Thursday, 7 April 2016

4 लाइनें

[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: तआल्लुक़
तआल्लुक़ तोड़ता हूँ तो मुकम्मल तोड़ देता हूँ ,
जिसे मैं छोड़ देता हूँ मुकम्मल छोड़ देता हूँ।
मुहब्बत हो कि नफ़रत हो भरा रहता हूँ शिद्दत से ,
जिधर से आये ये दरया उधर ही मोड़ देता हूँ।।
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: बेटा
मेरी आँखों का तारा ही मुझे आँखें दिखाता है ,
जिसे हर एक ख़ुशी दे दी वो हर ग़म से मिलाता है।
मैं कुछ कहूँ कैसे कहूँ किस से माँ हूँ ,
सिखाया बोलना जिसको वो चुप रहना सिखाता है।।
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: चुभने वाली बात
नदी जब किनारा तोड़ देती है,
राह में चट्टान तक तोड़ देती है।
बात छोटी सी अगर चुभ जाय दिल में,
ज़िन्दगी के रासतों को भी मोड़ देती है।
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: ग़ैर
कोई थकान थी नहीं जब तक सफ़र में था,
मन्ज़िल जो मिल गयी तो बदन टूटने लगा।
जब तक मैं ग़ैर था वो मनाता रहा मुझे,
मैं उसका हो गया तो वो ही रुठने लगा।
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: बहरे
वो बहरे है मगर उनको सुनाना भी ज़रूरी है,
हमें हक़ चाहिए अपना जताना भी ज़रूरी है।
किताब ए ज़िन्दगी ने पाठ ये हमको पढ़ाया है,
बनाने के लिये खुद को मिटाना भी ज़रूरी है।
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: परेशानी
ये लगता है सदा हमको परेशानी में रहना है,
जहां पर सांप रहते हैं उसी पानी में रहना है।
वो खंजर हो किसी रहज़न का या रहबर का चाकू हो,
हमें तो क़ातिलों की निगहबानी में रहना है।
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: सेहत
दोनों ही पक्ष आये हैं तैयारियों के साथ,
हम गर्दनों के साथ हैं वो आरियों के साथ।
सेहत हमारी ठीक रहे भी तो किस तरह,
आते हैं अब हकीम ही बीमारियों के साथ।।
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: खादी
काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में ,
पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में।
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: किरदार
चाँद ज़ेरे क़दम सूरज खिलौना हो गया,
हां मगर इस दौर में किरदार बौना हो गया।
ढो रहा है आदमी कन्धे पे खुद अपनी सलीब,
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा जब बोझ ढोना हो गया।।
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: कमाई
वह जिसके हाथ में छाले पैरों में बिवाई है,
उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है।
इधर एक दिन की आमदनी का औसत चवन्नी का,
उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है।
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: मसअला...
अपने हर लफ़्ज़ का खुद आइना हो जाऊंगा
उसको छोटा कहके मैं कैसे बड़ा हो जाऊंगा
तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा भी नहीं
मैं गिरा तो मसअला बनकर खड़ा हो जाऊंगा।
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: बेवफ़ा....
मुझको चलने दो अकेला है अभी मेरा सफ़र
रास्ता रोका गया तो क़ाफ़ला हो जाऊंगा
सारी दुनिया की नज़र में है मेरी एहदे वफ़ा
एक तेरे कहने से क्या मैं बेवफ़ा हो जाऊँगा।
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: फ़क़ीरी...
जो चाहो फ़क़ीरी में इज़्ज़त से रहना
न रक्खो अमीरों से मिल्लत ज़्यादा
फ़रिश्ते से बेहतर है इंसान बनना
मगर इसमें पड़ती है मेहनत ज़्यादा।।
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: Chehra
Apne chehre se jo zahir he chhupaayen kaise,
teri marzi ke mutaabiq nazar aayen kaise.
Koi apni hee nazar se to hamen dekhega,
ek qatre ko samandar nazar aay kaise.
-VASEEM BLY
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: औरत
इस सलीके से निभाई मैंने ज़िम्मेदारियाँ
फूल को खुशबू तो शाख़ों को समर मैंने किया

ये मेरे अन्दर की औरत तो घरेलू ही रही
ये तेरे दीवारों दर थे इनको घर मैंने किया
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: घर
दिन ख़्वाबों को पलकों पे सजाने में गुज़र जाय
रात आये तो नींदों को मनाने में गुज़र जाय
जिस घर में मेरे नाम की तख्ती भी नहीं है
एक उम्र उसी घर को सजाने में गुज़र जाय
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: Iftyaar
Faayda itna to dete hain siyasi iftyar
Hindu va Muslim  vha ek saath nazar ate hain,
Poochhta kash musalmano se koi leader
ki mohtaj iftyaar me kya khate hain.
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: परिंदे
हजारों सरहदों की बेडिया लिपटी है पैरों में
खुदा पैरों को पर बना देता तो अच्छा था!
