Thursday, 3 April 2014

इमरान मसूद : मुस्लिमों का दुश्मन

इमरान मसूदः मुसलमानों का दुश्मन और मोदी का दोस्त 
          -इक़बाल हिंदुस्तानी
0भाजपा से लड़ना है तो उसके खिलाफ़ ठोस तर्क व प्रमाण दो!
       यूपी के सहारनपुर से कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद ने भाजपा के पीएम पद के प्रत्याशी मोदी के खिलाफ जो कुछ कहा वह हर तरह से निंदनीय तो है ही साथ ही मुसलमानों के खिलाफ और भाजपा के पक्ष में ध््रुावीकरण का कारण बनेगा। उनका यह दावा कि यह बयान 6 माह पुराना और तब का है जब वह सपा में थे उनकी मूर्खता और राजनीतिक अपरिपक्वता को ही दर्शाता है क्योंकि कोई गैर कानूनी बयान क्या कुछ समय पहले देने और कांग्रेस की बजाये किसी और पार्टी मंे होने से कानूनी हो जाता है? क्या कानून अलग अलग दलों और समय के लिये अलग अलग लागू होता है? पता नहीं कांग्रेस ने क्या सोचकर इमरान को लोकसभा चुनाव लड़ने का टिकट दे दिया?
    जिस आदमी को यह तक नहीं मालूम कि गुजरात में मुसलमानों की तादाद 4 नहीं 9 प्रतिशत से भी ज्यादा है और बात जब राज्य की मुस्लिम आबादी की हो रही है तो उसका मुकाबला यूपी की मुस्लिम आबादी से तो किया जा सकता है लेकिन सहारनपुर जैसे एक ज़िले की 42 फीसदी मुस्लिम आबादी की दुहाई देने की क्या तुक है? क्या यह ज़िला इमरान की रियासत या देश है जो उसके राजा हैं? क्या इस क्षेत्र में यूपी सरकार का कानून नहीं चलता जो केवल 42 प्रतिशत मुस्लिम आबादी के बल पर मोदी को खुलेआम माफियाओं की तरह जान से मारने की धमकी दी जा रही है? क्या यहां मोदी के आने पर मुस्लिम जनता खुली कुश्ती लड़ने जा रही है? क्या ऐसा होने पर दूसरा वर्ग हाथ पर हाथ रखे तमाशा देखता रहेगा? क्या इमरान को पता नहीं है कि मुसलमान चाहें या ना चाहें आज मोदी से हिंदू जनता के बहुत बड़े वर्ग को देश के विकास और सीमा सुरक्षा की आशा बंध चुकी है?
   भले ही इसका एक कारण कांग्रेस और यूपीए सरकार का भ्रष्टाचार और महंगाई बढ़ाने वाले कदम रहे हों। कुछ समय पहले ऐसी ही नादानी और बचकानी भरी दुस्साहसी साम्प्रदायिक धमकी हैदराबाद के मुस्लिम नेता ओवैसी ने दी थी जिस पर उनको इमरान की तरह जेल की हवा खानी पड़ी थी। हमारा तो कहना है कि आज मुसलमानों को मोदी या भाजपा से उतना ख़तरा नहीं है जितना मसूद और ओवैसी जैसे सड़कछाप और नादान दोस्तों से है। किसी भी देश का अल्पसंख्यक वहां के बहुसंख्यकों को नाराज़ कर , धमकाकर और ललकार कर चैन से नहीं रह सकता। अगर बहुसंख्यक ना चाहें तो अल्पसंख्यकों का समावेशी विकास भी नहीं हो सकता। आज भारत में मुसलमान कभी कभी होने वाले दंगों और थोड़े बहुत पक्षपात को अपवाद मानें तो बराबरी ही नहीं कहीं कहीं और कभी कभी विशेष अधिकारों के साथ रह रहा है।
