Sunday, 5 July 2015

FIR

एफआईआर में क्या क्या होता है ?

अभियुक्त का नाम और पता हो
अपराध होने का दिन,स्थान तथा समय हो
अपराध करने का तरीका तथा उसके पीछे नीयत आदि हो
साक्षी का परिचय हो
अपराध से सम्बद्ध सभी विशेषताएं हों
परिवाद क्या है?

किन्ही व्यक्ति या व्यक्तियों (जानकार या अनजान) के विरुद्ध मौखिक या लिखित रुप में मजिस्ट्रेट को किया गया आरोप है ताकि मजिस्ट्रेट उनके विरुद्ध  विधिक कार्यवाही कर सकें।
जब पुलिस अधिकारी एफआईआर के आधार पर कार्यवाही नहीं करता है, तब व्यथित व्यक्ति उस मजिस्ट्रेट को परिवाद कर सकता है , जिसे उस अपराध पर संज्ञान लेने की अधिकारिता है ।
परिवाद के विषय वस्तु

कथित अपराध का विवरण हो
अभियुक्त तथा परिवादी का नाम तथा पता हो
साक्षियों के नाम तथा पते हों
आत्मरक्षा का अधिकार क्या है ?

हर व्यक्ति को आईपीसी की धारा 96 से लेकर धारा 106 द्वारा दिए गए अधिकार हैं कि वह अपने अथवा अन्य व्यक्ति के शरीर या संपत्ति की अन्य व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह के हमले से रक्षा करे।
गिरफ्तारी के कानून

पुलिस किसी भी व्यक्ति पर अपराध का आरोप होने पर ही उसे गिरफ्तार कर सकती है । केवल शिकायत अथवा शक के आधार पर किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है ।

वारंट क्या है ?

वारंट न्यायालय द्वारा जारी किया गया तथा न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित एक लिखित आदेश है।
हर वारंट तब तक प्रवर्तन में रहेगा जब तक वह उसे जारी करने वाले न्यायालय द्वारा रद्द नहीं कर दिया जाता या जब तक वह निष्पादित नहीं कर दिया जाता है ।
जमानती वारंट क्या है?

जमानती वारंट न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए जारी किया गया वारंट है, जिसमें यह पृष्ठांकित है कि जमानत की शर्तें पूरी करने के बाद उसे जमानत दी जा सकती है । इस मामले में पुलिस जमानत देने की हकदार है , अगर गिरफ्तार व्यक्ति शर्तें पूरी करे।
गैरजमानती वारंट क्या है ?

गैरजमानती वारंट किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए न्यायालय द्वारा जारी वारंट है । इस मामले में पुलिस अधिकारी जमानत देने के लिए प्राधिकृत नहीं है । जमानत प्राप्त करने के लिए गिरफ्तार व्यक्ति को सम्बद्ध न्यायालय में आवेदन करना होगा।
बिना वारंट के गिरफ्तारी

अभियुक्त पर संज्ञेय अभियोग हो या उसके खिलाफ ठोस शिकायत की गयी या ठोस जानकारी मिली हो या अपराध में उसके शामिल होने का ठोस शक हो,
अभियुक्त के पास सेंध लगाने का कोई औजार पकड़ा जाए और वह ऐसे औजार के अपने पास होने का समुचित कारण नहीं बता सके,
अभियुक्त के पास ऐसा सामान हो जिसे चोरी का समझा जाने के कारण हो अथवा जिस व्यक्ति पर चोरी करने या चोरी के माल खरीद-फरोख्त करने का शक करना वाजिब लगे।
अभियुक्त घोषित अपराधी हो ,
अभियुक्त किसी पुलिस अधिकारी के कर्तव्य पालन में बाधा पहुंचाए,
अभियुक्त पुलिस/कानूनी हिरासत से फरार हो जाए,
अभियुक्त के खिलाफ पक्का संदेह हो कि वह सेना का भगोड़ा है,
अभियुक्त छोड़ा गया अपराधी हो, लेकिन उसने फिर कानून तोड़ा हो,
अभियुक्त संदेहास्पद चाल-चलन का हो या आदतन अपराध करने वाला हो,
अभियुक्त पर असंज्ञेय अभियोग हो और वह अपना नाम-पता नहीं बता रहा हो।
 

