Thursday 30 May 2024

कोई हारे कोई जीते 2024

*कोई हारे, कोई जीते: न तो राहुल 'पप्पू' , न ही कांग्रेस मुक्त भारत बना!*
O 2024 के चुनाव का नतीजा चाहे जो भी हो लेकिन एक बात साफ़ है कि हज़ारों करोड़ खर्च करके भी संघ परिवार न तो राहुल को "पप्पू" बना सका न ही कांग्रेस मुक्त भारत बना सका है। उल्टा मोदी की लोकप्रियता और भाजपा सरकार का ग्राफ जहां काफी नीचे आया है वहीं कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन बनाकर साढ़े तीन सौ से अधिक सीटों पर लड़ाई वन टू वन करके भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश की है। नोटबंदी देशबंदी और जीएसटी से लेकर चीन की घुसपैठ पर जिस तरह से राहुल ने मोदी को हर अहम मुद्दे पर घेरा उसका कोई सटीक जवाब भाजपा के पास नहीं था। चुनाव के दौरान संविधान खत्म करने आरक्षण खत्म करने और भविष्य में कोई चुनाव न होने के इंडिया गठबंधन के आरोपों पर भी मोदी सरकार विपक्ष के एजेंडे में उलझकर सफ़ाई देती नज़र आई। साथ ही राहुल द्वारा राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा का प्रस्ताव स्वीकार न कर मोदी ने कमज़ोरी दिखाई है। 
*इक़बाल हिंदुस्तानी*
      2014 का चुनाव जीतते ही भाजपा ने कांग्रेसमुक्त भारत का नारा दिया था। उसे पता था कल उसको कोई क्षेत्रीय दल नहीं अखिल भारतीय स्तर पर मौजूद और उसके 23 करोड़ के मुकाबले 12 करोड़ वोट लेने वाली कांग्रेस ही चुनाव में चुनौती देगी। इसके लिए ही राहुल को पप्पू साबित करने के लिए मुख्य धारा के मीडिया के साथ ही सोशल मीडिया में भी बड़ा इन्वेस्ट किया गया। लेकिन आज इसके नतीजे उल्टे आ रहे हैं। वे जानते थे कि अगर राहुल की छवि को खराब नहीं किया गया तो राहुल एक दिन भाजपा संघ और मोदी की छवि बेरोजगारी महंगाई और करप्शन के मुद्दों पर खराब कर सकते हैं। कुछ साल तक संघ परिवार राहुल को लेकर अपने मिशन में सफल होता भी लग रहा था लेकिन अचानक राहुल ने दो दो भारत यात्रा और निडरता से हर जनहित के मुद्दे पर बेबाक राय देश के सामने जैसे जैसे रखनी शुरू की मोदी सरकार परेशान होने लगी। आज राहुल और कांग्रेस जिस तरह से बोल रहे हैं जो मुद्दे जनता के सामने अपने मेनिफेस्टो में रख रहे हैं और इंडिया गठबंधन जिस तरह एकजुट होकर मोदी सरकार की पोल खोल रहा हैं उससे राहुल मोदी सरकार की सीटें और वोट कम कर कांग्रेस और अपने साथी क्षेत्रीय दलों का आत्मविश्वास बढ़ाने में पूरी तरह सफल लग रहे हैं। अब तक संघ परिवार चुनाव का एजेंडा तय करता रहा है लेकिन इस बार राहुल और कांग्रेस ने उस पर धन्ना सेठों की सरकार होने का आरोप लगाकर चुनावी पिच खुद तय कर दी है। आज हालत ये है कि भाजपा का हिंदुत्व हिंदू राष्ट्र राम मंदिर धारा 370 कॉमन सिविल कोड पाकिस्तान शरीयत कानून मुस्लिम लीग की छाप घुसपेठिए बुलडोजर यहां तक कि हिंदू जातियों का आरक्षण छीनकर मुसलमानों को देने का झूठा दुष्प्रचार भी इंडिया गठबंधन के लोकलुभावन मुद्दों के सामने टिक नहीं पा रहा है। हालांकि ये इस बात की गारंटी नहीं है कि इससे इंडिया जीत ही जायेगा क्योंकि भाजपा के धर्म सांप्रदायिकता और भावनात्मक मुद्दे उसे एक बार फिर सत्ता में साधारण बहुमत से ला सकते हैं ऐसा हमारा अनुमान है। अलबत्ता कांग्रेस और उसके साथी दलों ने इस चुनाव में एक बात समझ ली है कि वो भाजपा के कट्टर हिंदुत्व का मुकाबला सॉफ्ट हिंदुत्व से नहीं कर सकते। इसका एक नुकसान