परिन्दों ने कभी रोका नहीं रस्ता परिन्दों का
खुदा दुनियां को चिडिया घर बना देता तो अच्छा था।।
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: गाँव/शहर
सज़ा कितनी बड़ी है गाँव से बाहर निकलने की
मैं मिट्टी गूँथता था अब डबलरोटी बनाता हूँ
मैं अपने गाँव का मुखिया भी हूँ बच्चों का क़ातिल भी
जला कर दूध कुछ लोगों की ख़ातिर घी बनाता हूँ...मुनव्वर राना
[12:39PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: Masnad
Jab ahle safa mardood e haram, masnad pe bithaay jayenge.
Sab taj uchhale jayenge, sab takht giraay jayenge.
-FAIZ
[12:50PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: ज़िन्दगी
0 यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें,
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो।
किसी के वास्ते राहें कहां बदलती हैं,
तुम अपने आपको बदल सको तो चलो।।
                    -निदा फ़ाज़ली
[12:52PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: चाँद
0 चांद से फूल से या मेरी जुबां से सुनिये,
हर तरफ आपका किस्सा है जहां से सुनिये।
सबको आता नहीं दुनिया को सताकर जीना,
ज़िंदगी क्या है मुहब्बत की जुबां से सुनिये।
                 - निदा फ़ाज़ली
[12:56PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: वफ़ा
इस अहद के इन्साँ में वफ़ा ढूँढ रहे हैं
हम ज़हर की शीशी में दवा ढूँढ रहे हैं
पूजा में, नमाज़ों में ,अजानों में, भजन में
ये लोग कहाँ अपना ख़ुदा ढूँढ रहे हैं
राजेश रेड्डी
[12:58PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: मरासिम
सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते।
वरना इतने तो मरासिम थे की आते जाते।
उसकी वो जाने कि उसे पासे वफ़ा था या न था
मगर ए दोस्त तुम तो अपनी तरफ से निभाते जाते।
[1:00PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: हिना
फूल को रंग ए हिना जख्म को गुलज़ार कहा।
दिल से बेबस थे तो कातिल को भी दिलदार कहा।
साफदिल आप हैं यह जमाना तो नहीं
सबसे हंसकर न मिला कीजिये सौ बार कहा।
[1:02PM, 7/23/2015] iqbalhindustani: दरिया
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा!
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जायेगा !!
हम भी दरिया हैं अपना हुनर मालूम है !
जिस तरफ भी चले जायेंगे रास्ता हो जायेगा !!
बशीर बद्र
[10:27AM, 7/24/2015] iqbalhindustani: दोस्ती/मुहब्बत
रुक रुक के उनके साथ हमें एक चाहत सी हो गयी,
बात करते करते हमें उनकी आदत सी हो गयी,
उनसे मिल ने के लिए एक बैचनी सी रहती हे,
न जाने दोस्ती निभाते निभाते हमें मोहब्बत सी
हो गयी.
[12:45PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: दोस्ती
मेरे मोहसिन हो तो मुझको यह सजा मत देना।
आज के दौर में जीने की दुआ मत देना।
अब वो पाकीजा ख्यालात नहीं लोगो में
दोस्ती करना मगर घर का पता मत देना।
[12:46PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: फ़ासला
बुरा बनाये रखो या भला बनाये रखो।
हमारे साथ कोई सिलसिला बनाये रखो।
करीब रहने से बढ़ती हैं दूरियां अक्सर
रहो करीब मगर फासला बनाये रखो।
[12:50PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: सलीक़ा
तुमसे वफ़ा करेगी तुम्हारी ये जिंदगी।
मगर इसको जीने का तरीका भी चाहिए।
कश्ती का जिम्मेदार फकत नाखुदा नहीं।
कश्ती में बैठने का सलीका भी चाहिए।
[12:51PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: घर
दिन की रोशनी ख्वाबों को बनाने मे गुजर गई,
रात की नींद बच्चे को सुलाने मे गुजर गई।
जिस घर मे मेरे नाम की तखती भी नहीं,
सारी उमर उस घर को सजाने मे गुजर गई।
[12:54PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: क़लम/ज़ंजीर
ना कोई खाब हमारे हैं ना ताबीरे हैं
हम तो पानी पे बनाई हुई तसवीरें हैं
हो ना हो ये कोई सच बोलने वाला है क़तील
जिसके हाथों में कलम पावों में जंजीरे हैं
[12:55PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: बन्दगी
किस से सीखू मैं खुदा की बंदगी,
सब लोग खुदा के बँटवारे किए बैठे है,
जो लोग कहते है खुदा कण कण में है,
वही मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे लिए बैठे हैं !
[1:42PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: झूठ
तुम्हारा झूट फैलाना  सहाफत उसको कहते हैं
हमारा होंट सी लेना शिकायत इसको कहते हैं
तुम्हारा साजिशें रचना, रवायत उसको कहते हैं
हमारा घुट के मर जाना  मलामत इसको कहते हैं
[1:44PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: दोस्त
दौर-ए-गर्दिश में भी,
जीने का मज़ा देते है
चंद दोस्त हैं जो वीरानों में भी,
महफ़िल सजा देते है...
