Thursday 20 June 2024

पानी की प्रॉब्लम

*पानी की प्राॅब्लम आपके दरवाजे़ पर दस्तक देगी तभी संभलोगे ?*
0 बंगलुरू में 50 करोड़ लीटर पानी की कमी है। जो टंैकर वहां जलसंकट से पहले 1200 रू. में आराम से मिल जाता था अब उसके रेट बढ़ाकर पानी माफिया ने 2850 कर दिये हैं। 6 लोगों के एक परिवार को महीने में 12000 लीटर पानी की ज़रूरत होती है। इसके लिये एक परिवार को पानी पर ही अपनी कुल आय का 75 प्रतिशत तक यानी 10,000 रू. खर्च करना पड़ रहा है। ख़बर है कि झीलों की नगरी माने जाने वाले महानगर बंगलुरू के बाद देहरादून में पानी का संकट सर उठाने लगा है। वहां सौ से अधिक मुहल्लों में अब तक पानी कम आने या कुछ स्थानों पर बिल्कुल ना आने की शिकायतें मिल रही हैं। चिंता की बात यह है कि जिन लोगों को अभी पानी भरपूर और निशुल्क मिल रहा है वे भी संभलने को तैयार नहीं हैं।     
*-इक़बाल हिंदुस्तानी*
एक सर्वे के मुताबिक कुल पानी का 80 से 90 प्रतिशत खेती में इस्तेमाल होता है। आंकड़ों के अनुसार 2050 तक प्रति व्यक्ति पानी की मांग में 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होेेेगी। जबकि इसके विपरीत पानी की उपलब्ध्ता में तब तक प्रति व्यक्ति 15 प्रतिशत की कमी आयेगी। जल प्रबंधन की व्यवस्था और शोध करने वालों का कहना है कि देश के 50 प्रतिशत ज़िलों में पानी का संकट 25 साल के भीतर खड़ा होने जा रहा है। उद्योगों के बाद कृषि में कुल जल खपत का 90 प्रतिशत अकेले तीन प्रमुख फसलों गेहंू धान और गन्ने में लगता है। इसमें जल उपयोग की दक्षता 35 प्रतिशत होती है जबकि इसे विशेष दक्षता और आधुनिक तकनीक से प्रयोग करके 20 प्रतिशत तक पानी बचाया जा सकता है। जानकारों का कहना है कि हर साल बढ़ती गर्मी और बदलते मौसम चक्र की वजह से भी जलसंकट दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। अगर इंटरनेशनल स्तर पर देखें तो दुनिया के कुल पानी का भारत के पास मात्र 4 प्रतिशत पानी है लेकिन विश्व की कुल जनसंख्या का 17 प्रतिशत हिस्सा यहां रहता है। एडवांस वाटर एफिशियेंसी इन इंडियन एग्रीकल्चर की हाल की रिपोर्ट के अनुसार 1700 क्यूबिक मीटर से कम पानी वाले क्षेत्रों को जलसंकट वाला इलाका माना जाता है। 
आंकड़े बताते हैं कि हमारी संसद की 100 सीटें शहरी क्षेत्रों में हैं। नीति आयोग ने 2018 में एक सर्वे के बाद चेतावनी दी थी कि इनमंे से 21 नगरों में जल स्तर शून्य की ओर बढ़ रहा है। जिस दिन ऐसा होगा इससे 10 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित होंगे। इन शहरों में बंगलुरू से लेकर हैदराबाद दिल्ली लखनउू थाणे रायगढ़ पनवेल व त्रिअनंतपुरम जैसे शहरों की एक लंबी सूची है जहां साल दर साल पानी का संकट बढ़ता ही जा रहा है लकिन हैरत और दुख की बात यह है कि धर्म जाति और भावनाओं की राजनीति में फंसे अधिकांश लोगों के लिये यह इतना बड़ा जीवन की बुनियादी आवश्यकता का संकट कहीं भी चुनावी मुद्दा तक नहीं है। राजनीतिक दलों और नेताओं को तो इसकी क्या चिंता होगी जब जल संकट भुगतने वाले नागरिकों को ही इसकी कोई परवाह नहीं है। समझने और विचार करने की बात यह है कि पानी का संकट जैसे जैसे बढ़ रहा है। वैसे वैसे आपदा में अवसर तलाश करने वाले पानी माफिया टैंकर सप्लायर और बोतलबंद पानी सप्लाई करने वाली कंपनियों की चांदी हो रही है। शासन प्रशासन को भी पानी का संकट कोई खास परेशान नहीं करता क्योंकि वे जानते हैं कि जनता के एजेंडे में ये मुद्दा नहीं है। 
