Thursday 18 July 2024

जनसंख्या कानून

*आखिर मोदी सरकार जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने से क्यों डर रही है?* 
0 कुछ लोगों को लगता है कि भारत की सारी समस्याओं की जड़ मुसलमान हैं। देश की बढ़ती आबादी को लेकर भी उनको ज़िम्मेदार बताया जा रहा है जबकि परिवार नियोजन का संबंध धर्म से न होकर आमदनी और पढ़ाई से है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पांचवे सर्वे के अनुसार देश की प्रजनन दर 2 पर आ गयी है। किसी देश के वर्तमान जनसंख्या स्तर को जैसा का तैसा बनाये रखने के लिये टीएफआर यानी टोटल फर्टिलिटी रेट 2.1 होना चाहिये। हालांकि यह दर पांच राज्यों बिहार में 2.98 मेघालय में 2.91 यूपी में 2.35 झारखंड में 2.26 और मणिपुर में 2.17 अभी भी प्रतिस्थापन दर से कुछ अधिक बनी हुयी है। इस सर्वे से इस झूठ की पोल खुलती है कि देश में एक वर्ग विशेष की आबादी इतनी तेजी से बढ़ रही है कि वह एक दिन बहुसंख्यक हो जायेगा?    
    *-इकबाल हिंदुस्तानी*
नफ़रत और झूठी राजनीति से प्रेरित आरोप छोड़ दें तो नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत किया जाता है। एनएफएचएस-5 में 6 लाख 37000 परिवारों को शामिल किया गया है। इसमें देश के सभी 28 राज्यों एवं 8 केंद्र शासित प्रदेशों के 707 जिलों को शामिल किया गया है। सर्वे से पता चलता है कि देश के 67 प्रतिशत परिवार गर्भनिरोधक साधन अपना रहे हैं। पहले यह संख्या 54 प्रतिशत थी। हालांकि अभी भी देश के 9 प्रतिशत परिवारों तक गर्भनिरोधक साधन नहीं पहुंच पाये हैं। इनमें 11.4 प्रतिशत परिवार बेहद गरीब तो 8.6 प्रतिशत उच्च श्रेणी के हैं। आधुनिक गर्भनिरोधकों के प्रयोग के लेकर भी यह असमानता सामने आती है। निम्न आय वर्ग में इनका इस्तेमाल करने वाले 50.7 प्रतिशत तो उच्च आय वर्ग में 58.7 प्रतिशत हैं। यही उपयोग का अंतर कामकाजी महिलाओं में जहां 66.3 प्रतिशत है तो बेरोजगार महिलाओं में 53.4 प्रतिशत है। गर्भनिरोधक प्रयोग करने व अन्य साधन परिवार नियोजन के लिये अपनाने में धर्म से अधिक शिक्षा व समृध्दि की भूमिका पहले भी सामने आती रही है। इस बार के एनएफएसएच सर्वे के अनुसार 64.7 प्रतिशत सिख 35.9 प्रतिशत हिंदू और 31.9 प्रतिशत मुस्लिम पुरूष गर्भनिरोधक साधनों का इस्तेमाल करना महिलाओं का काम बताते हैं। जो लोग एक वर्ग विशेष का आर्थिक बहिष्कार और सामूहिक नरसंहार का खुलेआम गैर कानूनी आव्हान आयेदिन करते रहते हैं। वे साथ साथ यह झूठ भी फैलाते रहते हैं कि इस वर्ग विशेष की आबादी इतनी तेजी से बढ़ रही है कि ये आने वाले कुछ दशक मंे बहुसंख्यक हो जायेंगे। इस मामले में कुछ राज्य सरकारें दो बच्चो का कानून पहले ही बना चुकी हैं। अगर हम राज्य अनुसार देखें तो देश में सबसे कम प्रजनन दर केरल और कश्मीर में है। कश्मीर मुस्लिम बहुल है। साथ ही केरल में हिंदू मुस्लिम और ईसाई लगभग समान संख्या में हैं। 
इसका मतलब साफ है कि आबादी बढ़ने या परिवार नियोजन का सीधा संबंध धर्म या जाति से नहीं बल्कि शिक्षा और सम्पन्नता से है। लेकिन सच यह है कि यह कटु सत्य उन चंद साम्प्रदायिक राजनीतिक और धर्मांध लोगों को फूटी आंख नहीं सुहाता जो अपने वोटबैंक को गुमराह कर डराकर और झूठ फैलाकर बार बार भावनात्मक मुद्दों पर चुनाव जीतकर सत्ता का सुख लूट रहे हैं। ऐसे ही आबादी की जब भी बात आती है। एक और झूठ बार बार बोला जाता है कि देश का एक वर्ग चार चार शादियां और 25 बच्चे पैदा कर रहा है। लेकिन