Saturday 17 August 2024

वक्फ बिल

वक़्फ़ बिल: बेशक हो सुधार लेकिन सरकार नहीं है ईमानदार ?

0 मोदी सरकार भले ही सबका साथ सबका विश्वास का दावा करे लेकिन इस सरकार को कभी भी अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुसलमानों का विश्वास हासिल नहीं रहा है। यही वजह है कि भाजपा मुसलमानों और मुसलमान भाजपा का विरोध करते हैं। सीएए और तीन तलाक़ पर विवादित रोक के बाद वक़्फ़ क़ानून में संशोधन का मामला भी इसलिये ही चर्चा मंे है क्योंकि रेलवे और सेना के बाद सबसे अधिक ज़मीनें भारत में वक़्फ़ बोर्ड के पास हैं। देश में वक़्फ़ की 8 लाख एकड़ की कुल 872292 प्रोपर्टी हैं जिनसे मात्र 200 करोड़ रूपये आय सालाना होती हैं। वक़्फ़ एक्ट 1954 में बना और 1995 में इसमें संशोधन किया गया। वक़्फ़ के पास जो सम्पत्तियां हैं लगभग सभी मुसलमानों ने दान की हैं। लेकिन इनकी देखरेख में बड़ी गड़बड़ी है यह सच है।        
*-इक़बाल हिंदुस्तानी*
      2022 में संसद में हरनाथ सिंह यादव ने एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया था। जिसमें दावा किया गया था कि 2009 से वक़्फ़ की ज़मीनें दोगुनी हो चुकी हैं। कम लोगों को पता होगा कि दूसरे सभी कानूनों की तरह ही वक़्फ़ कानून भी संसद से ही पास होकर बना है। यह मुस्लिम पर्सनल लाॅ के तहत इस्लाम का समाजसेवा का एक अहम हिस्सा है। यह सही है कि वक़्फ़ बोर्ड में बदइंतज़ामी बेईमानी और मनमानी होती है लेकिन यह झूठ है कि वक़्फ़ बोर्ड की शक्तियांे का गलत इस्तेमाल कर किसी भी ज़मीन को वक़्फ़ का बताकर कब्ज़ा लिया जाता है और उसको कोर्ट में चुनौती भी नहीं दी जा सकती। बाबरी मस्जिद का विवाद इसकी ताज़ा मिसाल है कि बोर्ड इस मस्जिद को रिकाॅर्ड दुरस्त ना रखने से कोर्ट में वक़्फ़ की साबित नहीं कर पाया जिससे यह आस्था के आधार पर लगातार वहां पूजा होते रहने के कारण फैसले में मंदिर के लिये दे दी गयी। प्रोपर्टी दो तरह से वक़्फ़ होती है। एक अल्लाह की राह में और दूसरी वक़्फ़ उल औलाद। किसी पीढ़ी में आगे जाकर ऐसी मिल्कियत का अगर कोई भी वारिस नहीं बचता है तो वह प्रोपर्टी भी वक़्फ़ बोर्ड को अल्लाह के नाम पर जनसेवा करने को चली जाती है। 
1921 के एक निर्णय में कोर्ट ने कहा था कि कोई हिंदू भी समाजसेवा के लिये वक़्फ़ को अपनी सम्पत्ति दान कर सकता है लेकिन यह सुनिश्चित करना ज़रूरी होगा कि उस गैर मुस्लिम के ऐसा करने से किसी हिंदू कानून का उल्लंघन नहीं हो। वक़्फ़ बोर्ड के अधिकार में तब तक कोई सम्पत्ति किसी के दान करने के बावजूद नहीं आ सकती जब तक कि उसका सर्वे न हो। सर्वे कमीशन राज्य सरकार नियुक्त करती है। सरकार वक़्फ़ की सम्पत्ति की अधिकृत सूची जारी करती है। इस सूची को जारी करने से पहले सरकार यह सुनिश्चित करती है कि वक़्फ़ की गयी प्रोपर्टी निर्विवाद हो। वक़्फ़ होने से पहले उस सम्पत्ति की स्थिति का सरकारी सर्वेयर द्वारा मौका मुआयना और उससे होने वाली आय का विस्तृत विवरण जुटाना अनिवार्य होता है। गवाहों प्रमाणों और अन्य कई तरह से यह जांच की जाती है कि वास्तव में दान की गयी प्रोपर्टी वक़्फ़ की ही है। अगर एक बार सर्वे से सर्वेयर या सरकार सर्वेयर की रिपोर्ट से सहमत व संतुष्ट नहीं होती तो वह दूसरा व तीसरा सर्वेयर नियुक्त करती है। जब राज्य द्वारा तैनात सर्वे कमिश्नर हर तरह से सम्पत्ति की नेचर वैल्यू और दान की प्रक्रिया से सहमत होकर लिखित रिपोर्ट देगा बोर्ड 6 माह के भीतर वह रिपोर्ट सरकार को भेजेगा और सरकार उसको गज़ट मंे प्रकाशित करेगी, राजस्व विभाग उस सम्पत्ति को अपने रिकाॅर्ड में वक़्फ़ के तौर पर दर्ज करेगा, उसके बाद ही वह सम्पत्ति कानूनन वक़्फ़ की मानी जायेगी। 