विपक्ष को ये हुआ कि उसके कई नेता ईडी सीबीआई और इनकम टैक्स के डर से भाजपा में चले गए। उनको राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस का कोई उज्ज्वल भविष्य नज़र नहीं आ रहा था। लेकिन चुनाव आते आते बाज़ी पलट गई और राहुल ने मोदी के सामने ऐसी बिसात बिछा दी है कि वो उसमें फंसते नज़र आ रहे हैं। जो मोदी टेलीप्रॉम्पटर से पढ़कर ज़ोरदार भाषण देने वाले बड़े वक्ता समझे जाते थे उनको राष्ट्रीय समस्याओं पर किसी भी सार्वजनिक मंच पर बहस करने की चुनौती देकर राहुल ने परेशानी में डाल दिया है। आज मोदी अपनी सरकार के कामों पर वोट मांगने की हालत में भी नहीं हैं। भविष्य की कोई बड़ी योजना लक्ष्य या सपना भी वे लोगों को नहीं दिखा पा रहे हैं क्योंकि लोग उनसे दस साल का हिसाब मांग रहे हैं। उधर राहुल जनता को उनकी समस्याओं के समाधान के साथ ही बहुत कुछ आर्थिक रूप से देने के ठोस वादे कर रहे हैं। वे अपनी गारंटी और न्याय को पूरा करने के लिए अपनी राज्य सरकारों की उपलब्धि और मोदी के कॉरपोरेट प्रेम से छुटकारा पाने का संकल्प भी पेश कर रहे हैं। वे पिछड़ी जातियों दलितों आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के साथ ही गरीब सवर्णों को भी उनकी आबादी के अनुपात रोजगार आय संपत्ति और सरकारी सुविधाओं का वादा कर रहे हैं। राहुल कहते थे जब संघ परिवार मेरी मज़ाक बनाता है तो वे बुरा नहीं मानते सीखते हैं। पहले वास्तव में उनकी पहचान गांधी परिवार के उत्तराधिकारी और अमेठी के सांसद की थी लेकिन आज राहुल ने अपनी नई छवि बनाई है। उन्होंने नफ़रत से लड़ने को मुहब्बत की दुकान खोलने की हिम्मत दिखाई है। उनको सोची समझी योजना के तहत टारगेट किया गया, असली फर्जी केस दर्ज किए गए, फिर उनमें से कुछ में अधिकतम सजा हुई, उनकी सांसदी छीनी गई, सरकारी आवास रातो रात खाली कराया गया, मज़ाक बनाई गई, ईडी ने 55 घंटे पूछताछ की लेकिन राहुल न तो डरे न ही मैदान छोड़कर भागे बल्कि निडरता से डटकर खड़े हो गए इससे उनको जनता की सहानुभूति मिली। यही वो डर था जिससे संघ और मोदी पहले से डरे हुए थे। आज वो खतरा सामने है और भाजपा हारने की आशंका से सहमी हुई है। राहुल में बहुत कुछ ऐसा है जो मोदी में हो ही नहीं सकता। राहुल ने बिना अहंकार ये स्वीकार कर लिया कि कांग्रेस और उसकी सरकारों ने कई गलतियां की हैं जो वे भविष्य में सुधारेंगे। राहुल ने ये कहकर अपना कद बढ़ा लिया कि 2004 की आर्थिक नीतियां 2010 आते आते बदलाव मांग रही थीं जो कांग्रेस चूक गई। मोदी कभी भी अपनी गलती नहीं मान सकते वे पूंजीपति दोस्तों को नाराज़ नहीं कर सकते वे संविधान पर लफ्फाजी के सिवा कभी संजीदगी से अमल नहीं कर सकते और इसी लिए वे कभी राहुल का मुकाबला नहीं कर पाएंगे जिससे मोदी एक बार फिर से पीएम बन भी गए तो कांग्रेस और राहुल उनके लिए अब और बड़ी चुनौती बनकर सामने आएंगे और एक दिन उनसे सत्ता छीनकर ही दम लेंगे ये बात आप लिखकर रख सकते हैं। शायद राहुल के लिए ही किसी शायर ने ये लिखा है...
 *0 चोटों पर चोट देते ही जाने का शुक्रिया,*
*दीवारों मेरी राह में आने का शुक्रिया।*
*तुम बीच में न आती तो मैं क्यों बनाता सीढियां,*
*दीवारों में मेरी राह में आने का शुक्रिया।।*
*नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डॉटकॉम के ब्लॉगर और पब्लिक आब्जर्वर के एडिटर हैं।*

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