Tuesday, 4 November 2025

बाहुबली में खलबली

*अच्छे बाहुबली? बुरे बाहुबली?* 
*माफियाओं को लेकर खलबली!*
0 कभी अफ़गानिस्तान के तालिबान यानी कट्टरपंथियों को लेकर पूरी दुनिया में बहस चली थी कि उग्रवादी अच्छे और बुरे भी होते हैं। जब तक वे अमेरिका के खिलाफ लड़ते रहे उनको आतंकवादी बताया जाता रहा लेकिन अब जब वे अफगानिस्तान की सत्ता में आ गये हैं तो अच्छे और भले हो गये। ऐसे ही बिहार में चुनाव के दौरान जंगल राज की बार बार चर्चा होती है। इसके लिये बाहुबलियों को टिकट देने चुनाव जीतने पर सत्ता का संरक्षण देने और विपक्ष में होकर भी उनको बचाने के आरोप सभी दलों पर लगते रहे हैं। अजीब बात यह है कि सत्ताधरी जदयू के बाहुबलि अनंत सिंह ने मोकामा सीट से सुराज पार्टी के बाहुबलि दुलारचंद यादव की हत्या कर दी लेकिन जंगलराज का आरोप राजद पर है।   
  *-इक़बाल हिंदुस्तानी*
     इस लेख के छपने तक बिहार में पहले चरण का चुनाव हो चुका होगा। लेकिन जिन बाहुबलियों को लेकर राजनीतिक दलों में भीषण घमासान छिड़ा है, वह शायद दूसरे और अंतिम चरण तक नहीं बल्कि चुनाव परिणाम आने के बाद भी चालू रहेगा। इस मामले में हालांकि सभी दलों का रिकाॅर्ड कमोबेश दागदार है लेकिन जब जंगलराज की बात चलती है तो राजद को लालूराज के लिये घेरा जाता है। हम इस लेख में एक गंभीर मुद्दे पर चर्चा करेंगे कि आखि़र बाहुबलि इतने ही बुरे होते हैं तो सभी दल उनको चुनाव में टिकट और संरक्षण क्यों देते हैं? दूसरा अहम सवाल है यह है कि अगर सियासी दल सत्ता के लोभ में इन माफियाओं को टिकट दे भी देते हैं तो जनता इनको क्यों नहीं हरा देती?
     तीसरा और अंतिम सवाल यह है कि जब सभी दल समय समय पर अलग अलग अपराधियों हिस्ट्रीशीटर्स और कुख्यात माफियाओं को संरक्षण और टिकट देते ही हैं तो वे किस मुंह से दूसरे दलों को बाहुबलियों को पालने पोसने का ज़िम्मेदार ठहराते हैं? क्या सत्ताधरी दल के बाहुबलि अच्छे और विपक्ष के बाहुबलि बुरे होते हैं? बिहार की तो बात ही क्या यूपी तक जहां छोटे छोटे अपराधिक मामलों में भी आरोपियों के पैर में गोली मारकर उनके घरों पर बुल्डोज़र तक चला दिया जाता है और कई कई केस वाले कम चर्चित अपराधी भी फर्जी मुठभेड़ में मार गिराये जाते हैं, वहां भी बड़े अपराधियों घोषित माफियाओं और कई जाति के सिरमौर बनेे बाहुबलियों को सत्ता का और विपक्ष का संरक्षण अकसर मिलता रहा है। सोशल मीडिया में जबरदस्त फजीहत के बाद अनंत सिंह को पकड़ा गया है। यह शर्म की बात है कि न तो सरकार न ही चुनाव आयोग और न ही छोटी छोटी बातों पर सूमोटो लेने वाले कोर्ट ने इस हत्या पर कोई गंभीर पहल की। हालांकि जहां सत्ता में आना और उसमें किसी कीमत पर भी चुनाव जीतकर बने रहना ही लोकतंत्र माना जाता हो वहां जातिवाद साम्प्रदायिकता बाहुबलि भ्रष्टाचार झूठे दावे बेबुनियाद वादे चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद भी जनता के खाते में लाखों करोड़ सरकार के द्वारा डालते रहना चुनाव आयोग को गलत नहीं लगता। अगर आप गौर से जांच से करें तो आपको पता लगेगा कि चुनाव से ठीक पहले अनंत सिंह और आनंद मोहन सिंह को जेल से बाहर निकाला गया।