सुनाई देती है अपनी हंसी,
उनकी बातों में...
दोस्त भी अक्सर,
जीने की वजह देते हैं।
[1:45PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: ऐतबार
पुराने लोगों के दिल भी हैं खुशबुओं की तरह
ज़रा किसी से मिले एतबार करने लगे
नये ज़माने से ऑंखें नहीं मिला पाये
तो लोग गुज़रे ज़माने से प्यार करने लगे
[1:46PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: ईमान
ज़मीन जल चुकी है आसमान बाकी है
दरख्तों तुम्हारा इम्तहान बाकी है
वो जो खेतों की मेढ़ों पर उदास बैठे हैं
उन्ही की आखों में अब तक ईमान बाकी है।।
[1:47PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: हिजरत
ये सच्ची बात कहने की जसारत कौन करता है
सियासत करने वालों से मुहब्बत कौन करता है
मुहब्बत बाल बच्चों और वतन की रोकती तो है
ज़रुरत घर में पूरी हो तो हिजरत कौन करता है।
-आदिल रशीद
[1:49PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: क़ायदा
ना हजूम है तो क्या कुछ कायदे तो हैं
झंडा भले है हाथ में सरदार मैं नहीं
हूँ आज भी टिका हुआ सच के ही जोर पर
ख़बरें परोसता हुआ अखबार मैं नहीं।
[1:53PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: लिबास
बस्ती का पता मुझे अब जंगल बताएगा
दानिश्वरों को रास्ता पागल बतायेगा
मैला लिबास देखकर ये फैसला न कर
मैं कौन सा दरख्त हूँ ये फल बतायेगा।।
[1:55PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: रिश्ता
अगर अपना समझते हो कोई परदा नही रखना
मिटा देना खुदी को लब पे तुम शिकवा नही रखना
बचा लेते है तिनके जिन्दगी को डूब जाने से
बडे होना बडो जैसा मगर रिश्ता नही रखना।
[1:56PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: पेड़
धूप से मिल गए हैं पेड़ हमारे घर के
हम समझते थे की काम आएगा बेटा अपना
सच बता दूँ तो ये बाज़ार-ए-मुहब्बत गिर जाए
मैंने जिस दाम में बेचा है ये मलबा अपना।
-मुनव्वर  राणा
[1:58PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: वफ़ा
जिसे दुश्मन समझता हूँ वही अपना निकलता है
हर एक पत्थर से मेरे सर का कुछ रिश्ता निकलता है
डरा -धमका के तुम हमसे वफ़ा करने को कहते हो
कहीं तलवार से भी पाँव का काँटा निकलता है?
-मुनव्वर राणा
[1:59PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: इंतज़ार
कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा
तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखा
ये सोच कर कि तेरा इंतज़ार लाज़िम है
तमाम उम्र घड़ी की तरफ़ नहीं देखा।
[3:42PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: ख़ता/वफ़ा
बरसों से इस मकान में रहते हैं चंद लोग
इक दूसरे के साथ वफ़ा के बग़ैर भी
हम बेकुसूर लोग भी दिलचस्प लोग हैं
शर्मिन्दा हो रहे हैं ख़ता के बग़ैर भी।
[3:47PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: बेज़ारी
लबों पर मुस्कराहट दिल में बेज़ारी निकलती है
बडे लोगों में ही अक्सर ये बीमारी निकलती है
मोहब्बत को ज़बर्दस्ती तो लादा जा नहीं सकता
कहीं खिड़की से मेरी जान अलमारी निकलती है।
[3:49PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: हस्ती/रुतबा
कभी इनका हुआ हूँ मैं, कभी उनका हुआ हूँ मैं ।।
खुद के लिए कोशिश नहीं की , मगर सबका हुआ हूँ मैं ।।
मेरी हस्ती बहुत छोटी, मेरा रुतबा नहीं कुछ भी ,
लेकिन डूबते के लिए, सदा तिनका हुआ हूँ मैं ।।
[3:51PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: किरदार
ख़ुद को इतना जो हवादार समझ रखा है
क्या हमे रेत की दीवार समझ रखा है
हमने किरदार को कपड़ों की तरह पहना है
तुमने कपड़ों ही को किरदार समझ रखा है
[3:57PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: रूह
अब अपनी रूह के छालो का कुछ हिसाब करू
मैं चाहता था चिरागों को आफ़ताब करूं
बुतों से मुझको इज़ाज़त अगर कभी मिल जाए
तो शहर भर के खुदाओ को बेनकाब करूं।
-राहत इंदौरी
[3:58PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: तबस्सुम
इतना सच बोल कि होठो का तबस्सुम न बुझे
रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा
एक महफ़िल में कई महफिले होती है शरीक
जिसको भी पास से देखोगे अकेला होगा।
