Friday 26 July 2024

बजट और बेरोज़गारी

आम बजट: बेरोज़गारी की समस्या का कोई ठोस हल निकलेगा ?
0 सरकार का आर्थिक सर्वेक्षण बता रहा है कि वह तमाम दावों के बावजूद मांग के अनुसार रोज़गार उपलब्ध नहीं करा पा रही है। सर्वे में पाया गया कि 51.25 प्रतिशत युवाओं में काम करने की वांछित क्षमता ही नहीं है। इसके लिये केंद्र सरकार निजी क्षेत्र और राज्य सरकारों को भी दोषी बता रही है। सरकार जीडीपी जीएसटी और अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ने का कितना ही दावा कर ले लेकिन आंकड़े गवाह है कि देश की कुल आय का 57 प्रतिशत 10 प्रतिशत लोगों के पास है। उसमें भी 22 प्रतिशत आय अकेले 1 प्रतिशत के पास है। ऐसे ही केवल 7 करोड़ भारतीय ऐसे हैं जिनकी सालाना आमदनी 8 लाख के आसपास है। 81.5 करोड़ लोग सरकार द्वारा दिये जा रहे निशुल्क अनाज पर निर्भर हैं।    
 *-इक़बाल हिंदुस्तानी*
पीएलएफएस के ग्रामीण क्षेत्र के रोज़गार के तीन माह बाद और शहरी क्षेत्र के आंकड़े अर्धवार्षिक आते हैं। आर्टिफीशियल इंटेलिजैंस को भी सर्वे में रोज़गार घटने का मुख्य कारण बताया गया है लेकिन इसके हल के बारे मंे रिपोर्ट में चुप्पी है। 2017 में नीति आयोग के अरविंद पनगढ़िया ने सरकार को रोज़गार के व्यापक आंकड़े दिये थे लेकिन सरकार ने इस रिपोर्ट को अपने दावों के अनुकूल ना होने की वजह से ठंडे बस्ते में डाल दिया था। रोज़गार का सालाना सर्वे नहीं होता। केवल दस साल में जनगणना और पांच साल में अनिगमित क्षेत्र की रोज़गार की स्थिति की जांच करने पर ही आंकड़े सामने आते हैं। आम बजट पर जब विपक्ष ने सरकार पर बेरोज़गारी और महंगाई का कोई ठोस हल पेश ना करने का आरोप लगाया तो वित्त मंत्री ने पलटकर दावा किया गया कि विपक्ष के पास बेरोज़गारी का कोई विश्वसनीय आंकड़ा नहीं है। लेकिन सरकार के पास भी ऐसा कोई डाटा नहीं है। अगर होता तो वे संसद में ज़रूर रखतीं। अलबत्ता सरकार को यह ज़रूर पता है कि काॅरपोरेट का टैक्स कम करने के बाद से उसका लाभ 2020 से 2023 तक बढ़कर चार गुना हो गया है। 
      2024 में काॅरपोरेट का लाभ 15 सालों का उच्चतम होकर 2023 के 11.88 लाख करोड़ से बढ़कर 14.11 लाख करोड़ तक पहुंच गया है। 2019 में सरकार ने काॅरपोरेट टैक्स में कमी करते हुए यह दावा किया था कि इससे निजी क्षेत्र में निवेश और नौकरियां बढ़ेंगी। लेकिन ऐसा कुछ आज तक नहीं हुआ है। अरविंद सुब्रमण्यन के अनुसार इसकी वजह दो बड़े औद्योगिक घरानों को सरकार का खुला संरक्षण है। सरकार इनके हिसाब से नीतियां बना रही है और बदल रही है। जिससे इनकी मोनोपोली टेलिकाॅम सीमेंट बंदरगाह हवाई अड्डों और मीडिया पर बढ़ती जा रही है। इसका परिणाम यह हुआ कि अन्य उद्योगपतियों ने निवेश से हाथ खींच लिया है। सर्वे यह भी बताता है कि भविष्य में भी भारत में निवेश बढ़ने के आसार नहीं हैं। आज के हालात यह है कि निजी कर 60 प्रतिशत तक पहुंच गये हैं जबकि काॅरपोरेट की कर भागीदारी 2014 के 35 के मुकाबले 26 प्रतिशत रह गयी है। इसके साथ ही काॅरपोरेट स्थायी की जगह संविदा यानी ठेके पर नौकरी अधिक देने लगा है। 
