नोटों की कमी से सरकार पर सवाल!
कुछ राज्यों में काफी समय से नोटों की कमी चल रही थी। फिर अचानक कई और राज्यों के एटीएम ख़ाली नज़र आने लगे हैं। इसके बाद ख़बर आई कि बैंकों में जाने वाले खाताधारकों को भी मांग के अनुसार कैश नहीं मिल पा रहा है। इसके बाद सरकार एक्टिव होती नज़र आई। लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी।
पहले तमिलनाडू कर्नाटक और बिहार के कुछ ज़िलों मंे नोटों की कमी की चर्चा चल रही थी। इसके बाद अचानक एमपी गुजरात और महाराष्ट्र सहित देश के कई और राज्यों से भी ऐसी शिकायतें सामने आने लगीं कि वहां एटीएम में पर्याप्त नक़दी नहीं है। इतना ही नहीं जब लोगोें की ज़रूरत एटीएम से पूरी नहीं हुयी तो वे अपना पैसा निकालने बैंक जाने लगे। लेकिन यह क्या वहां भी उनको मांग के अनुसार धन उपलब्ध नहीं हो पा रहा था। इसके बाद सरकार हरकत में आई। हालांकि यह काम रिज़र्व बैंक का था कि वह नोटों की कमी होने और देश में नकदी की कमी का संकट खड़ा होने से पहले ही इस समस्या का कोई कारगर हल तलाश लेता।
लेकिन लगता है कि ऐसे मामलों में जो हालत कांग्रेस और अन्य मिलीजुली सरकारों में दौर मंे हुआ करती थी। वही लापरवाही और आग लगने पर पानी तलाश करने की नौकरशाही की आदत बदस्तूर जारी है। इसके विपरीत अब तो मोदी सरकार ने आरबीआई सहित तमाम स्वायत्त संस्थाओं की नकेल अपने हाथ मंे लेकर उनको कठपुतली बनाया है। हालांकि सरकार ने अनमने ढंग से यह तो दबी ज़बान में स्वीकार किया कि वास्तव में नोटों की कमी है। लेकिन वह इस संकट को पैदा होने से क्यों नहीं रोक सकी इसका उसके पास कोई माकूल जवाब नहीं है।
सरकार का दावा है कि उसने 500 के नोटोें की छपाई का काम कई गुना बढ़ा दिया है। लेकिन वह यह नहीं बता पा रही है कि उसने2000 के नोट जून 2017 से छापने बंद क्यों किये हैं? इतना ही नहीं दो हज़ार का नोट इसलिये बाज़ार में कम आ रहा है क्योंकि लोगों ने एक बार फिर से बड़े नोटों की जमाखोरी शुरू कर दी है। मोदी सरकार ने जब नवंबर 2016 में नोटबंदी की थी तो उस समय कई बड़े बड़े लाभ गिनाये गये थे। लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि देश का सारा कालाधन न केवल सफेद हो गया। बल्कि कुछ लोगों ने बैंकों में पुराने नोट जमा कराने की आपाधापी में अपने पास आये जाली नोट भी अपने खातों में आराम से जमा कर दिये।
ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि बैंकों की सब ब्रांचों के पास नक़ली नोट जांचने सुविधा तक उस समय उपलब्ध नहीं थी। नोटबंदी से न तो आतंकवाद रूका और न ही नक्सलवाद पर कोई कारगर रोक लग सकी है। ऐसे ही दो हज़ार और पांच सौ के जाली नोट भी पहले से ज़्यादा बाज़ार में आ गये हैं। नोटबंदी नाकाम होती देख मोदी सरकार ने दावा किया था कि कैशलेस न सही भविष्य में लेसकैश ट्रांज़ैक्शन को बढ़ावा दिया जायेगा। आंकड़े बताते हैं कि आज पहले से भी ज़्यादा नोट चलन में हैं। इसके साथ ही रिश्वत में बदस्तूर बड़े नोट लेकर नौकरशाह नेता और एजेंट या तो घरों में उनके अंबार लगा रहे हैं।
या फिर एक बार फिर कालाधन विदेशों में डंप किया जा रहा है। यही काम व्यापारी और उद्योगपति भी पहले की तरह कर रहा है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि बड़े नोटों की कमी कर्नाटक चुनाव की वजह से भी आई है। राजनीतिक दल बड़े पैमाने पर कालाधन चुनाव में चोरी छिपे खर्च करते हैं। इसके साथ यह भी चर्चा आम है कि2019 के चुनाव के लिये बैंकों से नेता अभी से पैसा बड़ी मात्रा में निकाल कर अपने पास सुरक्षित रख रहे हैं। यह भी सुना जा रहा है कि जिस तरह विजय माल्या नीरव मोदी और मेहुल चोकसी बैंकों का धन लेकर विदेश भागे हैं।
इससे लोगों में यह डर फैल रहा है कि बैंकों के ऐसे घोटाले इससे कई गुना बड़े हैं। जितने वे कम करके बताये जा रहे हैं। लोग एटीएम में पैसा न होने पर जब बैंक गये तो उनको वहां कुछ ब्रंाच में मैनेजर ने जब मांग के अनुसार धन देने में असमर्थता जताई तो उनके दिल मंे यह खौफ बैठ गया कि शायद उनका पैसा बैंकों में सुरक्षित नहीं है। उनको सरकार के प्रस्तावित कानून से भी दहशत हो रही है। जिसमें यह कहा गया था कि अगर बैंक घोटालों एनपीए या किसी और वजह से फेल होते हैं तो उनकी क्षतिपूर्ति आम जनता के जमा धन से की जायेगी।
हालांकि सरकार ने इसका उसी समय खंडन भी किया था। लेकिन इधर एक के बाद एक नाकामी से जनता का मोदी सरकार से तेज़ी से मोहभंग हो रहा है। मोदीभक्त माने या ना माने लेकिन बच्चियों और महिलाओं के साथ बढ़ती बलात्कार की घटनायें,आरोपियों को बचाती राज्यों की भाजपा सरकारंे, बेरोज़गारी किसान आत्महत्या बैंक घोटाले हथियार ख़रीद पर सवाल जीएसटी से तबाह कारोबार और कालाधन विदेशों से वापस न आने सहित ऐसे मुद्दे बढ़ते जा रहे हैं। जिनपर मोदी सरकार बैकफुट पर लगती है। कभी जो लोग भाजपा का पक्का वोटबैंक होते थे। आज वो ही सबसे ज़्यादा बर्बाद होकर उससे नाराज़ नज़र आ रहे हैं। उनको लगता है-
0 जिन पत्थरों को हमने अता की थीं धड़कनें,
जब बोलने लगे तो हम ही पर बरस पड़े।।
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