सरकार इस मामले में किसी दूरगामी योजना पर भी काम करती नज़र नहीं आती है। जानकार बताते हैं कि देश का शहरीकरण बिना किसी ठोस और दूरगामी सुनियोजित योजना के ही चल रहा है। वास्तकिता यह है कि जिन नगरों में पानी का हाल फिलहाल में संकट गहरा रहा है। वहां पानी अब तक आसपास के 50 से 100 कि.मी. दूर गांव स्थित जलाश्यों से आता रहा है। मिसाल के तौर पर बंगलुरू जल संकट को गहराई से देखें तो पता चलेगा कि वहां 100 कि.मी. दूर स्थित कावेरी नदी से पानी आता है। ऐसे ही महानगर चैन्नई चोलावरम व वीरन्नम झील के पानी पर निर्भर है। दिल्ली यमुना और गंगा के पानी से अपना काम चलाता है। मंुबई 150 कि.मी. दूर वेतरणा सहित आध दर्जन झीलों के पानी से नागरिकों को सुविधा उपलब्ध कराता है। यह भी तथ्य है कि भारत में हर साल 3880 अरब घन मीटर वर्षा होती है जिसमेें से देश 1999 अरब घन मीटर पानी का लाभ उठा पाता है। देश में हर साल 249 अरब घन मीटर ज़मीन के अंदर का पानी निकाला जाता है। जल विशेषज्ञों का सुझाव है कि पानी की कमी वाले क्षेत्रों में अधिक पानी सोखने वाली धान व गन्ने की खेती तत्काल रोकनी चाहिये। लेकिन ऐसा होने के कोई आसार नज़र नहीं आते क्योंकि इससे राजनीतिक हलचल बढ़ जायेगी। 
     राजनेता किसानों को वोट ना मिलने से नाराज़ नहीं करेंगे। खुद लोगों में इतनी जागरूकता है नहीं कि वे स्वयं ही कोई पहल करके इस तरह का सकारात्मक कदम उठा सकें। इसके लिये सरकार चाहे तो पहले बड़ पैमाने पर लोगों का ब्रेनवाश कर बाद में कडे़ कानूनी कदम उठा सकती है। लेकिन इसके लिये जिस दृढ़ इच्छा शक्ति की ज़रूरत होगी वह हमारे राजनीतिक दलों जनप्रतिनिधियों और सरकारों में कम ही देखने को मिलती है। रसायनिक ख़तरनाक इंडस्ट्रियल कचरा लगातार साफ पानी के श्रोतों में बहाया जा रहा है। पेड़ लगातार काटे जा रहे हैं जिससे भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है। वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से ना केवल भूजल को रिचार्ज किया जा सकता है बल्कि बाढ़ से काफी सीमा तक बचा जा सकता है। ऐसे ही सीवेज प्लांट को बढ़ावा देकर उससे फिर से प्रयोग करने योग्य पानी निकाला जा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि 78 प्रतिशत नगरों में स्थानीय निकाय पानी का ठीक से प्रबंध्न नहीं कर पा रहे हैं। पानी अधिकांश स्थानों पर निशुल्क या ना के बराबर कीमत पर मिलने से भी खूब खराब हो रहा है। बंगलुरू जिस पानी को 7 से 45 रू. 1000 लीटर देता है उसी को टैंकर 150 से 250 रू. में दे रहे हैं। 
      निकायों की जल कीमत लागत से 20 से 30 प्रतिशत वापस मिल रही है। जब तक लोग बिना वजह टूटी खुली छोड़ना कार बाइक स्कूटर पीने के पानी से घंटों धोना स्विमिंग पूल, गर्मी में सैंकड़ों लीटर पानी का छिड़काव करना नहीं छोड़ेंगे जल संकट एक दिन हर घर तक पहुंच जायेगा। बेहतर हो कि हम समय रहते संभल जायें।
 *0 प्यास लगती है चलो रेत निचोड़ा जाये,* 
 *अपने हिस्से में समंदर नहीं आने वाला।।* 
 *नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के संपादक हैं।*

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