Thursday, 20 November 2025

रोड एक्सीडेंट

*हर मौत पर नहीं केवल अपनों की मौत पर उबलता है हमारा समाज?*
0 क्या हमारा समाज और हम निष्ठुर अमानवीय संवेदनहीन अंतरनिहित आत्मकेंद्रित और स्वार्थी होते जा रहे हैं? जो लोग अपने धर्म जाति और क्षेत्र का एक व्यक्ति मारे जाने पर आसमान सर पर उठा लेते हैं, जो समाज अपने वर्ग का कुख्यात अपराधी तक मारे जाने पर गम और गुस्से में डूब जाते हैं, जो समूह अपने पालतू श्रध्देय और आस्था के प्रतीक जानवर तक मारे जाने या पकड़कर निर्जन इलाकों में दूर छोड़े जाने पर भी सड़कों पर उतर आता है वही लोग एक्सीडेंट में मारे जाने वाले दर्जनों लोगों पर चुप्पी साधे रहते है? क्यों? इससे उनको कोई दुख क्रोध और आक्रोश नहीं होता? इससे उनका मज़हब संस्कृति और सभ्यता ज़रा भी ख़तरे में नहीं पड़ती? यहां तक कि कितना ही बड़ा आदमी दुर्घटना में मारा जाये सब शांत रहते हैं।   
  *-इक़बाल हिंदुस्तानी*
     ट्रक और बस की भयंकर आमने सामने की भिड़ंत में दो दर्जन मरे एक दर्जन से अधिक घायल। आपने ख़बर पढ़ी सुनी और देखी। लेकिन आप ज़रा भी विचलित दुखी या सदमे में नहीं आये। यहां तक कि अगर इस तरह के रोड एक्सीडेंट मंे आपका कोई अपना भी मारा जाये तो आप दुखी तो अवश्य होते हैं लेकिन खास गुस्सा या नाराज़गी आपको नहीं होती। आप भगवान खुदा का लिखा मानकर अपने काम धंधे में लग जाते हैं। लेकिन अगर आपके अपने परिवार के सदस्य ही नहीं धर्म के अनुयायी जाति के भाई और क्षेत्र के निवासी की हत्या हो जाये तो आप बुरी तरह उबल पड़ते हैं। आपका खून खौलने लगता है। आप कानून की बजाये खुद अपराधी या आरोपी को सज़ा देने पर उतर आते हैं। यहां तक कि कई बार लोग ऐसे संदिग्ध आरोपियों की बिना सबूत गवाह और ठोस तथ्यों के मोब लिंचिंग यानी हत्या तक कर देते हैं। दुख और चिंता की बात यह है कि हमारे देश में ऐसी हत्यायें आम होती जा रही हैं लेकिन सरकार पुलिस या अदालतों को इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। अब अपने मूल विषय पर आते हैं। सड़क दुर्घटनाओं में जो लोग बेमौत मारे जाते हैं। उनकी ख़बरों में किसी को विशेष रूचि नहीं है। पुलिस मौका मुआयना कर अज्ञात या अमुक के खिलाफ रपट दर्ज कर घायलों को चिकित्सालय और मृतकों को पोस्टमार्टम या पंचनामे के बाद उनके परिवारजनों को सौंप देती है। सरकार मरने वालों को और घायलों को कुछ लाख या कुछ हज़ार मुआवज़ा घोषित कर देती है।
     