     बेरोज़गारी की हालत यह है कि यूपी में सिपाही के लिये निकली 60,000 नौकरी के लिये 50 लाख तो रेलवे की 35000 जाॅब के लिये 1.25 करोड़ आवेदन आये। लेकिन मोदी सरकार युवाओं के कौशल विकास के लिये 500 कंपनियों में प्रशिक्षण के नाम पर अपना पल्ला झाड़ रही है। महंगाई शिक्षा और चिकित्सा के लिये बजट में कोई विशेष व्यवस्था नहीं की गयी है। किसानों के लिये हर बार की तरह दावों की बौछार ही अधिक दिखाई देती है। नौकरी पेशा को टैक्स में मामूली छूट दी गयी है। जिससे यह बजट भी निराश करने वाला लग रहा है।
       भारत में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय 1,70,000 लगभग 70 करोड़ भारतीयों की औसत आय 3,87,000 जबकि सम्पन्न वर्ग की आमदनी 8,40,000 है। आर्थिक असमानता की हालत यह है कि नीचे के 10 से 20 प्रतिशत लोगों की मासिक आमदनी जहां 12000 है वहीं सबसे नीचे जीवन जी रहे 10 प्रतिशत भारतीयों की आय मात्र 6000 तक मानी जाती है। बाकी के 20 से 50 प्रतिशत लोग नीचे के 10 से 20 प्रतिशत वाले कम आय वाले लोगों से मामूली ही बेहतर हालत मेें हैं। 
      संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों से हिसाब से 22 करोड़ तो नीति आयोग के अनुसार लगभग 16 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुज़ार रहे हैं। इस आंकड़े को मनरेगा के तहत रोज़गार की तलाश कर रहे 15 करोड़ लोगों के रजिस्ट्रेशन से भी समझा जा सकता है। जिनको सरकार ने साल में कम से कम 100 दिन का रोज़गार देने का वादा करने के बावजूद मात्र 50 दिन का औसत काम ही दिया है। जिनको रसोई गैस का निशुल्क कनेक्शन दिया गया था। वे साल में चार रिफिल भी नहीं भरवा पा रहे हैं। एक से दो एकड़ भूमि वाले किसान जो 10 करोड़ से अधिक थे, और पीएम किसान योजना में सम्मान निधि पा रहे थे, नवंबर 2023 घटकर 8 करोड़ के आसपास रह गये हैं। हमारे देश में 35 करोड़ लोगों को पूरा पौष्टिक भोजन भी उपलब्ध नहीं है। 81.5 करोड़ नागरिकों को सरकार 5 किलो अनाज देकर जीवन जीने में सहायता करने को मजबूर है। देश की निचली 50 प्रतिशत आबादी की सालाना आमदनी 50 हज़ार रूपये होने के बावजूद वो कुल जीएसटी का 64 प्रतिशत चुका रही है। जबकि सबसे अमीर 10 प्रतिशत इसमें मात्र 3 प्रतिशत भागीदारी कर रहे हैं। 
   अगर क्रय मूल्य समता यानी पीपीपी के आधार पर देखा जाये तो हमारी यह 2100 अमेरिकी डाॅलर है। जबकि यूके की 49,200 और अमेरिका की 70,000 है। अगर देश के लोग गरीब हैं तो दुनिया में जीडीपी पांचवे तीसरे नंबर पर ही नहीं नंबर एक हो जाने पर भी क्या हासिल होगा? यह एक तरह से भोली सीधी जनता को गुमराह करने का एक राजनीतिक झांसा ही है। सच तो यह है कि मोदी सरकार की नोटबंदी देशबंदी और जीएसटी बिना विशेषज्ञों की सलाह लिये बिना सोचे समझे और जल्दबाज़ी में लागू करने से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहंुचा है जिससे यह वर्तमान में जहां खुद पहंुचने वाली थी उससे भी पीछे रह गयी है। इसके साथ ही यह भी तथ्य है कि जिस देश में शांति भाईचारा समानता निष्पक्षता धर्मनिर्पेक्षता न्याय नहीं होगा वहां शांति नहीं रह सकती और जब शांति नहीं होगी तो ना विदेशी निवेश आयेगा और ना ही स्थानीय स्वदेशी कारोबार से अर्थव्यवस्था बढे़गी।
 *नोट-लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के चीफ एडिटर हैं।*

