Thursday 3 October 2024

फर्जी मुठभेड़

लाॅ एंड आॅर्डर बनाम रूल आॅफ़ लाॅ, क्यों बढ़ रहे हैं एनकाउंटर?
0 पिछले दिनों तीन अलग अलग राज्यों में विभिन्न अपराधों के आरोपियों के विवादित एनकाउंटर हुए हैं। इन मुठभेड़ों को वहां की सरकारों ने वास्तविक बताकर लाॅ एंड आॅर्डर बनाये रखने के लिये ज़रूरी बताया तो विपक्ष ने रूल आॅफ़ लाॅ की दुहाई देकर इनको फ़र्ज़ी बताते हुए संविधान लोकतंत्र और सरकार की असफलता बताया है। पहले ऐसे विवादित एनकाउंटर माओवादी और आतंकवादी हिंसा से ग्रस्त राज्यों में या माफियाआंे के अंडरवल्र्ड शूटर के नाम पर अकसर होते थे। अन्य राज्यों में ऐसी मुठभेड़ अपवाद के तौर पर होती थी। लेकिन हैदराबाद में वेटनरी डाॅक्टर की रेप के बाद हत्या होने पर उसके सभी आरोपियों को एनकाउंटर में जब मारा गया तो काफी विरोध और दूसरी तरफ स्वागत भी हुआ। इसके बाद यूपी सहित अनेक भाजपा शासित व कुछ विपक्षी सरकारों के राज्यों में यह आम बात हो गयी।       

