400 साल पुराना सुल्ताना डाकू का किला
रिपोर्ट :- फैसल खान, बिजनौर
एंकर :- बिजनौर जिला अपने आप मे एक बहुत बड़ा इतिहास है यहाँ पर मुग़ल काल के बहुत सारे प्रमाण मिलते है जो आज भी मौजूद है लेकिन हम आपको ऐसी चीजों से रूबरू करवाएंगे जिसे आप देखकर आप सोच मे पड़ जायेंगे और आप यहाँ आने के लिए मजबूर हो जायेंगे हम बात कर रहे है नजीबाबाद स्थित सुल्ताना डाकू के किले कि जिसका इतिहास काफ़ी पुराना है और ये किला वो तमाम यादो को लिए आज भी मौजूद है देखिये बिजनौर से हमारे सहयोगी फैसल खान की रिपोर्ट l
वीओ 1:- सबसे पहले हम आपको नजीबाबाद के सुल्ताना डाकू का इतिहास बताते है l
सुल्ताना डाकू इतिहास का सच है परन्तु उससे सम्बंधित अनेक मिथक फिल्मों, नौटंकियों और लोकगीतों में हैं। कल्पना की धुंध में सुल्ताना का वास्तविक जीवन लिपट गया है। अंग्रेजों, सेठों और सामंतों ने उसे डाकू कहा। जनता के लिए तो वह गरीबों का प्यारा सुल्तान था। सुल्ताना नाम तो उसे हिकारत से देखने वालों ने उसे दिया। सुल्ताना पर शोध करने वाले सीमैप के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. एनसी शाह ने उसे मजबूत इरादे और उच्च चरित्र का इंसान कहा है।सुल्ताना डाकू का जन्म उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जनपद के सटे गाँव हरथला में हुआ था। वह जाति का था। भातू एक खानाबदोश जाति है। सुल्ताना का ननिहाल काँठ में था। किंतु अंग्रेजों ने भातुओं को काठ से नवादा में बसा दिया था। सुल्ताना के नाना नवादा में आ बसे और उसका बचपन नवादा में गुजरा। जीते-जी किंवदंती बन गया था सुल्ताना। कहा जाता है कि वह अमीरों को लूटता था और गरीबों में बाँटता था। यह समाजवाद का उसका ब्रांड था। सभी जानते हैं कि वह हत्यारा नहीं था। उसने कहा भी है कि उसने कभी किसी की हत्या नहीं की। बावजूद इसके उसे एक मुखिया की हत्या के जुर्म में फाँसी हुई। 14 दिसंबर, 1923 को नजीबाबाद के जंगल में सुल्ताना को गिरफ्तार किया गया।
वीओ 2:- उसकी गिरफ्तारी के लिए ब्रिटिश सरकार ने फ्रेड्रिक यंग के नेतृत्व में विशेष दल बनाया था। फ्रेड्रिक यंग इंग्लैण्ड के तेज-तर्रार पुलिस अधिकारियों में से एक थे। उस विशेष दल में प्रसिद्ध शिकारी जिम कार्बेट भी शामिल थे। जिम कार्बेट आयरिश मूल के भारतीय लेखक एवं दार्शनिक थे। वे नैनीताल के पास कालाढूंगी में रहते थे। वे आजीवन अविवाहित रहे और उनकी बहन भी अविवाहित थीं।जिम कार्बेट ने अपनी पुस्तक ”माई इंडिया’’ में ”सुल्ताना : इंडियन रॉबिनहुड’’ नाम के अध्याय में उसकी जमकर प्रशंसा की है। इससे सुल्ताना के व्यक्तित्व को समझा जा सकता है। क्या यह महत्वपूर्ण नहीं कि सुल्ताना की गिरफ्तारी में मदद करने वाले जिम कार्बेट ने उसकी भूरी-भूरी प्रशंसा की? इतना ही नहीं, जिस पुलिस पदाधिकारी फ्रेड्रिक यंग ने उसकी गिरफ्तारी की थी, उसी ने सुल्ताना के पुत्र और पत्नी को पुराने भोपाल में बेलवाड़ी के पास बसाया, बेटे को अपना नाम दिया और लंदन में पढ़ाकर आईसीएस अधिकारी बनाया। डॉ. एन. सी. शाह ने लिखा है कि जंगलों में सुल्ताना ने दो बार यंग और जिम कार्बेट की जिंदगी बख्शी थी। इससे डाकू सुल्ताना का उज्ज्वल चरित्र उजागर होता है। 