Thursday 18 July 2024

सबके जनप्रतिनिधि

... *ऐसे तो सरकार भी आधे से अधिक जनता का काम नहीं करेगी?* 
0‘‘मैं ईश्वर की शपथ लेता हूं सत्यनिष्ठापूर्वक प्रतिज्ञान करता हूं कि मैं विधि द्वारा यथा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रध्दा और निष्ठा रखंूगा और भारत की संप्रभुता और अखण्डता को अक्षुण्ण रखंूगा।’’ ये वो शपथ है जो सांसद विधायक ग्राम प्रधान और नगर निकाय का चेयरमैन या सदस्य निर्वाचित होने के बाद हर जनप्रतिनिधि लेता है। संविधान मतलब समानता धर्मनिर्पेक्षता व पक्षपात के बिना सब नागरिकों के साथ एक जैसा मानवीय संवेदनशील और न्यायपूर्वक व्यवहार करना। दिलचस्प बात यह है कि जब कोई राजनीतिक दल चुनाव आयोग में अपना पंजीकरण कराता है तब भी उसको कुछ ऐसा ही शपथ पत्र देना होता है कि वह भारत का संविधान मानेगा। लेकिन आजकल कई जनप्रतिनिधि अपनी संवैधानिक शपथ से हटकर वोट न देने वालों का काम न करने की खुली चेतावनी दे रहे हैं। क्या यह कानूनन सही है?     
 *-इक़बाल हिंदुस्तानी*
मोदी सरकार के सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि उनकी संसदीय सीट पर 40 प्रतिशत से अधिक मुसलमान हैं। उनको पता है कि मैं भाजपा से जुड़ा हंू। फिर भी मुझको सब वर्गों का कम या अधिक वोट मिलता है। मैं वोट देने और ना देने वाले सभी लोगों का काम करता हंू। इससे पहले एनडीए के घटक जनता दल यू के सांसद देवेश चंद ठाकुर ने कहा था कि उनको यादवों और मुसलमानों ने वोट नहीं दिया है। इसलिये वह उनका व्यक्तिगत काम नहीं करेंगे। उनके इस विवादित बयान का भाजपा के एक केंद्रीय मंत्री ने समर्थन भी किया था। बाद में जदयू के वरिष्ठ नेताओं ने इस बयान को मीडिया द्वारा गलत तरीके से प्रचारित करना बताया था। अब बंगाल विधानसभा में विपक्ष के भाजपा नेता सुभेंदु अधिकारी ने कहा है कि आगे हम सबका साथ सबका विकास नहीं केवल हिंदुओं और संविधान को बचाने का काम करेंगे। 
      उनका कहना है कि आगे ‘जो हमारे साथ हम उसके साथ’ चलेगा। उनका यह भी कहना है कि भाजपा का अल्पसंख्यक मोर्चा भी खत्म कर देना चाहिये। शुभेंन्दु का यह भी आरोप है कि मुसलमानों ने 90 से 95 प्रतिशत वोट टीएमसी को किया है। हालांकि बंगाल भाजपा प्रमुख सुकांत मजूमदार ने यह अधिकारी का निजी विचार बताया है लेकिन बाद में अधिकारी ने भी अपने बयान को संदर्भ से काटकर वायरल करने का स्पश्टीकरण जारी करते हुए कहा कि वे लोगों को भारतीय के रूप में देखते हैं ना कि बहुसंख्यक अल्पसंख्यक के तौर पर विपक्ष की तरह बांटकर। आम चुनाव में भाजपा को बहुमत ना मिलने के बाद से ऐसे ही विवादित बयान कई अन्य नेताओं के भी आये हैं। मानव स्वभाव के हिसाब से देखा जाये तो यह उन नेताओं के लिये वास्तव में हर्ट करने वाली बात है जो बिना भेदभाव के सबका काम करते हैं लेकिन चुनाव में उनको कुछ लोग एकराय होकर भाजपा प्रत्याशी होने की वजह से वोट देते नहीं या फिर ना के बराबर देते हैं। यह किसी भाजपा नेता की अपनी हार की टीस भी हो सकती है। 
