वैवाहिक बलात्कार: क़ानून अपना काम करेगा!
-इक़बाल हिन्दुस्तानी
लड़कियों के साथ पक्षपात समाज को घर से ही ख़त्म करना होगा? महिला और बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा भारत में लागू न हो पाने की बात कही है। इसकी वजह वो देश में अशिक्षा गरीबी सामाजिक मूल्य और धार्मिक मान्यतायें बताती हैं। इससे पहले श्रीमती मेनका गांधी ने ऐसा ही एक और विवादित बयान दिया था। उनका कहना था कि हर गर्भवती महिला का भू्रण परीक्षण अनिवार्य बनाया जाना चाहिये। उनको लगता था कि ऐसा करने से कन्या भू्रण हत्या को रोका जा सकेगा। विशेषज्ञों ने इसके विपरीत परिणाम की बात कही तो सरकार को अपना इरादा नेक होते हुए भी कदम वापस खींचने पड़े थे। अब वे खुद महिला होकर मंत्री के रूप में एक ऐसी हल्की बात कह रही हैं।
अगर हम समाज की इतनी ही परवाह करते तो समाज सुधारक राजाराम मोहन राय सती प्रथा के खिलाफ कानून बनाने की मांग क्यों करते? दहेज़ के खिलाफ कानून क्यों बनाया गया है? जबकि यह समाज में आमतौर पर बिना किसी रोकटोक और बिना बुराई माने चलन में है। ट्रेन आने पर जब फाटक बंद होता है तो पैदल यात्रियों को भी ट्रैक से गुज़रने पर कानूनन रोक क्यों लगाई गयी है? क्या ऐसे कोई रूकता है? संविधान में सबको बराबर अधिकार क्यों दिये गये हैं? जबकि समाज पुरूष प्रधान है। यहां तक कि बड़ी संख्या में खुद महिलायें अपने साथ किये जाने वाले पक्षपात को धर्म और परंपराओें के नाम पर न्यायोचित ठहराती देखी जाती हैं।
लेकिन फिर भी अपराध से लेकर मतदान और हर क्षेत्र में प्रतिनिधित्व से लेकर सम्पत्ति तक में उनको बराबर अधिकार के एक के बाद एक कानून बनाये जा रहे हैं। मंत्री महोदया से पूछा जाना चाहिये कि जब तक समाज खुद महिलाओं दलितों और अल्पसंख्यकों को बराबर अधिकार देने को तैयार नहीं हो जाता तब ऐसे कानून क्यों बनाये जा रहे हैं? यह बात किसी सीमा तक ही ठीक मानी जा सकती है कि केवल कानून बना देने से किसी के साथ न तो पक्षपात पूरी तरह ख़त्म हो जाता है। और न ही उसको बराबर न्याय व अधिकार मिल जाते हैं। लेकिन यह भी वास्तविकता है कि कानून की अपनी भूमिका है। जिस तरह से दहेज़ एक्ट लागू होने से दहेज़ के लिये होने वाली दुल्हनों की हत्याओं के मामले में काफी कमी आई।
वैसे ही वैवाहिक बलात्कार कानून लागू होने से वो पुरूष कम से कम ज़रूर ज़ोर ज़बरदस्ती से बाज़ आयेंगे जो कानून का सम्मान करते हैं। अब जब कानून ही नहीं है तो कोई ऐसी हरकत से क्यों रूकेगा? यह आशंका भी अपनी जगह ठीक हो सकती है कि दहेज़ एक्ट की तरह मेरिटोरियल रेप एक्ट बना तो उसका भी जमकर दुरूपयोग होगा। हमारा मानना है कि दुरूपयोग एक अलग समस्या है। इसका यह मतलब नहीं है कि हम कानून बनाना ही बंद कर दंे। दलित उत्पीड़न अधिनियम का खूब मिसयूज़ होता रहा है। लेकिन यह कानून ख़त्म नहीं किया गया है। दहेज़ एक्ट को लेकर भी अकसर ऐसे आरोप लगते हैं। लेकिन इसका एक सुखद पहलू भी है कि कई बार इस एक्ट के दबाव में परिवार टूटने तलाक होने या पत्नी की हत्या व उसका उत्पीड़न रूका रहता है।
बाद में समय के साथ सोच में बदलाव आने या पति पत्नी में अंडरस्टैंडिंग बेहतर बन जाने से तलाक की नौबत टल जाती है। मेनका गांधी की केवल इतनी बात सही मानी जा सकती है कि कानून बनाने के साथ साथ समाज की सोच और महिलाओं को अपने अधिकारों के साथ अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत किया जाये। जिससे इस कानून का गलत इस्तेमाल कम से कम हो। जहां तक किसी भी कानून के गलत इस्तेमाल की बात है। इतिहास गवाह है कि किस तरह से आतंवाद निरोधक टाडा और पोटा का जमकर खुद राजनेताओं ने सियासी बदले की भावना से गलत प्रयोग किया था। ऐसे ही नारकोटिक्स ड्रग्स और आर्म्स एक्ट का अधिकांश झूठा ही इस्तेमाल होता है।
इसका मतलब यह तो नहीं इन कानूनों को ही ख़त्म कर दिया जाये। और तो और देशद्रोह कानून तक का गलत इस्तेमाल करने के सरकारों पर अकसर आरोप लगते हैं। हां यह बात ठीक है कि वक्त के साथ इस तरह के कानूनों में बदलाव होने चाहिये। साथ ही इनका गलत इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ सख़्त कार्यवाही का भी प्रावधान किया जा सकता है। सच तो यह है कि कानून बनाने वालों को कानून बनाकर अपना काम करना चाहिये। इसे न बनाने के बहाने नहीं तलाषने चाहिये। मिसाल के तौर पर कन्याभू्रण हत्या एक ऐसा मामला है जिसमें खुद कन्या के माता पिता उसकी हत्या केवल इसलिये करते हैं कि वह लिंगभेद कर रहे होते हैं। कुछ क्षेत्रों में कन्या के जन्म लेते ही मार देने की परंपरा आज भी मौजूद है।
इसके बाद लड़का और लड़की में खाने पीने से लेकर बोलने, चलने, हंसने, नाचने गाने, कपड़े पहनने, बाहर घूमने जाने, शिक्षा लेने, शौक पूरे करने, गाली देने मारने पीटने और उसके बाद शादी करने को लेकर जमकर पक्षपात होता है। बाल विवाह पर कानूनी रोक बहुत पुरानी बात नहीं है। शाहबानो केस हो या राजस्थान का रूपकुंवर सती कांड राजनेता अपने वोटबैंक के चक्कर में अकसर प्रगतिशील कानून बनाने से बचते हैं। लिंगभेद पर आधारित खाप पंचायतों के फैसले देश में खूब चर्चा में आते रहते हैं लेकिन वोटबैंक के लालची हमारे नेता देश को बर्बर युग में ले जाने में कोई बुराई नहीं समझते। ऐसे ही स्त्री विरोधी फतवे आयेदिन आते रहते हैं लेकिन कट्टरपंथियों के डर से सबने अपराधिक चुप्पी साध रखी है। हमारी महान सभ्यता संस्कृति और सभी के धर्मों की खूब दुहाई दी जाती है लेकिन हमारी कई परंपरायें दिखावा और ढोंग से अधिक कुछ नहीं है।
बदनज़र उठने ही वाली थी किसी गै़र की जानिब,
अपनी बेटी का ख़याल आया तो दिल कांप गया।
Wednesday, 16 March 2016
वैवाहिक बलात्कार
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