1923 में फ्रेड्रिक यंग ने गोरखपुर से लेकर हरिद्वार तक ताबड़तोड़ 14 छापे मारे थे। आखिरकार 14 दिसंबर, 1923 को सुल्ताना अपने खास साथी पीतांबर, नरसिंह, बलदेवा और भूरे के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। सुल्ताना पर नैनीताल की अदालत में मुकदमा चला। वह मुकदमा ”नैनीताल गन केस’’ के नाम से जाना जाता है। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुल्ताना को आगरा के जेल में फाँसी दे दी गई। सुल्ताना डाकू के जीवन और कार्यों को काव्य-नाटक में बांधने का श्रेय नथाराम शर्मा गौड़ और अकील पेंटर को है। नथाराम शर्मा गौड़ हाथरस के रहने वाले थे और उनकी पुस्तक का नाम है ‘सुल्ताना डाकू उर्फ गरीबों का प्यारा।’ अकील पेंटर ग्राम चांदन (लखनऊ) के थे और उनकी पुस्तक का नाम है ‘शेर-ए-बिजनौर: सुल्ताना डाकू।’ उत्तर प्रदेश और बिहार के कस्बों, मुफस्सल और गाँवों में शायद ही कोई ऐसा नाटक हो, जिसे इतनी लोकप्रियता मिली हो जितनी सुल्ताना डाकू के नाटकों को मिली। लगभग चार सौ साल पूर्ब यह किला बनवाया था नजीबाबाद के नवाब नाजीबुद्दोला ने बनवाया था। बाद में इस पर सुलताना डाकू जो इसी जगह का था, कब्जा कर लिया। आज लोग इसे सुलताना डाकू का किला कहते है सुल्ताना एक बहादुर डाकू था जिसे पकड़ना नामुमकिन था। उस समय की पुलिस ने उसे पकड़ने की लगातार प्रयास किए। सुल्ताना डाकू का अपना एक इतिहास है, सुलताना डाकू पर एक फिल्म भी बनाई गई जिसमें दारा सिंह ने सुल्ताना का किरदार निभाया था।सुल्ताना डाकू ने यह किला अपने छुपने की जगह के तोर पे इस्तेमाल किया। सुल्ताना अपने समय का माना हुआ डाकू था जोकि 1920 के आस पास उत्तर प्रदेश में मिलने वाले भात्तू काबिले से था।
वीओ 3:-किले के चारों कोनों पर चार कुएं बने हुए हैं, जो अब सूख चुके है। ये कुएं किले की दीवार के अंदर इस प्रकार से बने हुए है कि दुश्मनों को इनका पता न चल सके। किले की दीवार के ऊपरी हिस्से से ही सैनिक इन कुओं से पानी खींच लेते थे। वर्तमान में इस बावड़ी की देख-रेख न होने के कारण जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। पुरातत्व विभाग व अन्य संबंधित विभाग को इसकी तनिक भी चिन्ता नहीं है। जिस कारण ये ऐतिहासिक धरोहर नष्ट होने के कगार पर है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मंडल में स्थित जिला बिजनौर एक ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। इस जिले में महाभारतकालीन एवं मुगलकालीन कई ऐतिहासिक प्रसिद्ध इमारते एवं जल स्रोत है। जिले में गंगा एवं रामगंगा बारहमासी बहने वाली नदियां हैं। इसके अतिरिक्त पीली, मालिन, गागन, छोइयां , करूला, धारू बनाली, पावंधोई इसकी मौसमी नदियां हैं। इस जिले के कस्बे नजीबाबाद जो कि मुगल शासक नजीबुद्दौला द्वारा बसाया गया था। इनके द्वारा बनाये गये किले एवं ऐतिहासिक जल स्रोत आज भी यहां विद्यमान है जो कि अब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। ऐसा ही यहां एक किला है डाकू सुल्तान का किला जो लगभग 70 एकड़ में फैला हुआ है। इस किले में दो प्रवेश द्वार है। यह किला पत्थर गढ़ के नाम से भी जाना जाता है। इसके विषय में कहा जाता है कि जब इस किले का निर्माण हुआ तो आस-पास के क्षेत्रो से पत्थरों को एकत्र कर यह किला बनाया गया था।