   आज देश अगर सेकुलर और समानता के संविधान के आधार पर चल रहा है तो इसके लिये हिंदू भाइयों की उदारता, सहिष्णुता और न्यायप्रियता को सलाम किया जाना चाहिये वर्ना कश्मीर और मुस्लिम मुल्कों में अल्पसंख्यकों के साथ क्या क्या हो रहा है इसे पूरी दुनिया देख रही है। इमरान मसूद शायद भूल रहे हैं कि आज मोदी को हिंदू ह्रदयसम्राट कहा जा रहा है तो मोदी को अगर आप धमकी देंगे या अपमान करेंगे तो बहुसंख्यक हिंदू इसको सहन नहीं करेगा और उनका राजनीतिक ध््राुवीकरण होगा। इसमें वो हिंदू भी मोदी का साथ देने आगे आ जायेगा जो भाजपा को भले ही पसंद ना करता हो लेकिन कांग्रेस से उसका मोहभंग हो चुका है। अगर मसूद की मूर्खता और पागलपन के बयान से दंगा भड़कता है तो इसमें भी मुसलमानों का ही ज्यादा नुकसान होगा। मसूद के इस आत्मघाती बयान से कांग्रेस को सियासी फायदा होने के बजाये उल्टे भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण और तेज़ होगा।
   अगर मोदी को मुसलमान वोट ना करें और भाजपा को हराना चाहें तो यह उनका संवैधानिक अधिकार सुरक्षित है लेकिन मसूद का मोदी को सबक सिखाने का सपना  उसी कांग्रेसी बेवकूफी और आत्महत्या जैसा होगा जो अन्य कांग्रेसी नेताओं ने मोदी को अनाप शनाप कहकर उनके प्रति सहानुभूति और समर्थन पैदा किया है। मसूद अपनी पार्टी हाईकमान सोनिया गांधी के गुजरात चुनाव के दौरान पिछली बार मोदी को ‘‘मौत का सौदागर’’ बताने का नतीजा भी भूल गये। मसूद जैसे मुसलमानों को अगर यह लगता है कि मोदी ने 2002 में गुजरात में जानबूझकर दंगे कराये थे तो इसके लिये मोदी को घटिया और ओछे शब्दों में धमकी देने की बजाये प्रमाण और तर्क अदालत व जांच आयोग के सामने पेश किये जाने चाहिये। मसूद यह भी जानते होंगे कि वह सांसद बनने के लिये लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं तो उनको संविधान के हिसाब से हर हाल में चलना होगा।
    क्या कानून इस बात की इजाज़त देता है कि जो मामला अभी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी की जांच में पहले स्तर पर  मोदी के खिलाफ नहीं पाया गया है और हाईकोर्ट में चुनौती देने पर सुनवाई हो रही है उस पर कांग्रेस प्रत्याशी अपना फैसला तय कर ऐलान कर दें कि मोदी मुस्लिमों के कातिल हैं और उनको सहारनपुर आने पर सज़ा ए मौत दी जायेगी? ऐसा सिरफिरा और कट्टरपंथी नेता अगर किसी तरह से जीतकर सांसद बन भी गया तो लोकतंत्र के लिये ख़तरा बन जायेगा। मसूद के खिलाफ तो भाजपा सांसद वरूण गांधी की तरह कड़ी कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिये जिससे किसी और नौसीखिये और तालिबानी सोच के नेता की आने वाले कल यह हिम्मत ही ना हो कि वह ऐसी बेतुकी और नीच भाषा का इस्तेमाल करे।
    मसूद जैसे मुसलमानों के नादान दोस्त एक बात और सुन लें कान खोलकर कि अगर इस चुनाव के बाद मोदी किसी चमत्कार से प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो वे ऐसे ऐसे सबके विकास के निष्पक्ष लोकलुभावन काम करने की भरपूर कोशिश करेंगे जिससे मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग उनको दंगों के लिये माफ करें या ना करे लेकिन रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर खुलकर भाजपा के साथ आ जायेगा।          
  0अजीब लोग हैं क्या खूब मंुसफी की है,
   हमारे क़त्ल को कहते हैं खुदकशी की है।
   इसी लहू में तुम्हारा सफीना डूबेगा,

   ये क़त्ल नहीं तुमने खुदकशी की है।।

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