‘माता’ से ज़्यादा ‘भाइयों’ की चिंता ?
पीएम मोदी जी ने गोमाता की जगह दलित भाइयों के पक्ष में इस बार बड़ा भावुक बयान दिया है। उनका कहना है कि गोरक्षा की आड़ में जो लोग दलित भाइयों को मार रहे हैं। वे दलितों को न मारकर उनपर गोली चला सकते हैं। जब यही गोभक्त मुसलमानों पर आयेदिन हमले कर रहे थे। तब तक तो मोदी चुप्पी साध्ेा रहे। तब उनको इससे हिंदू वोट बीजेपी के पक्ष में ध्रुवीकृत होता लगा होगा। आज जब उनको लगा कि गोभक्तों का यह अभियान भाजपा के करीब आ रहे दलितों को उससे दूर कर देगा तो वे गोमाता की चिंता छोड़ दलित भाइयों के साथ खड़ा होने की हुंकार भरने लगे।
कितनी अजीब बात है कि राजस्थान में भाजपा की सरकार है। वहां राजधानी जयपुर में एक विशाल गोशाला है। उसमें आठ हज़ार से अधिक गाय पल रही हैं। इस गोशाला को राज्य सरकार हर साल 22 करोड़ से अधिक का बजट देती है। इन गायों की देखभाल करने के लिये 400 से अधिक लोगों को तैनात किया गया है। पिछले दो सप्ताह में इस गोशाला में 500 गाय दलदल की वजह से मर चुकी हैं। लंबे समय से गोशाला का प्रभारी और प्रबंधक बिना वाजिब वजह के अपनी ड्यूटी से गायब हैं। अन्य कर्मचारियों की भी कमोबेश यही हालत है। बताया जाता है कि मुश्किल से 50 लोग ही अपना काम करने आते हैं। इतनी बड़ी तादाद में गायों के मरने की वजह गोशाला में बरसात में बन गयी दलदल बताई जाती है।
इस दलदल की वजह से गायें लंबे समय से बैठ नहीं पा रही थीं। जो गायें दलदल में बैठ जाती थीं। वे दोबारा उठ नहीं पाती थीं। उनका चारा भी दलदल में ही डाला जा रहा था। जिससे वो कीचड़ से गंदा हो जाता था। इस ख़राब चारे को न खाने वाली गायें भी बड़ी तादाद में मौत का भूख की वजह से शिकार बनी हैं। ऐसा नहीं है कि यह दलदल कुछ मिनटों या घंटों में अचानक रातोरात बन गयी होगी। सच तो यह है कि अव्यवस्था और लापरवाही की वजह से यह संकट धीरे धीरे खड़ा हुआ होगा। अलबत्ता इससे गायों की मौत ज़रूर तेजी से बढ़ी होगी। सोचने वाली बात यह है कि इस गोशाला का प्रबंधक और अन्य स्टाफ जो सब कुछ जानता था। वह इन बेजुबान निरीह गायों की हत्या के लिये ज़िम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जा रहा है?
अगर यह गोशाला प्रभारी कोई मुस्लिम या दलित होता तो गोरक्षक अब तक उस पर जानबूझकर हिंदुओं की भावना से खिलवाड़ का आरोप लगाकर हमला कर चुके होते। जो गोभक्त दादरी में घर में रखे मीट को बिना लैब में जांचे गाय का बताकर अखलाक की जान ले लेते हैं। जो गोभक्त उूना में शेर द्वारा मारी गयी गाय की खाल उतारने पर पांच दलितों की सरेआम पीट पीटकर खाल उतारने लगते हैं। वे इतनी बड़ी तादाद में अपराधिक लापरवाही और जानबूझकर गोशाला से गायब रहकर 500 से अधिक गायों को बेमौत असमय मरने के लिये हालात पैदा करने वाले ज़िम्मेदार लोगों के खिलाफ अभी तक सड़कों पर क्यों नहीं उतरे? राज्य सरकार के खिलाफ उग्र प्रदर्शन क्यों नहीं किया?
क्या गोभक्तों की भावनायें गोमाता को लेकर तभी भड़कती हैं जब उनके सामने आसान शिकार सबक सिखाने के लिये मुसलमान और दलित होते हैं? यही सवाल पीएम मोदी जी से पूछा जाना चाहिये कि उनकी सरकार बनने के बाद से आयेदिन चुनचुनकर मुसलमानों को कहीं गोवंश के अवैध तस्कर बताकर और कभी भैंस के मांस को मंदसौर में मुस्लिम महिलाओं के पास गाय का बताकर खुलेआम पीटा जा रहा है। लेकिन मोदी जी ने आज तक इन मामलों की निंदा तक नहीं की। कार्यवाही तो दूर की बात है। आज जब गोरक्षकों ने दलित वोटों को नाराज़ किया तो मोदी जी का सियासी तौर पर मुंह खुला है।
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता।।
No comments:
Post a Comment