इक़बाल हिंदुस्तानी
@मुस्लिम समाज को भी इस सवाल का जवाब जल्द तलाशना होगा।
पैरिस पर आईएस के भीषण आतंकवादी हमले की पूरी दुनिया ने निंदा की है। इससे पहले जब रूस के विमान को आईएस ने मार गिराया था तब भी पूरे विश्व में दहशतगर्दी को लेकर चिंता व चर्चा हुयी थी लेकिन जिस तरह आईएस के खिलाफ कार्यवाही को लेकर आज संयुक्त राष्ट्र ने मंजूरी दी है पैरिस जैसा हमला जब भारत के मुंबई पर हुआ था तब न तो यूरूपीय देशों और न ही अमेरिका ने ऐसा कठोर रूख अपनाया था। अमेरिका जो इस सारे फ़साद की एक बड़ी वजह खुद है वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमले से पहले भारत पर आये दिन होने वाले आतंकी हमलों को दो देशों का आपसी विवाद मानकर बहुत हल्के में लेता रहा है। इतना ही नहीं जिस विश्वव्यापी आतंकवाद को लेकर आज दुनिया भयभीत और चिंतित है वह उस समय चुपचाप तमाशा देख रही थी जब रूस ने अफ़गानिस्तान पर अवैध रूप से घुसपैठ करके कब्ज़ा किया था और नजीबुल्ला के नेतृत्व में वहां अपनी कठपुतली सरकार अपनी सेना के बल पर बैठा दी थी।
इसके बाद अमेरिका ने जब पाकिस्तान के सहयोग से वहां से रूसी सेना को निकालने के लिये अपनी और पाकिस्तान की फौज के बजाये आतंकवादी संगठन तालिबान का आत्मघाती सहयोग लिया तब भी पूरी दुनिया इस पर चुप्पी साध्ेा रही। इसके बाद जब अफगानिस्तान से रूस का कब्ज़ा ख़त्म हो गया तो वही हुआ जिसका डर था कि एक बार जब तालिबान का आतंकी जिन्न बोतल से बाहर आ गया तो उसने काम ख़त्म होने के बाद वापस बोतल में जाने से साफ मना कर दिया। अमेरिका और पाकिस्तान ने सोचा इससे उनका क्या बिगड़ना है लिहाज़ा वे इसे अफगानिस्तान की अन्दरूनी समस्या मानकर एक तरफ हो गये। उधर तालिबान कब अलकायदा बन गया यह अमेरिका को तब पता लगा जब वह 9/11 का खुद शिकार हो गया।
ऐसे ही पाकिस्तान जब तक तालिबान के आतंकियों को अफगानिस्तान और भारत के कश्मीर में भेजकर अपना नापाक मकसद पूरा करता रहा तब उसको गांधी जी की इस बात का अहसास नहीं हुआ कि पवित्र लक्ष्य को हासिल करने के लिये साधन भी पवित्र होने चाहिये लेकिन जब तालिबान आतंकियों ने अपने आक़ा पाकिस्तान को भी डसना शुरू किया तो उसे लगा यह तो आग का खतरनाक खेल है। शायद इतना कुछ कम था जो अमेरिका और ब्रिटेन ने बिना किसी ठोस सबूत के रासायनिक हथियारों का झूठा आरोप लगाकर अपनी सेना ईराक में भेज दी। इसके पीछे दुनिया ने अमेरिका की अकड और ईराक के तेल पर उनकी लालची नज़र मानी। फिर इसके बाद सीरिया में विद्रोहियों की मदद से वहां की सरकार उखाड़ने का अभियान बिना यह सोचे अमेरिका ने चालू कर दिया कि इसके बाद जो लोग सत्ता में आयेंगे वे पहले से अधिक कट्टर और मज़हबी उन्मादी होंगे जो पूरी दुनिया के लिये आतंकी शैतान साबित हो सकते हैं।
अमेरिका ने अफगानिस्तान में इतना समय धन शक्ति लगाकर और लाखों लोगों की जान लेकर भी यह सबक नहीं सीखा कि वह अपने विरोधभासी रूख के कारण इस तरह से आतंकवाद को ख़त्म नहीं कर सकता। यूरूप और अमेरिका को आज भी यह बात समझ में नहीं आ रही कि एक तरफ तो वह पाकिस्तान और सउूदी अरब जैसे अपने दोस्त रूपी दुश्मनों के साथ मिलकर आतंक का मुकाबला करने की नाकाम कोशिश कर रहा है और दूसरी तरफ केवल सैन्य शक्ति के बल पर यह काम कठिन नहीं असंभव है। जहां तक मुस्लिम मुल्कों और इस्लामी आलिमों का मामला है वे हर बड़े आतंकी हमले के बाद इसकी निंदा करते हैं और साथ साथ यह दावा करके खुद को इस ज़िम्मेदारी से मुक्त कर लेते हैं कि इस्लाम ने इस तरह की हरकतों को सख़्ती से मना किया है और ऐसा करने वाले सच्चे मुसलमान नहीं हो सकते।