       कभी कभी जब इंसान को गुस्सा आता है तो वह अपने दिल की वो बात भी कह देता है जो संविधान नियम कानून के हिसाब से अपराध और गलत होती है। सवाल यह है कि अगर यह बात अमल मंे बड़े पैमाने पर आ जाये कि जो हमारे दल को वोट नहीं देंगे उनका काम जनप्रतिनिधि ही नहीं बल्कि उनके बहुमत से बनी सरकार भी नहीं करेगी तो तब तो भाजपा को मिले लगभग 36 प्रतिशत वोट के हिसाब से बाकी 64 प्रतिशत का काम ही नहीं होगा? सवाल यह भी है कि देश में मुसलमानों की आबादी तो केेेेवल 14 प्रतिशत है फिर भाजपा को वोट ना करने वाले ये बाकी 50 प्रतिशत लोग कौन हैं? अगर मुसलमानों का काम वोट ना देने की वजह से कुछ नेता या जनप्रतिनिधि नहीं करेंगे तो वोट ना देने वाले 50 प्रतिशत गैर मुस्लिमों का काम क्यों कर रहे हैं?
       इसका जवाब यह हो सकता है कि मुसलमानों ने थोक में भाजपा विरोधी विपक्ष को वोट दिया है तो थोक में तो उच्च जातियां भी भाजपा को 90 प्रतिशत तक वोट दे रही हैं तो जहां जहां विपक्ष की राज्य में सरकारें हैं या जो विपक्षी सांसद विधायक उन उच्च जातियों के वोट ना देने के बाद भी जीते हैं तो वे उनके काम को मना कर सकते हैं? नहीं कर सकते। क्योंकि उन्होंने संविधान की शपथ ली है। पक्षपात गैर कानूनी होगा। इस सारे विवाद में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जनप्रतिनिधियों को यह पता कैसे लगा कि उनको किसने वोट दिया और किसने नहीं दिया? मतदान तो गोपनीय होता है। चुनाव आयोग के आंकड़े तो ऐसा कुछ बताते नहीं। सीएसडीएस के सर्वे का दावा है कि लगभग 9 प्रतिशत मुसलमानों ने भाजपा को वोट दिया है। कोई जनप्रतिनिधि चाहे तो किसी का कोई काम किसी बहाने से मना कर सकता है, ऐसा होता भी है लेकिन वह जानबूझकर घोषित रूप से किसी वर्ग या जाति के साथ ऐसा नहीं कर सकता। अगर वह ऐसा सार्वजनिक रूप से बोलता है तो उसका चुनाव निरस्त भी हो सकता है। 
        भाजपा और मुसलमान एक दूसरे का विरोध करते रहे हैं। इसमें ऐसा करने के दोनों के अपने अपने तर्क हैं। लेकिन चुनाव तो होते ही इसलिये हैं कि कोई किसी को भी वोट दे सकता है। संविधान यह भी कहता है कि जो प्रतिनिधि निर्वाचित होगा या जो भी सरकार बनेगी वह सबकी होगी। 2005 में राज्यसभा ने सांसदों के लिये कोड आॅफ कंडक्ट बनाया था। जिसमें सांसदों के लिये कोई ऐसा काम करने कोई ऐसी बात बोलने या ऐसी किसी भी गतिविधि पर रोक का प्रस्ताव था जिससे जनता के किसी वर्ग के साथ पक्षपात होता हो। कोई जनप्रतिनिधि अपने निजी हित परिवार हित या पार्टी हित के लिये सार्वजनिक हित को अनदेखा नहीं कर सकता। जेएमएम सांसद घूस कांड में सुप्रीम कोर्ट ने अपना पहले का फैसला पलटते हुए यहां तक कह दिया कि सांसद को सदन में गैर कानूनी काम करने का विशेष अधिकार नहीं दिया जा सकता। कानून यह भी कहता है कि जनप्रतिनिधि या सरकार अपने किसी भी संसाधन शक्ति या अधिकार का प्रयोग सर्वहित में ही कर सकती है। यहां तक उनके पास अगर कोई गोपनीय जानकारी है तो उसका प्रयोग प्राइवेट तौर पर किसी के खिलाफ किसी भी हाल में नहीं किया जा सकता। 
       संविधान कानून और जनप्रतिनिधि अधिनियम के सभी नियम निर्वाचित लोगों को किसी के साथ भी पक्षपात भेदभाव या अन्याय करने का लाइसेंस नहीं देते। यह अलग बात है कि आज के दौर में कोई यह समझने संवाद करने या आपस में मिल बैठकर जानने को तैयार नहीं है कि कोई वर्ग धर्म या जाति के लोग अगर किसी दल का विरोध सामूहिक रूप से कर रहे हैं तो उनको संविधान कानून के दायरे में रहकर उनकी वाजिब शिकायत पक्षपात व अंध विरोध को बंद कर अपने साथ जोड़ने का प्रयास करे ना कि उनको डरा धमकाकर या ब्लैकमेल कर उनका वोट कभी भी लिया जा सकेगा। *नोट-लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ एडिटर हैं।*