-निदा फाजली
[4:00PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: पत्थर/शीशे
सच बोलने के तौर तरीक़े नहीं रहे/
पत्थर बहुत हैं शहर में शीशे नहीं रहे।
वैसे तो हम वही हैं जो पहले थे दोस्तो/ हालांकि जैसे पहले थे वैसे नहीं रहे।
[4:02PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: ग़रीबी/अमीरी
ग़रीबी में तो दो दिन भी बड़ी मुश्किल से कटते हैं
अमीरी चाहती है उम्र दो सौ साल हो जाए
ज़रूरत दिन निकलते ही निकल पड़ती है डयूटी पर
बदन हर शाम ये कहता है अब हड़ताल हो जाए।
[4:04PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: रिश्ता
कितना दुशवार है दुनियाँ में ये हुनर आना भी
तुझी से फासला रखना तुझे अपनाना भी
ऐसे रिश्तो का भरम रखना बहुत मुश्किल है
तेरा होना भी नहीं  और तेरा कहलाना भी।
[4:09PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: रहनुमा
आदमी दुनिया में अच्छा या बुरा कोई नहीं
सबकी अपनी मसलहत है बेवफा कोई नहीं
हर तरफ ना अहल लोगों की सजी है अंजुमन
काफिलों की भीड़ है और रहनुमा कोई नहीं
[4:11PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: सच
छुपाए से कहीं छुपते हैं दाग़ चेहरे के,
नज़र है आईना-बरदार आओ सच बोलें
खुला है झूट का बाज़ार आओ सच बोलें
न हो बला से ख़रीदार आओ सच बोलें।
[4:12PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: सफ़र
सफर में मुश्किलें आऐ, तो हिम्मत और बढ़ती है,
कोई अगर रास्ता रोके, तो जुर्रत और बढ़ती है,
अगर बिकने पे आ जाओ, तो घट जाते है दाम अक्सर
ना बिकने का इरादा हो तो, कीमत और बढ़ती है।
[4:14PM, 7/24/2015] iqbalhindustani: अना
अना की मोहनी सूरत बिगाड़ देती है
बड़े-बड़ों को ज़रूरत बिगाड़ देती है
किसी भी शहर के क़ातिल बुरे नहीं होते
दुलार कर के हुक़ूमत बिगाड़ देती है।
-मुनव्वर राना
[10:22AM, 7/25/2015] iqbalhindustani: तलवार
मैदां की हार-जीत तो किस्मत की बात है
टूटी है किसके हाथ में तलवार देखना.
हरेक आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी
जिसको भी देखना, कई बार देखना.
निदा फ़ाज़ली
[1:26PM, 7/25/2015] iqbalhindustani: Vasta/rabta
Aashna rehty hain sab par aashna koi nahi .
Janty hain sab mujhe pehchanta koi nahi .
Mukhtasar lafzo me ab hy ye mijaaz e zindagi .
Rabeta beshaq hy sabse wasta koi nahi .
[1:28PM, 7/25/2015] iqbalhindustani: Mazhab
Teer se aage badhain talvar se aage badhain, jang khaye har kisi hathyar se aage badhain.
Samne mazhab unhone kar diya lakar khada,
keh rahe hain aur is deevar se aage badhen.
-MADHUVESH
[1:29PM, 7/25/2015] iqbalhindustani: Chot
Choton par chot dete hi jane ka shukriya,
patthar ko but ki shakl me lane ka shukriya.
Tum hi na ati to main kyon banata seedhiyan,
deevaron meri rah me ane ka shukriya.
-k.BECHAIN
[4:38PM, 7/27/2015] iqbalhindustani: Zavaal
Jaha sawal k badle sawal hota h
Wahi mohabbato ka zawal hota h
Kisi ko apna bnana behunar hi sahi
kisi ka bn k rehna kamaal hota h.
[4:39PM, 7/27/2015] iqbalhindustani: Insaaniyat
Zindadilee ke saath jiya jaana chahiye, yeh zehar hanste hanste piya jaana chahiye.
Insaaniyat se pyar jurm he agar, yeh jurm baar baar kiya jaana chahiye.
[4:41PM, 7/27/2015] iqbalhindustani: Daulat
Ye daulat aadmi ki muflisi ko door karti hai,
magar kamzarf insanon ko maghroor karti hai. Sabhi khush hain main pardesh jaakar laaoonga daulat,
magar ek maa hai jo shart namanzoor karti hai.
[4:42PM, 7/27/2015] iqbalhindustani: Siyasat
Hamara hadsa ye hai ke har daure hakoomat me,
shikari ke liye jangal me ham hanka lagate hain.
Shayar hon alim hon ya lutere hi kyo na hon,
siyasat vo jua hai jisme sab paisa lagate hain.
[4:43PM, 7/27/2015] iqbalhindustani: Diye
Khuli chhaton ke diye kab ke bujh gaye hote,
koi to hai jo havaon ke par katarta hai.
Zameen ki kaisi vakalat ho phir nahi chalti,
jab aasman se koi faisla utarta hai.
