‘‘पॉवर मेक्स करप्ट, एंड एब्स्लूट पॉवर मेक्स एब्स्लूट करप्ट‘‘अंग्रेज़ी की यह कहावत इस समय बिहार में एक और तरीके से लागू हो रही है। पहले लोगों को शक था कि अगर नीतीश कुमार लालू प्रसाद यादव के सपोर्ट से सत्ता में आये तो बिहार में एक बार फिर जंगल राज लौट आयेगा। यह आशंका तो गलत साबित हो गयी। इसकी वजह लालू प्रसाद का इस बार फंूक फंूककर कदम रखना है। उनके पुत्र भी सियासत को उनसे बेहतर समझकर और उनके अनुभव से सीखकर गल्तियां करने से बच रहे हैं। लेकिन इस बार नीतीश कुमार शराबबंदी के वादे को पूरा करने के चक्कर में कुछ ऐसी गल्तियां कर रहे हैं। जिससे उनको आगे जवाब देना मुश्किल हो सकता है।
यह ठीक है कि नीतीश ने अपने चुनावी वादोें को बड़ी संजीदगी और ईमानदारी से पूरा करने का अभियान शुरू किया है। उनको खासतौर पर महिलाओं के वोट थोक में मिलने का एक कारण शराबबंदी का ऐलान भी माना गया था। हालांकि सामाजिक तौर पर शराबबंदी का अच्छा नतीजा आने के आसार हैं। लेकिन यह भी सच है कि बिहार को इसका आर्थिक रूप से भारी नुकसान होने जा रहा है। इसके विकल्प के तौर पर नीतीश ने शराब बंद करने से होने वाले राजस्व के नुकसान की पूर्ति का कोई खाका अब तक पेश नहीं किया है। उधर केंद्र में मौजूद मोदी सरकार से उनका 36 का आंकड़ा जगज़ाहिर है। इसका परिणाम यह होगा कि केंद्र उनको किसी तरह से भी आर्थिक क्षतिपूर्ति तो दूर जो पैकेज उसने चुनाव से पहले घोषित किया था।
वह भी देने को तैयार नहीं है। केंद्र ने अन्य विपक्षी दलों की राज्य सरकारों को आर्थिक रूप से पक्षपात और अन्याय करने का जो अभियान दिल्ली में शुरू किया है। उसका विस्तार बिहार तक होना ही था। वैसे भी नीतीश ने जब से मोदी को पीएम पद का प्रत्याशी बनाने का राजग में खुलकर विरोध किया था। तब से ही नीतीश और मोदी के बीच तलवारें खिंच गयी थीं। अब नीतीश सराकर शराबबंदी को लागू करने के लिये जिस तरह के नियम कानून संविधान से बाहर जाकर बना रही है। उससे यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि अगर ऐसा किसी भाजपा शासित राज्य में होता तो अब तक विपक्ष और सेकुलर लॉबी आसमान सर पर उठा लेती।
लेकिन अब मीडिया सहित सब तरफ लगभग सन्नाटा है। बिहार के बिहारशरीफ क्षेत्र के कैलाशपुरी गांव के 50 परिवारों पर बार बार वहां शराब बरामद होने पर प्रति परिवार 500 रू. का जुर्माना लगाया गया है। इतना ही नहीं किसी कम्पनी में उसका कर्मचारी अगर शराब के साथ पकड़ा गया तो उस कम्पनी मालिक के खिलाफ भी केस दर्ज किया जायेगा। इसके साथ ही किसी घर में अगर शराब बरामद होती है तो उस घर के हर बालिग सदस्य के खिलाफ मुकदमा कायम कर कानूनी कार्यवाही की जायेगी। यह जंगल का कानून नहीं तो और क्या है? यह तो वही बात हो गयी कि करे कोई भरे कोई। या यूं भी कह सकते हैं कि अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा।
अजीब बात यह है कि अब तक इस कानून को किसी ने हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी है। संविधान में कहां लिखा है कि घर का एक आदमी अपराध करे तो उसकी सज़ा सबको मिलेगी? और यह कौनसा न्याय है कि किसी गांव में कुछ लोग जुर्म करें तो पूरा गांव जुर्माना भरे? ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार सनक की हद तक शराबबंदी को सफल बनाने में जंगलराज कायम कर रहे हैं। इसके लिये सामाजिक माहौल पहले तैयार किया जाना चाहिये था। यह काम केवल कानून को सख़्त करके नहीं हो पायेगा।
इब्तिदा ए इश्क़ है रोता है क्या
आगे आगे देखिये होता है क्या।
Wednesday, 24 August 2016
बिहार में फिर जंगलराज?
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