लेकिन हकीकत यही है कि न तो एनडीए के बड़े घटक मोदी सरकार को बदल सकते हैं और ना ही संघ मोदी सरकार को गिराकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार सकता है। यह सब नूराकुश्ती है।
सीएसडीएस लोकनीति के चुनाव बाद सर्वे में यूपी में राहुल की लोकप्रियता 36 तो मोदी की 32 प्रतिशत है। बनारस से मोदी की जीत का अंतर भी घटकर एक तिहाई रह गया है। यहां तक कि भाजपा को फर्श से अर्श तक पहुंचाने वाली अयोध्या ने भी उसको नकार दिया है। राजस्थान के जिस बांसवाड़ा से मोदी ने अपने भाषण में जमकर हिंदू मुस्लिम शुरू किया था। वह सीट भी भाजपा हार गयी। जिस इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज किया था। वह सीट भी फैज़ाबाद को अयोध्या की तरह करके भाजपा हार गयी। भाजपा ने इस बात पर मंथन शुरू कर दिया है कि वह यूपी राजस्थान और हरियाणा में बुरी तरह क्यों हारी? इसकी वजह वह अपनी सांप्रदायिक विचारधारा जनविरोधी कार्यशैली और पंूजीवादी नीतियांे को नहीं मुसलमानों के साथ दलितों व जाटों के एक वर्ग का एक साथ आ जाना मानती है। इसके साथ ही प्रत्याशियों का गलत चुनाव बेरोज़गारी व महंगाई भी एक बड़ी वजह मानी जा रही है। अकेले इन तीन राज्यों में बीजेपी ने 45 सीट खो दी हैं। उसका यह तो मानना है कि अबकि बार 400 पार का नारा उल्टा पड़ गया लेकिन वह इसके लिये विपक्ष को संविधान आरक्षण व लोकतंत्र खत्म करने का भाजपा के खिलाफ प्रचार करने का दोषी मानती है। भाजपा को लगता है कि उसका परिवारवाद और करप्शन विरोधी अभियान भी जनता दल सेकुलर तेलगु देशम पार्टी व अजित पवार जैसे लोगों को अपने एनडीए में जोड़ने से कमजोर पड़ गया। शहरी क्षेत्रों में भाजपा का 18 प्रतिशत तक मतदाता कम निकला और कस्बों व गांवों में वह विपक्ष को वोट कर उससे काफी हद तक छिटक गया। 
  यूपी में प्रशासन द्वारा भाजपा को अपेक्षित सहयोग न मिलना चुनाव बाद सीएम योगी को हटाने की लगातार चल रही चर्चा से ठाकुर व राजपूत वोटों का भाजपा को पहले की तरह समर्थन ना करना और महाराष्ट्र में मूल शिवसेना व एनसीपी को तोड़कर जोड़तोड़ की सरकार बनाना जनता को रास नहीं आया। संघ ने चुनाव बाद जो कुछ कहा वह भाजपा के उन हिंदू वोटों को मनाने का प्रयास है जो भाजपा के हिंदू मुस्लिम राम मंदिर और विदेशों में भारत का डंका बजने के लगातार चलाये जा रहे भावनात्मक अभियान से बेरोज़गारी महंगाई भ्रष्टाचार परीक्षा पेपर लीक किसानों की बदहाली और जीवन के बुनियादी मुद्दों से दूर करने की चाल को समझकर नाराज़ होने लगे हैं। संघ को मोदी के सत्ता में आने से वो सब कुछ मिला है जो पिछले 70 साल में नहीं मिला था। इसलिये चुनाव में मर्यादा रखना अहंकार ना होना विपक्ष को शत्रु ना मानना मुस्लिमों को साथ लेकर चलना मणिपुर की चिंता करना और सर्वसम्मति की सीख संघ की दिखावटी बनावटी और रणनीतिक लीपापोती ही अधिक लगती है। संघ इन मामलों मंे गंभीर होता तो पहले ही इन चीजों को होने से रोकता। लेकिन संघ परिवार में सबकी भूमिका पहले से ही तय होती है कि किसको किस समय क्या कहना है और क्या करते रहना है? मोदी से बेहतर आज्ञाकारी प्रचारक पीएम और हुक्म बजाने वाला संघ को कोई दूसरा भाजपा नेता मिल नहीं पाया है। जहां तक यूपी के सीएम योगी को बार बार हटाने की चलने वाली चर्चा का सवाल है। वे भावी पीएम के रूप में देखे जाते हैं। उनके चयन के पीछे भी संघ है। लिहाज़ा चाहकर भी उनको दिल्ली की सत्ता हटा नहीं सकती। 
