असली मुद्दों से है ध्यान हटाना?
0 पीएम मोदी के मुताबिक दिनेश विजयन की फ़िल्म ‘छावा’ छा गयी है। इससे पहले वे केरल स्टोरी और कश्मीर फ़ाइल की भी तारीफ़ कर चुके हैं। ज़ाहिर बात है ऐसी फ़िल्में जो संघ परिवार के एजेंडे को आगे बढ़ाती हैं वे पीएम को भी पसंद आयेंगी ही। लेकिन वे यह नहीं बतायेंगे कि हमारी जीडीपी दर क्यों घट रही है? वे इस पर भी चुप्पी साधे हैं कि हमारा शेयर मार्केट लगातार क्यों गिर रहा है? मोदी महंगाई व बेरोज़गारी पर भी म ओर ब बोलने को तैयार नहीं हैं। वे अमेरिका द्वारा प्रवासी भारतीयों को बेड़ी और हथकड़ी लगाकर भेजने पर भी मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं। वे जियो और एयरटेल के एलन मस्क के स्टार लिंक के साथ इंटरनेट क़रार पर देश के संवेदनशील डाटा शेयर करने के ख़तरे पर भी नहीं बोलते तो फिर औरंगज़ेब पर ही बोलेंगे।
*-इक़बाल हिंदुस्तानी*
इतिहास गवाह है कि औरंगजे़ब एक कट्टर क्रूर और निर्दयी बादशाह था। मुगलकाल 1526 में बाबर से शुरू होकर अकबर जहांगीर से होता हुआ शाहजहां तक आता है। इसके बाद परंपरा के अनुसार शाहजहां के बड़े बेटे दाराश्किोह को राजा बनना था। लेकिन औरंगजे़ब बगावत कर दाराश्किोह को जंग में पहले हराता है, बंदी बनाता है और फिर उसको मारकर खुद बादशाह बन जाता है। वह अपने पिता शाहजहां को भी ज़िंदगीभर जेल में डाल देता है। वह अपने राज में कुछ मंदिर बनवाने के लिये ज़मीन दान देने जैसे अच्छे काम से लेकर कई ऐसे विवादित फैसले भी करता है जो उसको बड़ा कट्टरपंथी धर्मांध ज़ालिम और घोर साम्प्रदायिक व हिंदू विरोधी ठहराने के आरोप सही साबित करने के लिये कुछ इतिहासकार दावा करते हैं। साथ ही यह भी सच है कि कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम उसको बड़ा महान बताते हैं। जबकि देश के भाईचारे और सौहार्द के लिये ऐसा मानना बिल्कुल गलत है। लेकिन वह दौर ही ऐसा था। अशोक ने कलिंग की जंग के लिये कितना खून बहाया? उसने भी अपने भाइयों की हत्या की थी या नहीं? अंग्रेज़ों ने हमारा कितना नुकसान किया? कितना अन्याय अत्याचार किया? कितना लूटकर ले गये? आप उन मुद्दों पर बात क्यों नहीं करते? वे कौन थे जो देश को आज़ाद कराने के लिये लड़ रहे स्वतंत्रता सेनानियों की मुखबिरी करके अंग्रेज़ों का साथ दे रहे थे? वे कौन थे जिन्होंने राजा रजवाड़ों का साथ दिया? वे कौन थे जिन्होंने देश आज़ाद होने के 50 साल बाद तक अपने आॅफिस पर राष्ट्रीय झंडा नहीं फहराया? कहने का मतलब यह है कि इतिहास अच्छा या बुरा जो भी हो आप उसको मिटा नहीं सकते, बदल नहीं सकते और छिपा नहीं सकते।
आपने औरंगाबाद का नाम बदलकर शंभाजी नगर कर दिया। अब औरंगजे़ब की कब्र का नामो निशान भी मिटाना चाहते हैं तो मिटा दीजिये कौन रोक रहा है? लालकिला और ताजमहल भी आपके रहमो करम पर है जब चाहंे जो चाहें आप उनका कर सकते हैं? सवाल यह नहीं है कि औरंगजे़ब बुरा था या अच्छा था? यूपी के सीएम योगी जी तो अकबर को भी उसी केटेग्री में रखते हैं। जहां तक बहुसंख्यकों की भावनाओं का सवाल है तो देश की एकता भाईचारे और विकास व शांति के लिये उनका सम्मान किया जाना चाहिये। बाबरी मस्जिद राम मंदिर का विवाद खत्म करने को अल्पसंख्यकों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बिना गवाह सबूत और दस्तावेज़ों पर सवाल उठाये अमन चैन के लिये स्वीकार कर लिया था लेकिन अब प्लेस आॅफ वर्शिप एक्ट होने के बावजूद मथुरा कांशी और संभल के धार्मिक स्थलों पर विवाद शुरू हो गया है।
क्या अल्पसंख्यकांे की भावनाओं का सम्मान किये बिना शांति एकता और सौहार्द बना रह सकता है? अगर आप गिनने लगें तो गौरक्षा के नाम पर माॅब लिंचिंग, आज़म खां, डा. कफ़ील पत्रकार सद्दीक कप्पन, उमर खालिद, बिल्कीस बानो, फर्जी एनकाउंटर, हाफ एनकाउंटर, आरोपी के घर बुल्डोज़र, मस्जिदों मदरसों पर विवाद, एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा खत्म करने की मांग, अलीगढ़ का नाम हरिगढ़ का शिगूफा, एनआरसी, सीएए, एक खास वर्ग से आंदोलन में नुकसान पहुंची सम्पत्ति के हर्जाने की वसूली, सार्वजनिक स्थानों पर नमाज़ पर रोक, वक्फ बोर्ड को माफिया बोर्ड बताना, लोगों को कपड़ों से पहचानना, शाहरूख सलमान सैफ को टारगेट करना, हज सब्सिडी का विरोध कुंभ पर बेतहाशा खर्च, शोभायात्राओं का मस्जिदों के सामने हंगामा, जस्टिस शेखर यादव का अल्पसंख्यकों के लिये विवादित बयान, काॅमन सिविल कोड, कश्मीर की धारा 370 हटाकर उसको विभाजित कर केंद्र शासित प्रदेश बना देना जबकि अन्य उस जैसे राज्यों में 370 जैसी धारा लागू रखना आदि ऐसे अनेक मामले पक्षपात अन्याय और अत्याचारों की लंबी सूची है जिनसे एक वर्ग को टारगेट कर दूसरे बड़े वर्ग के वोट बैंक का तुष्टिकरण कर चुनाव जीतने की सोची समझी योजना पर काम चल रहा है? जबकि असली मुद्दे दबाये जा रहे हैं।
0 मैं तो इस वास्ते चुप हूं कि तमाशा न बने,
तू समझता है कि मुझे तुझ से गिला कुछ भी नहीं।
नोट- लेखक नवभारत टाइम्स डाॅटकाम के ब्लाॅगर और पब्लिक आॅब्ज़र्वर अख़बार के चीफ़ एडिटर हैं।
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