Tuesday, 14 February 2023

बाल विवाह कैसे रुकेंगे?

*बाल विवाह रोकना है तो जेल नहीं स्कूल बढ़ाने होंगे!* 

0 असम सरकार ने बाल विवाह के खिलाफ़ अभियान शुरू करते हुए लगभग एक सप्ताह में 4000 रपट दर्ज कर 2500 से अधिक लोगों को जेल भेज दिया है। सीएम हिमंत विस्व सरमा ने कहा है कि जिन लोगों ने विगत 7 साल में बाल विवाह कराने में किसी भी तरह की भागीदारी की है उनको हर हाल में जेल भेजा जायेगा। बाल विवाह कराने वाले परिवारों के साथ ही दर्जनों क़ाज़ी और पुजारियों को भी पकड़ा गया है। कानून के हिसाब से देखा जाये तो अभियान सही है। प्रोहिबीशन आॅफ़ चाइल्ड मैरिज एक्ट व पाॅक्सो यानी प्रोटेक्शन आॅफ़ चिलड्रन फ्राम सेक्सुअल आॅफ़ेंस एक्ट यही कहता है। लेकिन सच यह भी है कि लोगों को जेल भेजकर नहीं शिक्षित करके बाल विवाह अधिक रोके जा सकते हैं। ऐसा सर्वे बताते हैं।      

                  -इक़बाल हिंदुस्तानी

      पाॅक्सो के अनुसार 14 साल से कम उम्र की लड़की से सैक्स करना संज्ञेय और गैर ज़मानतीय अपराध है। ऐसा भले ही लड़की की सहमति और उससे शादी के बाद किया गया हो। ऐसे विवाह गैर कानूनी और अमान्य हैं। पुलिस ऐसे मामलों में बिना वारंट आरोपी को जेल भेज सकती है। इसमें 5 साल की सज़ा का प्रावधान है। इतना ही नहीं पाॅक्सो की धारा 19 में ऐसी शादी में किसी भी तरह से सहयोग करने और जानकारी होने पर पुलिस को सूचना ना देने पर जेल और जुर्माने का प्रावधान है। यहां तक कि अगर डाक्टर के पास ऐसी दुल्हन गर्भपात या मां बनने पर चिकित्सा कराने आये तो डाक्टर को तत्काल पुलिस को सूचना देनी होगी। दूसरी तरफ बाल विवाह निषेध कानून के अनुसार 14 से अधिक और 18 साल से कम उम्र की लड़की की शादी करने पर विवाह मान्य तो होगा लेकिन अवैध माना जायेगा। इस कानून मंे 2 साल की सज़ा और एक लाख रू. तक का जुर्माना हो सकता हैै। उधर मुस्लिम अब तक इस कानून से पर्सनल लाॅ की वजह से बाहर माने जाते थे। उनका मानना है कि इस्लाम में लड़की के पीरियड शुरू होने पर उसको बालिग माना जाता है। इसके लिये कोई आयु तय नहीं है लेकिन अगर कोई सबूत या गवाही ना मिले तो यह उम्र आमतौर पर 15 साल मानी जाती है। लेकिन अब सरकार सबके लिये एक जैसा कानून लाने जा रही है। उधर अलग अलग हाईकोर्ट ऐसे मामलों में अलग अलग फैसले देते आ रहे हैं।  जिससे अब अंतिम निर्णय के लिये यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग और राष्ट्रीय महिला आयोग सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम लड़कियों के लिये शादी की उम्र तय करने के लिये याचिका लगा चुका है।
बहने से दर्दनाक मौत हो गयी तो हत्या के आरोप से उसका पति तो कोर्ट से बच गया। लेकिन इसके बाद इस तरह के 44 मामलों में डाक्टरों द्वारा पेश की गयी सूची से समाज में बाल विवाह के खिलाफ एक माहौल बनना शुरू हुआ। 11 साल की रूकमा बाई ने जबरन शादी करने पर अपने पति दादाजी बीकाजी के साथ विदा होने को मना कर दिया तो उसने कोर्ट में केस कर दिया। लेकिन समाजसुधारक एमजी रानाडे व बहराम जी मालाबारी ने रूकमा बाई को खुलकर सपोर्ट किया। इसके बाद 1891 के कानून में संशोधन कर लड़की की शादी की आयु 12 साल कर दी गयी। 1927 में राय साहिब हरविलास सारदा ने लेजिस्लेटिव कौंसिल में बाल विवाह रोकने का बिल पेश किया तो नया कानून बनाकर आयु 14 कर दी गयी। 2008 में विधि आयोग ने गरीबी कर्ज़ और दहेज़ को बाल विवाह की बड़ी वजह बताया था। असम सरकार को यह भी याद रखना चाहिये कि 2000 से 2010 के बीच शिक्षा बढ़ने पर बाल विवाह का आंकड़ा 47 से 30 पर आ चुका है। इस मामले में कानून के डर से अधिक जनता के बीच जागरूकता शिक्षा और सम्पन्नता लाकर सुधार हो सकता है।

 *नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के संपादक हैं।*

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