आदमी पर आदमी का काबू पाने औरअपनी मर्जी से हांकने का सबसे बड़ाहथियार हमेशा से डर रहा है। लालच शायदउससे छोटा तरीकाहोगा क्योंकि वह सब परलागू नहीं हो पाता है।
चोटी काटने के शक में यूपी के आगरा मेंएकबुजुर्ग महिला मानदेवी की भीड़ ने पीटपीटकरहत्या कर दी। इससे पहले भी डायनहोने के आरोप में कई महिलाओं को भीड़ नेऐसे ही कईराज्यों में मौत के घाट उतारा है।कुछ उग्रगोरक्षक भी बहाना भले ही गाय कालेते होंलेकिन अंदर से मुस्लिम आबादीबढ़ने औरभारत के एक दिन इस्लामी राष्ट्रबनने केकाल्पनिक दुष्प्रचार और अफवाहोंसे डरकर हीकई जगह पीट पीटकर कुछमुसलमानों कोडराने के लिये ही मार चुके हैं।पहले राजस्थानके बीकानेर नोखा में लड़कीकी चोटी कटने कीख़बर आई। बाद मेंजोधपुर के पास नागौर पालीव सिरोही केगांवों से भी एक के बाद एक ऐसीख़बरेंअचानक थोक मेें आने लगीं।
जब पुलिस ने एकाएक बढ़े ऐसे मामलोंकीजांच संजीदगी से शुरू की तो पता लगाकि कईमामले झूठे हैं। एक लड़की ने अपनेबाल खुद हीकाटे और अगले दिन ब्यूटीपार्लर जाकरबॉबकट सैटिंग करा आई। एकजगह पति पत्नीके झगड़े में मियां ने खुदबीवी की चोटी गुस्सेमंे काट डाली। बाद मेंलोकलाज के डर से यहअफवाह फैला दीकि उसकी चोटी रात में सोतेसमय किसी नेकाट दी। गुजरात में भी जब इसतरह कीघटनायें बढ़ने लगीं तो पुलिस नेपीड़ितों सेसख़्ती से पूछताछ की तो अधिकतरमामलोंमें यह पब्लिसिटी स्अंट या अफवाहसाबितहुयीं। इस दौरान अंधविश्वासों काकारोबारकरने वाले ओझा भी मौका भांपकरसक्रियहो गये।
उन्होंने चोटी कटने से बचाने के नाम पर घरोंमें2100 से 5100 रू. लेकर अनर्थ टालनेवालीमूर्तियां स्थापित करनी शुरू कर दीं।इसके साथही उन्होंने अपने हलवाई भाइयोंके हितों काख़याल रखते हुए निर्मल बाबाकी तरह कृपापाने को चोटी कटने से बचानेके लिये जलेबीखीर खाने की भी सलाह देनीशुरू कर दी।अफवाहों को जब पर लगे तो वेयूपी से बिहारझारखंड होते हुए उत्तराखंडकी पहाड़ियों परजा चढ़ीं। इस दौरान समाजविज्ञानियों औरबुध्दिजीवियों ने जो सवालउठाया उसका जवाबआज तक किसी केपास नहीं है कि अमीर उच्चशिक्षित और बड़ेपदों पर बैठीं महिलाओं कीचोटी कटने कीएक भी घटना सामने क्यों नहींआई? उनकोजिन्न भूत उूपरी हवा और दिव्यशक्ति नेकैसे छोड़ दिया?
किसी भी पॉश कॉलोनी ऑफिसरकॉलोनीसैनिक कॉलोनी पुलिस कॉलोनीऔर फिल्मसिटी यानी वीवीआईपी क्षेत्र मेंरहने वालीमहिला की चोटी न कटने काआखि़र राज़ क्याहै? गांवों और कस्बों में भीकेवल उन हीमहिलाओं की चोटी कटी जोगरीब या लोवरमीडियम क्लास लेडीज़ खुलेमें या असुरक्षितघरों में रहती हैं। इसकामतलब साफ है कि यहकिसी इंसान की हीशरारत है। आपको यादहोगा कि 21 सितंबर1995 को इसी तरह कीअफवाहों और लोगोंके अवचेतन में पहले सेमौजूद अंधविश्वासके कारण ही देशभर में गणेशजी की मूर्तियोंको दूध पिलाया गया था।
इसके बाद मुुंहनोचवा और मंकीमैन भीसालभरसे अधिक समय तक कमज़ोरआत्मविश्वासवालों को जगह जगह लगातारडराते रहे औरफिर एक दिन बिना पुलिस केएनकाउंटर यापकड़े ही तड़ीपार हो गये।आपने शायद इसबात पर गौर नहीं कियाहोगा कि जब येअफवाहें जोरशोर से फैलतीहैं तो सरकारें या तोअपनी किसी नाकामी सेलोगों का ध्यान हटानेको इस दौरान राहतकी सांस लेती हैं। या फिरकोई ऐसा बड़ाजनविरोधी फैसला अंजाम देदेती हैं।जिसको अफवाहें न फैलने पर शायदभारीविरोध का सामना करना पड़ता। यहमहज़संयोग होता है या फिर सोची समझीचाल? आपअगर विचार करें तो आपकोअंधविश्वास विरोधीअभियान चलाने वालेनरेेंद्र डाभोलकर की हत्याभी इसी जं़जीरकी एक कड़ी नज़र आयेगी।
इसके साथ ही रचनात्क और वैज्ञानिक सोचकोबढ़ावा देेने वाले गोविंद पांसारे और एमएमकालबुर्गी की जान लेना भी उसी डर काएकहिस्सा रहा है। जिसका कारोबार समाजके उसधर्मभीरू और बुज़दिल नादाननागरिक कोखौफज़दा करने में ये लोगदीवार बनने लगेथे।
0मस्लहत आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम,
तू नहीं समझेगा सियासत तू अभी नादानहै।
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