 *-इक़बाल हिंदुस्तानी*
     महाराष्ट्र के बदलापुर कांड के आरोपी को जब पुलिस ने यह कहकर मुठभेड़ में मारा कि वह पुलिस की पिस्टल छीनकर हमला कर रहा था तो हाईकोर्ट ने भारी नाराज़गी दर्ज करते हुए सरकार से कई चुभते हुए सवाल किये। तमिलनाडु में एक हिस्ट्रीशीटर को इसी तरह के विवादित एनकाउंटर में मारा गया। ऐसे ही यूपी में भाजपा सरकार के बनने के बाद लगभग 200 एनकाउंटर और 6000 से अधिक हाफ एनकाउंटर हो चुके हैं। हाफ एनकाउंटर में आरोपी के पैर पर गोली मार दी जाती है। सुल्तानपुर डकैती कांड के यादव जाति के मुख्य अभियुक्त को जब पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया तो सपा नेता अखिलेश यादव ने इस पर ज़बरदस्त विरोध दर्ज कराया। इसके बाद मामले को संतुलित करते हुए पुलिस ने ख़बर दी कि ठाकुर जाति से जुड़ा इसी मामले का एक अन्य अभियुक्त भी मुठभेड़ में मारा गया। पहले राज्य में इस तरह के विवादित एनकाउंटर की शुरूआत मुसलमान आरोपियों से हुयी थी। बाद में इसका दायरा बढ़कर दलित पिछड़े ब्रहम्ण गरीब कमज़ोर और राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाने तक पहुंच गया। 
यही हाल किसी अपराध के आरोपियों के घर दुकान या उनसे जुड़ी इमारत पर बुल्डोज़र चलाने को लेकर हुआ है। कहने का मतलब यह है कि किसी भी गलत काम की शुरूआत या अधिकता भले ही किसी धर्म विशेष या जाति के साथ शुरू हो लेकिन बाद में समाज के दूसरे लोग भी उस अन्याय अत्याचार और पक्षपात का शिकार हुए बिना नहीं बच सकते। वन नेशन वन इलैक्शन से अब चर्चा वन नेशन वन पुलिस स्टेशन तक आ गयी है। इसमें कहा जाता है कि राज्य चाहे जो हो वहां पुलिस स्टेशन का एनकाउंटर का तरीका लगभग एक जैसा ही क्यों होता है? हर एनकाउंटर के बाद पुलिस एक ही कहानी दोहराती नज़र आती है जिसमें एक अपराध का आरोपी होता है। पुलिस उसको पता नहीं क्यों हर बार रात के अंध्ेारे में ही क्राइम सीन क्रिएट करने या अपराध में प्रयोग हुए हथियार बरामद करने या फिर चोरी डकैती का सामान बरामद करने को सुनसान इलाके में ले जाती है। उस आरोपी पर कई संगीन जुर्म के केस पहले से दर्ज होते हैं। इसके बाद वह आरोपी पुलिस का हथियार छीन लेता है। जबकि बिना प्रशिक्षण के कोई अपराधी पुलिस का हथियार न तो अनलाॅक कर सकता है और ना ही उसको चला सकता है। 
        कई बार पुलिस यह भी दावा करती है कि उसने आरोपी को आत्मसमर्पण करने के लिये कहा लेकिन वह पुलिस पर अपने तमंचे से गोली चलाने लगा। मजबूरन पुलिस ने आरोपी पर जवाबी गोली चलाई और आरोपी मारा गया। बाॅम्बे हाईकोर्ट ने इन जैसी समानताओं को लेकर ही पुलिस से बार बार सवाल पूछे हैं। हैरत की बात यह है कि इस तरह की मुठभेड़ों में हमेशा आरोपी मारा जाता है जबकि पुलिस या तो साफ बच जाती है या हल्की व मामूली चोट खाती है। सुप्रीम कोर्ट भी इस तरह के विवादित एनकाउंटर्स को लेकर कई बार राज्य सरकारों पुलिस और जांच एजंसियों को फटकार लगा चुका है। कोर्ट ऐसे मामलों में अनिवार्य रूप से रिपोर्ट दर्ज कर जांच करने और कोर्ट की गाइड लाइंस को हर हाल में लागू करने को भी कई बार कह चुका है। लेकिन जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के मना करने के बावजूद बुल्डोज़र चल रहा है उसी तरह से एनकाउंटर भी रूक नहीं रहे हैं। एनकाउंटर की गहराई में जाकर देखेंगे तो आप पायेंगे कि इनके पीछे भी राजनीति हो रही है।
     फर्जी मुठभेड़ों के नाम पर कुछ सरकारें यह धारणा बनाने में सफल हैं कि इससे अपराधियों में भय पैदा होगा और आगे दूसरे अपराधी अपराध करने से डरेंगे। उनका यह भी दावा है कि कुछ खास वर्ग धर्म या जाति के लोग ही अपराध करते हैं। वे जनता के एक भ्रमित वर्ग की इस सोच को भी न्यायोचित साबित करने में लगी हैं कि इससे हाथो हाथ न्याय हो रहा है। तथाकथित गैर कानूनी बुल्डोज़र जस्टिस भी इसी धारणा का विस्तार है। इससे सरकारों को वोट ना मिलने का डर भी नहीं रहा है। उल्टा उनके इस गैर कानूनी पक्षपाती और संविधान विरोधी काम से उनका कट्टर समर्थक उनको पहले से अधिक बढ़चढ़कर वोट दे रहा है। लेकिन वह यह भूल गया है कि जब समाज से संविधान कानून और निष्पक्षता का राज खत्म होगा तो आज नहीं तो कल वह भी उसका शिकार बनेगा। कई सरकारें यह दावा भी करती है कि ऐसा करने से लाॅ एंड आॅर्डर सुधर रहा है और अपराध पहले से कम हो रहे हैं। जबकि केंद्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्योरो के आंकड़े इस दावे को झुठला रहे हैं। 
       सच तो यह है कि हमारी पुलिस कोर्ट और जांच एजंसियां जिस कछुवा गति से काम करती हैं उससे लोगों का उनसे भरोसा उठता जा रहा है। वे गैर कानूनी होने के बावजूद ऐसे एनकाउंटर और आरोपियों के घरों पर बुल्डोज़र चलाये जाने को ही न्याय और समस्या का सही हल मान रही हैं। केंद्रीय जांच एजसियां मेन स्ट्रीम मीडिया और भाजपा विपक्ष शासित राज्यों में जिन अपराधों के होने पर एक्टिव हो जाती हैं। वहीं भाजपा शासित राज्यों में वह रेप के अपराधियों को लेकर सज़ा पूरी होने से पहले जेल से छोड़ने उनका ज़मानत पर बाहर आने पर माला पहनाकर मिठाई खिलाकर और तिलक लगाकर स्वागत करने में कोई बुराई नहीं समझती। बाबा राम रहीम को वह बार बार चुनाव के समय पर ही पैरोल दिलाती रहती है। करप्शन के आरोप में पकड़े गये लगभग सभी आरोपी विपक्ष के ही होते हैं। उड़ीसा में एक सेना अफसर और उसकी मंगेतर के साथ पुलिस ने जो कुछ किया उस पर मीडिया में इतनी कवरेज नहीं हुयी जबकि कोलकाता रेप मामले में राष्ट्रपति तक ने अपना डर जताया था। याद रखिये पूरा सिस्टम सुधारे बिना एनकाउंटर हल नहीं खुद प्राॅब्लम बन जायेंगे।
*नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ एडिटर हैं।*

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