जनसंख्या कानून

*आखिर मोदी सरकार जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने से क्यों डर रही है?* 
0 कुछ लोगों को लगता है कि भारत की सारी समस्याओं की जड़ मुसलमान हैं। देश की बढ़ती आबादी को लेकर भी उनको ज़िम्मेदार बताया जा रहा है जबकि परिवार नियोजन का संबंध धर्म से न होकर आमदनी और पढ़ाई से है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के पांचवे सर्वे के अनुसार देश की प्रजनन दर 2 पर आ गयी है। किसी देश के वर्तमान जनसंख्या स्तर को जैसा का तैसा बनाये रखने के लिये टीएफआर यानी टोटल फर्टिलिटी रेट 2.1 होना चाहिये। हालांकि यह दर पांच राज्यों बिहार में 2.98 मेघालय में 2.91 यूपी में 2.35 झारखंड में 2.26 और मणिपुर में 2.17 अभी भी प्रतिस्थापन दर से कुछ अधिक बनी हुयी है। इस सर्वे से इस झूठ की पोल खुलती है कि देश में एक वर्ग विशेष की आबादी इतनी तेजी से बढ़ रही है कि वह एक दिन बहुसंख्यक हो जायेगा?    
    *-इकबाल हिंदुस्तानी*
नफ़रत और झूठी राजनीति से प्रेरित आरोप छोड़ दें तो नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत किया जाता है। एनएफएचएस-5 में 6 लाख 37000 परिवारों को शामिल किया गया है। इसमें देश के सभी 28 राज्यों एवं 8 केंद्र शासित प्रदेशों के 707 जिलों को शामिल किया गया है। सर्वे से पता चलता है कि देश के 67 प्रतिशत परिवार गर्भनिरोधक साधन अपना रहे हैं। पहले यह संख्या 54 प्रतिशत थी। हालांकि अभी भी देश के 9 प्रतिशत परिवारों तक गर्भनिरोधक साधन नहीं पहुंच पाये हैं। इनमें 11.4 प्रतिशत परिवार बेहद गरीब तो 8.6 प्रतिशत उच्च श्रेणी के हैं। आधुनिक गर्भनिरोधकों के प्रयोग के लेकर भी यह असमानता सामने आती है। निम्न आय वर्ग में इनका इस्तेमाल करने वाले 50.7 प्रतिशत तो उच्च आय वर्ग में 58.7 प्रतिशत हैं। यही उपयोग का अंतर कामकाजी महिलाओं में जहां 66.3 प्रतिशत है तो बेरोजगार महिलाओं में 53.4 प्रतिशत है। गर्भनिरोधक प्रयोग करने व अन्य साधन परिवार नियोजन के लिये अपनाने में धर्म से अधिक शिक्षा व समृध्दि की भूमिका पहले भी सामने आती रही है। इस बार के एनएफएसएच सर्वे के अनुसार 64.7 प्रतिशत सिख 35.9 प्रतिशत हिंदू और 31.9 प्रतिशत मुस्लिम पुरूष गर्भनिरोधक साधनों का इस्तेमाल करना महिलाओं का काम बताते हैं। जो लोग एक वर्ग विशेष का आर्थिक बहिष्कार और सामूहिक नरसंहार का खुलेआम गैर कानूनी आव्हान आयेदिन करते रहते हैं। वे साथ साथ यह झूठ भी फैलाते रहते हैं कि इस वर्ग विशेष की आबादी इतनी तेजी से बढ़ रही है कि ये आने वाले कुछ दशक मंे बहुसंख्यक हो जायेंगे। इस मामले में कुछ राज्य सरकारें दो बच्चो का कानून पहले ही बना चुकी हैं। अगर हम राज्य अनुसार देखें तो देश में सबसे कम प्रजनन दर केरल और कश्मीर में है। कश्मीर मुस्लिम बहुल है। साथ ही केरल में हिंदू मुस्लिम और ईसाई लगभग समान संख्या में हैं। 
इसका मतलब साफ है कि आबादी बढ़ने या परिवार नियोजन का सीधा संबंध धर्म या जाति से नहीं बल्कि शिक्षा और सम्पन्नता से है। लेकिन सच यह है कि यह कटु सत्य उन चंद साम्प्रदायिक राजनीतिक और धर्मांध लोगों को फूटी आंख नहीं सुहाता जो अपने वोटबैंक को गुमराह कर डराकर और झूठ फैलाकर बार बार भावनात्मक मुद्दों पर चुनाव जीतकर सत्ता का सुख लूट रहे हैं। ऐसे ही आबादी की जब भी बात आती है। एक और झूठ बार बार बोला जाता है कि देश का एक वर्ग चार चार शादियां और 25 बच्चे