-vaseem bly
[4:45PM, 7/27/2015] iqbalhindustani: Sadaqat
Ham le chuke hain rahe sadaaqat ka faisla,
tum sochte raho ke kidhar janaa chahiye.
Qadmon ko rok rahi hain meri zarooraten,
shaam keh rahi hai ke ghar janaa chahiye.
[11:14AM, 7/28/2015] iqbalhindustani: मुलाक़ात
चरागों को आँखों में महफूज रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी
मुसाफिर है हम भी मुसाफिर हो तुम भी
किसी मोड़ पे फिर मुलाकात होगी
- बशीर बद्र
[11:15AM, 7/28/2015] iqbalhindustani: आंसू
कहा आंसुओ की यह सौगात होगी
नए लोग होंगे नई बात होगी
मै हर हाल में मुस्कुराता रहूँगा
तुम्हारी मोहब्बत अगर साथ होगी।
- बशीर बद्र
[11:03AM, 7/30/2015] iqbalhindustani: Lehja
Zara sa qatra bhi kahin aaj gar ubharta hai,
samandaron ke hi lehje me baat karta hai.
Sharafaton ki yahan koi ahmiyat hi nahi,
kisi ka kuchh na bigado to kaun darta hai.
-VASEEM
[11:05AM, 7/30/2015] iqbalhindustani: Vardiya'n
Kursiyan bhi shamil theen khadiyan bhi shamil theen,
pagdiyan bhi shamil theen dhotiyan bhi shamil theen.
Isliye na ho paee qatilon ki tasdeeqen qatl karne valon men vardiyan bhi shamil theen.
[11:18AM, 7/30/2015] iqbalhindustani: Qaatil
Aisa lagta hai  ki ye daur-e-tabahi hai,
Sheeshe ki adaalat hai patthar ki gavaahi hai,
Duniya me kahi aisi tamseel nahi milti,
Qaatil hi muhafiz hai qatil hi sipahi hai.
[12:34PM, 7/31/2015] iqbalhindustani: ईमान
जिन्दगी का जब उन्वान बदल जाता है,
किसी मंजिल पै हो इन्सान बदल जाता है।
तंगदस्ती भी बुरी माल की कसरत भी बुरी,
इन्हीं दो चीजों से ईमान बदल जाता है।
[9:52AM, 8/5/2015] iqbalhindustani: साहिल
इस राज को क्या जानें साहिल के तमाशाई
हम डूब के समझे हैं दरिया तेरी गहराई
ये जब्र भी देखा है तारीख की नज़रों ने
लम्हों ने खता के थी सदियों ने सज़ा पाई।
[9:54AM, 8/5/2015] iqbalhindustani: सरफ़रोशी
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है
खींच कर लायी है सब को क़त्ल होने की उम्मीद
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-कातिल में है।
[9:57AM, 8/5/2015] iqbalhindustani: मुलाक़ात
देवता है कोई हम में
न फरिश्ता कोई
छू के मत देखना
हर रंग उतर जाता है
मिलने-जुलने का सलीक़ा है ज़रूरी वर्ना
आदमी चन्द मुलाक़ातों में मर जाता है
~ निदा फाज़ली
[10:00AM, 8/5/2015] iqbalhindustani: सरकार/तलवार
भाईचारे का सबक लिखा था दीवारों पर
फिर भी लोगों ने भरोसा किया तलवारों पर
झूठे वादों की तरह झूठ है ख़ुशहाली भी
फिर यकीं कौन करे दोग़ली सरकारों पर।
[10:03AM, 8/5/2015] iqbalhindustani: हक़ीक़त
हक़ीक़त को हक़ीक़त मान लेना ख़ुदको पाना है
फ़साने के सहारे ज़िंदा रहना ख़ुद को छलना है
ज़माना आईना है इसमें ख़ुद को देखते रहना
बदलते वक़्त के हमराह अपने को बदलना है।
[10:12AM, 8/5/2015] iqbalhindustani: तक़रीर
झूठ सच्चाई का हिस्सा हो गया
इक तरह से ये भी अच्छा हो गया
उस ने इक जादू भरी तक़रीर की
क़ौम का नुक़सान पूरा हो गया।
[10:14AM, 8/5/2015] iqbalhindustani: शोहरत
न हो शोहरत तो गुमनामी का भी खतरा नहीं होता
बहुत मशहूर होना भी बहोत अच्छा नहीं होता,
फसादों,हादसों,जंगो में ही हम एक होते है
कोई आफत ना आये तो, कोई अपना नहीं होता।
[10:20AM, 8/5/2015] iqbalhindustani: तिजारत
ज़बान दे के पलटना उन्हें मुबारक हो
मैं ख़ुश हूँ, मुझसे तिज़ारत नहीं हुआ करती
मैं कैसे झूठ को सच और सच को झूठ कहूँ
कि एक दिन में ये आदत नहीं हुआ करती।
[10:23AM, 8/5/2015] iqbalhindustani: ख़ार
मुफ़लिस हुए तो यार भी अब यार हो गए।
दामन में जितने फूल थे सब खार हो गए।
अरे अब क्या गिराएगी ये दुनिया हमें निगाह से
इतने हुए ज़लील की खुद्दार हो गए।
[9:06AM, 8/13/2015] iqbalhindustani: दोस्ती
सब ने मिलाये हाथ यहा तीरगी के साथ!
