*सबके मसीहा थे नरेशचंद अग्रवालः*
*नजीबाबाद के लिये थे बेमिसाल!*
*–इक़बाल हिंदुस्तानी*
*0आज के दौर में जब कोई अपनी बिरादरीकानेता है तो कोई अपने धर्म के एक गुट कावैसे मेंसमाजसेवी ज्ञानी और शिक्षाविद श्रीनरेशचंदअग्रवाल जी ने नजीबाबाद के हर वर्गका दिलजीता था।*
श्री नरेशचंद अग्रवाल 87 साल की उम्र में 11मई को इस दुनिया से विदा हो गये। वे 1971 से1977 तक नगरपालिका के ऐसेचेयरमैन रहेजिनकी छवि एक ईमानदारसादगी पसंद औरन्यायप्रिय जननेता की रही।आज भी नगर कीछोटी छोटी गलियांे में भीबनी पक्की सड़कें नकेवल उनके गरीबनवाज़काम की याद दिलातीहैं। बल्कि वे 40 सालबाद भी क्वालिटी केमामले में गड्ढा मुक्त हैं।नगर की कभी बेतरतीबरही सब्ज़ी मंडी कोभी उनके ही कार्यकाल मेंबाकायदा पंक्तिबध्ददुकानों में बनाकर सायेदारबनाया गया था।
दशहरा पर रामलीला ग्राउंड परमेलाआतिशबाज़ी दिवाली मेला होली मेलाईदमिलन होली मिलन पर कवि सम्मेलनमुशायराप्रमुख त्यौहारों पर नगर के चौकबाज़ार कीसजावट और कई दशकों तकअपने निजी खर्चपर हिंदू मुस्लिम भाईचारे कोबढ़ावा देने के लियेसामूहिक रोज़ा अफ़तारकराना उनके उन चंदनेक कामों में शामिलथा। जो वे आयेदिन थोकमें समाजसेवाशिक्षा के प्रचार प्रसार एकताअमन गरीबोें कीमदद के लिये खामोशी के साथकरते रहते थे।उनको यहां एसडीएम रहतेलोकप्रिय कविऔर गायक श्री जेपी गुप्ता केप्रयासों सेसाम्प्रदायिक एकता और सौहार्द केलियेबिजनौर रत्न एवार्ड से भी ज़िला प्रशासनने 2012 में नवाज़ा था।
इसके साथ ही उनको ढेर सारे सम्मानऔरपुरस्कार अपने समाजिक कार्यो के लियेविभिन्नसरकारी और गैर सरकारी संस्थाओंने समयसमय पर दिये थे। नजीबाबाद मेंशिक्षा कामाहौल बनाने से लेकर समाजसेवीअपने बड़ेभाई साहू सुरेशचंद अग्रवाल एवंसाहू रमेशचंदअग्रवाल, टाइम्स ऑफ इंडियाके चेयरमैन रहेसाहू रमेशचंद जैन के साथसहयोग और परामर्शसे उन्होंने एमडीएसएमडीकेवी साहू जैन डिग्रीकॉलेज और रमाजैन कन्या डिग्री कॉलेज सेलेकर आचार्यआर एन केला इंटर कॉलेज तककी स्थापनासे लेकर इन शिक्षा मंदिरों केसंचालनसंयोजन और प्रबंधन में अपने मित्रश्रीसुरेशचंद लाहौटी और कृष्ण अवतारअग्रवालएडवोकेट आदि के साथ नजीबाबादको शिक्षाका हब बनाने में कोई कोर कसरनहीं छोड़ी।
उन्होंने नगर और नागरिकों के हितों कोसदाअपने व्यक्तिगत हितों से उूपर रखा। एकबारचेयरमैनी के चुनाव के दौरान शहर कामाहौलकुछ लोगों ने साम्प्रदायिक बनाने काप्रयासकिया तो वे बुरी तरह नाराज़ हो गये। 1989 मेंउन्होंने एमडीकेवी पोलिंग स्टेशन परबूथकैप्चरिंग की अफवाह पर तेजी से बढ़ रहीभीड़को यह कहकर उल्टे पांव घर लौटा दियाकिचुनाव में उनकी हार जीत इतनी अहमियतनहींरखती जितनी शहर की अमन चैनऔरभाईचारा। उनकी दूरअंदेशी और उदारताही थीकि जैसे ही उन्होंने अपने विरोध मेंचुनाव लड़रहे प्रत्याशी के भतीजे को तनावके माहौल मेंमौके पर आता देखा।
प्यार से समझाकर उनके घर वापस भेजदियाऔर आगे के लिये अपना ही बच्चामानकरताकीद की जब कभी ऐसा ख़तरनाकमाहौल होआरोपी को मौके पर नहीं आनाचाहिये। मैं नहींचाहता चुनाव के चक्कर में मेरेनगर के किसीभी नागरिक को अपमान यानुकसान पहुंचे।1992 में जब बाबरी मस्जिदराम मंदिर विवादचल रहा था। उस समय भीनरेशचंद जी नेनजीबाबाद को दंगे से बचाने मेंबहुत अहम रोलअदा किया था। वे लगातारदोनों वर्गो के लोगोंको समझाते रहे कि हमसबको हमेशा साथसाथ यहीं रहना है। एकदूसरे के बिना काम नहींचलेगा।