पैदा कर रहा है। लेकिन आज तक किसी भी विश्वस्त सरकारी और अधिकृत सर्वे में इस तथ्य की पुष्टि नहीं हो सकी है। आंकड़े बताते हैं कि सबसे अधिक बहुविवाह आदिवासी जैन और हिंदू पुरूष कर रहे हैं। ऐसे ही इस झूठ को एक और तथ्य से जांचा जा सकता है कि जब सभी वर्गों में ही 1000 पुरूषों की पीछे 954 महिलायें पैदा हो रही हैं तो किसी भी समाज वर्ग धर्म या क्षेत्र का भारतीय अगर एक से अधिक शादी करेगा तो शेष पुरूष उसी समाज की किस महिला से शादी कर पायेंगे? यहां तो एक पुरूष को एक महिला उपलब्ध होना ही संभव नहीं है तो एक से अधिक शादी करने पर अतिरिक्त महिलायें कहां से आयेंगी? क्या वर्ग विशेष का हर पुरूष एक महिला अपने समाज की और तीन दूसरे समाज से लाकर शादी कर रहा है? यदि ऐसा होता तो दूसरे समाज में हर चार में से तीन पुरूष ना सही कम से कम हर दूसरा पुरूष तो बिना शादी के रह जाता? लेकिन ऐसा करना भी एक तरफा तो संभव नहीं हो पाता। दूसरे तथाकथित लवजेहाद के खिलाफ कानून बनने से अब तो यह लगभग नामुमकिन सा ही हो गया है। यह भी सोचने की बात है कि अगर एक वर्ग ऐसा करेगा तो दूसरा वर्ग भी करेगा ही। ऐसे में आप सच और दुष्प्रचार में अंतर देख सकते हैं। 
संघ परिवार का लंबे समय से ये यह प्रचार चलता आ रहा है कि अगर बढ़ती हुयी मुस्लिम आबादी को कानून बनाकर काबू नहीं किया गया तो भारत एक दिन इस्लामी राष्ट्र बन जायेगा। दिलचस्प बात यह है कि खुद भारत सरकार के सर्वे जनगणना और विभिन्न पारिवारिक जांच के आंकड़े इस दावे को झुठलाते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से कई वर्ष पहले एक जनहित याचिका दायर कर यह मांग की गयी थी कि वह सरकार को जनसंख्या नियंत्रण करने को एक कानून बनाने का आदेश दे जिसमें हर परिवार में केवल दो बच्चे पैदा करने की आजादी दी जाये। यह याचिका सबसे बड़ी अदालत में कई सालों से विचाराधीन है। इस पर पहले की सेकुलर यानी कांग्रेस सरकार ने तो कभी कोई सकारात्मक जवाब दिया ही नहीं। इसका कारण यह माना जाता रहा है कि कांग्रेस जैसे कथित धर्मनिर्पेक्ष दल अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों का तुष्टिकरण करते हैं, लिहाजा वे अपने वोटबैंक को नाराज करने से बचने को इस तरह का कोई कानून बनाने से परहेज करेंगे। लेकिन यह हैरत की बात है कि सत्ता में आने के बाद खुद भाजपा को भी यह सच और हकीकत समझ मंे आ गयी है कि चुनाव जीतने को झूठा प्रोपेगंडा कर सत्ता में आना एक बात है। लेकिन जब कानून बनाने की बात आये तो परिवार नियोजन जबरन लागू करना खुद हिंदू जनता के लिये राजनीतिक रूप से नुकसान का सौदा होगा। यही वजह है कि मोदी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपने जवाबी हलफनामे में ऐसा कोई कानून बनाने से साफ साफ मना कर दिया था। यह सही है कि भारत ने इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑन पॉपुलेशन एंड डवलपमेंट 1994 के संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर पर सहमति जताई है। इसके लिये अनिवार्य नहीं ऐच्छिक परिवार नियोजन के जो तरीके अब तक सरकार ने अपनाये हैं। उनका सकारात्मक परिणाम सामने आया है।
 *0 तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है,*
 *मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है।।* 
 *0लेखक पब्लिक आॅब्जर्वर के चीफ एडिटर और नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर हैं।*