कितना बडा मजाक हुवा रोशनी के साथ!
शर्ते लगायी जाती नही दोस्ती के साथ !
कीजिये मुझे कबूल मेरी हर कमी के साथ!
[9:43AM, 8/13/2015] iqbalhindustani: ऐब
कतरा के न चलिए कभी पथरीली डगर से
आसान सी राहों में खज़ाने नहीं आते
मैं इसलिए हर शख्स की नज़रों में बुरा हूँ
बस मुझको मेरे ऐब छुपाने नहीं आते ।
[9:45AM, 8/13/2015] iqbalhindustani: ऐतबार
कोई इशारा, दिलासा न कोई वादा मगर
जब आई शाम तेरा इंतज़ार करने लगे
हमारी सादामिजाज़ी की दाद दे कि तुझे
बगैर परखे तेरा एतबार करने लगे.
[9:47AM, 8/13/2015] iqbalhindustani: मज़हब
धर्म,मज़हब का अँधेरा खा गया हर इल्म को
इस सदी की रोशनी में जादू-टोने बिक गये
दोस्तों धनवान के तो झूठ भी अनमोल थे
मुफ़लिसों के सच यहाँ पर औने-पौने बिक गये
[9:51AM, 8/13/2015] iqbalhindustani: फ़र्ज़
दोस्ती अपनी जगह और दुश्मनी अपनी जगह
फ़र्ज़ के अंजाम देने की ख़ुशी अपनी जगह.
पत्थरों के देस में शीशे का है अपना वक़ार
देवता अपनी जगह और आदमी अपनी जगह.
[9:54AM, 8/13/2015] iqbalhindustani: तक़रार
सौदा हमारा कभी बाज़ार तक नहीं पहुँचा
इश्क था जो कभी इज़हार तक नहीं पहुँचा
गहराई दोस्ती में मैं नापता भी तो कैसे
रिश्ता हमारा कभी तकरार तक नहीं पहुँचा।
[9:58AM, 8/13/2015] iqbalhindustani: हम
मैं और तुम को हम कर लें
आ कुछ झगड़े कम कर लें
न ही बड़ा मैं, न ही छोटा तू
चल,दोनों पलड़े सम कर लें।
[10:53AM, 8/19/2015] iqbalhindustani: जुदा
जुदा रहें तो जुदाई में आह आह करें
मिलें कमबख्त तो ज़हर उगलने लगे
बड़ी अजीब सुलगती लकड़ियाँ हैं सब
अलग रहें तो धुआं दें मिलें तो जलने लगें।।
[9:46AM, 8/20/2015] iqbalhindustani: Aansu
Tumhari rah me mitti ke ghar nahi aate .isi liye to tumhe hum nazar nahi aate .
Jinhe Saleeqa hai tahzeeb-e-gam samajhne ka .Unhee ke rone me aansu nazar nahi aate.
Waseem bareilvi.
[4:53PM, 8/24/2015] iqbalhindustani: Pasheman tha gavaahi deke main to, wo qatil ho k sharminda nahi tha.
Pyadon ne hee dee qurbaaniaan sab, shaheedon me koi raaja nahi tha.
[4:53PM, 8/24/2015] iqbalhindustani: Thokar
Vo tahlte vaqt jis din thokre kha jayega,
Dekhna us roz usko daudna aa jayega.
Too sharafat ki himayat kar magar ye janle, kal shareefon k muhalle se nikala jayega.
[4:53PM, 8/24/2015] iqbalhindustani: Munsafi
Ajeeb log hain kya khoob munsafi ki hai,
hamare qatl ko kehte hain khudkashi ki hai.
Isi lahoo me tumhara safeena doobega,
ye qatleaam nahi tumne khudkashi ki hai.
-HAFEEZ MERATHI
[10:32PM, 8/30/2015] iqbalhindustani: Aare
Vo jo aa jate the ankho me sitare lekr,
jane kis desh gye khuab hmare lekr.
Chhaon me baithne vale hi sbse pehle,
ped girta hai to aa jate hai aare lekr.-A.FRAZ
[10:33PM, 8/30/2015] iqbalhindustani: Baat
Muddto bad chla unpe hmara jadu,
muddto bad hme baat bnani aee.
Muddto bad pshema hua drya hmse,
muddto bad hme pyas chhipani aee.
[10:33PM, 8/30/2015] iqbalhindustani: Usool
Too do qadam bhi mere sath chal nahi sakta ,
Agar tu mere usooloN main dhal nahi sakta,
Mere usool mujeh zindagi se pyare hain,
Mai tere waste inko badal nahi sakta.