इतना ही नहीं कई बार जब दोनों वर्गों केलोगोंने एक दूसरे पर हमला करने के लियेछतों परहथियार लेकर जमा होने कीशिकायत की तो येनरेशचंद अग्रवाल जी काही जीवट और हर वर्गके लोगों पर भरोसा थाकि वे बिना किसी सुरक्षाके दोनों तरफ केचार चार आदमी लेकर उनछतों काआकस्मिक मुआयना कराने देर रात कोअपनेसाथ ले गये। जहां दंगाइयों के इकट्ठाहोनेहथियार जमा करने और बाहर आयेलोगों केद्वारा दंगों का प्रशिक्षण देने की चर्चाआम थी।एक बार नगर के एक कन्या इंटरकॉलेज में बोर्डके एक्ज़ाम के दौरान तलाशीलेने को पहलेमुस्लिम लड़कियों के बुर्केउतरवाये गये। बाद मेंजब लड़कियां पेपरदेकर वापस लौटी तो वे बुर्केगायब हो गये।इस पर शहर में एक वर्ग में तनावफैल गया।
नरेशचंद जी को जब पता लगा। वे मौके परगये।बुर्के तलाश कराये तो वे पास में ही पड़ेहुए कुछतो मिल गये। जिनके नहीं मिले अपनेपास सेपैसा देकर हाथों हाथ नये बुर्के बाज़ारसे मंगवायेऔर मामला सुलझा दिया। ऐसे हीएक बार दोलोगों के आपसी समझौते में एकतय टाइम केबाद एक पार्टी को दूसरी पार्टी ने 6 लाख रू0देने थे। जब तयशुदा समय आयातो दूसरी पार्टीसमझौते से मुकर गयी। नरेशजी ने पहली पार्टीको दिया वचन निभाकरएक मिसाल बना दी।उन्होंने इतनी बड़ी रकमअपने पास से ज़मानतीके तौर पर अदा करदी। ऐसे ही दर्जनोंविधवाओं विकलांगांेअनाथों गरीबों बीमारोंऔर राजनीतिक सेलेकर समाजिक खेलसाहित्यिक सांस्कृतिकशैक्षिक संस्थाओं को वेबड़ी रकम सहायताके तौर पर देते थे।
उनके यहां कोई भी कभी चंदा लेने गया तोकभीखाली हाथ नहीं लौटा। नन्हें मियां केउर्स कासारा खर्च वे कई दशक से अकेले हीदेते आ रहेथे। गरीब छात्र छात्राओं कोमासिक फीसवज़ीफा और कपड़े व किताबेंदेना तो उनकेलिये आम बात थी। यहां तककि अगर उनसेकोई कालेज में अपने बच्चे केप्रवेष की अपीलकरता था तो वे अपने पाससे चंदा गुप्त रूप सेभेजकर उसका दाखि़लाकरा देते थे।
चंद्रा परिवार द्वारा कई साल तकआयोजितमाता कुसुम कुमारी हिंदीतर भाषीहिंदी सम्मानमें जब वे मुख्य अतिथि के तौरपर साधिकारबोलते थे तो प्रोग्राम मंे आयेबड़े बड़े विद्वानलेखक कवि मंत्री गवर्नर औरमनीषी यह देखऔर सुनकर हैरत में रह जातेथे कि यह आदमीनजीबाबाद जैसे छोटे सेकस्बे में एक पालिकाका चेयरमैन उद्योगपतिऔर समाजसेवी होने केसाथ ही पूरे भारत केगैर हिंदी भाषी राज्यों केहिंदी विद्वानों कीसमस्याआंे आवश्यकताओंऔर उनकेसमाधान के बारे में कितनी गहरीरूचिजानकारी और विस्तार से विश्लेषणकरसकता है।
शायद यही खूबी थी कि श्री नरेशचंदअग्रवालजी को उनकी वैश्य बिरादरी ही नहींहर धर्मसमाज जाति क्षेत्र राजनीतिक दलसामाजिकशैक्षिक व साहित्यिक संस्थायेंऔर यहां तक किकभी एक न होने वालेपत्रकार भी उनको अपनामसीहा मानकरउनकी एक आवाज़ पर उनकेसामनेनतमस्तक हो जाया करते थे। इन पंक्तियोंकेलेखक को तो वे अपना मानस पुत्र मानते थे।24 साल पहले जब उन्होंने मुझे संचालकसमृाटप्रदीप डेज़ी छोटे भाई शायर शादाबज़फर औरडा. आफ़ताब नौमानी को होलीमिलन ईदमिलन के गंगा जमुनी प्रोग्राम कीबागडोर सौंपीथी। तब से वे हमारे परिवार केमुखिया औरसंरक्षक और मुख्य सलाहकर होगये थे।
0 यूं तो आये हैं सभी दुनिया में मरने के लिये,
मौत उसकी है ज़माना करे अफ़सोसजिसका।
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