   हालांकि हर दल की तरह भाजपा में भी गुटबंदी से इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन इनकी आपसी लड़ाई अन्य दलों की तरह कभी भी संघ परिवार का कोई बड़ा नुकसान नहीं करती है। यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह कर्नाटक के पूर्व सीएम येदियुरप्पा और विहिप के प्रमुख रहे प्रवीण तोगड़िया का हाल संघ परिवार छोड़ने के बाद क्या हुआ यह सबको याद रखना चाहिये। खुद आडवाणी भाजपा में रहते हुए पाकिस्तान जाकर जिन्ना की मज़ार पर थोड़ा सा भटककर उनको सेकुलर होने का तमगा देकर किस तरह से अज्ञातवास में चले गये यह दुनिया ने देखा है। रहा सवाल नायडू व नीतीश का तो वे मोदी को उनकी कार्यशैली बदलने के मजबूर नहीं कर सकते। पहले दावा किया गया कि वे दोनों अमित शाह को मंत्री नहीं बनने देंगे। जब शाह ने शपथ ले ली तो कहा गया कि उनको गृहमंत्री पद नहीं दिया जायेगा। जब यह भी हो गया तो कयास लगाये गये कि स्पीकर पद भाजपा को नहीं मिलेगा। लेकिन मोदी ने आज तक किसी से दबकर काम नहीं किया। उन्होंने सब बड़े मंत्रालय भाजपा के पास रखे हैं। नीतीश बिहार में सीएम बने रहने के लिये अपने 49 विधायकों के साथ भाजपा के रहमो करम पर हैं। उधर नायडू ने अपने राज्य की नई राजधानी अमरावती को बनाने और अपने मेनिफेस्टो के वादों को पूरा करने के लिये साढ़े तीन लाख करोड़ के पैकेज को लेकर केंद्र से अपनी डील कर ली है। इसके बाद नीतीश और नायडू के मोदी के किसी भी बड़े फैसले का विरोध करने का साहस वे कहां से लायेंगे? 
आप जल्द ही देखेंगे एनडीए गठबंधन टूटना तो दूर उल्टा इंडिया गठबंधन के कुछ कमज़ोर लालची व करप्ट सांसदों छोटे दलों व निर्दलीयों को तोड़कर भाजपा या एनडीए गठबंधन में लाकर मोदी नायडू व नीतीश पर अपनी निर्भरता कम करने को भाजपा के स्पीकर का पहले की तरह एकतरफा इस्तेमाल करेंगे। वे विपक्ष का डिप्टी स्पीकर भी नहीं बनने देंगे, न ही कोई प्रेस वार्ता कर किसी सवाल का जवाब देने का कष्ट करेंगे। इसके साथ अलीगढ़ में एक मुसलमान की माॅब लिंचिंग लेखिका और समाजसेवी अरूंधति राय के खिलाफ 14 साल पुरान मामले में यूएपीए कारवां से जुड़े पत्रकार परमजीत के खिलाफ चार साल पुराने मामले में केस दर्ज करना आईटी रूल के बहाने फेक न्यूज का भंडाफोड़ करने वाले जुबैर के खिलाफ एक्स से उनका एकाउंट ब्लाॅक करने को कहकर सरकार ने अपनी कार्यशैली के संकेत दे दिये हैं कि वह पहले की तरह ही चलेगी।
 *0 यहां सब ख़ामोश हैं कोई आवाज़ नहीं करता,* 
 *सच बोलकर कोई किसी को नाराज़ नहीं करता।* 
 *नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ एडिटर हैं।*

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