Thursday 8 August 2024

बांग्लादेश की हसीना

बंगलादेश: हसीना ने तानाशाही से बना दिया था विपक्षमुक्त देश!
0 जिस बंगलादेश को बनाने में शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर्रहमान और उनके पूरे परिवार ने अपनी जान दे दी। जिस शेख हसीना ने बंगलादेश को एशिया में न केवल अपने मूल देश पाकिस्तान से मज़बूत बना दिया बल्कि अर्थव्यवस्था के मामले में वह उसको भारत से भी आगे ले गयीं। आखि़र क्या हुआ कि एकाएक उनको न केवल पीएम पद बल्कि देश भी छोड़कर भागना पड़ा ? ज़ाहिर तौर पर छात्रों का आंदोलन इसकी मुख्य वजह माना जा रहा है लेकिन अमेरिका चीन से लेकर शेख हसीना का भारत के करीब होना भी इसका कारण हो सकता है। सबसे बड़ी गल्ती हसीना की अपने देश में चुनाव धांधली विपक्ष को लगभग खत्म कर देना और विरोध का स्पेस न देना था।        
   *-इक़बाल हिंदुस्तानी*
जिस तरह से गैस पास न होने से प्रेशर कूकर फट जाता है। उसी तरह से किसी देश में विरोध करने वाले विकल्प स्वायत्त संस्थाओं और पीएम सत्ताधारी दल व शासन का विपक्ष के लिये स्पेस खत्म कर देने से वही होता है जो बंगलादेश की पीएम शेख हसीना के साथ हुआ है। आरक्षण के विरोध में स्टूडंेट आंदोलन तो एक बहाना है। उसके पीछे विश्व की महाशक्तियां बंगलादेश के विरोधी दल और बंगलादेश के निर्माण का विरोध करने वाली कट्टरपंथी जमाते इस्लामी शामिल रही है। सवाल यह है कि जो 30 प्रतिशत आरक्षण हाईकोर्ट के आदेश से शुरू हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने उसको लगभग खत्म कर 7 प्रतिशत कर दिया। ऐसे में अवामी लीग सरकार के खिलाफ इसके बाद भी लगातार आंदोलन तेज़ करते जाने के पीछे क्या साज़िश थी? दूसरी बात यह है कि पहले तो पुलिस पैरा मिलिट्री और सेना ने आंदोलन कुचलने को खुलेआम गोली चलाकर सैकड़ों लोगांें को बेदर्दी से मार डाला और जब आंदोलन का असली मुद्दा खत्म हो गया उसके बावजूद लांग मार्च कर पीएम हसीना का इस्तीफा मांगने और उनके निवास पर धावा बोलने आ रही भीड़ को रोकने से फौज ने साफ इनकार कर दिया, आखिर क्यों? किसके इशारे पर? 
     पीएम हसीना को 45 मिनट का समय दिया गया या तो वह अपना पद छोड़कर अपनी जान बचाने को देश छोड़कर भाग जायें नहीं तो उनको भीड़ के हवाले कर मौत के घाट उतारने को ब्लैकमेल किया गया? सवाल यह है कि किसी देश की पुलिस और सेना लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी अपनी सरकार के मुखिया की सुरक्षा नहीं कर सकती या नहीं करना चाहती तो इसमें साज़िश तो है ही? यह माना बंगलादेश में स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर सरकारी नौकरियों में सत्ताधारी अवामी लीग के लोगांे को भरने का खेल लंबे समय से चल रहा था। वहां आम चुनाव में इतनी बेईमानी धोखा और धांधली बार बार हो रही थी कि विपक्ष ने चुनाव का बहिष्कार कर रखा था। यानी जनता अगर चाहती भी तो लोकतांत्रिक तरीके से सरकार बदलने के रास्ते हसीना ने बंद कर दिये थे। आज हालत यह है कि हसीना को ब्रिटेन सहित यूरूप का कोई देश शरण तक देने को तैयार नहीं है। अमेरिका ने उनका वीज़ा पहले ही रद्द कर दिया है। अब उनकी नार्वे और फिनलैंड जाने की बात चल रही है। हसीना का जो होगा सो होगा लेकिन यह भारत के लिये भी बहुत बड़ा राजनीतिक झटका है। फिलहाल वहां अंतरिम सरकार बनेगी। उसके बाद आम चुनाव होगा जिसमें बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमाते इस्लामी के सत्ता में आने के पूरे आसार हैं। 