वीओ 4:-यह किला मुगल काल में बनाया गया था। मुगल काल के पतन के बाद इस किले में अंग्रेजों ने डेरा डाल लिया था अंग्रेजों ने यहां रहकर भारतीयों पर जुल्म ढाये इस कारण डाकू सुल्ताना ने इसका विरोध किया तथा भारतीयों के हक के लिए लड़ाई लड़ी। इस किले के नजदीक एक मौसमी नदी गांगड़ बहती है जो अपनी छोटी-छोटी शाखाओं को मिलाकर एक बड़ी नदी का रूप लेती है। यहीं पर गांगड़ का मंदिर भी है जिसमें श्रद्धालु काफी दूर-दूर से आते है। वर्तमान में यह किला निजामतपुर गांव के पास है। इस किले के बीचों-बीच एक प्राचीन बावड़ी है जिस पर नहाने के लिए सीढ़ी भी बनी हुई है और इस बावड़ी के दोनों ओर सुरंग भी बनी हुई है जिनका प्रयोग संभवतः इस बावड़ी को जल से भरने के लिए किया जाता रहा होगा अथवा दुश्मनों के आक्रमण के समय घेराबंदी में किया जाता होगा।
वीओ 5:- आज बहुत ही जर्जर स्थिति में सुल्ताना डाकु के किले का हालत हो गयी है l
यह सुरंग बावड़ी से होकर एक किलोमीटर तक बनी हुई है। उस समय इस बावड़ी के जल का प्रयोग सेना के लिए स्वच्छ जल के रूप में पीने के लिए किया जाता था। दुश्मनों को झांसा देने के लिए भी इस बावड़ी का प्रयोग किया जाता था। यह बावड़ी पत्थरों एवं ईटों से चारों ओर से पक्का बनाया गया था। सुरंगें भी पक्की बनी हुई हैं। इस बावड़ी की खासियत यह है कि कितनी भी भयंकर गर्मी पड़े आज तक यह बावड़ी सूखी नही है। हर समय इस बावड़ी में पानी रहता है। इस बावड़ी की लंबाई व चौड़ाई लगभग 40-50 मीटर हैं। पुराने जमाने में इस किले में यह एक मात्र जल का स्रोत था जो प्यास बुझाने एवं अन्य तरीकों के प्रयोग में लाया जाता था। किले के पास के गांव के बच्चे अब भी इस बावड़ी में नहाने के लिए आते है।
कुछ बुजुर्ग ग्रामीणों ने बताया कि यह बावड़ी पर्दाफाश व दलदल की स्थिति बनी हुई है। हाल ही में एक बच्चा इस बावड़ी में डूब गया जिससे बड़ी मुश्किल से निकाला गया। किले के चारों कोनों पर चार कुएं बने हुए हैं, जो अब सूख चुके है। ये कुएं किले की दीवार के अंदर इस प्रकार से बने हुए है कि दुश्मनों को इनका पता न चल सके। किले की दीवार के ऊपरी हिस्से से ही सैनिक इन कुओं से पानी खींच लेते थे। वर्तमान में इस बावड़ी की देख-रेख न होने के कारण जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। पुरातत्व विभाग व अन्य संबंधित विभाग को इसकी तनिक भी चिन्ता नहीं है। जिस कारण ये ऐतिहासिक धरोहर नष्ट होने के कगार पर है। क्षेत्रीय ग्रामीण डॉ. अतुल नेगी ने इस क्षेत्र से संबंधित कई तथ्यों को अपने पास संजो कर रखा है और वे लगातार क्षेत्र के पुरातात्विक चीजों में काफी रूचि रखते हैं।
इस तरह तमाम बाते हमने आपको दिखाई जो इतिहास के अतीत को उजागर करती है और आज भी इस किले के माध्यम से सजीव वर्णन दिखाई पड़ता है l
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