अगर किसी सम्पत्ति पर विवाद होगा तो उसको पहले वक़्फ़ ट्रिब्यूनल तय करेगा उससे सहमत न होने पर हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। देश में ऐसे 70 ट्रिब्यूनल हैं। वक़्फ़ बोर्ड में नियुक्ति भी सरकार ही करती है इसलिये यह दावा पूरी तरह झूठा है कि वक़्फ़ पर सरकार का नियंत्रण नहीं है। इसके विपरीत सच यह है कि कुछ करप्ट सरकारी कारिंदे बोर्ड के बेईमान पदाधिकारी और वक़्फ़ सम्पत्यिों के बदनीयत मुतावल्ली मिलीभगत से इन सम्पत्यिों पर अवैध कब्जे़ बेचकर या किराये के बहाने करोड़ों रूपयों के वारे न्यारे कर रहे हैं। केवल वक़्फ़ बोर्ड के ट्रिब्यूनल को लेकर  सवाल उठाये जाते हैं। लेकिन इसमें राज्य न्यायिक क्षेत्र का चेयरमैन और सदस्यों में राज्य सरकार का प्रतिनिधि अधिकारी और तीसरा मुस्लिम लाॅ का जानकार शामिल होता है। देश में कुल 32 वक़्फ़ बोर्ड हैं। नये वक़्फ़ बिल के हिसाब से बोर्ड में भविष्य में नेशनल लेवल के केंद्र के चार सदस्य तीन सांसद सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के दो पूर्व जज एक वकील मुतावल्ली का एक प्रतिनिधि मुस्लिम लाॅ के तीन जानकार और दो गैर मुस्लिम व दो मुस्लिम महिलायें  अनिवार्य रूप से शामिल होंगी। जबकि चारधाम हिंदू तीर्थ धर्म संस्थान में केवल हिंदू ही सदस्य ही बन सकते हैं। 
       यही वो पक्षपात अन्याय और भेदभाव है जो भाजपा मुसलमानों के साथ बार बार करती रहती है। ज़िलाधिकारियों को वक़्फ़ मामलों में निर्णायक शक्ति दी जा रही है। वक़्फ़ के ट्रिब्यूनल को ज़मीनें हड़पने वाला राक्षस बनाकर केवल उसकी पाॅवर छीनी जा रही है। सौ प्रतिशत मुसलमानों का मज़हबी निजी मामला होने के बावजूद मुतावल्ली भी गैर मुस्लिम बनाया जाना प्रस्तावित है जोकि सरकार की दुर्भावना दिखाता है। नये बिल के अनुसार लैंड रिकाॅर्ड आफिसर सभी प्रभावित पक्षों को नोटिस देगा और दो बड़े अख़बारों में भी नोटिस पब्लिश करेगा जिससे किसी को भी अपनी आपत्ति दर्ज करने का मौका मिलेगा। आॅडिट पहले भी होता था लेकिन अब केंद्र अपने स्तर से सीएजी से आॅडिट करा सकता है। वक़्फ़ बोर्ड में भ्रष्टाचार के नाम पर सरकार ऐसे सुधार के बहाने दखल और मनमानी करना चाहती है जैसे उसके अधिकारी और कर्मचारी दूध के धुले हों? भविष्य में मुतावल्ली उसी को बनाया जायेगा जिसकी उम्र 21 साल  दो साल की सज़ा नहीं हुयी हो मानसिक रूप से परिपक्व और साफ सुथरी छवि का हो और उस पर वक़्फ़ की ज़मीन पर पहले कभी अवैध कब्ज़े वसूली या मिलीभगत का आरोप ना हो। सरकार का यह कदम अच्छा है लेकिन नीयत अच्छी साबित करना भी ज़रूरी है। 
अजीब बात यह है कि डीएम के कई फ़ैसलों को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकेगी और पहले वक़्फ़ ज़मीन को लेकर अपराध में जो गैर ज़मानतीय और संज्ञेय धारायें लगती थीं और सश्रम कारावास तक की सज़ा दी जा सकती थी वह सरकार ने उल्टा कम करके अपनी मुस्लिम विरोधी मंशा और वक़्फ़ की सम्पत्यिों पर रेलवे व डिफेंस की तरह अपनी नज़रें गड़ाकर अपने चहतों को देने का शक बढ़ा दिया है? 

 0 कितना चाहा छिपाना और छिपा कुछ भी नहीं,

  उसने सब कुछ सुन लिया मैंने कहा कुछ भी नहीं।

 *नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के चीफ़ एडिटर हैं।*

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