Thursday 4 July 2024

संसद में राहुल नेता विपक्ष


संसद: राहुल के हमलों से भाजपा हलकान, रिएक्शन से होगा सियासी नुक़सान!

0दस साल बाद संसद मंे पहली बार नेता विपक्ष बने राहुल गांधी ने अपने तीखे सियासी हमलों से भाजपा मोदी और उनके बड़े मंत्रियों को बचाव की मुद्रा में आने को मजबूर करने के साथ ही हलकान कर दिया है। मोदी के पीएम बनने के बाद संसद में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी विपक्षी नेता ने 100 मिनट तक एनडीए सरकार पर हिंदुत्व से लेकर नीट परीक्षा अग्निवीर योजना अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और मणिपुर के जलने पर तीखे हमले किये हों लेकिन सरकार के पास उनके सवालों का उचित जवाब तक ना हो और वे केवल उनके आरोपों के सत्यापन हिंदू समाज की कथित भावनाओं का अपमान और उनके भाषण को रिकॉर्ड से निकालने की मांग करें।      

                  -इक़बाल हिंदुस्तानी

      इंडिया गठबंधन कांग्रेस और समूचे विपक्ष ने 2024 के चुनाव में संविधान को बचाने का सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाकर बेशक मोदी सरकार को करारी चोट दी हो लेकिन संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर पहली बार बोलते हुए नेता विपक्ष राहुल गांधी ने जिस तरह भगवान शिव का चित्र दिखाकर भाजपा के हिंदुओं को हिंसक और नफ़रत फैलाने वाला बताकर संघ परिवार को घेरा उससे वे भाजपा की पिच पर खेलने की भूल करते नज़र आये। राहुल गांधी एक बार पहले भी गुजरात चुनाव में मंदिर मंदिर जाकर अपना जनेउू दिखाकर और खुद को शिवभक्त बताकर उदार हिंदुत्व का नाकाम सियासी प्रयोग चुके हैं। नीयत चाहे जितनी भी अच्छी हो लेकिन राजनीति में धर्म का सहारा लेना जिस तरह से भाजपा के लिये गलत है वैसे ही कांग्रेस और राहुल गांधी के लिये भी सही साबित नहीं हो सकता। हालांकि उन्होंने शिव जी को डरो मत डराओ मत का प्रेरणा श्रोत बताया और साथ ही इस्लाम जीसस गुरू नानक और बौध्द धर्म की भी उन बातों को शेयर किया जिनसे निडरता और आपसी प्यार मुहब्बत की सीख मिलती है। लेकिन उनका संघ परिवार के संदर्भ में यह कहना कि ‘‘जो खुद को हिंदू कहते हैं, लगातार हिंसा और घृणा फैला रहे हैं।’’ उनको भविष्य में और बेहतर शब्दों के चयन के लिये सावधान करता है। हालांकि उन्होंने बाद में हंगामा मचने पर सफाई दी कि उनका मतलब भाजपा के कट्टर हिंदू से है। लेकिन तब तक संघ परिवार उन पर सकल हिंदू समाज को कलंकित करने का आरोप थोप चुका था। राहुल को यह भी समझना चाहिये कि जो हिंदू भाजपा के साथ हैं वे उनकी धार्मिक बातें सुनकर भी उनकी कांग्रेस के साथ नहीं आयेंगे और जो हिंदू कांग्रेस के साथ हैं वे उनके ऐसा ना बोलने या मुस्लिमों के पक्ष में बोलने से भी उनका साथ नहीं छोड़ेंगे। अलबत्ता भाजपा का कुछ मतदाता कांग्रेस या विपक्ष के साथ आर्थिक मुद्दों पर नाराज़ होकर ही आ सकता है। 

           सच तो यह है कि मोदी और एनडीए सरकार को आलोचना निंदा और सवाल सुनने की आदत ही नहीं है लेकिन नेता विपक्ष होने की वजह से राहुल गांधी को बोलने का मौका देना स्पीकर की मजबूरी थी। संसद में ऐसा कोई सिस्टम भी नहीं है कि नेता विपक्ष या किसी विरोधी सांसद से बोलने से पहले भाषण की प्रति जमा कराकर सरकार जांच ले कि वह क्या बोलेगा? और उसको स्पीच सेंसर करके बता दिया जाये कि वह क्या नहीं बोलेगा और वह फिर भी इधर उधर की बात करे तो स्पीकर सज़ा दे सके? ऐसे में राहुल गांधी ने जमकर सरकार की नीतियों फैसलों और गल्तियों की धज्जियां उड़ा दीं जिससे सरकार तिलमिला रही थी। ऐसा पहली बार हुआ कि किसी विपक्षी नेता के बोलते समय पीएम से लेकर उनके कई वरिष्ठ मंत्री बार बार उठकर उसके आरोपों पर सफाई सवाल या सत्यता की जांच की मांग कर स्पीकर से कार्यवाही की आशा कर रहे हों। लेकिन जब ऐसा संभव नहीं हुआ तो होम मिनिस्टर अमित शाह को स्पीकर से मिलकर यह कहना पड़ा कि राहुल की आपत्तिजनक बातों को रिकॉर्ड से निकाल दिया जाये। स्पीकर ने वैसा ही किया भी। लेकिन सवाल यह है कि सरकार के खिलाफ बोलना और अल्पसंख्यकों से अन्याय की आलोचना करना क्या आपत्तिजनक होता है? राहुल ने बाद में स्पीकर को पत्र लिखकर याद भी दिलाया कि वे केवल असंसदीय शब्दों को संसद की कार्यवाही से निकाल सकते हैं जबकि उन्होंने असंसदीय कुछ भी नहीं बोला है। 

