चिराग़
मैं आज ज़द पे अगर हूँ तो ख़ुश-गुमान न हो।
चराग़ सब के बुझेंगे हवा किसी की नहीं।।
फ़रियादी
लश्कर भी तुम्हारा है, सरदार तुम्हारा है,
तुम झूठ को सच लिख दो अखबार तुम्हारा है,
इस दौर के फरियादी जायें तो कहा जायें,
सरकार तुम्हारी है, दरबार तुम्हारा है ..।
खौफ़ की हद
मैं अपने खौफ़ की हद पर खड़ा हूँ,
अब इसके बाद घबराना है तुम को।
बेहिसी
बेहिसी शर्त है जीने के लिये,
और हमको अहसास की बीमारी है।
ज़वाल
क़ुव्वते फिक्रो अमल पहले फ़ना होती है ..
फिर किसी क़ौम की अज़मत पे ज़्वाल आता है !!
दोस्त
जो दिल को अच्छा लगता है उसी को दोस्त कहता हूँ
मुआफिक बनके रिश्तों की सियासत मैं नहीं करता।
वाबस्ता
दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है
जो किसी और का होने दे न अपना रक्खे।
सुलूक
अहबाब के सुलूक से जब वास्ता पड़ा।
शीशा तो मैं नहीं था मगर टूटना पड़ा।।
तासीर
उनकी तासीर बेहद कड़वी होती है,
जिनकी गुफ्तगु शक्कर जैसी होती है
अदब
अदब की बात है मुनीर,सोचो तो,
जो शख़्स सुनता है, वह बोल भी तो सकता है।
ज़ुल्म
Kucch na kehne se bhi Chhin jaata hai Aijaz E Sukhan
Zulm Sehne se bhi Zaalim ki Madad hoti hai
ज़ख़्म
आपने तीर चलाया तो कोई बात ना थी..
और हमने ज़ख्म दिखाए तो बुरा मान गए..
ज़िल्लत
*ठुकरा दो अगर दे कोई जिल्लत से समंदर,*
*इज्जत से जो मिले ओ कतरा भी बहुत है।*
ज़मीर
Mera zameer bahot hai mujhe saza ke liye,
Tu dost hai tou nasihat na kar khuda ke liye!
डर
वो चाहते हैं कि हिंदुस्तान छोड़ दें हम
बताओ भूत के डर से मकान छोड़ दें हम
सवाल
ये नफ़सियाती मरीज़ों का शहर है 'क़ैसर'
कोई सवाल उठाओगे मारे जाओगे!
खुद्दार...
दोनों खुद्दार थे इतने कि ख़ामोशी का सबब,,,,!!
उसने पूछा भी नहीं मैंने बताया भी नहीं....!!
बारिश...
सहमी हुई है झोपड़ी बारिश के ख़ौफ़ से।
महलों की आरज़ू है कि बरसात तेज़ हो ।।
तबीयत...
*कुछ लोग यूँ ही शहर में हमसे भी ख़फा हैं*
*हर एक से अपनी भी तबीयत नहीं मिलती*
कसूर...
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़..
हमें यक़ीन था हमारा क़ुसूर निकलेगा..
शीशा...
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है
पत्थर....
Raz sheeshe se pochna tanhai mein, kitna nuqsan hai paththar se shanashai mein.
ताला....
लब-ए-खामोश का सारे जहाँ में बोलबाला है,
वही है महफूज़ यहाँ,जिसकी ज़ुबाँ पर ताला है!!!
चिराग़...
फक़त बातें अंधेरों की, महज किस्से उजालों के,,,,!!
चिराग ए आरज़ू लेकर, ना तुम निकले ना हम निकले,,!!
तलवार...
हमीं को कत्ल करते हैं हमीं से पूछते हैं वो,....
शहीदे-नाज बतलाओ मेरी तलवार कैसी हैं,..!!
आग...
आग, लगाने वालों को, कहाँ है, ये खबर,_*
रुख, हवाओं ने बदला, तो खाक वो भी होंगे.....।_*
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