Monday, 25 July 2016

डॉ. नाइक कट्टरपंथी...

डॉ. नाइक यानी आतंकवाद की नर्सरी!
इक़बाल हिन्दुस्तानी 

मोदी और संघ परिवार से कई मुद्दों पर विरोध होने के बावजूद डा. ज़ाकिर नाइक सहित मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान और आतंकवाद के खिलाफ हम हर सकारात्मक क़दम पर सरकार का साथ देना देश की एकता और अखंडता के लिये ज़रूरी मानते हैं।
    
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू ने डा. नाइक के बारे में चल रही बहस पर कम शब्दों में बहुत माकूल जवाब दिया है। जस्टिस काटजू का कहना है कि बेशक ज़ाकिर नाइक खुद आतंकवादी नहीं हैं। लेकिन वे इस्लाम को लेकर जिस तरह का कट्टरवाद फैला रहे हैं। उससे आतंकवाद पैदा होगा ही। मुस्लिम समाज के कई बुध््िदजीवियों से मेरी इस बात पर चर्चा होती रही है।
  
वे दो ही सवाल दोहराते रहते हैं। एक- डा. ज़ाकिर नाइक इस्लाम की सभी बातों को अगर अपनी योग्यता से सही साबित कर रहे हैं तो इसमें कौन सी गैर कानूनी बात है? दो-संविधान में जब सबको अपने धर्म के प्रचार प्रसार की आज़ादी दी गयी है तो मोदी सरकार नाइक को ही मुस्लिम होने की वजह से क्यों टारगेट कर रही है? मेरे पास दोनों सवालों के जवाब हैं। मैं जानता हूं तर्कसंगत और विवेक सम्मत जवाब होने के बावजूद ज़ाकिर के समर्थक मेरी बात पर कान नहीं देंगे। लेकिन यहां आग लगने से पहले ही चिंगारी पर काबू पाना ज़रूरी है। दरअसल मुस्लिम समाज का बहुत बड़ा वर्ग आज भी इस सच और हकीकत को मानने को तैयार नहीं है कि आज इस्लाम ही नहीं किसी भी धर्म की सौ फीसदी बातों पर अमल नहीं किया जा सकता।
   
ज़ाकिर नाइक धर्म को धंधा बनाकर यही ख़तरनाक खेल खेल रहे हैं। वे जानते हैं कि उनकी बातें तर्कसंगत व्यावहारिक और वैज्ञानिक कसौटी पर खरी नहीं उतर सकतीं। लेकिन वे नाटक ऐसा ही करते हैं। जैसे उनसे ज़्यादा इस्लाम के बारे में दुनिया का कोई भी स्कॉलर कुछ जानता ही न हो। आज के दौर में किसी भी धर्म की सभी बातों को महिमामंडित करना ही कट्टरवाद है। कट्टरवाद से आतंकवाद जन्म लेता है। आस्था किसी की भी हो वह तर्कसंगत हो ही नहीं सकती। जो तर्कसंगत नहीं हो सकता वह सदा के लिये अंतिम नहीं हो सकता। अगर ढाका हमले का एक आतंकी यह बात कबूल कर रहा है कि वह नाइक से बेहद प्रभावित था तो इसके लिये किसी और सबूत की ज़रूरत नहीं है।
   
दरअसल जब नाइक केवल अपने ही धर्म का डंका यह कहकर बजाते हैं कि उनका मज़हब ही पूरी दुनिया में सच्चा और अच्छा है तो यहीं से वे और धर्मों और गैर मुस्लिमों के लिये नफ़रत की नींव रख देते हैं। उनकी बनावटी और आत्मश्लाघा की काल्पनिक  बातें सुनकर किसी भी आम मुसलमान का दिमाग खराब हो सकता है। नाइक के दावों और अन्य धर्मों की खिल्ली उड़ाने से कोई भी नासमझ और मूर्ख मुसलमान पूरी दुनिया में निज़ाम ए मुस्तफा कायम करने का बीड़ा उठा सकता है। देखने सुनने में नाइक अपने आपको यह कहकर पाक साफ बताते हैं कि उनकी बातों का कोई गलत मतलब निकाले तो वे इसमें क्या कर सकते हैं? लेकिन यहां वे एक असली और अहम बात छिपा जाते हैं कि आप उस दावे को आम मुसलमानों के सामने आज रख ही क्यों रहे हो?
   
जिससे कोई आतंकवादी पैदा हो सकता है? नाइक ही नहीं मुसलमानों के बड़े वर्ग को यह कड़वा सच समय रहते स्वीकार कर लेना चाहिये कि मानवता नैतिकता और गैर मुस्लिमों के साथ मिलजुलकर आगे बढ़ना ही आज का सबसे बड़ा धर्म है। मज़हब की जो बातें आज व्यावहारिक नहीं हैं। उनको लागू करने का सपना देखना बंद करना होगा। आज हालात ऐसे बन गये हैं कि केवल यह कहकर मुसलमान पल्ला नहीं झाड़ सकते कि कोई अगर इस्लाम के नाम पर हिंसा कर रहा है तो इससे दुनिया के बाकी मुसलमानों का क्या लेनादेना? सवाल यह है कि दुनिया के और मज़हब के लोग अपने धर्म के नाम पर अगर आतंकी हिंसा नहीं कर रहे तो सारे मुसलमानों से दुनिया आतंकवाद को लेेेकर सवाल भी करेगी, संदेह भी करेगी और मुसलमानों को नफरत और बायकॉट का सामना भी करना पड़ सकता है। इससे बचने को सोषल ब्रेनवाष की तत्काल ज़रूरत है।
 
अजीब लोग हैं क्या खूब मुंसफी की है
हमारे क़त्ल को कहते हैं खुदकशी की है।
 इसी लहू में तुम्हारा सफीना डूबेगा,
 ये क़त्ल नहीं तुमने खुदकशी की है।।  

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