*कांग्रेस से निकालेंगे ‘‘भाजपाई’’,*
*राहुल कर पायेंगे पूरी सफ़ाई?*
0 राहुल गांधी ने कहा है कि कांग्रेस में कुछ भाजपा की सोच के नेता हैं। ये तादाद में 30 से 40 तक हो सकते हैं। ये कांग्रेस में रहकर भाजपा के लिये काम करते हैं। उनका यह भी कहना था कि एक रेस का घोड़ा होता है दूसरा बारात का घोड़ा होता है। पार्टी में कभी कभी इनका उल्टा इस्तेमाल होता है जिससे कांग्रेस का नुकसान होता है। गांधी ने मज़ाक में यहां तक कह दिया है कि कांग्रेस में कई बबर शेर हैं लेकिन वे सो रहे हैं। इससे पहले राजस्थान छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश व हरियाणा की हार के बाद राहुल गांधी कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं पर अपने अपने परिवार के सदस्यों के चुनाव लड़ाने के लिये पार्टी के हित को अनदेखा करने का आरोप भी लगा चुके हैं। लेकिन अभी तक एक्शन क्यों नहीं लिया?
*-इक़बाल हिंदुस्तानी*
कांग्रेस अपने सबसे मुश्किल दौर का सामना कर रही है। राहुल गांधी ने जब से कांग्रेस की कमान संभाली है वह केंद्र की सत्ता में भले ही ना आ सकी हो लेकिन वह गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद से मज़बूत हुयी है इसमें कोई दो राय नहीं है। साथ ही जब से मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस का मुखिया बनाया गया है। तब से पार्टी में कुछ जान आई है। इसी का नतीजा है कि संसदीय चुनाव में उसके सांसद बढ़कर बढ़कर लगभग दोगुना हो गये हैं। इतना ही नहीं कांगे्रस के नेतृत्व में बने इंडिया गठबंधन ने भाजपा के 400 पार के नारे की हवा निकालकर उसके एमपी की संख्या पहले से 63 घटाकर उल्टा 240 तक सीमित कर दी है। लेकिन यह भी सच है कि लोकसभा के चुनाव के बाद से जितने भी राज्यों के चुनाव हुए हैं उनमें कश्मीर और झारखंड को छोड़कर भाजपा ने लगभग सबमें बाज़ी मारकर अपना माॅरल हाई कर लिया है। इस सब कवायद में कांग्रेस को सबसे अधिक झटका लगा है। हालांकि कांग्रेस और उसके गठबंधन सहयोगियों ने एक के बाद एक हार के लिये भाजपा पर मतदाता सूची में गड़बड़ी और चुनाव आयोग की मिलीभगत का गंभीर आरोप लगाया है। लेकिन इस मामले में आज तक कोई ठोस आंदोलन विरोध प्रदर्शन या कानूनी कार्यवाही होती नज़र नहीं आ रही है। इस दौरान राहुल गांधी ने लीक से हटकर कांग्रेस की हार की निष्पक्ष और साहसी समीक्षा करनी शुरू की है। उन्होंने माना है कि कांग्रेस की सीधी लड़ाई सत्ता की नहीं वैचारिक और उसूलों की लड़ाई है। उनका कहना है कि वे आरएसएस की साम्प्रदायिक झूठी और नफरत की सोच के खिलापफ लड़ रहे हैं। उनका यह भी आरोप है कि मोदी सरकार ने चुनाव आयोग पुलिस ईडी इनकम टैक्स पर पूरा और अदालतों की स्वायत्ता व स्वतंत्रता पर आंशिक रूप से कब्ज़ा कर लिया है। इसके लिये वे इंडियन स्टेट से लड़ने तक का विवादित बयान तक दे चुके हैं।
गांधी ने यह भी माना कि जब उनके साथ दलित आदिवासी और अल्पसंख्यक लंबे समय तक लगभग तीन चैथाई रहे तो कांग्रेस की सराकर उनके लिये उतने भलाई के काम नहीं कर सकी जितने करने चाहिये थे। उनको शायद पता नहीं या बाद में कभी वे यह भी मानेंगे कि पिछड़े आज भाजपा की सबसे बड़ी ताकत बने है जिसे कांग्रेस ने कभी अहमियत नहीं दी। उसको आरक्षण देने के लिये देश आज़ाद होने के दो दशक बाद तक कांगे्रस ने सोचा तक नहीं। इसके बाद काका कालेलकर आयोग बनाया गया। उसकी रिपोर्ट दस साल बाद आई और कांग्रेस ने ठंडे बस्ते में डाल दी। इसके बाद मंडल आयोग बना। उसने पिछड़ों को रिज़र्वेशन देने की सिफारिश की उसको भी कांग्रेस ने अनसुना कर दिया। वी पी सिंह की जनमोर्चा सरकार ने मंडल आयोग लागू कर पिछड़ांे को आरक्षण दिया। जिससे पिछड़े कांग्रेस से नाराज़ हो गये। कांग्रेस सरकार ने संघ और भाजपा को अपनी नीतियां लागू करने को खुलकर मौका