Sunday, 1 March 2020

आप की जीत की सीख

आप की जीत से भाजपा कांग्रेस सबक़ लेंगी ?

0अमित शाह ने माना है कि दिल्ली के चुनाव में भाजपा की हार की कई वजह मंे से एक उसके कुछ नेताओं के वे विवादित बयान भी रहें हैं। जिनको जनता ने पसंद नहीं किया। लेकिन कांग्रेस ने अभी तक ऐसा कोई बयान नहीं दिया है। जिससे पता चले कि उसकी हालत दिन ब दिन बद से बदतर क्यों होती जा रही हैउधर क्षेत्रीय दलों को भी अपनी भ्रष्ट अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और परिवारवादी छवि पर केजरीवाल की जीत से विचार की ज़रूरत दरपेश है। 

          -इक़बाल हिंदुस्तानी

    एक समय था। जब देश में गुजरात मॉडल की चर्चा होती थी। उस चर्चा में जहां विकास का दावा किया जाता था। वहां कुछ लोग 2002के दंगों को भी गुजरात के भाजपाई मॉडल के साथ जोड़कर देखते थे। कुछ लोग गुजरात को संघ की प्रयोगशाला का नाम देते थे। सच जो भी रहा हो। लेकिन इन सब बातों को जोड़कर2014 में गुजरात के सीएम मोदी को पीएम पद के लिये उम्मीदवार के तौर पर आम चुनाव मंे उतारा गया। यूपीए-2 की करप्ट बदनाम और किंकर्तव्य विमूढ़ सरकार मोदी के हाथों मात खा गयी। इसके बाद देश में बिहार के नीतीश कुमार मॉडल की भी चर्चा कुछ दिन चली।

    लेकिन गैर भाजपा विपक्ष ने क्योंकि उनको अपना पीएम पद का उम्मीदवार बनाने से दो टूक मना कर दिया। लिहाज़ा उनका विकास मॉडल आम चुनाव में परीक्षण न होने से परवान नहीं चढ़ा। इसके बाद दिल्ली में जब पहली बार2015 के चुनाव में केजरीवाल की आप ने 70में से रिकॉर्ड 67 सीट जीतकर दिल्ली का नया विकास मॉडल सामने रखा तो एक बार फिर नये विकास मॉडल की चर्चा कुछ दिन चली। लेकिन आम आदमी पार्टी के हरियाणा और पंजाब में मात खाने पर इस मॉडल को लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया।

    इतना ही नहीं दिल्ली के नगर निगम और लोकसभा चुनाव में जब आप को भाजपा के हाथों पटख़नी दी गयी तो केजरीवाल का जलवा और भी कम हो गया। लेकिन आज जब केंद्र और एक दर्जन से अधिक राज्यों में भाजपा या उसके सहयोगी दलों की सरकारें राज कर रहीं हैं। ऐेसे में दिल्ली में एक बार फिर आप की सरकार बन जाना उसका 70 में से 62सीटें जीतना और अपना वोटबैंक पहले की तरह 54 प्रतिशत बनाये रखना दिल्ली मॉडल को फिर से चर्चा में ले आया है।

    सवाल यह है कि क्या लोगों को धर्म जाति और भावनाओं की राजनीति से निकालकर उनकी भलाई के ठोस काम करके आज भी दिल्ली की तरह केंद्र और अन्य राज्यों में गैर भाजपा सरकार बनाई जा सकती हैतो जवाब है कि केंद्र में तो अभी राहुल गांधी और कांग्रेस के अकेले राष्ट्रीय विपक्षी दल होने के रूप में यह दो तीन दशक तक होता नज़र नहीं आता। जहां तक राज्यों का सवाल है तो उनको आप की तरह विकास और केजरीवाल की तरह ईमानदार होना होगा। मिसाल के तौर पर यूपी को देखें तो सपा बसपा जैसे दलों का जातिवाद परिवारवाद और करप्शन भाजपा को अभी अगले कई चुनाव तक ऑक्सीजन देने का काम करता रहेगा।

     साथ ही कांग्रेस सहित इन जातिवादी दलों ने मुसलमानों को वोटबैंक बनाकर उनका जो धार्मिक तुष्टिकरण किया है। उसके जवाब में बना हिंदू वोटबैंक विकास ना होने और कानून व्यवस्था खराब होने के बावजूद भाजपा के साथ बना रहेगा। ऐसे ही बिहार में लालू यादव और कांग्रेस एक तरह से चले हुए कारतूस की तरह हैं। बंगाल में ममता बनर्जी बेशक ईमानदार हैं। लेकिन मुसलमानोें के तुष्टिकरण के नाम पर भाजपा उनको भी घेरने में कुछ हद तक सफल रहेगी। यह अलग बात है कि ममता के जनहित के काम भाजपा को वॉकओवर नहीं देंगे।