    जमात के रज़ाकारों ने वहां बंगलादेश बनने का विरोध करते हुए 28 लाख बंगलादेशियों को काटने और दस लाख औरतों के बलात्कार में पाक सेना का खुलेआम साथ दिया था। जिसके आरोप में उसके दर्जनों नेताओं को हसीना ने जेल भेजकर उम्रकैद से फांसी तक दी थी। यह अंदेशा गलत नहीं है कि अब जमाते इस्लामी खुलकर सत्ता का सहारा लेकर आतंकवाद अल्पसंख्यक उत्पीड़न और भारत विरोध के लिये पूर्वोत्तर के राज्यों में उग्रवादियों को हर तरह की सहायता कर हमारे 4096 किलोमीटर लंबे बाॅर्डर पर पाकिस्तान जैसा एक और मोर्चा खोलेगी? उधर अडानी के जो प्रोजेक्ट बंगलादेश के साथ शुरू हो चुके हैं या जल्दी ही चालू होने वाले थे उनका भविष्य खतरे में लग रहा है। हालांकि इससे बंगलादेश को भी नुकसान होगा लेकिन नफरत में इंसान व देश अंधा हो जाता है। यह सच है कि हसीना ने बंगलादेश को प्रगतिशील बनाया लेकिन तानाशाह बनकर लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों को कुचल दिया। भारत में इंदिरा गांधी ने यही गल्ती इमरजैंसी लगाकर की थी लेकिन उन्होंने भूल सुधार कर चुनाव हारा और फिर लोकतंत्र में विश्वास जताकर जीत भी लिया। हसीना ने वहां के मीडिया को भी गुलाम बना लिया था यही वजह है कि आज सत्ता के चमचे पत्रकार सड़कों पर घसीट कर पीटे जा रहे हैं। 
       मोदी सरकार हसीना को कभी तख्ता पलट के ख़तरे से आगाह इसलिये भी नहीं कर सकी क्योंकि वह खुद इस तरह के कई तौर तरीके आंशिक रूप से अपनाकर विपक्ष को दुश्मन की तरह खत्म करने की मंशा रखती है। मुजीबुर्रहमान की हत्या के बाद इंदिरा गांधी ने शेख हसीना को भारत में लंबे समय के लिये शरण दी थी। हसीना और उनकी बहन उस समय अपने परिवार के सामूहिक हत्याकांड से इसलिये बच गयी थीं क्योंकि वह विदेश में पढ़ रही थीं। इतिहास बताता है कि कई देशों में जिन लोगों संस्थाओं और पार्टियों का सहयोग देश को आज़ाद कराने वालों के साथ नहीं रहा वही एक दिन साज़िश तिगड़म और विदेशी शक्तियों का खिलौना बनकर सत्ता में आ गयीं। आज हसीना घर की ना घाट की। उनके पिता और परिवार को 50 साल पहले सामूहिक रूप से मौत के घाट के उतारा जा चुका है। आज जिस बंग बंध्ुा को बंगलादेश का संस्थापक माना जाता था उसकी मूर्ति सबसे पहले तोड़ी जा रही है। हसीना की पार्टी अवामी लीग के दर्जनों नेताओं को मौत की नींद सुला दिया गया है। उनके आॅफिसों और समर्थकों पर लगातार हिंसक हमले किये जा रहे हैं। 
    हसीना के हश्र से यह सबक दुनिया के दूसरे तानाशाह बन रहे शासकों को सीखना चाहिये कि सत्ता के लिये लोकतंत्र को खत्म करने और नागरिक अधिकार छीनने वालों को  कभी ना कभी यह दिन भी देखना पड़ सकता है। बंगलादेश मंे हसीना के अंजाम से यह भी सीखा जा सकता है कि सरकार कोर्ट मीडिया पुलिस सेना और सारी शासकीय संस्थायें मिलकर भी सड़क पर विरोध में उतरी विपक्ष या विकल्प विहीन आक्रोषित और बेकाबू हिंसक जनता का मुकाबला नहीं कर सकती।
0 समंदर उल्टा सीधा बोलता है,
 सलीके से तो प्यासा बोलता है।
 यहां उसका पैसा बोलता है,
 वहां देखेंगे वो क्या बोलता है।।
 *0 लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ एडिटर हैं।*

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