जो कई बार मिलता ही नहीं। आप ऐसी ख़बरों पर एक सरसरी निगाह डालते हुए अपनी रूचि की चुनाव राजनीति सांप्रदायिक धार्मिक या एग्ज़िट पोल अवैध सैक्स बलात्कार हत्या गबन आॅनलाइन ठगी अपहरण की ख़बरों पर नज़र गड़ाकर रूचि से पढ़ते हैं यह जानते हुए भी ऐसे हादसों का अगला शिकार आप खुद भी हो सकते हैं, तब आपकी भी ख़बर पढ़ने या उस पर अफसोस जताने में कोई दिलचस्पी नहीं लेगा। दि हिंदू अख़बार में ऐसी सड़क दुर्घटनाओं पर एक विस्तृत रिपोर्ट छापी है। रपट बताती है कि ऐसे हादसों के कितने कारण हो सकते हैं। कोरोना से जितने लोग मरे उससे कहीं अधिक हर साल रोड एक्सीडेंट में मर जाते हैं। इसका कारण हमेशा लापरवाही से वाहन चलाना नहीं होता। रिपोर्ट स्टडी करने पर पता चलता है कि जब खराब सड़कें और खराब फैसले आपस मिलते हैं तो डिजास्टर सा जन्म लेता है। तेलंगाना में एनएच 163 का एक भाग डेथ काॅरिडोर कहा जाने लगा है। यह रिपोर्ट विस्तार से दुर्घटनाओं की स्टडी करके बताती है कि डिज़ाइन की भयंकर कमियां रखरखाव का घोर अभाव हादसों का गंभीर समीकरण पैदा करता है। लंबी रोड उपेक्षा से बड़े भयंकर गड्ढे मिट्टी मिला हुआ बालू और फसल क्षेत्रों का फैलाव अंधेरा मीडियन की कमी गायब चेतावनी बोर्ड अधिकांश हादसों की वजह बन रहे हैं। एक ट्रफिक डीसीपी का कहना था कि ड्राइवर का व्यवहार ही नहीं बल्कि उसका नशा करना सड़कों पर तीखे मोड़ तीव्र ढाल और संरचनात्मक कमियां दुर्घटनाओं की बड़ी वजह बनती हैं। एक सड़क निर्माण करने वाले जाने माने ठेकेदार का दावा है कि गुणवत्ता का सवाल इसलिये नहीं उठाया जा सकता कि उनको टेंडर हासिल करने से लेकर कदम कदम पर जो दलाली देनी पड़ती है उसका प्रतिशत अब बढ़कर 55 तक जा पहंुचा है।
     कथित एक्सप्रेस वे हों या नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे सब की हालत खस्ता है, एनएचएआई कर्ज में डूबा है और उसके लिये ही जगह जगह टोल वसूली जारी है। रोड ही नहीं रेलवे से लेकर एयरवेज़ तक सब जगह सुरक्षा और यात्री सुविधओं का अभाव है। हालांकि राजनेता मंत्री और अफसर सड़कों व ट्रेनों का उदघाटन करते हुए उनके वल्र्ड क्लास होने और उनकी स्पीड बुलेट जैसी होने का दावा करते हैं लेकिन वे सुरक्षा को लेकर चुप्पी साधे रहते हैं क्योंकि उनको भी पता है कि उनकी प्राथमिकता में सुरक्षा का कोई खास स्थान होता ही नहीं। अगर हम अब भी अतीत के गौरव की बात सभ्यता और संस्कृति के नाम पर आपस में बांटो और राज करो की राजनीतिक दलों की चाल को नहीं समझेंगे तो हमें भारी भरकम टैक्स वसूली के बाद भी जिस तरह से खराब सड़कों पर हादसों का आयेदिन शिकार होने को भगवान के भरोसे छोड़ दिया गया है, उसका अगला शिकार कोई भी हो सकता है और देश समाज ऐसे ही चलता रहेगा जैसे चल रहा है। इसलिये ज़रूरी है कि रोड एक्सीडेंट को नागरिक सुरक्षा का मुख्य मुद्दा बनाया जाये और चुनाव आने पर सवाल उठाये जायें, बाकी आपकी मर्जी अगर आपको इस तरह के हादसों से कोई परेशानी नहीं है। एक शायर ने कहा है-
 *0 ये लोग पांव नहीं जे़हन से अपाहिज हैं,*
*उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है।।* 
*नोट-लेखक नवभारत टाइम्स डाॅट काॅम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के चीफ़ एडिटर हैं।*

No comments:

Post a Comment