NADEEM SHAD
[10:33PM, 8/30/2015] iqbalhindustani: Zulm
Ho lakh zulm magar baddua nahi dainge,
zameen maa hai zameeN ko dagha nahi denge,
rivaytoN ki safe todkar badho warna,
jo tumse aage hain wo rasta nahi denge.
Rahat indori
[10:34PM, 8/30/2015] iqbalhindustani: Khuddaari
Ghalat bato ko khamoshi se sunna hami bhr dena,
bahut hai fayde isme mgr achha nhi lgta.
Mujhe to dushmn se bhi khuddari ki ummeed rhti hai,
kisi ka bhi ho qadmo me sr achha nhi lagta.
[10:36PM, 8/30/2015] iqbalhindustani: Vikaas
Jo bj rhe aap in galo se poochhiye,
is desh ka vikas dlalo se poochhiye.
Siyasat ki gnga aaj maili ho gyi kaise,
ye bat safedposh gnde nalo se poochhiye.
[9:41AM, 9/14/2015] iqbalhindustani: Khaamosh
Vo bahut cheekha to uski tajposhi ho gyi,
ab ye halt h k vo hr bat pr khamosh he.
Apne apne faisle hain apni apni uljhne,
main idhr khaamosh hoon to vo udhr khamosh hai.
[9:41AM, 9/14/2015] iqbalhindustani: Shajar
Ye sr buland hote hi shane s kt gya,
main muhtrm hua to zmane se kt gya.
Is ped se kisi ko shikayt na thi mgr,
y ped sirf beech m ane se kt gya.
-m.rana
[9:41AM, 9/14/2015] iqbalhindustani: Safar
Sfr m mushkile aayen to jurrt aur bdhti hai.
Koi jb rasta roke to himmat aur bdhti hai.
zrurt pe azeezo ki agr kuchh kaam a jao,
rqm bhi doob jati hai adavt aur bdhti hai.
-Navazdevbandi
[9:41AM, 9/14/2015] iqbalhindustani: Tanz
Meri kamzoriyo pr jb koi tnz krta hai,
vo dushman kyo n ho usse muhbbt aur badhti hai.
Agr bikne pe a jaao to ght jate hain daam aksr,
na bikne ka irada ho to qeemt aur bdhti h.
-Navaaz
[3:42PM, 9/16/2015] iqbalhindustani: Hmsfr
Msala kuchh bhi nhi h mgr mera hmsfr,
usko aur bhi dushvar bna deta h.
Ek ek eet girata hu m din m mgr,
rat ko vo nai divar bna deta h.
-NAVAZ
[3:42PM, 9/16/2015] iqbalhindustani: Zameer
Zarurate meri ghairt p tnz krti h, mere zmir tujhe mar du k mr jau.
Khuda kre mere kirdar ko nzr n lge, kisi sza s nhi m khta s dr jau.
-A.SAHIL
[3:42PM, 9/16/2015] iqbalhindustani: Bulndi
Zra si thes ki dehsht s hi jo mr jau,
m vo chirag nhi jo hva se dr jau.
Mere azeez jha mujh s mil nhi skte, m kyo n aisi bulndi s utr jau.
-A.SAHIL
[10:03AM, 9/17/2015] iqbalhindustani: Bulndi
Bulndi der tk kis shakhs k hisse m rehti h,
bahut unchi imarat hr ghdi khtre m rehti h.
Amiri reshm o kmkhuab m nangi nzr aee,
gribi shan s ik tat k prde m rehti h.
-m.rana
[11:34AM, 10/3/2015] iqbalhindustani: Zakhm
Hare karta hoon apne zakhm khud apne hi naakhoon se.
Phir unse parda dari ke liye chadar banata hoon,
Na jaane kab na jane kis taraf se bhagna thahre.
Mai apne ghar ki har deewar me ek dar banata hoon.
[11:10AM, 10/9/2015] iqbalhindustani: आसानी/दुश्वारी
हमारी मुफ़लिसी पर तंज़ करते हो थे मत भूलो
ख़ज़ानों की उठाकर फेंक दी है चाबियां हमने
ये दुनिया है यहां आसानियां यूं ही नहीं मिलती
बहुत दुश्वारियों से पाई हैं आसानियां हमने
[10:35AM, 12/2/2015] iqbalhindustani: अच्छा/बुरा
एक हम हैं कि ग़ैरों को भी कह देते हैं अपना
एक वो हैं कि अपनों को भी अपना नहीं कहते
माना कि मियां हम तो बुरों से भी बुरे हैं
कुछ लोग तो अच्छों को भी अच्छा नहीं कहते।
-नवाज़ देवबन्दी
[1:22PM, 12/26/2015] iqbalhindustani: ऊँचाई
रोज़ बढती जा रही इन खाइयों का क्या करें
भीड़ में उगती हुई तन्हाइयों का क्या करें
हुक्मरानी हर तरफ़ बौनों की ,उनका ही हुजूम
हम ये अपने क़द की इन ऊँचाइयों का क्या करें
[3:21PM, 12/26/2015] iqbalhindustani: सज़ा
नई हवाओं की सोहबत बिगाड़ देती है .!
