नेट न्यूट्रैलिटी क्या है ?
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नेट न्यूट्रैलिटी पर मेरे जेहन में कुछ सवाल हैं. अगर कोई
जानकार साथी मेरे सवालों पर रोशनी डाल सके तो
मैं इस पूरी बहस को कुछ बेहतर तरीके से समझ सकूंगा.
मुझे उम्मीद है कि आप मेरी मदद जरूर करेंगे.
1. व्हॉट्स अप का रेवेन्यू मॉडल क्या है? और कितने
लोग हैं जो ऐसी किसी सुविधा के लिए पैसे का
भुगतान करने को तैयार हैं. डेटा चार्ज के अलावा.
क्योंकि डेटा चार्ज तो टेलीकॉम कंपनी के खाते में
जा रहा है. व्हॉट्स अप, स्काइप या फिर इनके जैसे
तमाम ऐप बनाने और चलाने वालों की कमाई कैसे
होगी?
2. रिलायंस का रिटेल भी है. ऑनलाइन कारोबार में
भी उसका दखल होगा. एटरटेल का भी रिटेल है.
ऑनलाइन कारोबार में उसका भी दखल होगा. जब
टेलीकॉम सेवा देने वाली कंपनियां अगर ऑनलाइन
रिटेल शुरू करेंगी तो इसकी क्या गारंटी है कि वो
अपने विरोधियों के बिजनेस को खराब करने के लिए
नेट न्यूट्रैलिटी को ताक पर नहीं रखेंगी?
3. व्हॉट्स ऐप की वजह से टेलीकॉम कंपनियों की
एसएमएस के जरिये होने वाली आमदनी घट रही है.
अगर व्हॉट्स ऐप कॉलिंग भी सही तरीके से चलने लगी
तो उसकी वजह से टेलीकॉम कंपनियों की आदमी और
घटेगी. डेटा रेवेन्यू जरूर मिलेगा. लेकिन डेटा रेवेन्यू और
कॉल रेवेन्यू में अंतर होता है. कॉल अगर आईएसडी हो
तो अंतर और भी ज्यादा होता है. तो उस घाटे की
भरपाई कैसे होगी?
4. व्हॉट्स अप और स्काइप जैसी कंपनियां टेलीकॉम
कंपनियों के साथ स्ट्रैटेजिक अलायंस में नहीं आएंगी
तो उनका लंबे समय तक रेस में बने रहना मुमकिन नहीं.
और स्ट्रैटेजिक अलायंस के लिए कुछ खास सुविधाओं
का लेन-देन तो करना ही होता है. रेवेन्यू शेयरिंग
करनी होती है. वह नेट न्यूट्रैलिटी के दौर में कैसे
मुमकिन है?
5. यहां यह भी ध्यान रखिये कि व्हॉट्स कॉलिंग या
फिर वीडियों कॉलिंग फ्यूचर है. इस तरह के ऐप बनाने
वाले भविष्य में कुछ कमाने की लालसा से काम करते
हैं. वह भी स्टॉर्टअप होते हैं. सर्विस ऐप्स का
इस्तेमाल ज्यादातर लोग मुफ्त में करते हैं. गूगल और
फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म्स में विज्ञापन की सुविधा है.
इंस्टाग्राम में भी विज्ञापन की गुंजाइश है. लेकिन
व्हॉट्स ऐप में यह सुविधा नहीं है. दूसरी तरफ लोग
डेटा का भी पैसा दें और फिर सर्विस का भी ऐसा
मानना बेबुनियाद है. इसलिए ऐप बनाने वाले
टेलीकॉम कंपनियों के साथ करार करते हैं. ताकि
टेलीकॉम कंपनियां उन ऐप्स को बेचें और अपने रेवेन्यू में
से उन्हें हिस्सा दें. ऐसे में क्या यह मुमकिन है कि कोई
कंपनी रेवेन्यू दे और उसका लाभ दूसरी कंपनी के ग्राहक
भी बराबर उठा सकें?
6. सर्च इंजन गूगल और यू-ट्यूब जैसे सोशल नेटवर्क को
छोड़ दिया जाए तो कोई भी कंपनी कंटेंट क्रिएट
करने वालों को अपनी कमाई में हिस्सेदारी नहीं
देती. टेलीकॉम कंपनियां जो कंटेंट की बुनियाद पर
डेटा के जरिये कमाई करती हैं और फेसबुक जैसे सोशल
नेटवर्क भी नहीं जिनके मुनाफे की बुनियाद ही हमारे
और आपके जैसे लोग हैं जो घंटों समय लगा कर मुफ्त का
कंटेंट तैयार करते हैं. टेलीकॉम कंपनियों तो मीडिया
संस्थानों से बेहतर स्पीड देने के नाम पर मोटी रकम
वसूलते हैं. ऐसे में कंटेंट का कारोबार करने वाले बड़ी
संस्थाएं भी विज्ञापनों की मोहताज बन कर रह
जाती हैं और ज्यादातर घाटे में चल रही हैं. अगर वो
टेलीकॉम कंपनियों के साथ एक्सक्लूसिव टाई-अप के
जरिए कमाना चाहती हैं तो उसमें बुराई क्या है? हममें
से कितने लोग इकॉनोमिस्ट को अच्छे कंटेंट के लिए
पैसा देते हैं? या फिर टाइम्स ऑप इंडिया को
ऑनलाइन पढ़ने के लिए पैसा देते हैं. या फिर
एनडीटीवी को उसके वीडियो न्यूज के लिए पैसा देते
हैं?
Monday, 29 June 2015
Net nutarlity....
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