     इतना ही नहीं जेल में बंद प्रभुनाथ सिंह के भाई और बेटे को भी टिकट दिया गया। सत्ताधारी एनडीए के घटक दलों ने कुल आठ बाहुबलियों को टिकट दिया है। मोकामा के ही बाहुबलि सूरजभान नामांकन की अंतिम तिथि से पहले टिकट नहीं मिलने पर एनडीए से महागठबंधन में आकर टिकट पा गये। यूपी में 2012 के चुनाव में अखिलेश यादव ने अपना दामन साफ रखने के चक्कर में बाहुबलि डीपी यादव रमाकांत यादव राजा भैया बृजभूषण शरण सिंह अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी को मुलायम सिंह के लाख कोशिश करने पर भी अंतिम समय पर टिकट पर वीटो लगाकर वह चुनाव तो जीत लिया लेकिन वे अगली बार 2017 में जब हारे तो पता लगा एक वजह बाहुबलियों से उनका टिकट काटकर पंगा लेना भी था। सच यह है कि सामान्य या सज्जन विधायकों सांसदों के मुकाबले बाहुबलियों का साम दाम दंड भेद के द्वारा छोटे छोटे अपराधियों भ्रष्ट अधिकारियों और असरदार लोगों के साथ एक बड़ा पुख्ता व सक्रिय नेटवर्क होता है जो उनको न केवल चुनाव जिताने बल्कि जनप्रतिनिधि बनकर जनता के काम तत्काल कराने के लिये भी मुफीद होता है। उनके नाम के डर से भी वोट मिलते हैं। पुलिस प्रशासन उनके बताये काम लोभ और भय से करने से अकसर मना नहीं करते। जो ऐसा करने की हिमाकत करते हैं उनको सबक ये बाहुबलि खुद ही सिखा देते हैं। जनता को इनका यह अंदाज़ अच्छा लगता है।
      यहां तक कि ये बाहुबलि बच्चो के स्कूल एडमिशन और छोटे बड़े ठेके रोज़गार नौकरी इंटरव्यू सड़क बिजली कनेक्शन थाने में रपट राशन कार्ड विभिन्न सरकारी प्रमाण पत्र अस्पताल आॅप्रेशन तक के काम एक काॅल करके करा देते हैं जबकि बड़े बड़े नेता और अधिकारी स्कूल के मैनेजर और प्राचार्य से कई बार कहते कहते थक जाते हैं लेकिन वे उनकी काॅल तक सुनते ही नहीं। बाहुबलि अपने क्षेत्र में ही नहीं अपने आसपास के दर्जनभर चुनाव क्षेत्रों में भी उस दल को राजनीतिक लाभ पहुंचाता है जिसमें वह शामिल है। इलाहाबाद की आधे से अधिक सीटें समाजवादी पार्टी अतीक अहमद के बल पर जीत जाती थी। ऐसे ही बिहार में लालू यादव की सत्ता को लाने से लेकर बनाये रखने में शहाबुद्दीन जैसे बाहुबलि बड़ी भूमिका निभाते थे लेकिन सत्ता बदलने पर अधिकांश बाहुबलि नीतीश के दल में चले गये। इससे दोनों को संरक्षण मिला। इस समय शहाबुद्दीन अतीक और मुख्तार जैसे अधिकांश मुस्लिम बाहुबलियों को तो बदली सत्ता का साथ न देने पर ठिकाने लगा दिया गया है लेकिन हिंदू बाहुबलि अभी भी बड़ी संख्या में राजनीति में कई दलों के साथ काम कर रहे हैं। जब तक सियासत में नैतिकता शुचिता और पवित्रता नहीं आती बाहुबलियों को किसी ना किसी दल में सहारा मिलता ही रहेगा।
मस्लहल आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम,
तू नहीं समझेगा सियासत तू अभी नादान है।
 *नोट-लेखक नवभारत टाइम्स डाॅट काॅम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर के चीफ़ एडिटर हैं।*