कबूतरों को खुली छत बिगाड़ देती है.!
जो जुर्म करते हैं इतने बुरे नही होते
सज़ा ना देकर अदालत बिगाड़ देती है .!
राहत इन्दोरी
[3:27PM, 12/26/2015] iqbalhindustani: बदनज़र
सर बलंदी पे तो मग़रूर थे हम भी लेकिन
चढ़ते सूरज पे ज़वाल आया तो दिल काँप गया
बदनज़र उठने ही वाली थी किसी की जानिब
अपने बेटी का ख़याल आया तो दिल काँप गया।
- नवाज देवबंदी
[3:38PM, 12/26/2015] iqbalhindustani: ग़ैर/रक़ीब
तू इस क़दर मुझे अपने क़रीब लगता है
तुझे अलग से जो सोचू अजीब लगता है
हदूद-ए-जात से बाहर निकल के देख ज़रा
ना कोई गैर, ना कोई रक़ीब लगता है
-जां निसार अखतर
[3:41PM, 12/26/2015] iqbalhindustani: क़लन्दर
सो जाते हैं फुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर् कभी नींद की गोली नहीं खाते
दावत तो बड़ी चीज़ है हम जैसे क़लंदर
हर एक के पैसों की दवा भी नहीं खाते।
- मुनव्वर राना
[3:46PM, 12/26/2015] iqbalhindustani: भूख
आप ज़रदार सही साहिब-ए-किरदार सही।
पेट की आग नक़ाबों को हटा देती है।।
भूख दौलत की हो शौहरत की या अय्यारी की।
हद से बढ़ती है तो नज़रों से गिरा देती है।।
[4:06PM, 12/26/2015] iqbalhindustani: क़तरा
मैं एक क़तरा हूँ मेरा अलग वजूद तो है
हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में है
मैं जिसके हाथ में इक फूल देके आया था
उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है
-कृष्ण बिहारी 'नूर'
[12:15PM, 1/6/2016] iqbalhindustani: रोटी
हजारों खुशबुएं दुनिया में हैं, पर उससे कमतर हैं,
किसी भूखे को जो सिकती हुई रोटी से आती है
ये माना आदमी में फूल जैसे रंग हैं लेकिन,
'कुँअर' तहज़ीब की खुशबू मुहब्बत ही से आती है
-कुँअर बेचैन
[2:28PM, 1/8/2016] iqbalhindustani: सच
अँधेरे को उजाले का सुबह को रात का डर है,
जिन्होंने मूंद ली आखें उन्हें किस बात का डर है ?
बहुत सच बोलता है ये इसे जल्दी ज़हर दे दो,
सियासत को ज़माने में फ़क़त सुकरात का डर है।
[10:42AM, 1/22/2016] iqbalhindustani: दौलत
दवा का काम किया एक ज़रा सी दौलत ने
जो लोग उठ नहीं सकते थे सर उठाने लगे
तूं इस फ़क़ीर को इतना नवाज़ दे मौला
के मेरा बच्चा मेरे सामने कमाने लगे।
[10:56AM, 1/22/2016] iqbalhindustani: Avaam
Ameer-e-shahr se takrar Karke dekhte hain.
Khiraaj dene se lnkaar karke dekhte hain.
Ye rehnuma to badalne se bhi nahi badle.
Chalo avaam ko bedaar kar ke dekhte hain.
[10:35AM, 1/30/2016] iqbalhindustani: गाँव
जिस्म को छोड़ आये हैं और जाँ छोड़ आये हैं,
न पूछो गाँव में हम और क्या-क्या छोड़ आये हैं.!!
वो छप्पर का महल अपना वो दादा का बुझा चेहरा,
पेट के वास्ते रोती हुई माँ छोड़ आये हैं.!
[12:26PM, 2/15/2016] iqbalhindustani: निभाना
मुश्किल बस इतनी है,हमें जताना नही आता,
इल्ज़ाम ये लगा है कि हमें निभाना नही आता,
मिल्कियत मेरी भी बन जाती,औरों की तरह,
यूँ लूटकर अपनों को,हमें कमाना नही आता.
[11:40AM, 2/22/2016] iqbalhindustani: मांबाप
वो ही माँ बाप ज़िंदा बच रहे हैं इस बुढ़ापे में
कि जो बच्चों के आगे सिर झुककर बैठ जाते हैं
नदी जब सूख जाती है तो मातम के लिये
अकसर कनारों पर बहुत से लोग आकर बैठ जाते हैं।
[11:42AM, 2/22/2016] iqbalhindustani: ख़ुद्दार
[11:43AM, 2/22/2016] iqbalhindustani: मुश्किलों से जो डरते हैं जलीले खार होते है,
बदल दें वक्त की तकदीर वह खुद्दार होते हैं।
हजारो डूबते हैं खुदाओं के भरोसे पर
जो खुद चापू चलाते हैं वो अक्सर पार होते हैं।।

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