दिया। दूरदर्शन पर रामायण व महाभारत दिखाकर उनके पक्ष में हिंदूवादी माहौल बनाया। शाहबानों केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटकर मुस्लिम कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेककर हिंदू ध््राुवीकरण करने का संघ परिवार को खुल मैदान दिया। बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाकर दंगे रामरथ यात्रा गुजरात दंगे और कांग्रेस में भाजपा की सोच के नेताओं को हिंदू कार्ड खेलने का जोखिम लिया। सत्ता में रहते कांग्रेसियों ने करप्शन में भी रिकाॅर्ड तोड़े। आज इसी का नतीजा है कि भाजपा सरकार जिस कांग्रेसी को चाहे उसे ईडी व सीबीआई से टारगेट कर लेती है।
बसपा की मायावती को जेल भेजने का डर दिखाकर ही भाजपा ने उनकी पार्टी को लगभग खत्म कर दिया है। ऐसी और भी कई क्षेत्रीय पार्टियां और कांग्रेस सहित अन्य दलों के नेता हैं जिनको जांच के नाम पर डराकर भाजपा या तो कांग्रेस से खींच लेती है या फिर उनको कांग्रेेस में रहकर भाजपा के लिये काम करने को मजबूर कर देती है। एक सच यह भी है कि कई ईमानदार और सच्चे कांग्रेस व विपक्षी नेताओं को झूठे आरोप मुकदमें और जांच में उलझाकर भाजपा उनकी पार्टी छोड़ने को मजबूर कर देती है। ऐसे मामलों में राहुल गांधी के पास क्या बचाव है यह वही बता सकते हैं। इतना ही नहीं भाजपा के पास जो संघ के लाखों कार्यकर्ता हैं जिस तरह समर्पण त्याग और मेहनत से वे पार्टी के लिये काम करते हैं। उसका कोई विकल्प कांगे्रस के पास आज नहीं है। कांग्रेस ने मीडिया और न्यायपालिका में कभी उच्च जातियों के साथ पिछड़ों दलितों और अल्पसंख्यकों को उनकी जनसंख्या के हिसाब से भागीदारी देने की गंभीर कोशिश नहीं की जिसकी कीमत आज वह खुद ही चुका रही है। कांग्रेस ने अपने नवजीवन कौमी आवाज़ और नेशनल हेराल्ड जैसे अखबार बंद कर दिये और कभी कोई नेशनल मैगजीन या टीवी चैनल शुरू नहीं किया जिससे आज उसकी बात जनता तक नहीं पहुंच रही है। कांग्रेस ने जनता पार्टी जनतादल वामपंथी और क्षेत्राीय दलों को स्वस्थ विपक्ष के तौर पर कभी विकसित नहीं होने दिया जिससे विपक्ष की खाली जगह संघ ने भाजपा को धर्म की राजनीति के सहारे सत्ता में लाकर भर दी।
कुछ समय पहले खुद राहुल मंदिर मंदिर जाकर अपना जनेउू दिखाकर और खुद को वैष्णवी ब्रहम्ण बताकर भाजपा के पाले में घुसकर उसकी हिंदू साम्प्रदायिकता को जाने अंजाने में मान्यता देने की गल्ती कर चुके हैं। राहुल गांधी को यह भी समझ आ गया होगा कि कांग्रेस भाजपा की तरह हिंदू साम्प्रदायिकता ध््राुवीकरण मुस्लिम विरोध दलित विरोध गरीब विरोध व्हाट्सएप प्रोपेगंडा काॅरापोरेट से दोस्ती कर मोटा चंदा धर्म की राजनीति नफ़रत की सियासत पिछड़ों का आरक्षण निजीकरण कर खत्म करना सत्ता का भाजपा की तरह खुलकर साम दाम दंड भेद से बेशर्म दुरूपयोग कर हर कीमत पर चुनाव जीतना इतिहास बदलना अतीत का झूठा गुणगान करना औरा भविष्य के फर्जी सपने दिखाकर भोली जनता को झांसे में लेना व चीन तथा अमेरिका के सामने अन्याय व अपमान पर चुप्पी साधना उसके बस की बात नहीं है। सवाल अब यह है कि देर आयद दुरस्त आयद ही सही लेकिन जब राहुल गांधी को कांग्रेस की जिन गल्तियों कमियांे और बुराइयों पता चल चुका हैं तो उन पर एक्शन लेने के लिये कौन से शुभ मुहूरत की प्रतीक्षा की जा रही है? बाकी यह बात सही है कि सत्ता मिले या ना मिले लेकिन भाजपा व संघ से बिना डरे अपनी जनहित की बात अपनी निष्पक्ष सोच और अपना सही वीज़न जनता के सामने रखना चाहिये।
0 यहां मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है,
कई झूठे इकट्ठे हों तो सच्चा टूट जाता है।
तसल्ली देने वाले तो तसल्ली देते रहते हैं,
मगर वो क्या करे जिसका भरोसा टूट जाता है।।
*0 लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ़ एडिटर हैं।*