आज तक किसी भी विश्वस्त सरकारी और अधिकृत सर्वे में इस तथ्य की पुष्टि नहीं हो सकी है। आंकड़े बताते हैं कि सबसे अधिक बहुविवाह आदिवासी जैन और हिंदू पुरूष कर रहे हैं। ऐसे ही इस झूठ को एक और तथ्य से जांचा जा सकता है कि जब सभी वर्गों में ही 1000 पुरूषों की पीछे 954 महिलायें पैदा हो रही हैं तो किसी भी समाज वर्ग धर्म या क्षेत्र का भारतीय अगर एक से अधिक शादी करेगा तो शेष पुरूष उसी समाज की किस महिला से शादी कर पायेंगे? यहां तो एक पुरूष को एक महिला उपलब्ध होना ही संभव नहीं है तो एक से अधिक शादी करने पर अतिरिक्त महिलायें कहां से आयेंगी? क्या वर्ग विशेष का हर पुरूष एक महिला अपने समाज की और तीन दूसरे समाज से लाकर शादी कर रहा है? यदि ऐसा होता तो दूसरे समाज में हर चार में से तीन पुरूष ना सही कम से कम हर दूसरा पुरूष तो बिना शादी के रह जाता? लेकिन ऐसा करना भी एक तरफा तो संभव नहीं हो पाता। दूसरे तथाकथित लवजेहाद के खिलाफ कानून बनने से अब तो यह लगभग नामुमकिन सा ही हो गया है। यह भी सोचने की बात है कि अगर एक वर्ग ऐसा करेगा तो दूसरा वर्ग भी करेगा ही। ऐसे में आप सच और दुष्प्रचार में अंतर देख सकते हैं। 
संघ परिवार का लंबे समय से ये यह प्रचार चलता आ रहा है कि अगर बढ़ती हुयी मुस्लिम आबादी को कानून बनाकर काबू नहीं किया गया तो भारत एक दिन इस्लामी राष्ट्र बन जायेगा। दिलचस्प बात यह है कि खुद भारत सरकार के सर्वे जनगणना और विभिन्न पारिवारिक जांच के आंकड़े इस दावे को झुठलाते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से कई वर्ष पहले एक जनहित याचिका दायर कर यह मांग की गयी थी कि वह सरकार को जनसंख्या नियंत्रण करने को एक कानून बनाने का आदेश दे जिसमें हर परिवार में केवल दो बच्चे पैदा करने की आजादी दी जाये। यह याचिका सबसे बड़ी अदालत में कई सालों से विचाराधीन है। इस पर पहले की सेकुलर यानी कांग्रेस सरकार ने तो कभी कोई सकारात्मक जवाब दिया ही नहीं। इसका कारण यह माना जाता रहा है कि कांग्रेस जैसे कथित धर्मनिर्पेक्ष दल अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों का तुष्टिकरण करते हैं, लिहाजा वे अपने वोटबैंक को नाराज करने से बचने को इस तरह का कोई कानून बनाने से परहेज करेंगे। लेकिन यह हैरत की बात है कि सत्ता में आने के बाद खुद भाजपा को भी यह सच और हकीकत समझ मंे आ गयी है कि चुनाव जीतने को झूठा प्रोपेगंडा कर सत्ता में आना एक बात है। लेकिन जब कानून बनाने की बात आये तो परिवार नियोजन जबरन लागू करना खुद हिंदू जनता के लिये राजनीतिक रूप से नुकसान का सौदा होगा। यही वजह है कि मोदी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपने जवाबी हलफनामे में ऐसा कोई कानून बनाने से साफ साफ मना कर दिया था। यह सही है कि भारत ने इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑन पॉपुलेशन एंड डवलपमेंट 1994 के संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर पर सहमति जताई है। इसके लिये अनिवार्य नहीं ऐच्छिक परिवार नियोजन के जो तरीके अब तक सरकार ने अपनाये हैं। उनका सकारात्मक परिणाम सामने आया है।
 *0 तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है,*
 *मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है।।* 
 *0लेखक पब्लिक आॅब्जर्वर के चीफ एडिटर और नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर हैं।*

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