     वहां टक्कर कांटे की रहेगी। उड़ीसा में नवीन पटनायक आंध््राा में जगनमोहन रेड्डी और महाराष्ट्र मंे शिवसेना गठबंध्न क्षेत्रीय अस्मिता के नाम पर भाजपा को सत्ता से दूर रख सकते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या भाजपा आगे भी उग्र हिंदूवाद की मुस्लिम विरोधी राष्ट्रवादी राजनीति के बल पर राज्यों के चुनाव में बिना विकास के फिर से सरकार बना सकती हैक्या कांग्रेस अपनी भूलों गल्तियों और करप्शन से तौबा कर भाजपा से इतर विकास का कोई नया मॉडल जनता के सामने रखने की तैयारी करती नज़र आ रही है?

     जहां तक भाजपा का सवाल है तो उसके बड़े नेता अमित शाह भले ही सार्वजनिक रूप से यह मान रहे हों कि दिल्ली के चुनाव में उसके कुछ नेताओं को देश के ग़द्दारों कोगोली मारो सालों जैसे नारे नहीं देेने चाहिये थे। लेकिन साथ ही वे यह भी दोहराते हैं कि उनके वोट और सीटें दोनों बढ़ीं हैं। उनका यह भी कहना है कि वे चुनाव केवल सत्ता में आने को नहीं लड़ते बल्कि उनका मकसद इस बहाने अपनी विचारधारा जनता के सामने रखना होता है।

     इसमें कोई दो राय नहीं इस बार दिल्ली महानगर जैसे एक चौथाई से चींटी से राज्य के चुनाव में भाजपा ने अपनी सोच दुनिया के सामने रखने के लिये खुद को पूरी तरह से एक्सपोज़ करने में ज़रा भी संकोच नहीं किया। एक समय था। जब वह कांग्रेसमुक्त भारत की बात करती थी। इस बार दिल्ली जब कांग्रेसमुक्त हुआ तो वह खुद भी चुनाव इसी वजह से हार गयी। कांग्रेस ने खुद को चुनाव से अप्रत्यक्ष रूप से किनारे करके आप जैसे अपने नये और छोटे विरोधी की बजाये बड़े और ख़तरनाक शत्रु भाजपा को हराकर एक तरह से सही चाल चली है।

     जहां तक भाजपा और आप की लड़ाई का सवाल है तो आगे यह देखना दिलचस्प होगा कि अन्य राज्यों में कांग्रेस और क्षेत्रीय दल केजरीवाल का विकास मॉडल अपनाकर भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाते हैं या फिर खुद भाजपा आप वाला विकास मॉडल अपनाकर आगे उसमें हिंदुत्व का तड़का लगाकर वापस उन राज्यों में भी विपक्ष से सत्ता छीनने का सफल प्रयोग करती हैजहां वह या तो अब तक सरकार बना नहीं पाई है या फिर एक बार सत्ता में आकर दूसरी बार चुनाव में गच्चा खा गयी थी।

    वैसे हमारा मानना है कि भाजपा अभी केंद्र में भी लंबे समय तक सत्ता में बनी रहेगी और गैर भाजपा या गैर एनडीए वाले राज्यों में भी वह अपनी रण्नीति बदलकर एक बार फिर देश के आधे से अधिक राज्यों में चुनाव जीतकर राज करेगी क्योंकि विपक्ष बिखरा हुआ भ्रष्ट परिवारवाद जातिवाद नाकारा भयभीत और मुस्लिम धार्मिक तुष्टिकरण का बिना मीडिया व बिना लोकतांत्रिक संगठन का प्राइवेट लिमिटेड दिवालिया कंपनी जैसा बन चुका है। आज देश को आप जैसी नई ईमानदार विकासशील और सबको साथ लेकर चलने वाली वामपंथी झुकाव की नई लोकतांत्रिक कांग्रेस की ज़रूरत है। जो अभी तक बनी नहीं है। जबकि बनने के बाद भी उसको भाजपा का विकल्प बनने में कई दशक लग सकते हैं।                               

0 मैं उस शख़्स को ज़िंदों में क्या शुमार करूं,

  जो सोचता भी नहींख़्वाब देखता भी नहीं।।         

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