हम भी मान लेते हैं कि वे ठीक कह रहे हैं लेकिन सवाल यह है कि फिर भी ऐसा लगातार न केवल हो रहा है बल्कि ऐसी आतंकी घटनाये बढ़ती जा रही हैं तो दुनिया मुसलमानों से यह सवाल तो बार बार पूछेगी ही कि जब इस्लाम में इस तरह की हिंसा को मना किया गया है तो ये लोग क्यों पूरी दुनिया मंे तबाही और बर्बादी मचा रहे हैं? सवाल यह है कि केवल मुसलमानों का एक कट्टर वर्ग ही ऐसा क्यों सोच रहा है कि केवल उनका मज़हब ही अच्छा और सच्चा है? मुस्लिम आतंकी ही यह दावा क्यों कर रहे हैं कि एक दिन पूरी दुनिया में इस्लामी हकूमत क़ायम करनी है? सिर्फ मुस्लिम दहशतगर्द ही ऐसा क्यों मानते हैं कि अपनी जान देकर आत्मघाती विस्फोट कर वे इंसानियत के क़ातिल नहीं शहीद हो रहे हैं और ऐसा करके वे दीन की बड़ी सेवा कर सीधे दोज़ख़ नहीं जन्नत में जाने की तैयारी कर रहे हैं?
मुस्लिम समाज को इस सवाल का भी जवाब तलाशना होगा कि जो मुस्लिम आतंकवादी खुद को सच्चा अच्छा और पक्का मुसलमान मानकर पूरी दुनिया में ख्ूान खराबा कर रहे हैं उनका प्रेरणा श्रोत कौन और कहां है और उसको कैसे ख़त्म किया जा सकता है? आतंकवादी घटनायें बढ़ते जाने से आज पूरी दुनिया में हर मुसलमान को शक की निगाह से देखा जा रहा है उनकी हवाई अड्डों रेलवे स्टेशनों और सार्वजनिक स्थानों पर सघन तलाशी हो रही है उनको बम विस्फोट और आत्मघाती हमलों के डर से दूसरे धर्मों के लोग रोज़गार देने स्कूलों में प्रवेश देने और किराये पर मकान देने से भी बचने लगे हैं।
आज ज़रूरत इस बात की है कि जहां अमेरिका यूरूप और विकसित देशों को अपनी भूल सुधार करके अपनी पूर्व में की गयीं मानवता विरोधी गल्तियों की माफी मांगकर भविष्य में किसी मुस्लिम देश में अवैध घुसपैठ और कट्टर आतंकी सोच के विद्रोहियों को हथियार और प्रशिक्षण से तौबा करनी होगी जिससे प्रतिक्रिया में पैदा होने वाला सशस्त्र विरोध और बदला आतंकवाद व कट्टरवाद का खाद पानी न बन सके और साथ ही मुस्लिम देशों और आलिमों को अपने बिगड़े हुए भ्रमित मुस्लिम युवाओं को ब्रैनवाश करके यह समझाना होगा कि यह खून और आग का रास्ता दुनिया ही नहीं पूरी मुस्लिम कौम की भी तबाही और बर्बादी का कारण बन सकता है।
इसके साथ ही विश्व ही नहीं हमारे देश में भी भारत को हिंदू या इस्लामी राष्ट्र बनाने का सपना पाले धर्म और साम्प्रदायिकता की सियासत करने वालों को यह समझना होगा कि इस तरह की हरकतें आतंकवाद को न केवल जन्म देती हैं बल्कि एक बार माओवाद की तरह यह पैदा हो जाये तो लंबे समय तक आप हथियारों के बल पर भी इससे निजात नहीं पा सकते इसलिये बेहतर यही है कि धर्म के आधार पर किसी के साथ भेदभाव पक्षपात हिंसा और अन्याय न किया जाये तो ये सबके हित में है। कवि नीरज की ये पंक्तियां आज के दौर में कितनी सामयिक हैं।
अब तो दुनिया में एक मज़हब ऐसा भी चलाया जाये,
जिसमें हर आदमी को पहले इंसान बनाया जाये।।
Sunday, 22 November 2015
पैरिस हमला: ज़िम्मेदार कौन?
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