गिरफ्तारी के लिए मजिस्ट्रेट का वारंट

व्यक्ति को किसी भी मामले में गिरफ्तार करने के दौरान उसका अपराध तथा गिरफ्तारी का आधार बताया जाना चाहिए।
उसे यह भी बताया जाना चाहिए कि उस अभियोग पर उसे जमानत पर छोड़ा जा सकता है या नहीं ।
गिरफ्तारी के समय व्यक्ति पुलिस से वकील की मदद लेने की इजाजत मांग सकता है । उसके मित्र, संबंधी भी उसके साथ थाने तक जा सकते हैं ।
अगर व्यक्ति गिरफ्तारी का प्रतिरोध नहीं कर रहा हो तो गिरफ्तारी के समय पुलिस उससे दुर्व्यवहार नहीं कर सकती है, ना ही मारपीट कर सकती है ।
अगर वह पुराना अपराधी नहीं है या उसके हथकड़ी नहीं लगाने पर भाग जाने का खतरा नहीं है , तो गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को हथकड़ी नहीं पहनाई जा सकती है ।
अगर किसी महिला को गिरफ्तार किया जाना है , तो पुलिस का सिपाही उसे छू तक नहीं सकता है ।
गिरफ्तारी के तुरंत बाद व्यक्ति को थाने के प्रभारी अथवा मजिस्ट्रेट के पास लाया जाना चाहिए।
किसी भी स्थिति में , गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाना चाहिए।( इसमें गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के पास लाए जाने का समय शामिल नहीं है)
किसी भी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना, 24 घंटे से ज्यादा समय तक पुलिस हिरासत में नहीं रखा जा सकता है।
गिरफ्तार व्यक्ति डॉक्टर द्वारा अपने शरीर की चिकित्सा परीक्षण की मांग कर सकता है ।
पुलिस हिरासत

अगर कोई पुलिसकर्मी हिरासत में किसी व्यक्ति को सताता है या यातना देता है तो उस व्यक्ति को पुलिसकर्मी की पहचान कर उसके खिलाफ आपराधिक आरोप दर्ज करने चाहिए
अगर हिरासत मे महिला के साथ बलात्कार तथा यौन संबंधी अन्य दुर्व्यवहार होता है तो उसे तुरंत डॉक्टरी जांच की मांग करनी चाहिए तथा मजिस्ट्रेट से शिकायत करनी चाहिए।
किसी महिला को केवल महिलाओं वाले लॉक अप में रखा जाना चाहिए।
अगर किसी थाने में ऐसी व्यवस्था नहीं है तो हिरासत में ली गयी महिला को मांग करनी चाहिए कि उसे ऐसे थाने में भेजा जाए जहां महिलाओं के लिए लॉक अप हो।
उच्चतम न्यायालय के निर्देश

गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी गिरफ्तारी औऱ हिरासत में लिए जाने की सूचना अपने मित्र, संबंधी या किसी अन्य व्यक्ति को देने का अधिकार है ।
गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर थाने ले जाते समय उसे सूचना देने के अधिकार की अवश्य जानकारी देनी चाहिए
जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति ने अपनी गिरफ्तारी की जानकारी दी है , उसका नाम पुलिस डायरी में दर्ज किया जाना चाहिए।
जमानत का अधिकार

जमानत क्या है?

जमानत गिरफ्तार व्यक्ति को कुछ शर्तों पर पुलिस या न्यायिक अभिरक्षा से मुक्त करने की अनुमति है ।

अगर अपराध गैर-जमानती नहीं है तो पुलिस को गिरफ्तार व्यक्ति को जमानत पर छोड़ना ही होगा। 
अगर पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट पर्याप्त समझे तो व्यक्ति को निजी मुचलके या बंध-पत्र पर भी छोड़ा जा सकता है ।
जमानत और मुचलके पर रिहा व्यक्ति को जब भी अफसर या अदालत तलब करे, हाजिर होना होगा।
प्रतिभु (जमानतदार) क्या होते हैं?