               राहुल ने यह भी कहा कि वे संविधान के अनुच्छेद 105 एक के तहत अपनी बात शालीन व सभ्य शब्दों में रख रहे थे। राहुल ने साथ ही स्पीकर को आसन ग्रहण करने से पहले उनसे सीध्ेा खड़े रहकर और पीएम मोदी से झुककर मिलने पर भी आईना दिखाया कि वे संसद के मुखिया हैं और अपने पद की गरिमा का खयाल रखें। अजीब बात यह रही कि राहुल ने हिंदूइज़्म को लेकर जो कुछ कहा उसे विवादित बताकर कार्यवाही से निकाल दिया गया लेकिन उस पर पीएम मोदी की टिप्पणी को रिकॉर्ड में रखा गया। स्पीकर ओम बिरला इससे पहले फरवरी 2023 में भी विवादित बताकर राहुल गांधी की स्पीच से अडानी अंबानी का नाम संसदीय रिकॉर्ड से निकाल चुके हैं। बाद में उनको किस तरह एक जाति विशेष के लोगों पर विवादित टिप्पणी के मामले में दो साल की सज़ा मिलने पर संसद और सरकारी घर से निकाला गया यह सबके सामने है। इससे पहले यही स्पीकर एक दिन में 146 विपक्षी सांसदों को संसद ने निकालने का रिकॉर्ड बना चुके हैं। राहुल ने विवादित आपत्तिजनक और विपक्ष पर असत्य आरोपों के बाद भी भाजपा नेता अनुराग ठाकुर के भाषण को मात्र एक शब्द छोड़कर जैसा का तैसा रिकॉर्ड में रखने पर स्पीकर की निष्पक्षता पर उंगली उठाई और साथ ही अपनी बात सच होने के दावे के साथ उसको जनता के दिल से ना निकाल पाने का विश्वास जताया। 

              राहुल ने जब पीएम पर भगवान का कॉल आने पर रात 8 बजे कभी भी नोटबंदी देशबंदी और जीएसटी जैसे मनमाने ऐलान करने का आरोप लगाया तो स्पीकर ने उनको रोकना चाहा लेकिन वे नहीं रूके और बोले यह तो खुद मोदी ने कहा है कि वे बायलोजिकल नहीं हैं उनको स्पेशली भगवान ने भेजा है। अपने जवाब में पीएम मोदी ने राहुल के किसी भी सवाल का कोई प्रमाणिक तर्कसंगत व तथ्यात्मक जवाब न देकर हास्यास्पद तीरके से कांग्रेस व इंडिया गठबंधन को पहले से कमज़ोर होने और राहुल के खिलाफ गलतबयानी पर स्पीकर से एक्शन लेने की मांग की। हो सकता है कि राहुल गांधी को किसी बहाने सदन से निलंबित या उनके खिलाफ कोई झूठा केस दर्ज कर जेल भी भेज दिया जाये लेकिन यह मोदी सरकार की केजरीवाल सोरेन के बाद सबसे बड़ी और आत्मघाती गल्ती होगी क्योंकि अब देश का माहौल काफी बदल चुका है। सरकार इंडिया गठबंधन कांग्रेस या उसके किसी नेता राहुल गांधी को जितना निशाने पर लेगी विपक्ष के प्रति सहानुभूति और सरकार के खिलाफ नाराज़गी बढ़ती जायेगी और आज ना सही एक दिन ऐसा आयेगा जब जनता भावनात्मक धार्मिक और सांप्रदायिक मुद्दों पर भाजपा और एनडीए के पक्ष में वोट ना कर जीवन से जुड़े असली मसलों पर विपक्ष के साथ हर हाल में जानी है। मोदी सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। वह कब गिरेगी या चुनाव में कब हारेगी यह समय बतायेगा।

नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डॉटकाम के ब्लॉगर और पब्लिक ऑब्ज़र्वर अख़बार के चीफ एडिटर हैं।