Tuesday, 30 May 2017

Buddhijivee

*"आप बुद्धीजीवियों से बहुत चिढ़ते हैं?*
क्योंकि बुद्धिजीवी ऐसी बात बोलते हैं जिससे आपको चिढ है,
आइये आपको बुद्धिजीवी लोगों की गुप्त बातें बताता हूँ,
बुद्धीजीवी कैसे बना जाता है वह समझाता हूँ,
बुद्धीजीवी बनने की पहली सीढी है कि थिंक अबाउट योर थिंकिंग,
यानी अपनी सोच के बारे में सोचो ?
यानी खुद की सोच पर ध्यान दो,
अगर आप का जन्म सवर्ण परिवार में हुआ है और आपको दलितों का पक्ष गलत लगता है,
अगर आप हिन्दू घर में पैदा हुए हैं और आपको अपना धर्म महान और दुसरे धर्म गलत लगते हैं,
अगर आपका घर खाते पीते घर में हुआ है और आपको मजदूर कामचोर और गरीब आलसी लगते हैं,
तो फिर से अपनी सोच पर ध्यान दीजिये,
सोचिये आप दलित होते तो क्या आपके विचार यही होते जो सवर्ण होने की वजह से हैं ?
सोचिये अगर आप मुसलमान होते तो आपके विचार वही होते जो हिन्दू होने के कारण हैं ?
सोचिये अगर आपका घर एक गरीब मजदूर के रूप में होता तो क्या आपके विचार वही होते जो एक खाते पीते घर का सदस्य होने के कारण हैं ?
अगर आप पूरी ईमानदारी और हिम्मत से अपनी सोच की समीक्षा करेंगे,
तो आप पायेंगे कि आपके विचार असल में आपके परिवेश, स्थान, वर्ग, वर्ण और सम्प्रदाय के कारण बने हैं,
जैसे ही आप इस तथ्य को स्वीकार करते हैं,
आपके विचार बदलने लगते हैं,
अब आप सत्य की खोज शुरू करते हैं,
आप अपनी जाति, सम्प्रदाय, राष्ट्र, वर्ण, वर्ग की तुच्छ सीमाओं से ऊपर उठने लगते हैं,
आपकी सोच सच्ची ईमानदार और वास्तविक होने लगती है,
अब आप अपने धर्म के लोगों की गलत बातों का विरोध करने लगते हैं,
आप अपनी जाति के द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों के खिलाफ जाकर पीड़ित जाति के पक्ष में खड़े हो जाते हैं,
आप अपने राष्ट्र द्वारा किये जाने वाले गलत कामों का विरोध करते हैं,
आप धीरे धीरे निखरते जाते हैं,
आपको दुसरे लोगों की छुद्र सोच पर दया आने लगती है,
आप कोशिश करते हैं कि आप सच्ची बात सबको बताएं,
लेकिन सम्प्रदाय, जाति, वर्ग में फंसे हुए लोग आपको गालियाँ देते हैं,
आपको धर्म विरोधी, जाति का गद्दार, राष्ट्रद्रोही कहा जाता है,
आपको विदेशी पैसे पर पलने वाला गद्दार बुद्धीजीवी कहा जाता है,
आप अचरज से सारी बातें सुनते हैं,
लेकिन अब आपका दुबारा से मूर्ख बनने का रास्ता बंद हो चुका है,
क्योंकि सत्य में जीने का आनन्द आपसे अब छूटता नहीं है,
आप अब धर्म, जाति, वर्ग, राष्ट्र की मूर्खता के दलदल में दोबारा जा ही नहीं पाते हैं,
दुनिया अगर युद्ध से बची है,
दुनिया में अगर दया, समझदारी, नियम, कानून, और सत्य काम कर रहा है,
तो वह ऐसे ही मुक्त सोच वालों के कारण है,
धर्म, जाति, वर्ग, राष्ट्र की मूर्खता में फंसे हुए नेता अफसर व्यापारी, फौजी और भीड़ तो युद्धों, शोषण मारकाट में लगी हुई है,
दुनिया को ज़्यादा से ज़्यादा आज़ाद सोच के बुद्धीजीवियों की ज़रूरत है,
ताकि यह दुनिया धार्मिकों, राष्ट्रवादियों, जातिवादियों और नस्लवादियों के हाथों नष्ट ना हो सके..."
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@ Himanshu Kumar

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