प्रतिभु वे व्यक्ति होते हैं जो मुक्त किए गए व्यक्ति की आवश्यकतानुसार थाने या न्यायालय में उपस्थित प्रत्याभूत करते हैं । अगर मुक्त किया गया व्यक्ति पुलिस थाने या न्यायालय में उपस्थित नहीं होता है तो उसे वह रकम अदा करने के लिए समर्थ होना चाहिए, जिसके लिए वह प्रतिभु है।

पुलिस की जांच

अपराध की जांच के दौरान पुलिस आपसे पूछताछ करे तो आपको अपनी जानकारी की बातें सही-सही बताते हुए पुलिस के साथ सहयोग करना चाहिए।
संभव हो तो आपको अपराध का सुराग भी पुलिस को देना चाहिए और जुबानी पूछताछ का उचित जवाब देना चाहिए।
आपके लिए न तो किसी लिखित बयान पर दस्तखत करना जरुरी है, न ही आपको वे सब बातें लिखकर देनी होती हैं जो आपने जुबानी बताई हैं ।
पुलिस पूछताछ

अभियुक्त को पूछताछ के दौरान पुलिस से सहयोग करना चाहिए।
अभियुक्त को सावधान भी रहना चाहिए कि पुलिस उसे झूठे मामले में न फंसाए।
अभियुक्त को किसी कागज पर बिना पढ़े अथवा उसमें लिखी बातों से सहमत हुए बिना हस्ताक्षर नहीं करने चाहिए।
किसी महिला और 15 साल से छोटे पुरुष को पूछताछ के लिए घर से बाहर नहीं ले जाया जा सकता है । उनसे घर पर ही पूछताछ की जा सकती है ।
व्यक्ति मजिस्ट्रेट से अनुरोध कर सकता है कि उससे पूछताछ का उचित वक्त दिया जाए।
पूछताछ के दौरान व्यक्ति ऐसे किसी सवाल का जवाब देने से मना कर सकता है , जिससे उसे लगे कि उसके खिलाफ आपराधिक मामला बनाया जा सकता है ।
व्यक्ति पूछताछ के दौरान कानूनी या अपने किसी मित्र की सहायता की मांग कर सकता है और आम तौर पर ऐसी सहायता की मांग पुलिस मान लेती है।
तलाशी के लिए वारंट

अदालत या मजिस्ट्रेट के तलाशी वारंट के बिना पुलिस किसी के घर की तलाशी नहीं ले सकती है ।
आमतौर पर चोरी के सामान, फर्जी दस्तावेज, जाली मुहर, जाली करेंसी नोट, अश्लील सामग्री तथा जब्तशुदा साहित्य की बरामदगी के लिए तलाशी ली जाती है ।
पुलिस अधिकारी को तलाशी के स्थान पर मौजूद संदिग्ध व्यक्तियों और वस्तुओं की तलाशी लेने देनी चाहिए।
तलाशी और माल की बरामदगी इलाके के दो निष्पक्ष तथा प्रतिष्ठित व्यक्तियों की उपस्थिति में की जानी चाहिए।
पुलिस को जब्त सामान की ब्योरा देते हुए पंचनामा तैयार करना चाहिए। इस पर दो स्वतंत्र गवाहों के भी हस्ताक्षर होने चाहिए और इसकी एक प्रति उस व्यक्ति को भी दी जानी चाहिए जिसके घर/इमारत की तलाशी ली गयी हो।
तलाशी लेने वाले अधिकारी की भी , तलाशी शुरु करने से पहले , तलाशी ली जा सकती है ।
कोई पुरुष किसी महिला की शारीरिक तलाशी नहीं ले सकता है, लेकिन वह महिला के घऱ या कारोबार के स्थान की तलाशी ले सकता है

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